भारत का प्राचीन इतिहास
यह तीन शब्द लिखे हुए भारत का इतिहास आपके किसी भी पाठ्यक्रम में तीन शब्द लिखे हो तो इसमें आपको थोड़ा सा चौकन्ना होकर के इसको समझना है यह तीन शब्द अपने आप में तीन नहीं है यह जो घड़ी है इतनी पुरानी है कि इसको अभी चलाते-चलाते है पहला आपका चलते चलते यहां तक पहुंचते-पहुंचते बहुत लंबा समय लगाएं एक दिन की बात नहीं होती है इतना बड़ा राष्ट्र इतना बड़ा देश और भारत हमेशा बनता-बिगड़ता रहा है भारत को जो मानचित्र आप देख रहे हैं ना यह सदियों से एक जैसा था आने वाले समय में भी आप देखेंगे कि एक जैसा नहीं रहेगा कुछ सदियों बाद यह फिर बदलेगा है ना अभी आप खुद देखिए आजादी के बाद ही कई बार बदला यह मानचित्र भी जम्मू-कश्मीर में ही 2019 में ही नया रूप ले लिया इसमें तो यह मानचित्र हमेशा अपने आपको नुतन करता रहेगा इतिहास में भी यही चीज देखने को मिला कि कभी इसका स्वरूप बड़ा हो गया कभी छोटा हो गया कभी बहुत छोटा हो गया कई बार कई बार विखंडित हो तो हर तरीके की कहानी यहां पर देखने को मिलेगी और भारत के साथ सबसे अच्छी चीज है कि इस देश में बिन बुलाए मेहमान बहुत आए विदेशी आक्रांता समय के साथ-साथ हमने कभी बुलाने की जरूरत नहीं रही है आते चले गए चाहे हम आर्यों की बात करें आर्यों का आगमन हुआ
भारत में आर्यों के बाद इरानी और यूनानी आक्रमण हुआ भारत में इसके बाद आप देखेंगे कि यूनानियों के बाद भारत में मौर्योत्तर काल में लगातार बहुत सारे लोग आए चाहे वह शक रहे हो चाहे वो पल्ह्व रहे हो चाहे तो कुषाण रहे हो हिंद यूनानी रहे हो गुप्तकाल में हूणों का आगमन हुआ भारत में और इसके बाद जब वर्धन वंश या हर्षवर्धन का कारण तो यहां पर अरबों का आक्रमण हो गया मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में भारत में सफल अरब आक्रमण हुआ और इसके बाद फिर अरबों के आक्रमण के बाद तुर्कों का आगमन हुआ चाहे गजनबी रहा हो चाहे गौरी रहा हो और इसके बाद भारत में एक इस्लामिक राष्ट्र की स्थापना हो जाती हैं तुर्कों का शासन प्रारंभ हो जाता है अफगानियों का आगमन हुआ फिर साथ ही साथ अफगानियों के पहले चंगेज खां भारत आया था जब यहां पर इल्तुतमिश का शासन था तो चंगेज खान का आगमन हुआ चंगेज खां के बाद देखेंगे तो तुगलक वंश के लास्ट में तैमूरलंग का आक्रमण होता है तैमूर आता है चंगेज खां का ही वंशज था यह भी है दोनों में बहुत अंतर है
इसके बाद आप देखेंगे फिर एक बिन बुलाया मेहमान आया बाबर मुगलों के आक्रमण भारत में हो गया फिर मुगलों का आक्रमण हुआ मुगल अब देखिए भारत बन रहा है बिगड़ रहा है कोई आ रहा है अधिपत्य करके जा रहा है भारत कहीं भारतीयों को नहीं देखेंगे हां सम्राट अशोक के टाइम पीरियड को छोड़ दें सम्राट के अशोक के टाइम पर भारतवर्ष सबसे बड़ा था इसके बाद अब देखेंगे तो मुगलों के टाइम पीरियड पर भी विदेशी आये चाहे वह नादिरशाह और अहमदशाह अब्दाली रहा हो वह भी दो आक्रमण हुए बड़े स्तर के और इसके बाद फिर आपका पुर्तगाली अंग्रेज डच डेनिस फ्रांसीसी स्वीडिस का आगमन प्रारंभ हो जाता है
और अंततोगत्वा फिर हम प्रयास करते हैं देश में एक नेशनल मूवमेंट चालू होता है राष्ट्रीयता की भावना राष्ट्रवाद का विकास होता है और परिणाम स्वरूप एक बड़े व्यापक मुमेंट के बाद सौ सालों की एक बड़ी लंबी कहानी जो 1857 की क्रांति में जो गाथा का प्रारंभ होता है वह 1947 में जा करके हम पाते हैं तो एक लंबी कहानी वहां पर हम देखने को पाते हैं और देश आजाद होता है तो समय-समय पर बिन बुलाए मेहमान जो आएंगे उनके बारे में भी आपको जानना होगा
समझने का प्रयास करते हैं कि इतिहास का विभाजन किस आधार पर किया जाता है इतिहास के किन पन्नों को हम प्राचीन भारत का इतिहास कहते हैं कि इन पन्नों को हम मध्यकालीन भारत का इतिहास कहते हैं किन पन्नों को हम आधुनिक भारत का इतिहास कहते है
एक बार ऐतिहासिक पन्नो की तरफ चलेंगे और इतिहास को समझने का प्रयास करेंगे इतिहास लेखन की परंपरा भारत में ज्यादा लंबी नहीं रही है ऐसा नहीं था कि हम इतिहास लेखन प्राचीन काल से कर रहे हैं इतिहास लेखन आधुनिक पद्धति है तो अभी आप देख रहे हैं इतिहास लेखन बहुत लंबे समय कारक का भारत ने नहीं किया हमारे यहां हेरोडोटस जैसे इतिहासकार नहीं थे तो थोड़ा सा पहले समझते हैं सबसे पहली चीज कोई लेखन ज्ञान करना है लिखना है किसी चीज को लिपिबद्ध करना है तो पहले तो मस्तिष्क का पूर्ण विकास होना चाहिए है
इसका विकास बहुत लंबी प्रक्रिया है ऐसे नहीं बन गया है तो शुरुआत बिल्कुल बीगिनिंग से कहते हैं जब वीरान रहा होगा जब सुनसान रहा होगा तो उससे पहले भूगोल की कहानी अलग ही पृथ्वी पहले गरम गोला थी है और यह वैसे अलग हुई है फिर यह सब चीजें पहले की कहानी मैं सीधा बात यह करता हूं कि जब यह Veerana रहा होगा और विराना रहने के साथ-साथ जब यहां पर जीवन की उत्पत्ति हो चुकी होगी मानव जैसा जो आपका यह प्राचीन हमारा जो पूर्वज है वह चुका होगा उस समय पीरियड कि मैं आप लोगों से बात करूंगा फिर वहां से हम चीजों को लेकर चलेंगे
