
इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) और इसके फैसले महत्वपूर्ण हैं ?
संयुक्त राष्ट्र संघ की सर्वोच्च अदालत या इसे हम साधारण शब्दों में कहे तो ये दुनिया की सबसे बड़ी अदालत है जिसका फैसला लगभग सभी देशो को मानना ही होता है वरना कई प्रतिबंधो का सामना डायरेक्ट या इन डायरेक्ट रूप से करना पड़ता है चाहे वो कोई आर्थिक मदद हो या अन्तर्राष्ट्रीय बैंको से कर्ज लेना या यु कहे की संयुक्त राष्ट्र के स्थायी सदस्यों के साथ व्यापार करना मुश्किल हो जाता है |
अभी हाल ही में आपने सुना और देखा भी होगा की साउथ अफ्रीकी देश द्वारा इजराइल पर नरसंहार के आरोप लगाने के कारण इसी अन्तर्राष्ट्रीय कोर्ट में सुनवाई के आदेश दिए गए है इसलिए अब यह युद्ध इजराइल और फिलिस्तीन के मध्य तो है ही इसके साथ ही अब इजराइल को अब पुरे विश्व के देशो के साथ भी हर स्तर पर युद्ध जैसे कुटनीतिक लड़ाई दुनिया भर से लड़ने होंगे क्योकि यहाँ पर जीतना उतना ही जरुरी होता है जीतना आप युद्ध के मैदान में जीतते है इसी कारण से पूरी दुनिया की नजर अब अन्तर्राष्ट्रीय कोर्ट में सुनवाई और आने वाले फैसले पर होगा क्योकि इसका असर इन दोनों देशो के युद्ध पर तो होगा ही इसके साथ ही करीब दो वर्षो से चल रहे रूस युक्रेन युद्ध , चीन और ताइवान या अन्य दुनिया भर के छोटे से बड़े देशो पर असर पडेगा क्योकि यह सुनवाई कानूनी तौर पर बाध्य करती है और इसके खिलाफ अपील आप कही और नहीं कर सकते है या कहा जाये की आप मना भी नहीं कर सकते है हा अगर आप संयुक्त राष्ट्र के स्थायी सदस्य हो तो आप फैसला मानने से इनकार कर सकते है यहाँ तक की आप फैसले को प्रभावित भी कर सकते है जैसे रूस देश इसका स्थाई सदस्य है इसलिये रूस युक्रेन के युद्ध का फैसला आज तक नहीं हो पाया क्योकि रूस वीटो पॉवर ( जो एक तरह का विशेष ताकत प्रदान करता है अपने खिलाफ होने वाले किसी फैसले को ) का इस्त्तेमाल कर देता है लेकिन ये शक्ति तो इजराइल के पास नहीं है इसलिए इजराइल अब अमेरिका के रहमो करम पर ही केस में जीत सकता है |
आप सभी को याद तो होगा ही पिछले साल की 7 अक्टूबर को हमास संगठन के द्वारा किये गए हमले में 1,200 इजराइली नागरिक मारे गए थे जिसके बाद इजराइल देश की सरकार ने गाजा पर बदले की कार्यवाही के रूप में फिलीस्तीन के करीब 23,000 से अधिक लोगों की हत्या कर दी और आज गाजा क्षेत्र के 90% से अधिक लोग बेघर हो गए हैं।
इजराइल सरकार ने नरसंहार के आरोपों को खारिज कर दिया इसलिए ये केस काफी दिनों या यु कहे की आने वाले कई वर्षो तक चलेगा क्योकि इसमें सुनवाई की एक लम्बी प्रक्रिया होती है
दुनिया ने जब दो विश्व युद्ध देख लिए और विश्व में कही या किसी प्रकार की शांति स्थापित नहीं हो पाई तो यूनाइटेड नेशंस चार्टर के आधार पर जून 1945 में नीदरलैंड के हेग शहर में पीस पैलेस में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस की स्थापना की और इस संस्था को दो प्रकार की शक्तिया दी गई
1. एडवाइजरी जूरिडिक्शन (क्षेत्रीय शक्तियाँ ) जैसे शक्ति से जुड़े विवाद हो या जब दो देशो के बीच में विवाद की स्थिति आती है तो यह संस्था कानूनी सलाहकार के रूप में भी काम करती है |
2.अंतरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन होने पर उन देशों की जिम्मेदारी तय करना जिससे विश्व में शांति और स्थिरता बनी रहे
