इस लेख में निम्न टॉपिक है :-
1.विवाद का कारण
2.इस्लाम में क्या है नियम
3.हिन्दू धर्म में नियम
4.दुनिया भर में अजान के नियम
5.अधिक शोर से प्रभाव
6. कुछ जरुरी बाते
आप सभी को अच्छे से याद होगा कि कुछ समय पहले ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसले दिया था जिसमें हाई कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहां था की अजान को धार्मिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ मामला माना जाएगा
मामला क्या था ? और क्यों इतना अधिक विवाद बढ़ गया था ?
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर समेत 3 जिलों की मस्जिदों में अजान पर लगी रोक के मामले में दायर याचिका पर सुनाई करते हुए माननीय इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मस्जिद में से मौखिक अजान की अनुमति दी थी लेकिन लाउडस्पीकर से अजान की इजाजत नहीं दी थी
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने दिए फैसले में अजान को धार्मिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ मुद्दा बताया था लेकिन लाउडस्पीकर से अजान को इस्लाम का हिस्सा नहीं बताया इसके साथ ही कई और गाइडलाइंस का उलंघन न करने का आदेश जारी किया था
अजान कैसे करे ? : -
मुस्लिम धर्म में अजान बहुत ही महत्वपूर्ण अमल ( प्रथा ) है अजान स्वयं एक इबादत है इसमें खैर और बरकत है और जिस भी इलाके में भी अजान दी जाती है वहां अल्लाह की विशेष कृपा होती है इसके साथ ही अजान का दूसरा उद्देश्य खुदा के बंदों को आमतौर पर दिन में पांच बार निश्चित समय पर नमाज की पूर्व सूचना देना , समय पर नमाज अदा करने की दावत और स्मरण कराना है
साधारण तौर पर लोग अपनी दिनचर्या में व्यस्त रहते हैं अजान की आवाज सुनकर वे सावधान हो जाते हैं कि अमुख नमाज का समय हो गया है इसलिए अजान एक प्रकार से मानव अलार्म का भी कार्य अंजाम देती है
अजान के इन दो मूल कारणों पर विचार करें तो शायद ही कोई ऐसा हो जिसे अजान पर आपत्ति या कोई शिकायत होगी
अक्सर विमर्श इस बात पर होता है की अजान कहने के लिए लाउडस्पीकर, माइक्रोफोन या किसी भी प्रकार की साउंड एमप्लीफायर डिवाइस का प्रयोग होना चाहिए या नहीं ?
तो इस पर बात करने से पहले हम सभी को और कुछ बातें समझनी होगी
1.पहली बात इस्लाम के साथ ही साथ अजान और नमाज का सिलसिला निरंतर चलता आ रहा है और इसका इतिहास बहुत पुराना है जैसे इस्लाम की उत्पत्ति 570 ईस्वी में हुई थी लेकिन लाऊड स्पीकर की उत्पत्ति तो 19वीं शताब्दी में हुई है लाउडस्पीकर और माइक्रोफोन का जब नामों व निशान नहीं था तब भी अजान हमेशा इन उपकरणों के बगैर ही कहीं जाती रही देश और दुनिया में |
2. दूसरी बात , इस्लाम किसी भी प्रकार के प्रदूषण की इजाजत बिल्कुल नहीं देता है कुरान मजीद में ध्वनि प्रदूषण की खुले तौर पर निंदा की गई है जैसे हजरत लुकमान की हिदायत है कि जब वह अपने पुत्र को अच्छे कामों की हिदायत देते हुए कुछ बातों की नसीहत करते हैं तब वह इस बात पर विशेष बल देते हैं कि लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करो उनसे आप पस्त अर्थात धीमी आवाज में बात करो