तो हमारे पूर्वजों का टाइम पीरियड जिन्हें हम आदिमानव कहते हैं- एक ही भारत के इतिहास में प्रारंभ होता है जब यहां पर मौर्योत्तर काल प्रारंभ हो जाता है मौर्योत्तर काल यानी हिंदी यूनानी शासक जब भारत में आएंगे या फिर कह सकते हैं कि दक्षिण भारत में सात वाहनों का शासन प्रारंभ हो जाता है मौर्य खत्म हो जाते हैं ब्रह्मदत्त अंतिम शासक समाप्त हो जाता है उसके बाद यहां पर AD का प्रारंभ होता है मौर्य काल तक BCE ही चलता है इसके बाद जो आपका चालू होगा उत्तर भारत में मौर्योत्तर काल और सातवाहन वंश और विभिन्न प्रकार से जो नए राज्यों का गठन होता है
तो हम बात करते हैं बिल्कुल प्रारंभिक जब मानो का उद्भव शुरू हुआ और उदय होने होते ही बच्चा पैदा होते हैं थोड़े ही जवान हो जाता है लंबा टाइम पर लगता है आपको भी एक बच्चे को 2 साल 3 साल तो खड़े होते होते लग जाते हैं फिर धीरे-धीरे उसके सारे भी अंगों का विकास होता है और शारीरिक अंगों के विकास के बाद निरंतर उसके ज्ञान में वृद्धि होती रहती है ज्ञान में वृद्धि होते-होते वह सोशलाइजेशन होता है जिस समाज में रहता है वहां पर बढ़ता है वैसे ही जब मानव प्रारंभ हुआ होगा तो अचानक से थोड़ा आज जैसा हो गया होगा
तो शुरुआत में एक तरीके से यह अवस्था से भी पहले की अवस्था पहले कि चारों पैरों से चलते थे ने जो हाथ का प्रयोग करते थे वह भी पैरों के तौर पर करते थे कुछ ऐसा रहा होगा धीरे-धीरे रीढ़ की हड्डी सीधी होती गई और सीधी होते होते होते और धीरे-धीरे फिर धागे को आगे बना लेता है उसको बोलता है तो यह धीरे-धीरे आप देखें इसके मस्तिष्क कपाल का भी परिवर्तन हो रहा है मस्तिष्क का भी विकास हो रहा है यह आधुनिक मानव है जो भी आप देख रहे हैं लंबी प्रक्रिया है यहां तक पहुंचने में क्या पूरा रहा एक बार थोड़ा सा और यह बड़ा एरिया बड़ा टाइम पर यही है जो आज कम टाइम में ज्यादा ज्यादा हम कितनी पुरानी घटना पढेंगे इंडस वैली सिविलाइजेशन आपकी 2500 BC में थी और वर्तमान 2021 बैठें तो लगभग 5000 कि अवधी का इतिहास पढ़ रहे हो आप इसके पहले का तो मानव का विकास ही है
20 लाख से लेकर के 2500 BC तक मानव का विकास ही चल रहा है मानव आधुनिक जीवन स्तर के लिए जद्दोजहद कर रहा है एक लंबी प्रक्रिया पहुंचते-पहुंचते बहुत लंबा टाइम लगा है
तो 20 लाख या 30 लाख BC से लेकर 2500 BC तक पहुचते है और एक सभ्यता का पता चलता है इसका नाम सिन्धु घटी की सभ्यता के नाम से जानी जाती है इसके पहले के काल को पाषाण काल के नाम से जानी जाती है पत्थर का काल
इस समय के मानव को लेखन का ज्ञान होगा ? जब उसे यह नहीं पता मैं कौन हूं तो लिखना क्या जाने , कागज के बारे में भी नहीं जानता था कुछ भी नहीं जानता तो लेखन का ज्ञान नहीं होगा जानकारी का मूल स्रोत क्या हो सकता है सिर्फ और सिर्फ उस समय कि जो वस्तुएं मिलीं बहुत सारे पत्थर मिल गए हैं नुकीले पत्थर मिल गए हैं कुछ जो है ऐसे कुल्हाड़ी टाइप में मिल गए हैं बहुत सारी तरीके की चीजें मिली हैं उन चीजों को हमने अज्युम किया है कि मानव ऐसा प्रयोग करता रहा होगा यह प्रयोग करता रहा होगा इतिहासकारों ने उसका प्रॉपर अध्ययन किया है तो यहां पर पुरातात्विक स्रोतों के आधार पर ही मानव के बारे में जानकारी मिलती हैं पुरातात्विक स्रोत हमारे मूलाधार ठीक हैं लेखन का अभाव है पुरातात्विक साक्ष्य मिले हैं विभिन्न क्षेत्रों से उन्हीं क्षेत्रों के आधार पर हम मानव के बारे में प्रॉपर जानकारी प्राप्त कर पाते हैं
पाषण काल : एक लंबे टाइम पीरियड 20 लाख BC हम पाषाण काल को कई भागों में बांटने वाले हैं कुछ डिफरेंस मिले यह 10000 BC तक चला और मानव पूरा से मध्य में आया मध्य पाषाण काल से 6000 तक यहां से आपका नवपाषाण काल चालू हो जाता है कुछ एक्टिविटी में अंतर आया था
मध्य पाषाण काल यह आपका संक्रमण क्षेत्र है पूरा पाषाण काल से नवपाषाण के टाइम पर बहुत लंबा समय पीरियड है यह तो इसको भी हम कई भागों में बांट देते हैं पूरा पाषाण काल को भी कई भागों में बाटते है इसको भी तीन भागों में बांट देते हैं
पाषाण काल का विभाजन : पूरा , मध्य और नव पाषाण काल इसके बाद
पूरा पाषाण काल को तीन भागों में बाटा गया है : निम्न पुरापाषाण काल , मध्य पूरा पाषाण काल और उच्च पुरापाषाण काल
मानव का जीवन पूर्णतया किस पर आधारित है पत्थरों पर पत्थरों के घरों पर रहता है उसके जीवन का मूलभूत आधार इसलिए क्योंकि पत्थर के माध्यम से ही उसको भोजन की प्राप्ति होती है उसके औजारों का प्रयोग करता है पत्थर के घरों पर रहता है पत्थर से आग जलाता है इस समय मानव केवल पत्थर पर आधारित था पत्थर उसके जीवन का मूल आधार था मूल स्रोत था
