श्रीराम मंदिर vs अयोध्या वासियों की समस्याए



श्रीराम मंदिर vs अयोध्या वासियों की समस्याए

राम मंदिर का निर्माण यहां के साथ-साथ पूरे भारत देश के गौरव की बात है मगर इसके आगे भी बहुत सारी ज़रूरतें है जो चुनाव दर चुनाव और सरकार दर सरकार अधूरी रह जाती हैं मौजूदा भाजपा सरकार में भी अधूरी रह गई है जैसे स्वास्थ्य हो या शिक्षा हो या हो रोजगार की बात , हर चीज के लिए फैजाबाद या लखनऊ तक दौड़ लगानी यहां के लोगों के लिए एक साधारण सी बात बन गई है |

शायद यही नाराजगी इस बात की बड़ी वजह रही है कि तमाम तैयारी और संभावना के बाद भी सीएम योगी आदित्यनाथ अयोध्या के स्थान पर अपने गढ़ गोरखपुर से चुनाव लड़ना उचित समझा |

विस्तार : ये वही अयोध्या है जिसके पत्थरों  में 10000 वर्षों का इतिहास छिपा हुआ है  मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की जन्मस्थली का गौरव इसका अतीत है और इस जन्मस्थली पर भव्य राम मंदिर का उल्लास इसका भविष्य है भारतीय राजनीति के आंदोलनो और चुनावी शोर में अयोध्या की गूंज पुरानी है |

हालांकि अयोध्या की बात मंदिर पर शुरू होकर मंदिर पर ही खत्म हो जाती है राम मंदिर के निर्माण के साथ जो काम शुरू हुए हैं उनसे उत्पन्न दर्द अभी ताजा है करीब 70% शहर को उजाड़ दिया गया है जिससे टूटी  सड़के, उफनती नालियां और नदियों में मिलता गंदा पानी लोगों की समस्या बन गई है पुरानी समस्याओं से परेशान जनता अब नई परेशानियों से बहुत ही अधिक परेशान है |

अयोध्या का इतिहास : अयोध्या भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या जिले का एक नगर और जिले का मुख्यालय है सरयू नदी के तट पर बसा  अयोध्या एक अति प्राचीन धार्मिक नगर है मान्यता  है कि इस नगर को मनु ने बसाया था और इसे अयोध्या का नाम दिया 

जिसका अर्थ अ - युध अर्थात जिसे युद्ध के द्वारा प्राप्त न किया जा सके इसे  कोशल जनपद भी कहा जाता है | 

पौराणिक मान्यताओ के अनुसार अयोध्या में सूर्यवंशी/ रघुवंशी /अर्क्वंशी राजाओं का राज हुआ करता था जिसमे भगवान श्रीराम ने अवतार लिया प्रसिद्ध चीनी यात्री हवेनसांग सातवीं शताब्दी में इस नगर की यात्रा की थी जिसके अनुसार 20 बौद्ध मंदिर और 3000 भिक्षुओ के रहने की जानकारी यहां पर मिलती है |

 

समस्याये :  जानकारो का मानना है कि अयोध्या का विकास पिछले 30 वर्षों से ही सुस्त पड़ा हुआ है आबादी 8 गुना बढ़ गई है मगर अयोध्या शहर ही नहीं इसके आसपास के इलाके में भी उद्योग धंधे नहीं बढे हैं यहाँ रोजगार सबसे बड़ा संकट है शहर के जिस भी इलाके में आप चले जाइए आपको केवल पूजन सामग्री ही मिलती है इसके अलावा यहां की युवकों के पास आय का कोई अन्य साधन नहीं है इस तरह पढ़े लिखे युवाओं का पलायन होना एक स्वाभाविक सी बात हो गई |

हर वर्ष हजारों युवा नौकरी की तलाश के लिए दूसरे शहरों की ओर चले जाते हैं

 अयोध्या आस्था का शहर है या 10000 से भी अधिक मंदिर है यहां हर मोड़ पर भगवान का घर है मगर फिर भी आम आदमी बेसहारा  है क्योंकि सरकारी अस्पतालों में स्टाफ की कमी है छोटी से छोटी बीमारी के लिए भी 135 किलोमीटर दूर लखनऊ तक दौड़ना पड़ता है शहर में स्कूल और कॉलेज का भी यही हाल है इस शहर में लड़कियों के लिए एकमात्र तुलसी कन्या इंटर कॉलेज है जो अब खंडहर हो चुका है कभी इस सरकारी कॉलेज में 1000 से अधिक छात्राएं पढ़ाई करती थी लेकिन आज मात्र 185 रह गई है लड़कियों को शिक्षा के लिए फैजाबाद जाना पड़ता है | 