तेज और ऊंची आवाज में बात करने की तुलना " गधे की आवाज " से की गई है संभवतः इस आलोचना का मुख्य कारण उनकी आवाज का हाई डेसिमल लेवल है क्योंकि जब कोई चिल्लाता है या जोर-जोर से अपनी बात दूसरे से कहता है तो हमारे कानों और यहां तक की दूसरे जानवरों को भी इससे तकलीफ होती है
3. तीसरी बात पैगंबर मोहम्मद साहब ने कई जगहों पर लोगों को चिल्लाने और जोर-जोर से बात करने पर रोक लगा रखी है और धीमी आवाज पर बात करने की हिदायत दी है यह भी कहा गया है की जब पैगंबर के पास जाओ तो धीमी आवाज में बात करो
आधुनिक समाजशास्त्र के पिता कहे जाने वाले प्रसिद्ध मुस्लिमवेत्ता तथा इतिहासकार इबने ख्ल्दूने भी 14 वी शताब्दी में अपनी प्रमुख किताब " मुकदमा "
( विश्व इतिहास की प्रस्तावना में सभ्यताओं के विकास का तर्कपूर्ण विवरण ) देते हुए शांतिमय वातावरण के महत्व का विशेष उल्लेख किया है
ऊपर के इन तीन बातों से यह बात तो स्पष्ट हो जाती है कि इस्लाम धर्म में अधिक शोर और शराबे किसी को पसंद नहीं था कभी भी नहीं |
इस पर तर्क ये दिया गया कि लोग अपने-अपने काम में व्यस्त रहते हैं इसलिए उनको नमाज समय से अदा करने की याद दिलाने के लिए अगर वहां के लोग चाहे तो लाउडस्पीकर से अजान दे सकते हैं यहां आप सभी को एक बात ध्यान रखनी होगी कि इस बात से कोर्ट के आदेश का किसी प्रकार की अवहेलना नहीं होनी चाहिए
और यदि उस मुस्लिम इलाके में कई मस्जिदे हैं और किसी एक मस्जिद की अजान की आवाज माइक से पूरी आबादी के लोगों तक आसानी से पहुंच सकती है तो वहां की अन्य मस्जिदों से बिना माइक के ही अजान कहना ज्यादा बेहतर होगा
क्योकि अलग अलग मस्जिदों से एक साथ अजान की आवाज माइक पर कई ओर से आने के कारण से उसके शब्द शायद आपस में खलल या आपस में मिल जाए या सही से लोगो तक न पहुच सके इससे अजान का जवाब देने की सुन्नत ( पैगम्बर मुहम्मद साहब का तरीका ) से अदा करना भी लोगो के लिए मुश्किल हो जाता है
इसी प्रकार रात के " ईशा " और सुबह की " फजर " की नमाज की अजान के समय भी इन आबादियों में माइक/लाउडस्पीकर का डेसिबल लेवल कम करके अजान कहीं जानी चाहिए
जिससे उस आबादी में रहने वाले गैर - मुस्लिम भाई , बीमार , बुजुर्ग या बच्चे जिन पर नमाज फर्ज नहीं है उनको तकलीफ ना हो और वह बिना किसी बाधा के अपनी नींद पूरी कर सके
2. दूसरी बात, ऐसे स्थान जहां पर मिली जुली आबादी अथवा जहां मस्जिद के बिल्कुल पास में अस्पताल या स्कूल आदि है वहां पर अजान के लिए माइक का इस्तेमाल बिल्कुल ना किया जाए तो ही बेहतर होगा
क्योकि इस्लाम धर्म में पड़ोसियों की बड़ी अहमियत बताई गई है उनके साथ अच्छे व्यवहार और हमदर्दी का हुक्म दिया गया है पड़ोसियों को अपने किसी भी कार्य से परेशान करने पर कड़ाई से मना किया गया है
पैगंबर मोहम्मद साहब का कथन भी है कि जो व्यक्ति अल्लाह पर यकीन रखता है उसे अपने पड़ोसी को तकलीफ नहीं पहुंचानी चाहिए इसलिए ऐसे इलाके जहां मिली जुली आबादी हो वहां अपने गैर - मुस्लिम भाइयों तथा अन्य संबंधित लोगों का ख्याल करते हुए माइक से अजान ना देने का फैसला करते हुए हमें एक मिसाल कायम करनी चाहिए