मानव कोई सामाजिक प्राणी नहीं था समाज को उसको कोई लेना-देना नहीं था सोसायटी नहीं थी किसी तरीके से कोई ग्रुप नहीं था कोई संगठन नहीं था परिवार की संकल्पना नहीं थी फैमिली प्लानिंग यह सब चीजों कुछ भी नहीं कि समुदाय के बारे में नहीं जानता था भरण-पोषण कैसे करता था शिकार करके शिकारी जीवन जीता था जैसे वर्तमान में भी पशु करते हैं पशु शिकार करते हैं दूसरे का कच्चा मांस खाता था आखेटक जैसा जीवन जीना
एक स्थान से दूसरे का घूमता रहता था कि आगे जाकर बदलेगा तो यह सारी चीजें इस पूरे टाइम पर चलती रहेगी जो पहली चीज तो यह और यह लगातार चलता रहा बस अंतर आया इसके पत्थर के औजारों की प्रयोग में अंतर आया पत्थर के औजारों का प्रयोग जो कर रहा था धीरे-धीरे उन को बेहतर करता चला गया और बहुत सारी वह क्या करने लगा खोज बहुत सारी अविष्कार भी मानव ने किया है
निम्न पाषाण काल मध्य पाषाण काल उच्च पाषाण काल के इसके प्रयोग में अंतर आएगा कहीं पर पत्थर पॉलिश दार यूज कर लेगा कहीं ज्यादा धारदार बना लेगा है फिर कई बार छोटे-छोटे पत्थरों को तीर वैसे ही वह भी था उस मानव ने देखा कि यह बहुत अच्छा उपाय है कि मैं यहीं पर खड़ा रह सकता हूं और दूर तक वार कर सकता हूं तो तीर बाण का प्रयोग करना चालू कर दिया है
यहां से थोड़ा सा पशुपालन के भी साक्ष्य मिलता है कि मानव पशुओं को भी अपना मित्र बनाने चालू कर देता है पशु पालन करने लग जाता है अभी देखेंगे मध्य पाषाण में पशुपालक हो जाता नव पाषाण काल में एक बड़ी क्रांति आती क्योंकि कृषि का आविष्कार हो जाता है
एग्रीकल्चर के बाद उसका जीवन परमानेंट हो गया है स्थायी होना चालू हो गया अचानक नहीं हुआ होगा इसमें भी एक लंबा समय लग जाता है तो धीरे-धीरे मानव बस्तियां बनाकर रहने लगा समुदाय में क्योंकि मुख्य जरूरत भोजन ही है
इसके कुछ समय बाद ही तांबा धातु निकल आई चमकती-दमकती तांबे का आविष्कार हो गया और तांबे के आविष्कार से एक नए तरीके की जीवन पद्धति हो गई धातु के प्रयोग से जीवन अलग तरीके से चलने लगा और ताम्र पाषाण काल का प्रारंभ हो जाता है एक नए तरीके का तांबा का उपयोग और ताम्र पाषाण काल का प्रयोग चालू हो जाता है
इसके बाद फिर अन्य और सारी धातुएं मिल जाती हैं जैसे कांसा कहां जाता है की भारत में ज्यादा तो नहीं था लेकिन इंपोर्ट कर लिया जाता था ताबा और टिन मिलाकर कांसा बनाया जाता था
इतिहास का काल-विभाजन कैसे किया गया है लेखन या लिपि का ज्ञान दूसरा अध्ययन कर पाएंगे की नहीं
दोनों के आधार पर इतिहास को तीन भागों में बांटा गया है
पहला प्रागैतिहासिक काल दूसरा आद्य ऐतिहासिक काल और तीसरा आपका ऐतिहासिक ( हिस्टोरिकल पीरियड )
हिस्टोरिकल इतिहास का मतलब होता है प्रमाण साक्ष्यों के साथ जो उसे इतिहास कहते है इतिहास मतलब ऐसा नहीं है कि मुख जवानी बात हो गई इतिहास के लिए बहुत जरूरी है साक्ष्य का होना इसलिए दोनों के आगे अलग-अलग शब्द लगे है
इतिहास को परिभाषित करने के लिए इतिहास में बीता हुआ कल तो यह लेकिन इतिहास में वर्तमान इतिहास की प्रासंगिता यह है कि वर्तमान की सभी समस्याओं का पूर्ण समाधान इतिहास में है जो भी घटनाएं हुई हैं जो भी गलतियां हुई है चाहे वह शासन प्रशासन के स्तर में रही हो सामाजिक राजनीतिक या आर्थिक स्थिति में रही हूं उन सभी को अच्छे से समझा जाए तो वर्तमान की सभी समस्याओं का सभी चुनौतियों का हमें अध्ययन इतिहास में मिल जाता है और उनका सलूशन मिल जाता है
इतिहास का मतलब है पूर्ण समस्याओं का समाधान यदि आप इसे देखिए समाधान के नजरिए से पढ़े और बिना इसके समाधान मिल भी नहीं सकता है आप सोचे कि बिना इतिहास पढ़े समाधान जान लेंगे तो नहीं मिलेगा ऐसे ऐसे शासक आये है कि वर्तमान में भी देखिए जिस तरीके से संप्रदायिकता का इशू है चाहे वह अशोका रहा हो या अकबर रहा हो या फिर अन्य कई शासक थे फिरोजशाह तुगलक भी था ऐसे कई शासक थे जिनके बारे में ऐसा जाना जाता है कि वह इतिहास में उस समय सौहार्द का माहौल बनाने का पूर्ण प्रयास किया है
भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं को कि आप देखेंगे तो हमारे यहां पर ऐसे धार्मिक और राजनीतिक संगठन उभरकर आया है जिन्होंने इस समस्या के सलूशन के उपाय बताए राजा कैसे होना चाहिए चाणक्य ने खूब अच्छे से बताया है उसका सप्तांग सिद्धांत जो है तो वह सारी चीजें आप इतिहास में जो पढ़ते हो तो आपको पता चलता है कि शासन-प्रशासन एडमिनिस्ट्रेशन सामाजिक संरचना कैसे कैसे हमे सभी चीजों को सही करना है है
