दुनिया की सबसे मुश्किल परीक्षा
परीक्षा : आज कोरोना वायरस के कारण पूरी दुनिया की चाल चलन रहन सहन पढाई लिखाई सब कुछ ऐसे बदल गया है मानो कि हम किसी दुसरे ग्रह पर आ चुके है और वैसे भी बदलाव ही प्रकृति का नियम है चाहे हम इंसान स्वय बदल जाए या प्रकृति हमे बदल दे दुनिया के साथ साथ आज भारत में भी एग्जाम को लेकर काफी चर्चा हो रहा है चाहे बच्चो के हाई स्कूल , इंटर या बड़े बड़े विश्वविद्यालय के एग्जाम और सबसे जरुरी बच्चो के प्रवेश के लिए कराये जाने वाले प्रवेश परीक्षा पर डेली न्यूज़ अपडेट सरकार के माध्यम से आ रहे है और आज इसी के बीच में हम आपसे बात करेंगे की दुनिया की सबसे मुश्किल परीक्षा गाओकाओ कैसे और कहा पर होती है और क्यों इसको दुनिया का सबसे मुश्किल माना जाता है ?
सबसे पहला सवाल तो यही बनता है की गाओकाओ का शाब्दिक अर्थ क्या होता है तो गाओकाओ का शाब्दिक अर्थ : उच्च शिक्षा के लिए प्रवेश परीक्षा
चीन देश में इसकी शुरुआत वर्ष 1952 में हुई थी लेकिन माओ जेडांग की सांस्कृतिक क्रांति के दौरान वर्ष 1966 और 1976 के मध्य इस पर रोक लगा दी गई थी फिर वर्ष 1977 से गाओकाओ की परीक्षा को एक ऐसे अवसर के तौर पर देखा जा रहा है जिसके माध्यम से सीमित संसाधनों और ग्रामीणों क्षेत्रों से आने वाले कोई भी छात्र बेहतर भविष्य के लिए आगे बढ़ सकता है चीन के हर क्षेत्र में गाओकाओ की परीक्षा के अपने अपने प्रारूप है
लेकिन सामान्य शब्दों में बात किया जाए तो इस एग्जाम में चीनी भाषा , गणित और एक विदेशी भाषा से जुड़े सवाल पूछे जाते है इसके अलावा बच्चे इतिहास , राजनीति,भूगोल , बायोलॉजी फिजिक्स या केमिस्ट्री जैसे विषय भी चुन सकते है और सबसे बड़ी बात ये है की ये एग्जाम लगातार बच्चे को 8 से 9 घंटे बैठकर देना होता है और एक तरह से ये मानसिक संतुलन के साथ साथ शारीरिक दक्षता का एग्जाम भी माना जाता है क्योंकि करीब 20 से 30 % बच्चे इस दबाव को झेल नहीं पाते है जिसके कारण से चक्कर आना , नीद आना या तबियत खराब होने की शिकायत आती है इसलिए आस पास के सभी अस्पतालों को अलर्ट पर रखा जाता है और इसी तरह आपको सभी विषयों में पास होना अनिवार्य होता है ऐसे में आप को सभी विषयों की अच्छी जानकारी होनी चाहिए और यह एग्जाम चीन में 2 से 4 दिनो में पूरी कराई जाती है इस बार का एग्जाम 7 और 8 जुलाई को हुआ है इस एग्जाम में 1 करोड़ 7 लाख बच्चो ने एंट्रेंस एग्जाम दिया है
इस आंकड़े से आप अनुमान तो लगा ही सकते है की कितना महत्वपूर्ण एग्जाम है अभी तो ये शुरुआत है ये इम्तेहान की वो घड़ी होती है जब चीन की शिक्षा व्यवस्था में इस बात का फैसला होता है की यूनिवर्सिटी में किसे दाखिला मिलेगा और किसे नहीं |
जानकारी तो ये भी मिली है की चीन के 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चे वर्ष भर कम से कम कम 12 घंटे प्रति दिन पढ़ते है और इसमें सफल होने के लिए जबरदस्त दबाव रहता है स्कूली जिंदगी का इनका बड़ा हिस्सा इस टेस्ट को ध्यान में रखते हुए पढ़ाई करते बीत जाती है बहुत से बच्चो के लिए समाज व देश दुनिया में तरक्की की सीढ़ी चढ़ने के लिए एक मात्र रास्ता है की अच्छे अंक लाया जाये
विशेषज्ञ की राय : हॉवर्ड यूनिवर्सिटी में गलोबल इनिशिएटिव फॉर एजुकेशन INOVATION सेंटर के रिसर्चर का कहना है की उनके दिमाग में एक ही बात होती है की उनके लिए ये जंग में जाने जैसा होता है शिक्षक बच्चो को बताते है कि ये एग्जाम उनके लिए जिन्दगी और मौत का सवाल है जिस दिन आपका बच्चा पैदा होता है आप उसी दिन से ये सोचने लगते है की वो गाओकाओ में अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन कैसे करेगा ?