इससे पारस्परिक स्नेह और प्रेम ही बढ़ेगा हमारे मुस्लिम समाज को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए
इसलिए माननीय इलाहाबाद हाई कोर्ट का अजान पर फैसला में अपने मजहब की एक और अच्छी तस्वीर पेश करने का अवसर भी प्रदान करता है
कुछ ऐसे लोग है जिन्होंने समय समय पर इसका विरोध किया है जैसे :- 1. भारतीय गीतकार सोनू निगम का आरोप है कि सुबह के समय अजान के तेज आवाज के कारण सोने में समस्या होती है लेकिन जांच करने पर कुछ बातें इस प्रकार स्पष्ट हुई है की सोनू निगम के घर के आसपास तीन मस्जिद थी जिनमें से किसी की भी आवाज उनके घर तक आसानी से नहीं पहुंच सकती थी
2. फिल्म , लेखककार और गीतकार जावेद अख्तर ने लाउडस्पीकर से अजान बंद करने की मांग समय समय पर कई बार कर चुके है इनका कहना है कि अजान आस्था और विश्वास का एक हिस्सा है लेकिन लेकिन गैजेट का नहीं | इन्होंने एक ट्वीटस में लिखा था कि भारत में लगभग 50 साल तक अजान लाउडस्पीकर पर बोलना हराम था फिर यह हलाल हो गया और इतना हलाल हो गया इसका कोई अंत ही नहीं है लेकिन इसका अंत होना चाहिए अजान ठीक है लेकिन उच्च आवाजों में नहीं |
जब इनसे पूछा गया की मंदिर में भी तो लाउडस्पीकर का उपयोग किया जा रहा है तो इनका जवाब स्पष्ट था कि चाहे मंदिर हो या मस्जिद यदि आप एक त्यौहार में लाउडस्पीकर का यूज करते हैं तो ठीक है लेकिन इसकी रोज-रोज उपयोग नहीं होना चाहिए चाहे मंदिर हो या मस्जिद |
कुछ रोचक बातें : - 1. लाउडस्पीकर का आविष्कार 20 वी सदी की शुरुआत में हुआ था और फिर इस आविष्कार के बाद मस्जिदों पर पहुंचने में बहुत ज्यादा समय नहीं लगा दुनिया में पहली बार अजान के लिए लाउडस्पीकर का इस्तेमाल सिंगापुर के सुल्तान मस्जिद में किया गया था यह करीब 1936 की बात है तब वहां के अखबारों में खबरें छपी थी कि लाउडस्पीकर से अजान की आवाज एक मील की दूरी तक जा सकेगी उस समय भी कई लोगों ने इसका विरोध किया था
2.अलग-अलग देशो में अजान देने के अलग-अलग नियम है जैसे तुर्की और मोरक्को जैसे देशों में शायद ही कोई मस्जिद हो जहां लाउडस्पीकर से अजान दी जाती हो जबकि नीदरलैंड में मात्र 7 से 8% मस्जिदों में लाउडस्पीकर के माध्यम से अजान दी जाती है
3.हाल ही के वर्षों में अजान को लेकर सबसे तीखा विरोध जर्मनी में देखने को मिला दरअसल यहां पर तैयार की जा रही मस्जिदों के साथ ही अजान देने की शुरुआत की जाती है इस पर कई लोगों ने शिकायत की बाद में प्रशासन ने मस्जिद बनाने की छूट इस बात पर दी कि इसमें लाउडस्पीकर के माध्यम से अजान नहीं दी जानी चाहिए
4. इंडोनेशिया देश में अजान को लेकर बड़ा विवाद सामने आया था जबकि दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिमो की जनसंख्या वाले इस देश में एक महिला ने शिकायत की थी इसके बाद उस महिला को 18 महीने तक ईशनिंदा( धर्म की बुराई के आरोप ) में सजा काटनी पड़ी थी और गुस्साई भीड़ ने 14 बौद्ध मंदिरों को आग लगा दी इसके बाद सरकार ने कई गाइडलाइंस भी जारी किया था
हिन्दू धर्म में लाऊड स्पीकर का इस्तेमाल :-