प्रागैतिहासिक काल में लेखन का ज्ञान मानव को नहीं था जो भी जानकारी मिली है पुरातात्विक जानकारी है 20 लाख से लेकर 2500 BC तक का टाइम आद्य एतिहासिक काल 2520 से लेकर के 600 BC तक यहां पर लेखन का ज्ञान था लेकिन हम पढ़ अभी तक नहीं पाए प्रयास जारी है
तीसरा हिस्टोरिकल टाइम लेखन का ज्ञान था और पढ़ा भी गया है यह सबसे प्रमाणिक काल है यहां पर भी जो सोर्स आफ नॉलेज है वह पुरातात्विक स्रोत है
आद्य एतिहासिक में इंडस वैली सिविलाइजेशन और वैदिक सभ्यता को रखा जाता है है आद्य ऐतिहासिक में हम इंडस वैली सिविलाइजेशन को रख रहे हैं यह तो बहुत अच्छी बात है लेकिन हम यहां पर जो वैदिक काल है इसको क्यों रख रहे है यहां पर तो संस्कृत का नॉलेज था लेकिन मौखिक ही था कागज का आविष्कार नहीं हुआ था
इसके बाद जो आपके पूरा टाइम पीरियड है हिस्टोरिकल टाइम पीरियड 600 BC से ले करके आज तक का टाइम पीरियड है यहां पर आपका छठी जो यह महाजनपद काल है यहां से इसकी पूरी शुरुआत होते हैं इसको हम डिवाइड कर सकते हैं
प्राचीन भारत का इतिहास , दूसरा मध्य कालीन भारत का इतिहास और आधुनिक भारत का इतिहास
पहला है लिपि और लेखन की दृष्टि से तीन भागों में बांट दिया गया प्रगैतिहासिक काल आद्य और इतिहासिक
जर्गेशन थामसन ने उपकरणों के प्रयोग के आधार पर तीन आधारों पर बाटा है पाषाण काल ,धातु काल और लौह काल
प्रगैतिहासिक काल में कोई लिखित प्रमाण पत्र नहीं है मानव को लेखन ज्ञान का अभाव है पुरातात्विक साक्ष्यों पर मानव की निर्भरता है तो हम पुरातात्विक साक्ष्यों पर यहां के ज्ञान को यह तरीके से अप्रमाणित है
और इसके अंतर्गत पाषाण काल, ताम्र पाषाण काल और महापाषाणकालीन बस्तियां भी आती है आद्य एतिहासिक काल में लिखित साक्ष्य प्राप्त है अभी तक लिखित साक्ष्यों को पढ़ा नहीं गया है लिपि का ज्ञान है पुरातात्विक साक्ष्यों पर ही हमारी निर्भरता है इसमें सिंधु घाटी सभ्यता और वैदिक सभ्यता आती है
एतिहासिक काल में लिखित साक्ष्य हैं हम पढ़ भी सकते हैं जानकारी के स्रोत दोनों हैं पुरातात्विक और इसी को प्रमाणित करते हैं वैदिकोत्तर काल से अब तक के भारत को हम इसी के अंतर्गत रखते हैं तो 600 BC से लेकर अब तक भारत यह तीन चीजें आपके स्पष्ट हो गई
जेम्स मिल महोदय ने इसको तिन भागो में बाटा प्राचीन भारत इतिहास ( हिंदू काल ) दूसरे मध्यकालीन भारत के इतिहास को ( इस्लामिक ) और आधुनिक भारत के इतिहास को ( अंग्रेजी काल ) और स्वतंत्र भारत को भारतीय नागरिकों का लोकतांत्रिक शासन काल का नाम दिया
देखिए आपका प्रगैतिहासिक काल है प्रगैतिहासिक काल आपका २० लाख अवधि से लेकर 2500 BC तक की अवधि है इसके बाद इंडस वैली सिविलाइजेशन आपका 2500 BC से लेकर 1750 BC तक का टाइम पीरियड माना जाता है यह आद्य ऐतिहासिक काल के अंतर्गत आता है
1500 से लेकर 600 BC तक की अवधि आपका वैदिक काल आता है वैदिक काल को ऋग वैदिक काल यहां पर वेदों के आधार पर ज्ञान प्राप्त होता है ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, यजुर्वेद यहां पर ऋग वैदिक काल को दो भागो में डिवाइड कर दिया गया
1500 से लेकर 1000 तक ऋग वैदिक और 1000 से 600 BC तक आपका उत्तर वैदिक काल इसके बाद भारत में थोड़ा सा बदलाव होता है 16 महाजनपदों का उदय होता है भारत छोटे-छोटे भागों में बंट जाता है 600 BC में साथ में धार्मिक क्रांति भी आती है जो कि वैदिक काल भी धर्म का काल था तो इसी के खिलाफ कह सकते हैं कि इसके जितने भी मान्यताये थी उन मान्यताओं के खिलाफ एक परिवर्तन होता बड़ा परिवर्तन तो यहां पर बौद्ध और जैन धर्म इनको पढेंगे और विभिन्न प्रकार के संप्रदायों का जन्म हुआ यहां पर कई सारे संप्रदाय रहा चाहे आजीवक संप्रदाय रहा हो बहुत सारे दर्शन और संप्रदाय यहां पर पाए
इसके बाद बिन बुलाए मेहमान बहुत सारे हैं तो इसी दौरान भारत में ईरानी आक्रमण भी हो जाता है महाजनपदों का उदय भी रहता है महाजनपदों में मगध सबसे महत्वपूर्ण महाजनपद बनकर निकलता है राजगिर इसकी राजधानी होती थी बाद में पाटिलपुत्र हो जाती है तो मगध साम्राज्य का उत्कर्ष यहां पर मगध सम्राट में कई सारे वंश जैसे
हर्यक वंश पहला शासक बिम्बिसार ( 544 BC से लाकर 412 BC तक ) , शिशुनाग वंश ( 412 BC से लेकर 344 BC तक ) और नंद वंश 344 BC से 324 BC के दौरान इसी समय एक यूनानी आक्रमण भी हो गया भारत में यूनानी आक्रमण सिकंदर भारत आ गया लेकिन वापस भी चला गया
यह आपका महाजनपद काल था मदद का उत्कर्ष फिर मदद में बड़े प्रभावी शासक के तौर पर मौर्य काल का शासन आता है नंद वंश के शासक घनानंद को निपटाकर के चाणक्य के द्वारा चंद्र गुप्त मौर्य को बैठाया जाता है तो चंद्रगुप्त मौर्य बिंदुसार और अशोक तीन बड़े शासक आते हैं फिर अंतिम शासक वृहद्रथ होता है
