भगवान राम की कहानी : अयोध्या के साथ साथ पुरे विश्व में इस समय उत्सव का माहौल है क्योकि इस समय प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का आयोजन अयोध्या नगरी कहे या कहे श्रीराम की नगरी में शुरू हो गया है और यह कार्यक्रम केवल कहने भर के लिए 22 जनवरी तक के लिए है लेकिन इस वर्ष लोकसभा चुनाव के साथ साथ कई राज्यों में विधानसभा का चुनाव होने है इसलिए ये पुरे वर्ष के लिए प्राण प्रतिष्ठा माना जा सकता है क्योकि इसका विरोध कोई भी पार्टी नहीं कर सकती है तो आप भी इसमें शामिल हो जाइये क्योकि आज हम श्री राम से जुड़े उन इतिहास के पन्ने को खोलने वाले है जिसको हर कोई राम भक्त जानना चाहता है ….
हिन्दू धर्म में इंसान के जन्म से लेकर अंतिम संस्कार तक में श्रीराम का नाम जुड़ा हुआ है जैसे आप से सबसे पहले मै एक प्रश्न करता हु की राम नाम का अर्थ क्या होता है ?
इसका जवाब देना आसान नहीं है क्योकि जीतना आसान प्रश्न है जवाब भी उतने ही अधिक है जैसे मिली जानकारी के अनुसार राम नाम के 10 अर्थ बताये गए है जो इस प्रकार है -
1.ब्राहम्ण संहिता के अनुसार ‘ रमन्ते सर्वत्र इति राम : “ अर्थात जो सभी जगह रमा हुआ है या कहे की पुरे विश्व के अंदर जो रमा हुआ है वही राम है |
2.संस्कृत व्याकरण के अनुसार और इसके शब्द कोष के अनुसार “ रमन्ते “ का अर्थ राम , अर्थात जो सुंदर हो , दर्शनीय हो वही राम है |
3. तैतिरीय अरण्यक के अनुसार राम शब्द का अर्थ पुत्र होता है अगर आप इसके श्लोको को पढेंगे तो आप को कई स्थानों पर इसका अर्थ पुत्र ही मिलेगा
4.एक शब्द आपने मनोज्ञ सुना होगा जिसका अर्थ होता है मनो को जानने वाला अर्थात जो मन ही मन सब कुछ जान लेता है वही राम है |

5.हिंदी के पुस्तको में राम का अर्थ आनन्द देने वाला , संतुष्टि देने वाला राम है |
6.इतिहासकारों के अनुसार चार भाइयो में भरत धर्म , शत्रुघन अर्थ , लक्ष्मण काम और राम मोक्ष के प्रतीक माने जाते है |
7.राम शब्द दो अक्षरों और एक मात्रा से मिलकर बना है जैसे र , आ और म | र से रसातल मतलब पाताल | आ से आकाश और म का अर्थ मृत्युलोक यानी पृथ्वी | जो पाताल ,आकाश और धरती तीनो का स्वामी है वही राम है |
8.इसी तरह संस्कृत व्याकरण के अनुसार राम शब्द रम ( बिना स्वर के म ) धातु से बना है जिसका अर्थ रमण ( निवास ) करना है इसलिए राम है, साधारण भाषा में इसे ऐसे कह सकते है की जैसे भक्त के मन में राम रमण करते है इसलिए भी राम है |
9.जगतगुरु स्वामी रामभद्राचार्य के अनुसार “ रमन्ते कणे कणे इति राम : ‘ अर्थात जो कण कण में व्याप्त है वही राम है |
10.आद्य शंकराचार्य के अनुसार नित्यानंद स्वरुप भगवान् में योगिजन रमण करते है इसलिए ये राम है |
राम का अवतार क्यों हुआ था :
भगवान विष्णु जी को राम जी के रूप में क्यों अवतार लेना पड़ा ? इसके जवाब अलग अलग धर्म ग्रंथो में अलग अलग प्रकार से दिया गया है जैसे आप बाल्मीकि की रामायण पढ़े , हरिवंश पुराण पढ़े , या रामचरितमानस या आप श्रीमद्भागवत सबसे कुछ न कुछ राम को लेकर बताया गया है और इन सभी को पढने के बाद आपको 2 श्राप और 2 वरदान पढने और समझने को मिलेगा
