Indian media की सच्चाई
चर्चा : सबसे बड़ा सवाल कि कैसे जाने कौन सा न्यूज चैनल ईमानदार हैं और है तो कितना?
पत्रकारिता के पाठ्यक्रम में पहले दिन से ही पढ़ाया जाता हैं कि पत्रकारिता के 3 मुख्य उद्देश्य होते है।
1.सूचना देना
2.शिक्षा देना
3.मनोरंजन करना
सभी पत्रकार चाहे वो प्रिंट मीडिया के हो या टीवी मीडिया उनको अच्छी तरह जानकारी होती है ।
परंतु साधारण पाठको और दर्शकों को इसकी सही जानकारी नहीं होती।
इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आप आज से ही एक विशेषज्ञ की तरह ये जान पाएंगे कि जो TV channels पर आप दिन रात देखते है या आप रोज अखबार में पढ़ते है वह पत्रकारिता के उद्देश्य को पूरा कर रहा है या पत्रकारिता की आड़ में कुछ और ही हो रहा है।
सबसे पहले हमे समझना होगा कि सूचना, शिक्षा और मनोरंजन का सही अर्थ क्या है।
Media का काम आपको सूचना देना है सूचना वो हो जो आपसे छुपाई जा रही हो उसे निकाल कर आप तक आसानी से पहुंचाना ही पत्रकारिता है।
इससे स्पष्ट होता है की सरकार की घोषणाएं, मंत्रियों के भाषण और उन पर बहस इस सूचना के अंतर्गत नहीं आना चाहिए।
क्योंकि इन सूचनाओं को जनता तक पहुंचाने का काम सरकार के दूरदर्शन सरकारी समाचार एजेंसी और प्रेस सूचना विभाग दिन-रात करता है।
इसे हम सूचना न कह कर प्रोपेगेंडा कहेंगे क्योंकि जनता के लिए महत्वपूर्ण बात यह है कि मीडिया आपको बताएं कि जो दावे और घोषणाएं की जा रही है उसमें कितनी ईमानदारी है। क्या उनको पूरा करने की क्षमता और सामर्थ सरकार के पास है और यह भी बताएं कि वर्तमान सरकार और इसके पहले की सरकार इस तरह से कितनी घोषणाएं की और कितनी घोषणाओं का समय पर पूरा किया गया और कितने फेल हुए। एक मीडिया आपको यह भी बता सकती है कि इन घोषणाओं का लक्ष्य क्या है कहीं जन सेवा के नाम पर कहीं बड़े औद्योगिक घराने को बड़ा मुनाफा कमाने के लिए तो यह नहीं किया जा रहा है। अब आप स्वयं ही तय कर लीजिए कितनी टीवी चैनल और अखबार आपके हित में ऐसी सूचनाओं बिना डरे आप तक पहुंचाते है या सरकार की चाटुकारता करते हैं।
मतलब यह है कि ऐसे सब चैनल और अखबार आपको खबरों के नाम पर सूचना नहीं दे रहे हैं अर्थात देखा जाए तो यह पत्रकारिता नहीं कर रहे हैं यह दूसरी बात है कि इस तरह की चाटुकार्यता करने वालों को सरकार से बड़े-बड़े विज्ञापन नागरिक अलंकरण राज्यसभा की सदस्यता या बड़े पदों पर नियुक्ति होती है।
शिक्षा देना:
शिक्षा का तात्पर्य है कि मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होने के कारण आपको संवैधानिक कार्यों की जानकारी आपको लगातार देता रहे और उन पर होने वाले किसी भी आघात पर आपको जागृत करता रहे।
जहां तक बात पर्यावरण , भूगोल , इतिहास व्यक्ति जैसे विषयों की है तो यह सब शिक्षा तो आपको विभिन्न स्तरों पर शिक्षण संस्थानों में मिलती ही है पर यहां मीडिया का काम यह है कि इन क्षेत्रों में जो घटनाएं घट रही है और इसका प्रभाव आपके जीवन पर कैसे पड़ा है उन विषयों को अपने विशेष संवाददाताओं और क्षेत्र के विशेषज्ञों के माध्यम से आप तक पहुंचाएं। यह कहा जा सकता है कि इस मामले में मीडिया काफी हद तक सजग है और आपको सही सूचना मिल रही है मगर जो मुख्य शिक्षा लोकतांत्रिक अधिकारों या दमन के विरुद्ध की जानी चाहिए उस काम में हमारे देश का अधिकतर मीडिया हमेशा की तरह इस समय भी फेल साबित हो रहा है।
पोस्ट की लास्ट टॉपिक है
मनोरंजन:
जहां तक मनोरंजन की बात है तो मीडिया में मनोरंजन देने का काम करने के लिए फिल्म , नाटक , साहित्य ,संगीत व कला जैसे क्षेत्रों की अपनी संरचनाएं हैं।
जो आम जनता का मनोरंजन भी करती है । जिस संदर्भ में यह बात की जा रही है उसमे वैसे मनोरंजन का दायरा बहुत ही सीमित होता है।