तो 323 BC से लेकर 185 BC तक का टाइम पीरियड आपका मौर्य काल इसके बाद मौर्यों के जाने के बाद देखा जाए तो उनके वास्तविक उत्तराधिकारी सातवाहन हुए सातवाहन उत्तरी महाराष्ट्र हिस्से में और आंध्रप्रदेश वाले हिस्से में थे इसी समय विदेशी आक्रमण भी बहुत सारे होने लग गए शक आने लग गए कुषाण आने लगे हिंदू यूनानी शासक आने लगे तो वैसे देखा जाए तो मौर्यों के बाद सुंग वंश का शासन आता पुष्यमित्र शुंग का शासन आता है पुष्यमित्र शुंग का शासन फिर कण्व वंश का शासन आता है फिर आंध्र सातवाहन वंश आता है
मौर्योत्तर काल में ही हम AD में प्रवेश कर जाते है 185 से लेकर 300 AD तक आपका मौर्योत्तर काल चलता है विदेशी आक्रमण का आक्रांताओं का टाइम पर होता है बहुत सारे लोग कहते हैं इस समय चाइना का बहुत बड़ा हिस्सा कुषाण वंश के शासन में था मथुरा से ले करके यह जो पुरुषपुर पेशावर , तक्षशिला तक था
तो इसके बाद आपका मौर्योत्तर काल के बाद गुप्त वंश का शासन चालू होता है 319 से लेकर के 500 AD तक इनका टाइम पीरियड रहता है यहां पर चंद्रगुप्त प्रथम , समुद्र गुप्त , सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय कुमार गुप्त स्कंद गुप्त और फिर इसी समय फिर एक विदेशी आक्रमणों के हूणों का आक्रमण मिहिरकुल और तोरमार यह दो जो है प्रवेश करते हैं भारत में स्कन्द गुप्त के टाइम पर फिर इसके बाद गुप्तकाल के बाद गुप्तोत्तर काल का शासन पीरियड आता है 500 से लेकर 700 AD तक आपका गुप्तोत्तर काल रहता है
जिसमें मौखरि वंश, उत्तर गुप्त शासक , मालवा का यशवर्धन और इसके बाद पुष्यभूति वंश/वर्धन वर्धन वंश में 606 AD से लेकर 647 AD तक हर्षवर्धन उत्तर भारत का अंतिम शासक होता है इसके बाद भारत पूरी तरीके से विखंडित हो जाता है और विखंडन के परिणामस्वरूप भारत में इस्लामिक राज्य का भी शासन यहां से चालू हो जाता है इस्लाम का आगमन हो जाता है 700 AD में फिर एक नए बिन बुलाए मेहमान आ जाते हैं और जो भारत में ही बस जाते है तो वर्धन वंश आपका 600 AD से लेकर 647 AD प्रभाकरवर्धन ,राज्यवर्धन, हर्षवर्धन यह प्रमुख शासक हैं और इसी दौरान सिंध पर अरब का आक्रमण होता है सिंध का शासक दाहिर रहता है उसके ऊपर मोहम्मद बिन काशिम का 712 ई डी में आक्रमण हो जाता है इसके बाद भारत कई भागों में बंटता है छोटी-छोटी जगहों पर महत्वाकांक्षी लोगों के द्वारा शासन कर लिया जाता है और अपने आप को राजपूत की संज्ञा दे दी जाती है तो यह गुजरात वाले हिस्से में गुर्जर प्रतिहार वंश के लोग थे गुजरात और यह दिल्ली से लगे क्षेत्र तथा हरियाणा का भी कुछ हिस्सा था और यह गढ़वाल वंश है इसी में जयचंद था चौहान वंश से पृथ्वीराज चौहान के बारे में आपने सुना होगा यह जजाग भुक्ति यह चंदेल वंश है बुंदेलखंड वाले हिस्से में यह थे आल्हा उदल परमार देव का नाम आपने सुना कि राज्ाद विद्याधर बहुत सारे शासक इसमें भी महत्वपूर्ण हुए हैं
इसके बाद मालवा में परमार वंश राजा भोज का नाम चालुक्य वंश चालू ( आहिल्य वाड़ ) इनकी कई शाखाये थी चार पांच शाखाएं वातापी के चालुक्य बेगी के चालुक्य, कल्याणी के चालुक्य
सेन वंश यह बंगाल वाले हिस्से पर थे शेन वंश और पाल वंश यह दोनों विजय सेन और सामंत सेन सब आपके वहां है पाल वंश में धर्मपाल का नाम सुना होगा हिंदूशाही राजवंश और राष्ट्रकूट वंश दक्षिण भारत में इस समय पूरा भारत ऐसे विखंडित हो गया था राजपूत काल पर छोटे-छोटे हिस्सों में भारत बट गया था भारत का प्राचीन इतिहास यही पर समाप्त हो जाता है
और इतिहासकार इसका इस टाइम को पूर्व मध्यकाल की संज्ञा दे देते हैं मध्यकाल को दो भागों में बांटा जाता है पूर्व मध्यकाल और मध्यकाल/उत्तर मध्यकाल बोल सकते हैं
फिर उत्तर मध्यकाल को दो भागों में बांटते हैं दिल्ली सल्तनत और मुगल का उसको भी दो भागों में बांट देते हैं दिल्ली सल्तनत अपने-अपने बहुत व्यापक है फिर मुगल काल भी अपने-अपने उतना ही बड़ा है तो पूर्व मध्यकाल जो आपका है वह 1001 AD से लेकर 1200 AD तक की अवधि में भारत में फिर से विदेशी आते हैं महमूद ग़ज़नवी का आक्रमण होता है मोहम्मद गौरी का आक्रमण होता है राजपूत काल यहां पर आलरेडी चल रहा होता है भारत पूरी तरह से विभाजित रहता है
यही मौका था इन लोगों के लिए और यह दोनों भारत है गौरी ने भारत को स्थाई परमानेंट अपना क्षेत्र बनाना चाहा तो गौरी दिल्ली सल्तनत की स्थापना करता है उसके मरने के बाद और देखिए गुलामों ने शासन किया तो यहां पर कुतुबुद्दीन एबक और फिर इसके बाद बलबन तक लगातार शासन देखेंगे तो 1200 AD से लेकर 1526 तक भारत में दिल्ली सल्तनत का शासन था 1526 में पानीपत के युद्ध में इब्राहिम लोदी को हराता है और पानीपत का प्रथम युद्ध होता है और इसके बाद से मुगल वंश का प्रारंभ हो जाता है तो गुलाम वंश, खिलजी वंश ,तुगलक वंश , सैयद और लोदी वंश |