पहला श्राप : श्रीमद्भागवत पुराण के तीसरे अध्याय के अनुसार श्रृष्टि के आरम्भ में भगवान ब्रह्मा जी ने कई लोको की रचना के लिए तपस्या कर रहे थे और विष्णु जी ने प्रसन्न होकर सनक , सन्नदन , सनातन और सनत्कुमार नाम के 4 मुनियों के रूप में अवतार लिया जो भगवान् विष्णु के सबसे पहला अवतार भी माना जाता है
आप सभी को जानकारी के लिए पता होना ही चाहिए की बैकुंठलोक में भगवान विष्णु के जय - विजय नामक दो द्वारपाल हुआ करते थे और एक बार सनकादी मुनि विष्णु जी के दर्शन के लिए बैकुंठलोक में आये और जब मुनि द्वार से निकलकर जाने लगे तो दोनों द्वारपालों ने हंसी उड़ाते हुए उन्हें रोक लिया और मुनि जी को ये काफी खराब लगा और मुनि जी क्रोधित होकर इन द्वारपालों को अगले 3 जन्मो तक राक्षस योनी में जन्म लेने का श्राप दे दिया बहुत प्रार्थना करने के बाद भी मुनि जी ने कहा की तीनो ही जन्म में तुम लोगो का अंत करने के लिए भगवान श्री हरि का जन्म होगा और उसके बाद ही मोक्ष की प्राप्ति होगी
और इसके बाद की कहानी आपको पता ही होगी की पहले जन्म में ये जय और विजय हिरण्यकश्यपु व हिरण्याक्ष के रूप में जन्म लेते है और भगवान विष्णु जी ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध और नरसिंह के अवतार लेकर हिरण्यकश्यपु का अंत किया था | दुसरे जन्म में रावण और कुंभकर्ण का होता है इनका वध करने के लिए विष्णु जी को श्रीराम का अवतार लेना पड़ा और तीसरे जन्म में शिशुपाल और दन्तवक्र के रूप में और इनका अंत करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया |
दुसरा श्राप : नारद मुनि ने भगवान विष्णु को श्राप दिया था आपने सुना और पढ़ा भी होगा की रामचरित मानस के बालकाण्ड में एक कहानी है की एक बार नारद मुनि हिमालय में जाकर तप कर रहे थे और ये कई वर्षो तक चला भगवान इंद्र को लगा की की नारद जी तो तप करके इंद्र का पद प्राप्त कर लेंगे इसलिए इंद्र ने कामदेव को आदेश दिया की नारद की तपस्या को किसी भी तरह से पूरा होने से रोक दो
जब कामदेव पहुचे तो नारद जी तपस्या कर ही रहे थे और कामदेव ने बाण चलाया और बाण के कारण इनका ध्यान भंग हो गया और आँखे खोलते ही सामने कामदेव थे कामदेव को लगा की कही हमे भगवान शिव जी की तरह भष्म न कर दे इसलिए कामदेव ने अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी
और कामदेव ने पूरी बात जब बताई तो पहले तो नारद जी मुस्कुराये और कामदेव को क्षमाँ कर दिया लेकिन आप सभी को पता ही होगा की भगवान् शिव जी की तपस्या भंग करने के कारण शिव जी ने कामदेव को भष्म कर दिया था और काम को जीत लिया था लेकिन शिव जी क्रोधित अधिक होने के कारण क्रोध पर विजय नहीं प्राप्त कर सके लेकिन नारद मुनि ने तो काम के साथ साथ क्रोध पर भी विजय प्राप्त कर लिया इसलिए कामदेव ने नारद मुनि को शिव से बड़ा सन्यासी माना और यह बाते सुनकर नारद जी के मन में अहंकार आ गया और ये बात बताने के लिए शिव जी के पास पहुच गए