हिन्दू धर्म में तो तेज आवाज तो शुरू से ही मनाही है क्योकि प्रार्थना करते समय तो आत्मा का परमात्मा से मिलन होता है ऐसे में अगर हम किसी को अपने तेज तेज आवाज से विचलित करते है तो कही न कही हमारा स्वयं का ध्यान बट जाता है और वह पूजा पाठ केवल नाम मात्र का रह जाता है क्योकि कहा भी जाता है की ईश्वर तो हमारे अंग संग, दिलो- दिमाग में, रग - रग में बसा हुआ है तो फिर ईश्वर को याद करने के लिए हमे ऐसे इलेक्ट्रनिक्स उपकरण की जरूरत ही क्यों है ? क्या ईश्वर पर हमारा विश्वास नहीं है की वह जब सब कुछ जानता है तो उसे जोर जोर से बताने की जरूरत ही क्या है ?
आप सभी को ध्यान होना चाहिए की ऋषि मुनि या महान संत महात्मा पहाड़ो पर ही क्यों तप करने जाते थे ? जबकि भगवान् तो सब जगह विराजमान है क्या ही जरूरत होती थी की वैदिक काल या कहे की उतर वैदिक काल में सभी गुरुकुल जंगलो में या पहाड़ो पर होते थे ?
क्या ही जरूरत होती थी की देश भर में सभी हिन्दू मंदिर हमेशा गाँव और शहर से काफी दुर बनाया जाता था आज भले ही शहर का विकास वहा तक कर लिया गया हो
यहाँ तक आप सभी ध्यान दे तो सभी प्रमुख हिन्दू मंदिर उन पहाड़ी इलाको में क्यो बनाए गए थे या आज भी उसी रूप में है जहा पर पहुचना एक सामान्य इंसान के लिये आसान नहीं हो पाता है कई जगहों पर जाने के लिए आज भी सही रास्ते नहीं है
सबसे बड़ा उदाहरण हमारे देवो के देव महादेव शिव जी है जिनका निवास स्थान क्या था ? पहाड़ या पर्वत ही तो था वो भी ऐसे स्थान पर जहा आज भी आप आसानी से नहीं पहुच सकते है जो भारत देश से काफी दुर है ये सभी उदाहरण यही संकेत करते थे की भगवान भी वही निवास करना पसंद करते थे जहा पर सुख -शांति वाला वातावरण हो जैसे आज हम लोगो को ज्यादा शोर शराबा पसंद नहीं आता है एक समय के बाद
वरना आप ही सोचिये जिसने पूरी दुनिया को बसाया हो वो एक ऐसे सुनसान पर्वत पर अपना जीवन गुजार दिया जहा का तापमान ही माइनस में होता है
अक्सर आपने सूना भी होगा कि ईश्वर को याद करने का सबसे अच्छा तरीका है आप एक खाली स्थान पर बैठ जाए और हाथ को जोड़ ले उसके बाद अपने मन को एक जगह केन्द्रित करे जैसे अर्जुन ने मछली की आँख को किया था जबकि आसपास बहुत सी वस्तुए थी जो भ्रम ही पैदा कर रही थी उसके बाद भगवान से आप वो बाते करे जो आपको भगवान की कृपा से मिला हो , है तो सब भगवान का ही है और उसके द्वारा दिए इस जीवन के कारण लाख -लाख बार शुकिया अदा करे बाकी मांगने के लिए भगवान से प्रार्थना हिन्दू धर्म में पूरी तरह से गलत बताया गया है
लेकिन आज स्थिति ये हो गई है की सभी गलत बाते इसी लाऊड स्पीकर से किये जा रहे है हिन्दू धर्म की सभी जातियों में शादी के समय खूब खूब तेजी से स्पीकर बजाये जा रहे है जबकि सबसे अधिक महिलाओ और बच्चो को ये तेज आवाज प्रभावित करती है लेकिन यही महिलाये सबसे ज्यादा डांस करती है और जब इनके बच्चे पैदा होते है तो दुसरे को दोष देती है जबकि सबसे ज्यादा तेज आवाज ही प्रभावित करता है
और इससे भी बड़ी बात इन शादियों में गाना कौन कौन सा चलता है ये तो किसी से पूछने की जरूरत ही नहीं है क्या इसे भी आप भगवान की प्रार्थना मानेंगे ? क्योकि शादी तो एक पवित्र बंधन होता है ......