तुगलक वंश के दौरान भारत का थोड़ा-बहुत विभाजन विघटन भी होना चालू हो जाता छोटे-छोटे राज्यों का जन्म होता है यहीं से आप लोग देखते विजय नगर सम्राट दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य के बारे में आपने सुना होगा हरिहर और बुक्का दो भाइयों ने विजय नगर साम्राज्य को जन्म दिया क्योंकि इसमें बहुत खतरनाक शासक था क्या नाम तो उसका पागल बादशाह बोलते थे उसको मोहम्मद बिन तुगलक तो यह कैसा खिलाड़ी आदमी था और वह जब दक्षिण भारत की बहुत परेशान होकर उसने दिल्ली राजधानी परिवर्तित करा ली हालांकि दक्षिण भारत में बहुत ज्यादा विद्रोह हो रहे मुझे विद्रोह दबाने तो राजधानी परिवर्तित पूरी राजधानी सुनसान बनाकर वहां ले गया जब लोग वहां पहुंचे लोगों का मन नहीं लगा राजा का खुद मरने लगा सबको बोला फिर चलो वापस फिर बैक टो पवेलियन तो फिर वापस आ गया उसने बहुत सारी यहां से लिए
कि उसको खुरासान में आक्रमण करना था क्योकि वहा का शासक कमजोर था तो उसने एक सेना बनाई बहुत बड़ी सेना करीब 4 से 5 लाख लोगो को रोजगार दे दिया अचानक से आप सबको रोजगार जिसको मिल जाए जिससे यह सैलरी आने लग जाए और जब तक सेना बनाकर उसे प्रशिक्षित करता तब तक वहां पर बहुत योग्य शासक आ गया है
और इसके कारण से इसको पीछे हटना पड़ा और पूरी सेना को नष्ट करना पड़ा क्योंकि इतना उसके पास फाइनेंस नहीं था कि सबको सैलरी दे सके तो ऐसे में लोग बेरोजगार हो गए अचानक से विद्रोह कर दिया लोगों ने एक डिसीजन था उसका मुद्रा परिवर्तन करने का नोट बंदी उसने भी कि उसने कहा अब यह मुद्रा नहीं यह मुद्रा चलेगी उसने टोकन मनी चला दी पीतल तांबे इसकी मुद्रा चला दिया और अल्टीमेट हुआ क्या लोगों के घर में भरा पड़ा था पीतल तांबा सब लोग अपने-अपने घर पर टकसाल बना लिए चांदी की मुद्रा को इसने क्या-क्या बंद करा दिया बंद कराकर
सब लाइन को लग गए लोगों ने खूब मुद्राएं परिवर्तित हो गई चांदी जो है तो उस समय कहते हैं चांदी कम भी थी तो जब उसने देखा कि लोग घर पर टकसाल बनाये बैठे हैं जाली मुद्रा बहुत ज्यादा बढ़ गई है इसने क्या किया फिर चांदी की मुद्रा चला दी फिर लोगों के घर पर पीतल की मुद्रा भरी पड़ी थी लोगों ने बदलना चालू कर दिया है पीतल के बदले लोगो को चांदी मिलने लग गए शासक इतना परेशान हो गया कि बड़े-बड़े पीतल की मुद्राओं के ढेर लग गए थे कि यहां पर फेल हो गया यह इसने जो कुछ भी किया एक बार इसने कराचिल अभियान किया था बड़ी संख्या में उत्तराखंड वाले हिस्से में इसको चीन पर आक्रमण करना था वहां सेना ले तो गया इसके लाखों सिपाही लौट के आये केवल 5000 - 6000 क्योंकि सब फस गए पहाड़ी एरिया सोच तो बहुत ही बड़ी बड़ी थी
बहुत बड़े बड़े डिसीजन मोहम्मद बिन तुगलक ने लिया लेकिन अंतोगत्वा फिर उसके बारे में बरनी लिखता है कि जब मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु हुई तो लोगों को अपने राजा से और राजा को जनता से मुक्ति मिल गई किसी तरीके से दोनों बच गए लेकिन बहुत लंबा टाइम पीरियड करीब पचास-साठ साल तक शासन किया
और इसी के बाद थोड़ा विघटन होता है फिर सैयद वंश में खिज्र खा आता है यहां पर फिर लोदी वंश आता है बहलोल लोदी के द्वारा लोदी वंश की स्थापना की जाती है फिर इसके बाद आपका 1526 से 1707 मुगल काल भी दो भागों में बांटते हैं एक मुग़ल काल है दूसरा उत्तर मुग़ल काल जो है और यहां पर लास्ट में लोदी वंश आगे ही आगे अफगानी थे
शुरुआत में तुर्की वंश का शासन था फिर बाद में अफगानी शासन हो जाता है तैमूर लंग के आने के बाद यहां पर बाबर आता है लगातार चार युद्ध होते है बैक टू बैक पहले पानीपत करता है फिर खानवा होता है फिर चंदेरी होता है फिर घाघरा होता है और एक मजबूत साम्राज्य की स्थापना हो जाती है भारत में |
बाबर जैसे ही मरता है हुमायु को जैसे ही गद्दी मिलती है तो एक अफगान सूर जो है शेरशाह सूरी सामने आ जाता प्रकट हो जाता है और मुगल सम्राज्य पूरा फिर से समाप्त हो जाता है मात्र 15 वर्षो के लिए तो यहां पर शेरशाह सूरी आता है कुछ समय के लिए सूर्य वंश की स्थापना करता है लेकिन फिर उत्तराधिकारी इसके अलावा अयोग्य घोषित हो जाते हैं यह भी इसको भी अलग ही शौक था यह धीरे से पहुंचकर बुंदेलखंड इसको पता नहीं बुंदेलखंडियों से नहीं पंगा लेना चाहिए था
छत्रसाल शासक का नाम सुना होगा बाजीराव मस्तानी मूवी देखी होगी तो मस्तानी ज्योति छत्रसाल की बेटी थी तो उससे पहले चंदेलो का शासन था और आपक कभी भी कलिंजर जाइएगा जो up और mp की बॉर्डर पर पड़ती है कलिंजर दुर्ग है अभी भी बना हुआ है थोड़ा जटिल है वह पहाड़ी क्षेत्र पर है वहीं पर शेरशाह चला गया उसको जितने और जब गया तो कहते हैं कि बारूद के ढेर के पास ही खड़ा था वहीं पर गोला जो है उसकी दीवार से टकराया और लौट के उसी के ऊपर गिर गया और पूरा ध्वस्त हो गया खत्म हो गया वैसे कहते हैं कि अंतगोत्वा वो जीत चुके थे