आप तो नारद जी को जानते ही है कि कोई भी बात पेट में पचती तो है नहीं वही यहाँ भी हो गया पूरी बात शिव जी को बताने के बाद शिवजी मुस्कुराये और नारद जी से बोले की आपने तो हमे बता दिया लेकिन भूलकर ये बाते आप भगवान् विष्णु जी से ना कहियेगा और नारद मुनि कहा बात मानने वाले थे उन्होंने वही बात जाकर विष्णु जी को बता दिया और ये सुनते ही विष्णु जी समझ गए की नारद के मन में अब अहंकार भर ही चुका है और अहंकार तो मिटाना ही होगा
और विष्णु जी ने एक नगर बसाया जो मायारूपी नगर था इस नगर का राजा था शिलनिधि और इसकी बेटी थी विश्व मोहिनी जिसका स्वयंवर होना था जब नारद इस नगर में पहुचे तो विश्व मोहिनी को देखर इनके मन में ख्याल आया की क्यों ना अब हमे भी विवाह कर ही लेना चाहिए
मन ही मन खुश होते हुए नारद जी भगवान् विष्णु जी के पास पहुचे पहले तो कुछ बोल ही नहीं रहे है सोच रहे है की अगर शादी की बात बताऊंगा तो क्या सोचगे लेकिन विष्णु जी के कहने पर नारद जी ने अपना मुख खोला और कहा प्रभु आप अपनी माया से हमे अपना रूप हमे दे दीजिये ताकि मेरा भी घर बस जाए भगवान् तो भगवान थे ज्यादा जिद की तो विष्णु जी ने नारद का मुख बंदर जैसा बना दिया और उसी स्वंयवर में अब नारद जी बंदर के मुख के साथ पहुचे है और विष्णु जी भी भगवान के रूप में और स्वंयवर में विश्व मोहिनी ने विष्णुजी को अपना पति चुनती है और ये सब आँखों के सामने देखकर नारद जी ने श्राप दिया की आपने मुझे स्त्री वियोग दिया है आप भी मानव शरीर धारण करने के बाद 14 वर्ष तक स्त्री वियोग में भटकते रहेंगे मुझे आपने बन्दर का मुख दिया है याद रखियेगा यही बन्दर आपकी पत्नी को खोजने में आपकी सहायता करेगा और इस तरह से विष्णु जी ने श्राप तो ले लिया और यही श्राप भगवान श्रीराम के जन्म का दुसरा कारण बना |
पहला वरदान : भागवत महापुराण के अनुसार सतयुग में मनु और शतरूपा जो भगवान ब्रह्मा के ही अंश से जन्म लिया था दोनों ने संतान पाने के लिए भगवान विष्णु की तपस्या कई वर्षो तक की और वरदान में भगवान विष्णु जैसा ही संतान की मांग की इस पर विष्णु जी ने कहा की मेरे जैसा तो मै खुद ही हु इस तरह तो हमे ही जन्म लेना पडेगा और आप सभी जानते ही है की त्रेतायुग में राजा दशरथ और माता कौशल्या के यहाँ पुत्र के रूप में भगवान् राम ने जन्म लिया
दूसरा वरदान : वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के अनुसार रावण ने वरदान पाने के लिए ब्रह्मा जी की काफी कठोर तपस्या की थी और वरदान के रूप में रावण ने अमर होने का वरदान प्राप्त करने में सफल भी हो जाता है और वरदान देते समय ब्रह्मा जी ने ये बाते जरुर स्पष्ट कर दिया था की इस संसार में कोई अमर नहीं है जिसका जन्म हुआ है उसका मरना अनिवार्य है लेकिन तुम अपने परीस्थितिया खुद से तय कर सकते हो और रावण को तो बस अमर होने का वरदान चाहिये था इस लिए हां हाँ करते चला गया और अब रावण के मन में ख्याल आने लगा की अब तो मुझे कोई देवता या दानव तो मार ही नहीं सकता है आप सभी को जानकारी होनी चाहिए की रावण ने सबको मारने का प्लान बना लिया था जिससे उसको खतरा था लेकिन इंसान और वानर से रावण को कोई ख़तरा नहीं दिखा इसलिए ये दो लोग उस समय आराम से जीवित रह सकते थे क्योकि रावण के दिमाग में ये भी आया की जब उसे कोई मार ही नहीं सकता है तो ये नर और वानर मेरा क्या ही कर लेंगे जबकि रावण को कोई साधारण मानव ही मार सकता था ये विष्णु जी को पता ही था और श्राप भी मिला था नारदमुनि का स्त्री वियोग की इसके बाद की घटना तो आप सभी जानते ही हो माता सीता जी का हरण उसके बाद रावण का वध |
