आपका पड़ोसी कैसा हो ? फायदे और नुकसान




 आपका पड़ोसी कैसा हो ?  

इस टॉपिक को हम सभी एक कहानी के माध्यम से समझेंगे एक स्कूल के मैदान में वार्षिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया था अलग-अलग क्लासेस की टीमे अपने अभ्यास में जुटी हुई थी सबके अंदर जज़्बा , जोश था लेकिन अचानक होश खोने लगा 

हुआ ये कि शांत माहौल में चल रहे अभ्यास में दो टीमे बेहद कटुतापूर्ण तरीके से आपस में बहस करने लगी और धीरे-धीरे सारा माहौल अशांत सा हो गया लड़ाई झगड़ा तक बात पहुंचने वाली थी 



समस्या यह थी कि दोनों टीमों ने खेल-खेल में दूसरी टीम की जगह को अपना बताने लगी बस इतनी सी बात थी इधर की गेद उधर , उधर की गेद इधर उस समय तो किसी तरह दोनों टीमों को समझा कर शांत कर दिया गया पर स्थाई और टिकाऊ समाधान शायद यह नहीं था इसलिए अनुभवी प्रिंसिपल सर ने अगले दिन ही एक आदेश जारी करके विभिन्न खेलों और क्लासेस के मध्य फील्ड का न्याय संगत रूप से वितरण कर दिया

बस वह दिन था और आज का दिन तकरार को छोड़िए साहब , टीमों के बीच इतना प्यार और खुलापन है कि उसकी मिसाल प्रिंसिपल सर आज भी देते हैं 

अच्छी बाड़े , अच्छे पड़ोसी बनाती है यहाँ बाड़े का मतलब बॉर्डर समझे आप सभी निश्चित रूप से यह बात स्वीकारने में कोई भी समस्या या संकोच नहीं किया जाना चाहिए चाहे वह घरेलू नोक - झोक हो या मोहल्ले की तू -तू ,  मैं- मै,  राज्य स्तर के या राष्ट्रीय स्तर के संसाधन वितरण संबंधी विवाद हो या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जमीनी विवाद अच्छी बाड़े हमेशा पड़ोसियों से बेहतर संबंध बनाने की दिशा में बड़ी भूमिका निभाती है

सभ्यता के विकास के ऐतिहासिक क्रम में सीमा रेखाओं की भूमिका हमेशा महत्वपूर्ण रही है जैसे विष्णु पुराण में कहा गया है कि :- 

उत्तर यत् समुद्रस्य,  हिमाद्रेश्चचैव दक्षिणम , वर्ष तद भारत नाम,  भारतीयत्र सन्नति : |

अर्थात जिसके उत्तर में हिमालय और दक्षिण में महासागर है उस देश का नाम भारत है और भारतीय उसकी संतान है

प्राचीन काल से ही भारत की भौगोलिक बाड़े निश्चित है जो इस देश को एक सांस्कृतिक एंव राजनीतिक इकाई का रूप प्रदान करती है उत्तर में हिमालय,  दक्षिण में विशाल समुद्र भारत की प्राकृतिक एवं स्थाई सीमा निर्मित करते है जो सदियों से भारत की सभ्यता, संस्कृति , राजव्यवस्था , आध्यात्मिक, चेतना को प्रदर्शित करती है

और आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करती है व्यक्तिगत या आंतरिक स्तर पर देखा जाए तो प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन के अलग-अलग स्तरों पर निज , परिवार , समाज , कार्य क्षेत्र सभी में अपने कुछ नियम कानून निर्धारित करता ही है

जिनके द्वारा बनी कुछ सीमाओं का अतिक्रमण न तो निजी स्तर पर सही होता और ना ही सामाजिक स्तर पर |



यदि मनुष्य की शरारती प्रवृत्ति पर अंकुश ना लगाया जाए तो यह पूर्णतया संभव है कि वह अपना संतुलन खो बैठेगा और इसके बाद से सामाजिक ताना-बाना,  व्यवसायिक व्यवस्था , राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय संबंध को टूटने में ज्यादा समय नहीं लगेगा 