परीक्षा से एक दिन पहले से ये बच्चे समूहों में इक्कठा होते है और युद्ध के गीत गाते है ताकि इनका मनोबल बढ़ सके कुछ लाइन इस प्रकार है की हम विजय हासिल करने के लिए जा रहे है हम गाओकाओ पर जीत हासिल करने के लिए जा रहे है
एग्जाम के दिन बच्चो के माता पिता और घरवाले बच्चो को शुभकामनाये देने के लिए घर से बाहर निकलते है और एग्जाम के समय पर कोई बच्चा किसी प्रकार की कोई गड़बड़ी न करे इसके लिए प्रशासन हर मुमकिन कोशिश कर रहा होता है इसके लिए पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था की जाती है निगरानी के लिए कैमरे लगाये जाते है जीपीएस टेक्नोलॉजी का यूज भी किया जाता है कभी कभी तो हवाई निगरानी के लिए ड्रोन का भी यूज किया जाता है
वर्ष 2016 मे चीन की सरकार ने ये घोषणा की थी की गाओकाओ में गड़बड़ी करने वाले छात्रो को जेल की सजा दी जा सकती है इस बात को जानकर आपको जरुर हैरानी होगी की एग्जाम के समय पर सब कुछ बंद रहता है सरकार ये तय कर रखा है की ऐसा कुछ भी ना किया जाये या हो जिससे अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण एग्जाम दे रहे बच्चो का ध्यान जरा सा भी भटके सड़के बंद रहती है स्कूलों के आस पास के क्षेत्रों में कोई भी निर्माण कार्य/कंपनी तक को बंद जैसे कार्य नहीं होते है बच्चो के लिए यातायात का विशेष प्रबंध और मेडिकल टीम को अलर्ट पर रखा जाता है इसी क्रम में प्रोफेसर का कहना है की जरुरी नहीं है की ये मुश्किल हो पर इसमें बहुत ही अधिक प्रतिस्पर्ध रहता है एग्जाम में पूछे जाने वाले सवालो के हिसाब से ये एग्जाम मुश्किल नहीं है लेकिन बहुत अधिक प्रेशर रहता है और ये प्रेशर इस कारण से नहीं रहता की आप कैसा प्रदर्शन कर रहे है बल्कि आप अपने साथी बच्चो से कितना अच्छा प्रदर्शन कर रहे है गाओकाओ की परीक्षा याद की गई सीखी गई जानकारी और समस्याओं के समाधान में इस्तेमाल पर आधारित है
दुनिया की सबसे मुश्किल परीक्षा कैसे ?