जैसे आप ने सुना और पढ़ा होगा की इजराइल देश का एक शहर है जेरुशलम या इसे येरुशलम भी कह्नते है जो तीन धर्मो के लिए पवित्र भूमि है ये तीनों धर्म ईसाई , मुस्लिम और यहूदी का इससे काफी पुराना रिश्ता रहा है ऐसा ही अगर आप भारत में देखे तो आपको एक शहर अयोध्या भी मिल जायेगा जो हिन्दू धर्म , बौध धर्म के साथ जैन धर्म के लिए बहुत ही पवित्र स्थान माना जाता है
जैसे 7 वी सदी में चीनी यात्री ह्वेनसोंग भारत आया था तो अयोध्या में करीब 20 बौध मंदिर और करीब करीब 3000 बौध भिक्षु रहा करते थे जैन धर्म का मानना है की इनके 24 तिर्थंकरो में से 5 तिर्थंकरो का जन्म आयोध्या में ही हुआ था यहाँ तक की प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का जन्म अयोध्या में ही हुआ था और सबसे बड़ा या सबसे प्रमुख या कहा जाये सबसे विवादित और सबसे चर्चित है हिन्दू धर्म के अनुसार अयोध्या वो शहर है जो शिव जी के त्रिसुल और विष्णु जी के सुदर्शन चक्र पर बसा है |
स्कन्द पुराण के अनुसार भगवान मनु ने एक शहर बसाने के बारे में सोच रहे थे जो स्वर्ग जैसा ही हो और सोचते सोचते ब्रह्मा जी के पास पहुच गये और ब्रह्मा जी ने विष्णु जी के पास भेजा और विष्णु जी ने जिस जगह को चुना वो ये ही शहर था आपका अयोध्या नगरी इस शहर को विश्वकर्मा और महर्षि वशिस्ठ ने सरयू नदी के किनारे बसाया
अयोध्या के बारे में एक कहावत भी काफी प्रचलित है की “ न येतो सतत : जासा अयोध्या " अर्थात अयोध्या वो नगरी है जिसे कभी जीता नहीं जा सकता है भगवान् ने इसे बसाया और वो ही इसके राजा है सरयू नदी के किनारे बसी अयोध्या को पुराण में अष्ठ कमल के आकार का कहा गया है रामायण के बालकाण्ड के अनुसार जब मनु और शतरूपा ने अयोध्या बसाई थी तो 12 योजन लम्बी और 3 योजन चौड़ा था एक योजन आज के 13 से 16 किलो मीटर के बराबर होता है जबकि भारतीय खगोल शास्त्र के प्रसिद्ध ग्रन्थ सूर्य सिधांत में 1 योजन को 8 किलोमीटर के बराबर बताया गया है |
आधुनिक इतिहास के अनुसार अगर आप अयोध्या के इतिहास जानने की कोशिश करेंगे तो आपको 2200 साल पुराना मिलेगा यहाँ मगध के सम्राट पुष्यमित्र शुंग का शासंन हुआ करता था कहा तो ये भी जाता है की भगवन राम के अश्वमेघ यज्ञ के बाद पुष्यमित्र शुंग ने ही अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया था इसके बाद अयोध्या की सत्ता उज्जैन के महाराज विक्रमाँदित्य के हाथ में चली गई इसके बाद कनिष्क की सेना ने अयोध्या पर आक्रमण किया अयोध्या का नव - निर्माण मध्यकाल के राजा गोविन्द चन्द्र देव के शासन में कराया गया इसके बाद करीब 500 वर्ष पहले बाबर ने अयोध्या को जीत लिया बाबर के बाद अयोध्या में बंगाल के नवाब अलीवर्दी खान ने शासन किया इसके बाद नवाब सआदत खान जिसने फैजाबाद शहर की स्थापना की शुजाउददौला ने फैजाबाद को अवध की राजधानी बनाई