लेकिन शासक खत्म हो गया इसके बाद फिर हुमायु वापस लौटता है इसके बाद अकबर रहता है अंतिम सम्राट यहां पर आपको हेमू का नाम आपने सुना होगा तो हेमू के बाद यहां पर पानीपत का द्वितीय युद्ध होता है अकबर का एक लंबा टाइम पीरियड भारत में चलता है फिर जहांगीर का शासन आता है फिर शाहजहां का शासन आता है फिर महापुरुष औरंगजेब का शासन आता है
1526 के बाद 1526 से 1707 में यह मुगल वंश बहुत मजबूती से पूरे भारत में पैर पसार रहा था औरंगजेब ने एक बड़े स्तर का भारत का एकीकरण कर दिया था उत्तर से दक्षिण भारत को जीत लिया था लेकिन उसके बाद जैसे इसकी मृत्यु होती है इसके बाद अयोग्य शासक आने चालु हो जाते है है और फिर भारत टुकड़ों में बटना चालू हो जाता है अलग अलग राज्यों अलग-अलग प्रांतों की फिर से स्थापना होनी चालू हो जाती है जो भारत को इसने संगठित किया था अब टूटना चालू हो जाता है तो बहादुरशाह प्रथम पहला उत्तर मुग़ल शासक था जहांदार इसे लंपट मूर्ख भी बोलते है फर्रुखसियर है मोहम्मद शाह रंगिला है सबसे खतरनाक व्यक्ति यही था मुहम्मद शाह रंगीला इसके पास अंतिम मौका था यह चाहता तो फिर से औरंगजेब के उस लेकिन अब रंगीला नाम है इसका है तो इस महापुरुष ने इसी के समय पर दो आक्रमण हुए पहला हुआ नादिरशाह का इसी के समय पर पूरी इज्जत लूटी गई भारत की कैसे नादिरशाह मयूर सिंहासन ले गया यहाँ से
कोहिनूर हीरा दुनिया भर की चीजों और इसी दौरान दिल्ली में इसने क्या किया ना थोड़ा सा गड़बड़ कर दी पहले तो इसको कोई मतलब नहीं रहता था अवध का नवाब इस समय था सादत खान सादत खान ने बाद में फिर अवध का कहते हैं कि सादत खान जब उस समय सादत खान आपका उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत तथा सूबेदार था तो जब नादिर शाह आकर के मिला तो मिलने के बाद जब उसके उपर आक्रमण किया तो उसने बोला कि मुझ गरीब को क्यों आप सता रहे हो दिल्ली जाओ दिल्ली में बहुत मिलेगा उसने बोला इतना मिलेगा और कितना सोच रखा है बस इतना सोच रखा है इसका दस गुना मिलेगा अब ऐसे में दिल्ली प्रस्थान कर जाता है रंगीला अपने में मस्त था लाल किले के अंदर बंद रहता था दिन भर जो अपना सुर सुंदरियों का दृश्य देखता था
दीवान-ए-खास बना हुआ दीवान-ए-खास ही बैठता था बोला अभी बहुत दूर है बहुत नदियां पड़ती हैं उस चक्र में दिल्ली में नादिर शाह आ जाता है यहां पर जैसे ही आता है घुटनों तक पहुंच जाता है कि महाराज बताइए कौन सी खजाने की चाबी चाहिए सबको देता है और शांत रहता है लेकिन अचानक कहते हैं कि कोई यह खबर पहुंचा देता है कि नादिरशाह मारा गया और जैसे यह बोला जाता है कि नादिरशाह मारा गया तो फिर उसके सैनिकों के द्वारा प्रताड़ित किया जाता है इसके बाद फिर इस तरीके का कत्लेआम मचाता है कि तीन दिन चार दिनों तक दिल्ली में लाशें ही लाशें पड़ी थी
इसेक बाद फिर मौका नहीं मिला क्योंकि फिर यूरोपीय आ चुके थे और उसके बाद फिर अहमद शाह , आलमगीर दितीय , शाह आलम दितीय , अकबर द्वितीय और बहादुरशाह तक कहानी पूरी समाप्त हो जाती है बहादुर शाह को रंगून में फांसी की सजा दे दी जाती है और 1857 की क्रांति के बाद यह समाप्त है उत्तर मुग़ल काल का टाइम पीरियड था इसी समय पर भारत में विभिन्न नवीन राज्यों का उदय होता है क्योंकि मुगल कमजोर हो चुके थे सब मौके की तलाश में थे बंगाल में मुर्सिद खुली खा आ जाते है 1707 में स्वतंत्र सूबेदारी करने लग जाते हैं सादत खान के द्वारा अवध का नवाब बुरानुल मुल्क , हैदर अली ने मैसूर वाले क्षेत्र को एक अपना मजबूत बना लिया रणजीत सिंह जी ने पंजाब वाले क्षेत्र को निजाम-उल-मुल्क ने हैदराबाद वाले क्षेत्र को कर्नाटक वाले क्षेत्र को सादुल्ला खान ने तो जितनी संपत्ति औरंगजेब ने शता-शता के सबसे इकट्ठा की थी सब जो है फिर से बटने चालू हो जाती है फिर भारत छोटे-छोटे हिस्सों में बढ़ जाता है और फाइनली मराठों का उदय होता है शिवा जी के नेतृत्व में यह सबसे महत्वपूर्ण कह सकते हैं कि मुगलों के वास्तविक उतराधिकारी कोई भारत था तो मराठे थे शुरुआत में शिवाजी , संभाजी, राजाराम, तारा बाई, साहू थे ये सभी सतारा वाला क्षेत्र था सतारा में छत्रसाल / छत्रपति का शासन था शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि ली थी तो फिर पुणे वाले क्षेत्र में पेशवाओं का उत्कर्ष जाता पेशवा इनके प्रधानमंत्री होते हैं तो पेशवा में बालाजी विश्वनाथ , बाजीराव प्रथम , बालाजी बाजीराव , माधवराव प्रथम, माधवराव नारायण , बाजीराव द्वितीय 1627 लेकर 1818 तक का टाइम पर है