आज आप सभी धर्म को एक अलग ही छोड़ दीजिये आज स्थिति ये आ गई है की एक ठेला पर सब्जी बेचने वाला भी तेज आवाज के साथ लाऊडस्पीकर का इस्तेमाल खुलेआम कर रहा है जबकि जिसको सब्जी लेना होगा वो खुद चलकर आ जायेगा
हो सकता है आप सभी के लिए यह एक धार्मिक मुद्दा लगे लेकिन यकीन मानिए जिस दिन आपकी आंखे खुलेगी वो दिन बहुत दुर निकल जायेगा फिर आप हिन्दू को दोष दीजियेगा और हिन्दू मुस्लिम को क्योकि सदियों से हमने किया भी तो कुछ अच्छा नहीं वर्ना भगवान् को याद करने के लिए न ही इतने मंदिर -मस्जिद की जरूरत होती और न ही ये तेज आवाज का मामला आता आपके पास कभी समय मिले तो जरुर सोचियेगा की वैदिक काल या ऋग्वेद में कितने मंदिरों का जिक्र किया गया है
यकीन मानिये आपकी आँखे खुल जाएगी क्योकि हिन्दू धर्म का सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद ही तो है जिसमे न तो किसी मंदिर का जिक्र है और न ही किस मूर्ति पूजा की बात
आप सभी को जानकर हैरानी होनी चाहिए की पहली बार किसी देवता के रूप मूर्ति मिली तो इंसानी जीनव के आने के काफी समय बाद वह भी महाजनपद काल जो अभी बहुत पुराना भी नहीं है तो सबसे पहले गौतम बुध जी मूर्ति प्राप्त हुई थी और आज आप जो ये देवी देवताओ को देख रहे है ये सभी आज के हिसाब से बनाई गई जिससे ये इन भुलक्कड इंसान को याद और डर बना रहे की हम से भी बड़ा कोई है इस संसार में इसलिए ही आज किसी के घर कुछ हो न हो पर भगवान् की मूर्ति या फोटो जरुर होती है ये सभी नियम कानून इंसानों के जीवन को आसान और अच्छा बनाने के लिए किये गए है लेकिन जब यही संकट बन जाये तो जल्द से जल्द सुधार कर लेना चाहिए
ध्वनि प्रदुषण से दुनिया भर में असर : - 2011 में जर्मनी देश में एक हवाई अड्डे की शोर को लेकर काफी विरोध प्रदर्शन देखने को मिला था मामला ये था की जर्मनी देश का सबसे व्यस्ततम हवाई अड्डा फैक्फर्ट ने अपने चौथे रनवे का उद्घाटन किया जिसके कारण लोगो ने काफी विरोध किया विरोध करने की वजह वायुयान की तेज आवाज क्योकि यह शहर के मध्य में है जिससे आप अगर घर में या अपने बगीचे में टहल रहे हो तो आप आसानी से तेज शोर सुन सकते है वह भी एक साथ 8 से 10 वायुयान ऊपर उड़ते दिखाई देंगे जिसके कारण से शोर का स्तर और बढ़ जाता है क्योकि विमान का शोर सबसे ज्यादा कष्टप्रद होता है
2009 में ही विश्व स्वास्थ्य संघठन ने एक रिपोर्ट जारी किया था की अगर आप तेज शोर का सामना करते है तो आपको दिल की बीमारी का सामना करना पड़ सकता है और इससे हार्ट फेल का खतरा कई गुणा बढ़ जाता है