यहां की जनता राम मंदिर निर्माण शुरू होने से बहुत खुश है सरयू घाट पर हर वर्ष दीपावली के अवसर पर होने वाले दीपोत्सव से अयोध्या को पर्यटन बढ़ने की उम्मीद है लेकिन मंदिर निर्माण का काम जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है लगभग 2 से 3 किलोमीटर के दायरे में लोगों को उजाड़ा जा रहा है और इस बात से स्थानीय लोग काफी परेशान है 

बाबरी मस्जिद के पैरोकार इकबाल अंसारी का कहना है कि कोर्ट के आदेश पर राम मंदिर का निर्माण हो रहा है जो बहुत खुशी की बात है मगर अब विकास की बात होनी चाहिए जब तक लोगों को सड़क , सीवेज , घर और अस्पताल जैसी चीज नहीं मिलेगी तब तक रोजगार के अवसर पैदा नहीं होंगे तब तक अयोध्या का विकास अधूरा ही रहेगा |


 जमीनी विवाद : अयोध्या से लगभग 10 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत है मांझा बरहटा यूपी सरकार ने इसी ग्राम पंचायत में भगवान श्री राम की 251 मीटर ऊंची मूर्ति बनाने की घोषणा की है मूर्ति के निर्माण के लिए जमीन अधिग्रहण भी किया जा रहा है हालंकि ग्रामीणों की शिकायत है कि सरकार जबरदस्ती हमारी जमीनों का अधिकरण कर रही है मांझा बरहटा  की मिट्टी उपजाऊ है पानी की कोई कमी नहीं है इसलिए यहां के किसान एक ही सीजन में कई फसलों की खेती करते हैं |

 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर बनाने के पक्ष में फैसला दिया था इस फैसले के 2 महीने बाद 14 जनवरी 2020 में अयोध्या के डीएम ऑफिस से सूचना निकाला गया था कि भगवान राम की मूर्ति बनाने के लिए मांझा बरहटा ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले लगभग 86 हेक्टेयर जमीन का सरकार अधिग्रहण करना चाहती है |

1992 में महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट ने मांझा बरहटा  की  काफी जमीन रामायण विश्व विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए किसानों से खरीदी थी लोगों ने खुशी खुशी जमीन ट्रस्ट को बेच दी लेकिन ट्रस्ट ने ना कोई विश्वविद्यालय और ना ही भूमि पर कभी कब्जा किया ट्रस्ट को गांव वालों ने जमीन स्कूल बनवाने के नाम पर बेचीं थी क्योंकि गांव के आसपास कोई स्कूल नहीं था और सब चाहते थे कि उनके बच्चे स्कूल में पढ़े और आगे बढ़े लेकिन लगभग 30 वर्षों का समय बीत जाने के बाद भी गांव में स्कूल नहीं खोला गया क्योंकि 1984 से आज तक ना तो जमीन का सर्वे हुआ और न ही चकबंदी गांव के लोग जीवन यापन के लिए खेती और पशुपालन पर पूरी तरह से निर्भर है ऐसे में इनकी चिंता है कि अगर वे अपनी जमीन दे देते हैं तो बदले में सरकार उनके भविष्य  कैसे सुरक्षित करेगी  ? 

क्या सरकार जमीन के बदले जमीन देगी या परिवार में किसी एक को सरकारी नौकरी ? 

