भारतीय किसान vs क्रिकेट स्टेडियम

 



भारतीय किसान vs क्रिकेट स्टेडियम 


 देश में बारिश अभी शुरू ही हुआ है की इसके नुकसान  की खबरे तेजी से आने लगी है इस नुकसान में क्या बारिश की गलती है या फिर कुछ बड़े पदों पर बैठे सरकारी नौकरशाहों  की है ?


हमारे देश में सरकारी अधिकारी दिन में सपने देखते है और रात में सोते है यह किसी साहित्यकार की कल्पना नहीं बल्कि यह भारत देश  के राज्य मध्य प्रदेश के किसानो की पीड़ा - आह से उपजा बयान  है |


 वे किसान जो मेहनत से फसल उगाता है और फिर उसी फसल को सरकारी मंडियों में खुले में भीगते और बर्बाद होते हुए देखता है 

यह स्थिति प्रदेश के लाखो किसानो की है दूसरा संकट कोरोना बगैर  बताये  ही देश के साथ साथ इस  राज्य में भी अपने पैर लगातार पसार रहा है इससे रणनीति बनाने से लेकर फैसला लेने तक , बड़े से लेकर छोटे स्तर पर कई गलतिया हुई है और अभी भी लगातार हो रही है  |


मजबूर मजदूर  ने हजारो किलोमटर पैदल चलकर लम्बी दूरी  तय कर ली लेकिन आरोप प्रत्यारोप से अपने आप को दूर रखा राशन की लाइन में लग गये लेकिन अनशन नहीं किया संक्षेप में कहे तो आम नागरिक ने कोरोना के नाम पर सब कुछ सह लिया |


लेकिन निसर्ग चक्रवात तो पल पल की सूचनाये देते हुए देश की तरफ बढ़ा और इससे देश को लाखो करोडो रुँपये की बर्बादी उठानी पड़ी आप सभी जानते ही है की मौसम विभाग ने भी कई दिनों पहले से ही चेतावनी  देना शुरू कर दिया था मौसम विभाग के अलर्ट जारी होने के बाद भारतीय सरकारी व्यवस्था सक्रिय हो गया 


देश की राजधानी से आदेश चलना शुरू हुआ और फिर चलता ही चला गया प्रमुख सचिव से संभागायुक्त से कलेक्टर और कलक्टर से मंडी सचिव तक लेकिन आश्चर्य की बात यह भी है की इस आदेश में सभी एक दुसरे को अलर्ट जारी करते हुए खुले में पड़े गेहू को बचाने की सलाह ही दे रहे  है लेकिन यह गेहू बचेगा कैसे ? इसे कौन बचाएगा ? इसका कोई उल्लेख ही नहीं है सच तो ये है की जैसे गेहू खुले में पड़ा है वैसा ही इनका आदेश भी खुला ही रह जाता है |  


गेहू भीग जाने पर जैसे कोई जिम्मेदार नहीं है वैसे ही इस आदेश का उल्लंघन करने पर कोई दोषी नहीं होता है इसलिए किसी  के पास यह जवाब ही नहीं है की इतने पहले से आये आदेश निर्देश के बाद भी गेहू भीग कैसे गया  ?


यह तो सभी को पता है राजनीति  के इस खेल में लगी सरकारे इस प्रश्न  का जवाब तो नहीं दे सकती इस पूरी घटना को एक अन्य उदाहरण  से समझा जाए तो एक एक पॉइंट क्लियर होगा जैसे : खेल के मैदान से |




खेल का मैदान कोई भी हो सकता है लेकिन सबसे अच्छा उदाहरण क्रिकेट मैच होगा हम सभी के लिए | क्रिकेट मैच में जब बारिश शुरू होती है तो दर्शको से भरे रहने वाले स्टेडियम को कुछ ही मिनट के अंदर पीच और पुरे मैदान को कवर कर दिया जाता है  निसर्ग चक्रवात महाराष्ट्र , गुजरात और मध्यप्रदेश से होकर ही गुजरा है इसलिए इन 3 राज्यों के क्रिकेट मैदान पर ही नजर डालते है |


इन तीनो ही राज्यों में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के स्टेडियम है क्या स्टेडियम और गेहू मंडी की थ्योरी को इन तीन  खेल मैदानों से समझा जा सकता है ?

 जैसे गुजरात राज्य के अहमदाबाद शहर में दुनिया का सबस बड़ा मोटेरा स्टेडियम जो अब नरेन्द्र मोदी स्टेडियम हो गया है इस स्टेडियम में एक साथ एक लाख दस हजार लोग बैठ कर क्रिकेट के मैच का मजा ले सकते है |

महाराष्ट्र राज्य के मुंबई में वानखेड़े स्टेडियम का भी यही हाल है और इस प्रकार मध्य प्रदेश राज्य में 2 अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के  स्टेडियम है पहला इंदौर का होलकर स्टेडियम और दुसरा ग्वालियर  में बना  है इन सभी स्टेडियम में बारिश के दौरान घास और पिच को बचाने  की पूरी फुल व्यवस्था की गई है | 






वही इंदौर शहर में बने होलकर स्टेडियम में ऐसी व्यवस्था है  जो दुनिया के बड़े बड़े क्रिकेट स्टेडियम में नहीं है 1 लाख 53000 वर्ग फीट मैदान में बने इस स्टेडियम को कवर करने के लिए 60 से 70 स्टाफ का प्रशिक्षित स्टाफ है अधिक से अधिक 30 मिनट के अंदर पुरे मैदान को प्लास्टिक से कवर करके पानी से बचाया जा सकता है और हो भी रहा है |