आप सभी को जानकर हैरानी जरूर होगी की यातायात का शोर वायु प्रदुषण के बाद दूसरा सबसे अधिक नुकसान दायक होता है हम इंसानों के लिए लेकिन हम लोग न तो वायु प्रदुषण पर कोई बात करते है और न ही इस ध्वनि प्रदुषण पर इसके प्रभाव को आप ऐसे भी समझ सकते है जैसे आप धुँआ या रेडान गैस से घिरे हो जबकि ये कितने खतरनाक होते है यहाँ बताने की जरुरत तो नहीं है जैसे रेडान गैस सबसे भारी गैस होती है जो पृथ्वी के अंदर पाई जाती है और भूकम्प के आने से पहले यही गैस बाहर आती है जिसके कारण से ही इंसानों से कही पहले जानवरों को भूकंप का एहसास होता है बाकी धुँआ तो आप ने देखा ही है
एक रिपोर्ट के अनुसार यूरोप और अमेरिका में लगभग 33% लोग प्रतिदिन उच्च शोर का शिकार होते है जो अक्सर 70 - 80 डेसिबल के बीच में होता है जैसे आप लोग जो सामान्य बातचीत करते है वो लगभग 60 डेसिबल तक का होता है कार , ट्रक या ट्राफिक का स्तर 70 से 90 डेसिबल और विमान के साथ समय समय पर सुनाई देने वाले सायरन की आवाज 120 डेसिबल तक होती है इसलिए ये सबसे ज्यादा खतरनाक होता है
उच्च शोर का असर हमारे शरीर को किस प्रकार प्रभावित करता है इसे ऐसे समझे जब ध्वनि हमारे दिमाग तक पहुचता है तो ये दो कार्य करता है पहला श्रवण प्रांतस्था अर्थात जो शोर को संसाधित करता है दूसरा कार्य एमिग्डाला ( दिमाग का वो ख़ास हिस्सा ) जो हमे शोर सुनने के प्रतिक्रिया करने का संकेत देता है चाहे हम नीद में ही क्यों न हो , भले ही आपको इसका एहसास न हो और इसके कारण से हमारी धमानिया या तो सिकुड़ जाती है या फ़ैल जाती है , आपका ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है, आपकी पाचन क्रिया प्रभावित हो जाती है
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018 में जहा पूरी दुनिया में 55% लोग शहरो में रहते थे तो वही आने वाले 2050 में 70% से अधिक हो जायेगे जिससे एक समय के बाद ये ध्वनि प्रदुषण लोगो के लिए एक गंभीर संकट पैदा हो जायेगा
आप सभी को याद भी होगा की अभी कुछ दिन पहले ही उत्तर प्रदेश सरकार इसको लेकर एक विज्ञापन भी जारी किया था लेकिन यह समस्या किसी एक राज्य या किसी एक देश की नहीं है जैसे अगर आप भारत देश में ही देखे तो आपको हजारो केस मिल जायेंगे इसको लेकर |
ऐसा भी नहीं है कि ध्वनि प्रदूषण का मामला किसी कोर्ट में शिकायत दर्ज नहीं कराई जा सकती लेकिन कोर्ट के नियम के अनुसार हर केस के लिए आपके पास सबूत होना चाहिए ऐसे में ये सबूत कहा से कोई ले आये ? जैसे अगर कोई इंसान उच्च ध्वनि की शोर को कही पर सुनता है तो कैसे तय करे की कितने डेसिबल का शोर है क्योकि आज भी साधनों का अभाव है ऐसे में आप कोर्ट में साबित कैसे करेंगे की ये एक अपराध है