राजनीतिक व प्रशासनिक क्षेत्र में तो कार्य विभाजन व नियंत्रण तथा सीमा निर्धारण का महत्व और भी अधिक रखता है चाहे वह सरकारी विभागों के पारस्परिक संबंध हो या विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मुद्दे |

अच्छी बड़े हमेशा विवादों को सुलझाने और विवादों को उत्पन्न ही न होने देने का महत्वपूर्ण काम करती है विभिन्न पड़ोसी व दूरस्थ राष्ट्रों के मध्य संबंध केवल उनकी भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक स्थितियों से ही नहीं, बहुत हद तक उनके बाड़ो से भी निर्धारित होते है जैसे भारत - चीन संबंध, भारत - पाकिस्तान - अफगानिस्तान संबंध,  चीन - जापान संबंध,  इसराइल फिलिस्तीन संबंध, उत्तर कोरिया- दक्षिण कोरिया संबंध जैसे हजारों पड़ोसियों के संबंधों का निर्धारण में सीमाएं कितनी महत्वपूर्ण घटक है यह बताने की जरूरत नहीं है 



इन देशों के आपसी संबंधों का अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर कितना प्रभाव है यह बात पूरा विश्व जानता है और तनाव बढ़ने पर समस्या सभी को होती है इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होगा कि पड़ोसी देशों की सरकारों के संबंध सुधार के सकारात्मक प्रयास अक्सर सीमाओं के विवादों के सामने दम तोड़ते दिखाई देते हैं 

जैसे भारत देश कभी भी पाकिस्तान की मदद करना चाहे तो वह मदद उस देश की जनता को नहीं मिल पाता क्योंकि बॉर्डर पर हमेशा तनाव बना रहता है इससे गलती किसकी है ? क्या उस देश की जनता का है या सीमा पर बड़े रूकावटों की ?

आप सभी को जानकारी होनी चाहिए कि यूरोपीय देशों में करीब 25 देश होंगे जिनके बीच में कोई बॉर्डर नहीं है और फिर भी आराम से अपने देश को चला रहे हैं जैसे भारत और नेपाल को ही देख लीजिए 

ऐतिहासिक दृष्टि का सहारा लेने पर हमें जानकारी मिलती है की अच्छी बाड़े पड़ोसियों के मध्य अच्छे संबंधों की बड़ी शर्त रही है जैसे प्राचीन काल में भारत चीन के मध्य बेहतर सांस्कृतिक संबंधों का बड़ा कारण हिमालय के रूप में प्राकृतिक प्रहरी का तैनात होना था

मंगोल आक्रमणों से भारत के बचाव का कारण भारत की भौगोलिक स्थिति ही रही है आधुनिक भारत में नेहरू जी का पंचशील सिद्धांत हो या गुजराल डाक्ट्रिन सभी पड़ोसी देशों के मध्य एक दूसरे के संप्रभुता के सम्मान , हस्तक्षेप न करना और जमीन को कब्जे न करने पर आधारित है

इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होगा कि यदि ये बाड़े न होती तो विश्व का इतिहास शायद अधिक विध्वंसात्मक ,विनाशपूर्ण , बर्बर और अव्यवस्थित होता |

यदि आप सभी धार्मिक आध्यात्मिक व दार्शनिक स्तर पर ध्यान दे तो सभ्यता का विकास क्रम इस बात का प्रमाण है कि धार्मिक समुदायों के मध्य संबंधों में कुछ स्वयं नियमित नियम व आत्म अनुशासन की व्यवस्थाएं हो 

परस्पर सद्भाव स्थापित करने के लिए व्यावहारिक तौर पर जरूरी है कि धर्म संप्रदायों की स्वतंत्रता का भी एक नियम कानून भी हो जिससे ये दूसरे समुदाय की निजता एवं परस्पर सौहार्द के लिए खतरा न बन जाए 

यदि सभी संप्रदाय अपने-अपने अधिकारों का उपयोग करने के साथ-साथ अपनी सीमाओं को भी समझ तो सांप्रदायिक विवाद ,दंगे ,फसाद, अशांति , अव्यवस्था जैसी स्थितियां कभी भी उत्पन्न नहीं होगी 



जैसे इंग्लिश में एक बहुत ही अच्छी कहावत है :  " your liberty ends, where my nose begins "

अच्छी बाड़े हमेशा से अच्छे पड़ोसी बनाती आई है बना भी रही है और आगे बनती भी रहेगी 

पर यहां पर सवाल भी बनता है "  कि क्या अच्छे पड़ोसी तभी बन सकते हैं जब उनके बीच अच्छी और मजबूत बाड़े ही हो ? "

क्या अच्छे पड़ोसी बनने के लिए अच्छी बाड़े या सीमा निर्धारित करना जरूरी है ? 