और करीब 200 वर्ष पहले ही मुग़ल सामाज्य ने अयोध्या को छोड़ दिया था और यहाँ की राजगद्दी राजा दर्शन सिंह को सौप दी थी और तब से ही अयोध्या में यही परिवार का शासन चलता आ रहा है
इसे आप इस प्रकार समझे :
2200 साल पहले : पुष्यमित्र शुंग
1500 साल पहले : विक्रमादित्य
900 साल पहले : गोविन्द चन्द्र देव
500 साल पहले : बाबर
350 साल पहले : शुजाउद्दौला
200 साल पहले : दर्शन सिंह
सरयू नदी की बात की जाए तो यह सिर्फ पर्यटक के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है सबसे जरुरी ये है की ये अयोध्या के 1772 गावो की लाइफलाइन भी है इसके किनारे कुल 14 प्रमुख घाट है इसमें गुप्तार घाट , लक्ष्मन घाट , कैकेयी घाट , पापमोचन घाट , ऋणमोचन घाट , कौशल्या घाट , अहिल्या बाई घाट , जानकी घाट , जटायु घाट और नया घाट है |
एक सर्वे के अनुसार अयोध्या में 7000 मंदिर है लेकिन इसमें 3 सबसे प्रमुख है पहला है कनक भवन , दूसरा हनुमान गढ़ी और तीसरा दशरथ महल | और ये तीनो ही आसपास में है :-
कनक भवन : मान्यता तो ये है की माता कैकेयी ने श्रीराम और माता सीता के विवाह के बाद उन्हें ये भवन भेट किया था तबसे इसका कई बार नव निर्माण कराया जा चुका है
हनुमानगढ़ी : जब भगवान राम और इनकी सेना रावण को हरा कर अयोध्या पहुची तो यही से हनुमान जी रामकोट की रक्षा किया करते थे इसलिए इस स्थान का नाम हनुमान कोट भी है
दशरथ महल : त्रेता युग में राजा दशरथ ने इस महल की स्थापना की थी
वाल्मीकि रामायण में अयोध्या को कोसल जनपद की राजधानी बताया गया है पौराणिक इतिहास के अनुसार देखा जाए तो सप्त पुरियो में अयोध्या को पहला स्थान दिया गया है इसके बाद के शहर/ नगर मथुरा , हरिद्वार , काशी , कांची , उज्जैन और द्वारका का नाम आता है |
अयोध्या का प्रथम उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है इसमें अयोध्या को देवताओं का शहर बताया गया है इसके अनुसार भगवान राम के पिता राजा दशरथ यहाँ के 63 वे राजा थे त्रेता युग के बाद द्वापर युग में भी अयोध्या के सूर्यवंशी राजा का उल्लेख है इस वंश का बृहद्रथ महाभारत के युद्ध में अभिमन्यु के द्वारा मारा गया था
बौध काल में अयोध्या के पास एक नई बस्ती बनाई गई थी जिसका नाम साकेत बताया जाता है कई विद्वान् अयोध्या और साकेत दोनों को एक ही मानते है
बौध धर्म के अनुसार बुध देव अयोध्या या साकेत में 16 वर्ष तक रहे थे
जैन धर्म के अनुसार 24 तिर्थंकरो मे से 22 इक्क्षाकू वंश के थे
सातवी सदी में चीनी यात्री ह्वेनसंग ने अयोध्या को पिकोसिया कहा है इनके अनुसार अयोध्या का एरिया 16 ली था एक चीनी ली ⅙ मील के बराबर होता था
इसी तरह अकबर के दरबार में रहने वाले अबुल फजल की किताब आईने अकबरी में अयोध्या की लम्बाई 148 कोस और चौड़ाई 32 कोस बताया गया है |
अकबर ने 1580 में अपने साम्राज्य को 12 राज्यों में बाटा तो अवध राज्य की राजधानी अयोध्या ही था
अयोध्या की आबादी की बात किया जाये तो -
वर्ष 1961 में : 83177 , 1971 में 102,835 , 1981 में 132,373 और इसी तरह 2011 में बढ़कर 221,118 हो गई |
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