हालांकि आजकल असली मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए मीडिया कई तरह के हल्के फुल्के मनोरंजन समाचारों के साथ दिखाने लगा है पर उसमे भी गुणवक्ता का अभाव है प्रायः यह मनोरंजन काफी निम्न स्तर का होता है जिन्हे साधारण भाषा में फूहड़ भी कहते हैं जिससे उस मीडिया हाउस की गरिमा व मान सम्मान कम होने लगती है। इस संदर्भ में ऐसा माना जाता है कि खेलकूद, साहित्य , संस्कृति और फैमिली आदि के बारे में समाचार देकर मनोरंजन का दायित्व पूरा किया जा सकता है 1987 की बात है भारत के प्रमुख पत्रकार पुनीत नारायण जो भ्रष्टाचार विरोधी कार्य करता और विरासत के संस्कृत के संरक्षक भी हैं यह 1987 में राष्ट्रीय हिंदी दैनिक में संवाददाता थे और इनका उस समय ड्यूटी था कि स्वास्थ्य मंत्रालय पर डेली अपडेट देना। एक दिन इनको दिल्ली के फाइव स्टार ताज होटल में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन को कवर करने जाना था जिसका उद्घाटन तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मोतीलाल बोरा कर रहे थे पूरे सम्मेलन में बैठने के बाद पत्रकार विनीत कुमार ने जो खबर लिखी उसकी पहली लाइन यह थी कि देश के गरीबों के स्वास्थ्य पर चिंता जताने के लिए आगे राष्ट्रीय सम्मेलन दिल्ली के पांच सितारा होटल में कार्यक्रम संपन्न हुआ उसके बाद करीब 12 पैराग्राफ में 12 राज्यों से आए ग्रामीण स्वास्थ्य सेवकों की समस्याओं को लिखा और अंतिम पैराग्राफ में एक लाइन लिखा गया कि "सम्मेलन का गठन करते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मोतीलाल वोरा ने कहा कि वर्ष 2000 तक हम देश मैं सबको स्वास्थ्य में प्रदान कर देंगे"
जबकि उद्घाटन 1987 में हुआ और लक्ष्य 2000 अर्थात 13 वर्षों का इतना लंबा समय क्यों?
जाहिर है कि यह एक समान रिपोर्टिंग की प्रारूप से बिल्कुल ही अलग था अपने अखबार को उठाकर देख लीजिए इस तरह की खबर में 3/4 अर्थात 75% जगह मंत्रियों के भाषण को दी जाती है। जब इनसे संपादक ने पूछा कि आपने मंत्री जी के भाषण को ज्यादा जगह क्यों नहीं दी तो उनका सीधा सा जवाब था कि मंत्री महोदय तो यह दावा देश के विभिन्न प्रांतो में समय-समय पर करते ही रहते हैं और छपता भी रहता है इसमें नई बात क्या है।
नई बात मेरे लिए ये थी कि मुझे एक ही जगह बैठकर देश भर के प्राथमिक स्वास्थ्य सेवकों से उनकी समस्याओं को जानने का मौका मिला जिसे मैं बिना इन राज्यों में जाए कभी नहीं जान पाता इस पर संपादक महोदय भी हंस दिए और उन्होंने रिपोर्टर की तारीफ भी की।
मीडिया का इतिहास:
18 वीं शताब्दी के अंत से भारतीय मीडिया सक्रिय हैं । भारत में प्रिंट मीडिया की शुरुआत 1780 में हुई थी 1927 में रेडियो प्रसारण की शुरुआत हुई आप सभी को जानकर हैरानी होगी कि भारतीय मीडिया दुनिया में सबसे पुराना है।
बताया तो ये भी जाता है कि अशोक के शासनकाल से भी पहले से है।
भारत में मीडिया अपने पूरे इतिहास में स्वतंत्र और निष्पक्ष भी रहा है लेकिन वर्तमान मैं कितना स्वतंत्र है इसके बारे में आप सभी जानते ही हैं हमारा देश दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा समाचार पत्र बाजार वाला देश है यहां 1600 से अधिक पढ़ने वाले चैनल है 400 से अधिक न्यूज़ चैनल है फ्रेंच गो रिपोर्ट विदाउट बॉर्डर्स अपने प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक के संगठन के आकलन के आधार पर देश की वार्षिक रैंकिंग में भारत को 180 देश में से 140 वां स्थान मिला है ये 2018-19 के हैं जबकि 2020 में 142 वा स्थान मिला भारत में छपने वाला पहला न्यूज पेपर बंगाल गजट था जो 1780 में छपा था।
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