अधिकतर लोगों का जवाब हां में होगा लेकिन मेरी तरफ से अभी ना ही समझे ऐसा क्यों ? 

आज भी देश , दुनिया ,व्यक्ति  , समाज सभी जगह पर हजारों उदाहरण आपको मिल जाएंगे जो बिना बॉर्डर के परस्पर मित्रता पूर्वक और भाई-भाई के जैसे संबंध बना रखे जैसे अमेरिका कनाडा हो या ब्रिटेन आयरलैंड हो स्कॉटलैंड हो ऑस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड हो या भारत नेपाल हो 

आज भी संयुक्त परिवार व हिंदू अविभाजित परिवार जैसी संकल्पनाओ में कृत्रिम बाड़ो का खोखलापन उजागर होता है और गांव और कस्बों में छतो से जुड़ी छते आपस में जुड़े घर प्यार के एहसास को जीवन भर बनाएं हुए है 

अक्सर देखा जाता है कि ऐसे देश जो बहुसांस्कृतिक और बहुधार्मिक होते हैं उनमे सौहार्द व सद्भाव उन देशों की तुलना में कहीं ज्यादा होता है जो विशेष तौर पर किसी धर्म, जाति, संप्रदाय नस्ल विशेष की पहचान पर निर्मित होते हैं बल्कि इससे जुड़ा एक और सवाल बहुत ही जरूरी और अच्छा भी है कि क्या बाड़े अच्छे पड़ोसियों के संबंधों के लिए सही है ? 


हमारी संस्कृति तो सदैव " अतिथि देवो भव " वसुधैव कुटुंबकम " का ही ध्यान करती है " अयं निज : परोवेति , गणना लघुचेतसाम्र , उदार चरितानां तू , वसुधैव कुटुंबकम " अर्थात तेरा सो मेरा आत्मसात करने के लिए यह संस्कृति, गांधी जी  , टैगोर , विवेकानंद और नेहरू जी की विचार धाराओं के माध्यम से अंतरराष्ट्रीयता के आदर्श के रूप में हमारे आपके सामने आते हैं

गांधी जी के एक कथन को यहां पर चर्चा किया जाए जैसे " अपने घरों के दरवाजे बंद रखो ताकि वह सुरक्षित रहे पर उनकी खिडकिया हमेशा खुली रहने दो ताकि बाहर की खुली और स्वच्छ हवा भीतर आकर तुम्हें बाहरी जगत से परिचित करा सके " 

इस कथन को आप अपने ऊपर, समाज के ऊपर , देश - दुनिया के ऊपर रखकर आसानी से समझ सकते हैं सच पूछिए तो अक्सर बाड़े पड़ोसियों के सौहार्दपूर्ण प्रेम के मध्य बाधा बनकर खड़ी हो जाती है परस्पर सांस्कृतिक , सामाजिक, आर्थिक अंत : क्रिया निश्चित रूप से सीमाओं के अवरोधों को बाधित करती है 

यह बाड़ो की अनुपस्थिति का ही कमाल था कि पुराने समय में एक देश के व्यापारी अपनी भाषा,  संस्कृति, जीवन शैली,  धर्म , सभ्यता को साथ लिए सूरीनाम , गुवाना,  मॉरीशस, फिजी,  टोबैको में बसना भारतीय संस्कृति का दक्षिण पूर्व में प्रसार हो

या बौद्ध धर्म का वैश्विक विस्तार स्वतंत्र और बिना किसी रूकावट के आवागमन सभ्यताओं और संस्कृतियों का संवाहक बन उसका विकास करता है यदि हम कुछ समय के लिए मानव निर्मित सीमाओं से हटकर सोच तो हम एहसास कर पाएंगे कि इन बाड़ो ने पड़ोसियों से अच्छे संबंधों पर किस लेवल तक प्रतिकूल प्रभाव डाला है 

एक दार्शनिक सवाल यह भी है कि आखिर अभिमानी महाबली इंसान को यह अधिकार किसने दिया कि वह विश्व के मानवो के विराट संसार में अनावश्यक दीवारें खड़ी करें ? 