जैसे आप कानून की बात करे तो भारतीय संविधान में साफ़ शब्दों में लिखा गया है की अनुच्छेद 19 ( 1 ) A के तहत इसके साथ ही अनुच्छेद 21 में देश के प्रत्येक नागरिक को बेहतर वातावरण इसके साथ ही शांतिमय जीवन जीने का अधिकार दिया गया है इस बात को तो कई बार भरतीय सुप्रीम कोर्ट हो या केरल का उच्च न्यायालय ने कई बार साफ़ शब्दों में कहा है इसी अनुचेच्द के तहत ही तो नागरिको को तेज आवाज में लाऊडस्पीकर हो या माइक्रोफोन बजाने की इजाजत पर रोक लगाईं गई है लेकिन इसको लेकर न तो नागिरको को कोई चिंता है और सरकर को तो पहले ही कोई चिंता नहीं रहती है
आप सभी को जानकारी होनी ही चाहिए की जहा एक तरफ अनुच्छेद 19 ( 1 ) देश के प्रत्येक नागरिको को किसी तरह का या ये कहे की अपने पसंद का व्यापार करने या कोई काम धंधे शुरू करने का अधिकार देता है तो दूसरी तरफ यही अनुच्छेद उसी नागरिक पर रोक भी लगाता है जो ऐसा कोई व्यापार या काम करते है जिससे समाज के लोगो का जीवन या स्वास्थ्य पर कोई गलत प्रभाव डालता है
शोर का सीधा सा मतलब होता है : अनचाही आवाज़ जो आपके कर्ण को प्रिय न लगे लेकिन यहाँ एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हु की एक आवाज जो दुसरे के लिए संगीत के समान सुरीली हो वही दुसरे के लिए शोर हो भी सकता है और नहीं भी यह तो इस बात पर निर्भर करता है की आप कहा पर और कब सुन रहे है जैसे एक सामान्य इंसान अगर 70 डेसिबल तक की आवाज सुनता है तो उसे कोई ज्यादा समस्या नहीं होगी लेकिन अगर लगातार 8 घंटे तक इस डेसिबल पर सुनता है तो जरुर उसके व्यवहार में परिवर्तन हो जायेगा और एक तरह से वैग्ज्ञानिक इसे मीठा जहर भी कहते है
क्योकि यह भी वायु प्रदुषण की कैटेगरी में आता है और सबसे बड़ी बात ये भी है की हर इंसान को समय समय पर अपने सुनने की क्षमता की जाँच अवश्य करवानी चाहिए इसे ऐसे भी समझ सकते है की जैसे कोई सिगरेट पीना वाला खुद को ही बीमार नहीं करता है उससे कही अधिक वह बीमार या प्रभावित होता है जो उसके चपेट में आता है क्योकि इसको इन सब की आदत तो होती नहीं है
आप सब को जानकर हैरानी जरुर होनी चाहिए की आने वाले कुछ ही समय में पूरी दुनिया में करीब 111 करोड़ लोगो को हियरिंग लोस ( क्षमता से कम सुनना ) का खतरा होगा और आज भी पूरी दुनिया में 36 करोड़ लोगो को सुनाई नहीं देता है इसमें से 32 करोड़ तो केवल बच्चे है
सवाल :
- क्या वास्तव में इसमें बदलाव होना चाहिए यदि हां तो कब होगा ?
- क्या ध्वनि प्रदूषण को धर्म से हटकर नहीं सोचा जा सकता क्योंकि डायरेक्ट कहे या इनडायरेक्ट समस्या सभी धर्म को होती है ?
- आप सभी के हिसाब से सही समाधान क्या हो सकता है ?
मन्दिर में प्रार्थना vs मस्जिद में अजान : लाऊड स्पीकर पर कितना सही ?
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