आप सभी को जानकारी के लिए बता दु की ये कोई पहली अन्तर्राष्ट्रीय संस्था नहीं है जो शांति और सुरक्षा के लिए काम करती है इसके पहले भी परमानेंट कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल जस्टिस दोनों विश्व युद्धों के बीच अपने फैसलों को लागू कराने में फेल हो गई थी इसलिए इस नए संस्था का निर्माण किया गया और पहले से अधिक शक्तिया दी गई
इसलिए आप देख भी सकते है की आज दुनिया के अधिकतर या यु कहे की सभी बड़े देशो के पास आज परमाणु हथियार है लेकिन 1945 के बाद आज ता कोई बड़ा युद्ध नहीं हुआ संभावनाए कई बार बनी और बिगड़ी है लेकिन वह दो देशो का ही युद्ध बन कर रह गया है चाहे आप भारत पकिस्तान युद्ध , भारत चीन युद्ध , पाकिस्तान बंगलादेश युद्ध और बाद में भारत भी इसमें शामिल हो गया क्योकि स्थिति बिगड़ गई थी या आज आप रूस युक्रेन युद्ध देख लिए या इजराइल और फिलिस्तीन का युद्ध साथ सभी देने की बात कर रहे है लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय नियमो की वजह से कोई भी देश डायरेक्ट मदद नहीं कर सकता है क्योकि UN के स्थाई सदस्यों पर अगर कोई देश हमला करता है तो वो पुरे स्थाई सदस्य देशो पर हमला माना जाता है ऐसे ही अगर कोई यूरोपीय यूनियन के किसी देश पर हमला करता है तो वह पुरे यूरोपीय संघ के ऊपर हमला माना जाता है इसलिए इतना कुछ हो जाने के बाद भी कोई बड़ा युद्ध नहीं होता है और सही भी है
इस कोर्ट की संरचना की बात किया जाये तो इसमें कुल दुनिया भर से मात्र 15 जज ही नियुक्त किये जा सकते है और इन जजों का कार्यकाल 9 वर्षो का होता है इसलिए यह किसी भी देश के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है की उसके देश का कोई व्यक्ति इसका जज बने जिससे अगर उसके देश से सम्बंधित कोई केस इस कोर्ट में जाये तो कुछ दबाव और फायदा मिल सके
क्योकि इस कोर्ट की एक खासियत ये भी है की सभी जजों की फैसला करने की शक्तिया बराबर होती है क्योकि फैसला वोटिंग के आधार पर ही किये जाते है और जब तक आपसी सहमति नहीं बनती है तब तक फैसला हो ही नहीं सकता है इसलिए इस कोर्ट की एक कमी ये भी मानी जाती है की कोई फैसला जल्दी होता ही नहीं है इसलिए कमजोर देश इस कोर्ट में अपने देश के केस ले जाने से बचते रहते है क्योकि समय के साथ साथ पैसा अधिक खर्च होता है उपर से केस हार जाने पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव का डर बना रहता है और जब तक केस इस कोर्ट में होता है कोई भी देश उस स्थान पर कोई भी नया काम या कोई भी सुधार या बदलाव नहीं कर सकता है क्योकि फैसला ना आने तक उस पर अन्तर्राष्ट्रीय कानून लागू होते है इन जजों की नियुक्ति यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली और यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल में एक साथ कराये जाने वाले चुनाव् के द्वारा चुना जाता है सबसे बड़ी बात ये भी है की इन 15 जजों की सीट विश्व के सभी महाद्वीप के आधार पर बाटा गया है इसलिए ये जरुरी नहीं है की एक ही देश या एक ही महादीप से अधिक जज बनाये जाये