आप सभी दोस्तों को याद भी होगा की वर्ष २०19 के क्रिकेट वर्ल्ड कप के समय जब 4 मैच बारिश के कारण रद्द कर दिए गए थे तब देश  और दुनिया ने क्रिकेट मैदान को बारिश से बचाने के लिए बहुत सी पद्धतिया लेकर सामने आई थी 

 वैसे भी क्रिकेट मैदान बहुत ही बड़े होते है और ऊपर से खुले भी होते है लेकिन बारिश कितनी भी तेज क्यों न हो इसे गिला होने से हर  हाल में बचा ही लिया जाता है देश के कई मैदानों में सुपर सापर से आगे जाकर आधुनिक तकनीकी से  Sub Air System ( सब एयर सिस्टम )  और हेरिंग बॉन सिस्टम का यूज़  किया जा रहा है इससे मैदान के अंदर ही अंदर पानी को सोख कर बाहर निकाल दिया जाता है ये सिस्टम अब कई देशो  में लागू होने लगा है |


 इतना सब कुछ केवल  कुछ देर यही कोई अगर टेस्ट मैच  है तो 5 दिन , वन डे ( एकदिवसीय मैच ) मैच तो 1 दिन , T -20  हो तो 4  से 5 घंटे के मनोरंजन के लिए ये सब किया जाता है अगर आप किसी से इस तरह तुलना करने की बात करेंगे तो हो सकता है की एक तर्क यह भी दिया जा सकता है की क्रिकेट में लाभ का गणित काम करता है इससे खिलाडी , कर्मचारी , खेल संगठन , सरकार,  राज्य सरकार व केंद्र सरकार दोनों और सोशल मीडिया को बहुत ही ज्यादा फायदा होता है लेकिन इसके अलावा किसी को न के बराबर फायदा होता है |


 लेकिन फिर भी प्रतिदिन नए नए टेक्नोलॉजी का यूज़  किया जा रहा है क्या 70 % कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाले मध्य प्रदेश राज्य में एक या दो आदर्श मंडी नहीं स्थापित की जा सकती है ?


आप सभी को जानकारी होनी ही चाहिए की अकेले मध्य प्रदेश राज्य में 250 मंडिया  है जहा पर इस समय MSP ( न्यूनतम समर्थन मूल्य ) रेट  पर गेहू की खरीद बिक्री चल रही है अब अगर पुरे देश की बात की जाये तो कृषि भारतीय अर्थव्यवथा की रीढ़ की हड्डी है और फिर भी ये हाल बना हुआ है ये तो वो वाली बात हो गई है जो जितना महत्वपूर्ण उसका उतना ही हाल ख़राब |


भारत एक कृषि प्रधान देश है देश की 52 % आबादी अपने आजीविका के लिये आज भी कृषि पर निर्भर है भारत देश में पुरे विश्व का 12 % क्षेत्रफल पर गेहू की खेती की जाती है अगर इसी तरह की लापरवाहिया आगे भी होती रही तो क्या हम 2022 में किसानो की आय दोगुना कर पाएंगे ? 


क्योकि वर्तमान केआकड़े और ग्राउंड रिपोर्ट के माध्यम से मिली जानकारी से असंभव ही लग रह है क्योकि वास्तविकता कुछ और  ही है एक रिपोर्ट पर बात कर लिया जाये हिन्दुस्तान न्यूज़ पेपर की रिपोर्ट है इनके अनुसार भारत में प्रतिवर्ष 40 % अनाज बेकार हो जाता है और जिसके कारण से हर दुसरा बच्चा कुपोषण का शिकार है |


इसे हम रुपये में बात कर तो 1 लाख करोड़ रुपये की बर्बादी हो रही है यूनिसेफ संस्था ने तो पूरी दुनिया के साथ आने वाले 2030 तक दुनिया से भुखमरी को ख़त्म करने का लक्ष्य रखा है ऐसे मे भारत देश के पास भी अभी 10 वर्ष का समय है अब ये तो सरकार ही बताएगी की समय तो कही कम नहीं है 2050 भी भारत सरकार तय कर सकती है |


कुछ आकड़े एक लाइन वाले  है :-

 जैसे : 2.1  करोड़ टन गेहू प्रतिवर्ष ख़राब , 

23 करोड़ टन है वार्षिक भोजन की आवश्यकता , 

40% भोजन वार्षिक उत्पादन में ही बेकार हो जाता है  , 


हैरानी वाली बात तो ये है की ब्रिटेन में जितना अनाज पूरा देश मिलकर  खाते है भारत देश में उतना ही अनाज बेकार हो जाता है प्रतिवर्ष  |

और भारत में आज भी करीब 20  करोड़ लोग प्रति दिन रात में भूखे पेट ही सो जाते है देश में प्रति दिन 3000 बच्चे कुपोषण के शिकार हो रहे है |


 निसर्ग चक्रवात आने से पहले से ही यह चेतावनी चल रही थी कि खुले में रखे गेहू को बचाने के प्रबंध किया जाये अगर निसर्ग चक्रवात नहीं भी आता है अब अगले कुछ ही दिनों में केरल राज्य में मानसून भी आने वाला है फिर यही प्रश्न उठेगा की अनाज की सुरक्षा कैसे की जाए इसलिए  एक कठोर कदम उठाने की जरुरत है वरना देश पालने वाला किसान जिस दिन खेती करके अनाज उपजाना बंद कर देगा उस दिन सरकारे और इनके नौकरशाह क्या मैच देख और दिखाकर देश की जनता का पेट भरेंगे ? 


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