गाओकाओं की परीक्षा में शामिल होने वाले बच्चो पर बहुत ही अधिक दबाव रहता है क्योंकि किसी भी क्लास के केवल 10% ही छात्र टॉप की यूनिवर्सिटी में जगह बना पाते है अगर आप पास नहीं हो पाते है तो आपको फेल फेल कहा जाता है सबसे बड़ा तो यही दबाव रहता है प्रतियोगिता की इस स्थिति की वजह से ही कुछ लोग इसे दुनिया की सबसे मुश्किल परीक्षा के रूप में देखते है आप कल्पना कीजिए की हर वर्ष करोडो बच्चे इस एग्जाम के लिए फॉर्म भरते है
एक उदाहरण से बात को समझते है की शंघाई में रहने वाला 15 वर्ष का एक मैथ का छात्र यूरोप के किसी भी देश के 15 वर्ष की तुलना में कम से कम 3 बर्ष पढ़ाई में आगे रहता है इसी प्रकार विज्ञान में लगभग 2 वर्ष आगे रहता है ये एग्जाम किसी देश के छात्रों के ज्ञान के स्तर को मापने का अच्छा तरीका है लेकिन कुछ सीमाए भी है
जैसे किसी विषय को आलोचनात्मक या सृजनात्मक रूप से सिखने समझने का यह सही माध्यम नहीं होता है क्योकि इसमे सिर्फ छात्र सवालों के जवाब के लिए ही कुछ सीख रहा होता है दूसरी बात चीन में पूरी शिक्षा व्यवस्था इस मकसद से तैयार की गई की बच्चो को परीक्षा के सवालो का जवाब देने के लिए तैयार किया जा सके बच्चो को एक ऐसे शिक्षा के रूप में तैयार करने पर ध्यान नहीं दिया जाता है जिसके पास कई मुद्दों पर जानकारी व समझदारी हो क्योकि प्रत्येक छात्र इस एग्जाम की तैयारी कर रहा होता है और इन बच्चो को दुसरे चीजों पर ध्यान देने के लिए कोई मौक़ा ही नहीं मिलता है जो चीज उसकी जिंदगी के लिए ज्यादा जरुरी हो जैसे की रचनात्मक कार्य या किसी चीज को आलोचनात्मक नजरिये से देखने सोचने की समझ |
चीन में इसे जंग क्यों माना जाता है ? चीन में जब बच्चे प्री स्कूल अर्थात प्रारंभिक क्लासेस में होते है तब से ही इन पर बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव दिया जाने लगता है आप अपने क्लास मेट को दोस्त के रूप में न देखते है बल्कि अपना प्रतिस्पर्धी मानने लगते है चीन में ये नार्मल बात है की एक स्टूडेंट गाओकाओ की एग्जाम के लिए प्रतिदिन 12 से 13 घंटे की पढाई करता है क्योकि आप स्कूल के बाद प्राइवेट कोचिंग को भी जोड़ ले सभी छात्र ऐसा नहीं करते है बल्कि उन सभी को ऐसा करने के लिए मजबूर किया जाता है बच्चो से सीधे सीधे साफ़ शब्दों में कहा जाता है की आप ये नहीं करेंगे तो आप पीछे रह जायेंगे और इस कारण से ही
चीन में प्राइवेट स्कूल बहुत ही बड़ा विजनेस है ये लगभग 100 अरब डॉलर प्रतिवर्ष का कारोबार है तो इसका ये मतलब ये हुआ की छात्र स्कूलों और प्राइवेट कोचिंग के बीच गाओ काओ की ही तैयारी करता रह जाता है इस तैयारी में केवल स्टूडेंट ही शामिल नहीं होता है बल्कि पूरा परिवार ही बच्चे का ख्याल रखने के लिए लगा रहता है इसका मतलब ये नहीं है की परिवार अच्छा अनुभव देने की कोशिश करते है बल्कि वे इस बात का ध्यान रखते है की बच्चे का ध्यान ना भटके सब कुछ एक परीक्षा के चारो और घूम रहा होता है और यह किसी भी शिक्षा व्यवस्था के लिए सबसे बड़ी समस्या मानी जाती है भले ही ये एग्जाम कितना भी थकाऊ या कठिन हो लेकिन एक निष्पक्ष और पारदर्शी एग्जाम के रुप में माना जाता है
चीन में लोगो की अक्सर ये राय रहती है की यहाँ बहुत अधिक क्षेत्रों में भ्रष्ट्राचार है लेकिन गाओ काओं के बारे में इनकी राय ऐसी नहीं है गाओकाओ की परीक्षा ये दिखलाती है की चीन में काबिलियत को जगह दी जाती है जब तक लोग ये मानते रहेंगे की गाओकाओ की परीक्षा निष्पक्ष है लोग इस व्यवस्था का सम्मान करते रहेंगे देश में इस परीक्षा में सुधार के लिए आवाजे उठती रही है जबकि धनी परिवार अपने बच्चो को पढने के लिए विदेश भेज देते है
देश में दो तरह के लोग है एक वो जो ये सोचते है की गाओकाओ को नहीं जारी रखना चाहिए तो दूसरी तरह वैसे लोग है जो अभी भी ये सोचते है की गाओकाओ देश की एकमात्र निष्पक्ष चीज है और इसकी वजह से इसे बचाए रखा जाना चाहिए
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