इस पर प्रशासन की ओर से कोई लिखित आश्वासन नहीं मिलने के कारण से गांव के लोग बहुत चिंतित हैं 

5 जुलाई 2021 को कोर्ट ने प्रशासन को अदालत की अवमानना के लिए कारण बताओं नोटिस भी जारी किया था और एक  सर्वे कराने के लिए फरवरी 2022 तक का समय दिया लेकिन अभी समाधान नहीं हो पाया


 जमीन खरीद : 

अयोध्या में श्री राम मंदिर परिसर के  विस्तार के लिए खरीदी गई जमीन में कथित घोटाले को लेकर विवाद :- 

 राम मंदिर परिसर से इस जगह की दूरी करीब 4 किलोमीटर है 2 करोड रुपए की जमीन का सौदा 18.5 करोड रुपए में की गई है और 2011 में जमीन के एग्रीमेंट  में विक्रेता के तौर पर महबूब आलम ,जावेद आलम ,नूर आलम और फिरोज आलम के नाम दर्ज है और खरीदने वालों के तौर पर कुसुम पाठक और हरीश पाठक का नाम लिखा यह समझौता एक करोड रुपए में हुआ था वर्ष 2014 में इस एग्रीमेंट को इन्हीं लोगों के बीच नवीनीकरण कराया गया था इस दौरान यह मामला कोर्ट में था इसलिए इसकी रजिस्ट्री नहीं हो पाई थी लेकिन वह 2017 में इसकी रजिस्ट्री हो गई थी वर्ष 2019 में कुसुम पाठक और हरीश पाठक ने इस जमीन को बेचने के लिए सुल्तान अंसारी समेत  8 लोगों के साथ एग्रीमेंट किया और जमीन की कीमत 2 करोड़ रुपये लगाईं गई  

 

यह एग्रीमेंट अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कुछ पहले ही हुआ था और फैसले के बाद अयोध्या में जमीन के दाम आसमान छूने लगे क्योंकि बहुत सारे मंदिर बनाने की प्रस्ताव सरकार ने दिए थे इस एग्रीमेंट के दस्तावेज में दर्ज 8 लोगों के नाम उस वक्त गायब हो जाते हैं जब इस एग्रीमेंट की रजिस्ट्री होती है और इसी समय इसमें एक नया नाम रवि मोहन तिवारी का जुड़ जाता दिलचस्प बात यह है कि रवि मोहन तिवारी पहले इस एग्रीमेंट में बतौर गवाह थे लेकिन रजिस्ट्री के वक्त वह जमीन के मालिक के रूप में विक्रेता बन जाते हैं 

इस पूरे मामले में विवाद का सबसे अहम पहलू यह है कि जिन लोगों से  श्रीराम जन्मभूमि क्षेत्र ट्रस्ट ने 12000 वर्ग मीटर जमीन का सौदा 18.5 करोड रुपए में किया था उन्हीं लोगों ने उसी दिन महज कुछ देर पहले ही दो करोड रुपए में वहीं जमीन खरीदी थी |  

 विवाद को बढ़ते देख  श्री राम जन्मभूमि परिसर के वरिष्ठ नेता चम्पत राय ने इस मामले में कई बार स्पष्टीकरण दिया और साफ तौर पर कहा कि जमीन खरीद में कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया है और जमीन खरीदने से पहले इसकी हर पहलू से जांच की गई है और जमीन बाजार भाव से कम कीमत पर खरीदी गई 

जबकि कुछ अन्य का मानना है की जमीन का सर्किल रेट 4800 प्रति वर्ग मीटर है और इस हिसाब से खरीदी गई जमीन की कीमत करीब 5 करोड़ 80 लाख रुपए बैठती  है सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी ने इसे 2 करोड रुपए में कुसुम पाठक और हरीश पाठक से 18 मार्च 2021 को खरीदा को खरीदा और फिर उसी दिन श्रीराम जन्मभूमि ट्रस्ट को 18.5  करोड रुपए में बेच दी 

 किसानों की फसल बचाने के लिए पुख्ता इंतजाम करें सरकार : 

किसानों का कहना है की फसल बचाने के लिए अब हमें रात रात भर खेतों में जागना पड़ता है जो समस्या पहले की सरकारों में भी थी और इस सरकार में भी बनी है गौशाला तो सरकार ने बना दिया लेकिन फिर भी फसलों का नुकसान कम नहीं हो रहा है इसलिए मंदिर बने या मस्जिद इससे कही अधिक जरुरी है उस राज्य के लिए उस शहर के लिए सभी  बुनियादी सुविधाए मौजूद होनी ही चाहिए वरना एक समय ऐसा आएगा जब दुनिया के कोने कोने से लोग श्रीराम जी का दर्शन करने आयेंगे पर यही अयोध्या के लोग किसी दुसरे शहर में रोजगार के लिए पलायन कर चुके होंगे तो आप सोच भी नहीं सकते की कैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है |


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