लेकिन कई बार देखा गया है की इन 15 जजों के अलावा भी कुछ विशेष विषयों पर ज्ञान रखने वाले अस्थाई जजों को भी नियुक्त जाता रहा है लेकिन ये अनिवार्य नहीं है |हर कोर्ट की तरह इस कोर्ट का सबसे पहला नियम यही है की इसके जजों को निष्पक्ष होना चाहिए और ये अपने देश के पक्ष में कार्य नहीं कर सकते लेकिन समय समय पर कई फैसलों में इसका प्रभाव देखा गया है की अगर उस देश का जज इस कोर्ट में है तो जीतने की संभावना अधिक होती है या जो दबाव के रूप में प्रतिबन्ध लागू होने वाले है वो बहुत कठोर नहीं होते है इसलिये जब इन जजों की नियुक्तिया होती है तो काफी विचार विमर्श होता है सभी देशो में इसको लेकर और बहुत ही चर्चित मुद्दा बना रहता है जैसे आप सभी को याद होगा कि वर्ष 2022 में, जब कोर्ट ने रूस को यूक्रेन में सैन्य कार्यवाही तत्काल रोकने के आदेश दिया तो रूस और चीन देश के जजों ने इस फैसले के खिलाफ अपना वोट दिया इसलिए आज तक ये युद्ध रुक नहीं सका क्योकि आप सभी को पता ही है की ये दोनों ही देश संयुक्त राष्ट्र के स्थाई सदस्य है | या इसके पहले भी आपने देखा होगा जब रूस युक्रेन युद्ध पर मतदान कराया जा रहा था तो भारत देश ने इसमें हिस्सा ही नहीं लिया
इतनी शक्तिया होने के बाद भी आज भी इस कोर्ट में काफी कमिया है जैसे :1. इस कोर्ट के फैसले कानूनी रूप से बाध्यकारी है और इसके खिलाफ आप कही और अपील भी नहीं कर सकते है इसके बाद भी वो देश फैसला मानने से इनकार कर देते है क्योकि फैसला आने के बाद पूरी दुनिया दो भागो में बट जाती है की कौन इसके पक्ष में है और कौन इसके विपक्ष में इसलिए फैसले को लागू कराना सबसे मुश्किल काम माना जाता है क्योकि इस कोर्ट का काम केवल फैसला ही देना होता है फैसला कैसे और कौन लागू करवाएगा इसको लेकर नियम आज भी नहीं है |
जैसे आप मान लीजिये की कल को अगर इजराइल के खिलाफ ये फैसला आता है तो इस फैसले के विरोध में सबसे आगे और सबसे अधिक विरोध अमेरिका देश करेगा क्योकि इजराइल का सहयोगी देश है और अगर फिलिस्तीन के खिलाफ फैसला आता है तो चीन के साथ रूस इसका विरोध करेंगे ऐसे में कोई भी फैसला हो जाना जरुरी नहीं होता है बल्कि उसका क्रियान्वयन सबसे जरुरी होता है
2. जब शक्तिशाली सदस्य देशों के खिलाफ इस कोर्ट में सुनवाई की जाती है तो या तो वो इसमें शामिल ही नहीं होते है या फिर सीधे सीधे फैसला मानने से इनकार कर देते है इसके बाद इस संस्था का कोई मतलब ही नहीं रह जाता है जैसे 2022 में जब यूक्रेन देश के द्वारा रूस के खिलाफ कार्यवाई शुरू की गई तो शुरुआत होते ही रूस ने इस मुकदमे को बेतुका बता दिया और न्याय प्रक्रिया में शामिल होने से ही मना कर दिया
3.इस कोर्ट की धीमी प्रक्रिया और नौकरशाही से चलने वाली प्रक्रिया के कारण फैसला होने में काफी लम्बा समय लग जाता है और इसकी आलोचना होती रहती है इसलिए लोगो का यही कहना है की जब तक इजराइल पर गाजा में किये नरसंहार केस का फैसला आएगा तब तक क्या गाजा रहेगा भी ?
जैसे वर्ष 2019 में घटित घटनाओं में से एक है गाम्बिया देश द्वारा म्यांमार के खिलाफ रोहिंग्या शरणार्थियों पर दायर मुकदमा की सुनवाई आज भी इस कोर्ट में जारी है और आज 2024 आज चुका है और फैसले का इतंजार आज भी जारी है |
आप को जानकारी होनी ही चाहिए की इस कोर्ट के द्वारा पिछले कई दशको के पहले हुए इसी तरह के 2 नरसंहारो के फैसला आने में करीब एक दशक से भी अधिक समय लगा था
ये मामले क्रोएशिया बनाम सर्बिया तथा बोस्निया और हर्जेगोविना बनाम सर्बिया और मॉन्टेंगरो के बीच में हुए थे इसीलिए सवाल उठ रहा है कि क्या इस कोर्ट द्वारा अन्याय / अपराध / नरसंहार जैसे मुद्दों के खिलाफ दिया गया कोई भी फैसला अंत में बेकार हो जाता है या फिर ऐसी ही विश्व में राजनीति चलती रहेगी ? ये एक बड़ा सवाल आप सभी से भी है ………….
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