जो मानव मानव के बीच पारस्परिक स्वतंत्र और उसमें जुड़े संपर्कों में स्पष्ट रुकावटें बन जाती है 



एक इंसान जो भारत में पैदा हुआ अगर वह कैलाश जाना चाहे तो पासपोर्ट वीजा की जरूरत क्यों ?

बाड के एक ओर खनिज पदार्थो और फसलों की अधिकता तो दूसरी तरफ के मानव रोटी , पानी और संसाधनों की कमी से परेशान है एक और पड़ोसी के पास नहाने और बिखेरने के लिए पानी है तो दूसरी तरफ पीने के लिए पानी तक नहीं है एक और पेट्रोल की नदियां बह रही है तो बाड़ की दूसरी ओर लोग आसमान छूते दामों पर पेट्रोल खरीदने पर मजबूर हो रहे हैं

क्या यह संभव है की बाड़ के एक ओर हिंदी बोली जाती है और दूसरी और उर्दू ? एक ओर प्रेमचंद के उपन्यासों के महत्व दूसरी ओर सआदत हसन मंटों की कहानी का जादू ? 

हमें नहीं भूलना चाहिए की संस्कृति और जीवन कुछ कृत्रिम बाड़ो में सिकुड़ कर नहीं रह सकते कुछ मूल्य साहित्य,  संस्कृति ,कला ,भाषा , संगीत, रहन-सहन बॉर्डर से दूर होते हैं और मानव जीवन को अधिक सार्थक और सुखमय बनाते हैं 

ऋग्वेद का एक लोकप्रिय सूक्त है " आ नो  भद्रा : क्रतवो यन्तु विश्वत : " 

अर्थात विश्व की सभी श्रेष्ठ विचार मेरी ओर आए पर यह ध्यान देना चाहिए कि यह श्रेष्ठ विचार तभी हमारी ओर आ  पाएंगे जब हम अपने घर की खिड़कियां दूसरों के विचारों के आगमन के लिए खोल कर रखेंगे और कृत्रिम बाड़ो के बंधन से मुक्त हो जाएंगे 

किसी शायर ने इसी भावना को इस प्रकार व्यक्त किया है " कमल उर्दू के खिलते हैं , यहाँ हिंदी की झीलों में , गजल को बांटना मुश्किल है भाषायी कबीलो में " 

इन सभी बातों और शायरियों से यही बात स्पष्ट होती है कि अच्छे पड़ोसियों से संबंध बनाने के लिए अच्छी बाड़े लगाना ही एकमात्र उपाय नहीं है अच्छे पड़ोसी तब भी हो सकते हैं जब बाड़े ना हो



पर साथ ही ध्यान रखना ही होगा कि समाजिक- आर्थिक - सांस्कृतिक क्षेत्र का विकास तभी संभव है जब पड़ोसी शांत हो एवं पड़ोसी से आपके संबंध भाईचारे जैसा हो दोनों के पारस्परिक प्रेम और सौहार्द में कोई खलल ना हो या कोई विवाद उत्पन्न हो तो उससे कहीं बेहतर होगा की समझदारी का परिचय देते हुए एक अच्छी सीमा रेखाओं का निर्माण कर लिया जाए 

ताकि जीवन के प्रत्येक क्षेत्रो के नियम के अनुसार उसका प्रबंधन और बेहतर तरीके से विकास हो सके और लास्ट में आप सभी से यही कहना चाहूंगा की अच्छी बाड़े अच्छे पड़ोसी बनाती रहेगी और उनके पारस्परिक संबंधों की ऊर्जा का एक ऐसा समय आएगा कि जब दोनों पड़ोसी मिलकर आपसी सहमति से उस बाड़े को हटाकर या खत्म करके आपस में गले मिल जाएंगे..............


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