इसके बाद जो है आपका 18वीं शताब्दी में नवीन स्वतंत्र राज्यों का उदय होता है और इसी दौरान फिर भी बुलाए मेहमान भारत आ जाते हैं मसाला दुनियादारी व्यापार करना है व्यापार के नाम पर आते हैं और बर्बाद करके जाते है तो पुर्तगाली वास्कोडिगामा नए रास्ते की खोज में भारत पहुंच जाता है इसके डच आते है , अंग्रेज आते है , डैन, फ्रांसीसी आते हैं और फिर लगातार पहले फ्रांसीसी अंग्रेजों के मध्य कर्नाटक युद्ध होता है और फाइनली फिर भारतीयों से भी युद्ध चालू हो जाता है प्लासी युद्ध, बक्सर युद्ध, वेडारा का युद्ध बक्सर का युद्ध 1784 वेदरा का युद्ध , वान्दिवाश का युद्ध का युद्ध यह फ्रांसीसियों को बाहर करने के लिए था अंग्रेज और फ्रांसीसियों के बाद अंतिम लड़ाई युद्ध है जिसमें फ़्रांसिसी पूरी तरीके से कमजोर हो गए तो वान्दिवश का युद्ध 1760 में ये प्रमुख जो ब्रिटिश राज्य की स्थापना के माइलस्टोन है प्रमुख युद्ध है वेदरा में डचो को बाहर कर देते हैं और बॉडी वास में फ्रांसीसियों को बाहर कर देते हैं तो 1498 से 1664 तक का यह यूरोपीय कंपनियों का आगमन
इसके बाद है 1757 से लेकर 1773 तक ब्रिटिश कंपनी के गवर्नर भारत में शासन करना शुरू कर देते हैं राबर्ट क्लाईव बेल्ट करियर वारेन हेस्टिंग्स 1773 से 1833 में वारेन हेस्टिंग सर जॉन मैकफर्सन कार्न वालिस , सरजान शोर , लार्ड वेलेजली ,लाल जार्ज बार्लो , लार्ड मिंटो प्रथम , हेस्टिंग , एमहर्स्ट , लॉर्ड विलियम बैंटिक यह आपके कंपनी के अधीन बंगाल के गवर्नर जनरल होते हैं 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट के बाद बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर-जनरल बना दिया जाता है फिर 1833 के चार्टर एक्ट पारित होता है बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर-जनरल बना दिया जाता है तो भारत के गवर्नर-जनरल इतने रहे हैं विलियम बेंटिंक, मिट्काफ ,आकलैंड , एल्न्बरो ,हार्डिंग , डलहौजी और कैंनिग
1858 को कंपनी का शासन समाप्त हो जाता है क्योंकि भारत शासन अधिनियम 1858 आ जाता है और उसके बाद यह आपके ब्रिटिश क्राउन के अधीन भारत में वायसराय थे लॉर्ड कैनिंग , एल्गिन , लार्ड लॉरेंस मेयो , लार्ड नार्थ बक्र ,लार्ड लिटन ,लार्ड रिपन ,लार्ड डफरिन , लार्ड लैंस डाउन ,एल्गिन दितीय ,कर्जन ,मिन्टो दितीय ,हार्डिंग दितीय ,चेम्सफोर्ड ,लार्ड रीडिंग , लार्ड इरविन , लार्ड वेलिंगटन ,लार्ड लिनलिथगो ,लार्ड वेवल ,लार्ड माउंटबेटन ,चक्रवर्ती राजगोपालाचारी भारत के वायसराय है भारत के स्वतंत्रता संघर्ष प्रारंभ जो मूल रूप से 18 57 की क्रांति से चालू होता है मंगल पांडे के द्वारा एक बिगुल फूंका जाता है एक तिथि बनाई जाती है 31 मई इस दिन पूरे भारत में एक साथ जितने भी जितने भी रेजीमेंट है जितने भी सैनिक हैं सभी के द्वारा विद्रोह करने की योजना बनाई जा सकती है लेकिन योजना फेल हो जाती है क्योंकि उससे पहले घटना घट चुकी होती है मेरठ में दस मई को फिर 11 मई और 12 मई को दिल्ली में और फिर धीरे-धीरे पूरे भारत में 1857 की लपट जो है बड़े स्तर पर चलती लेकिन दमन हो जाता है
क्योंकि बहुत सारे लोगों ने साथ दिया भी बहुत से लोगों ने नहीं दी अंग्रेज सफलता पुलिस का दमन करते हैं कंपनी का शासन समाप्त हो जाता है इसी दौरान भारत में बहुत सारे जनजातीय विद्रोह होते हैं किसान विद्रोह होते हैं नागरिक विद्रोह होते हैं सामाजिक और धार्मिक राष्ट्रीय जागरण का प्रारंभ हो जाता है 18वीं शताब्दी में भारत में बहुत सारे पुरोधा ऐसे आ जाते हैं जो भारत में सामाजिक धार्मिक सुधार का भी काम करते हैं आप देखेंगे मध्यकाल में भी सामाजिक धार्मिक सुधार व सूफी आंदोलन या भक्ति का भक्ति काल को भी दो भागों में बांट सकते हैं दक्षिण भारत में एक अलग शाखा थी वहां पर अद्वैतवादी शंकराचार्य माध्वाचार्य निम्बार्काचार्य उत्तर भारत में रामानंद और उनके शिष्य चाहे वो कबीर रहे हो रैदास रहे हो इसके बाद सूरदास रहा हो निर्गुण और सगुण भक्तिधारा तो मध्यकाल में भी एक व सामाजिक धार्मिक चेतना का उदय होता है वैसे ही 1857 के बाद या फिर कह सकते हैं कि 18 वी शताब्दी जो आपकी होती है आधुनिक काल पर भी एक आपकी सामाजिक धार्मिक सिद्धार्थ प्राचीन काल में भी सामाजिक धार्मिक सुधार किसने किया बौद्ध धर्म जैन धर्म और विभिन्न संप्रदायों के द्वारा भारत में यह सतत प्रक्रिया चलती ही रही है ऐसा यह प्रक्रिया कभी भी जब पाखंडी कर्मकांडों और यह सब चीजें बड़े स्तर पर आ जाते हैं तो फिर एक नए तरीके की विचारधारा भारत में हर समय देखने को पाई गई
तो सामाजिक धार्मिक और राष्ट्रीय जागरण के लिए ब्रह्म समाज आर्य समाज रामकृष्ण परमहंस मिशन प्रार्थना समाज थियोसॉफिकल सोसायटी ऐसे विभिन्न मंचों का जन्म भी होता है और इसी दौरान भारतीयों को ऐसा महसूस होता है कि शायद हम गुलाम है क्योंकि उससे पहले कभी हमे फिल नहीं था क्यों अलग-अलग राजाओं का शासन हुआ करता था में लगता था कि है यही परंपरा लेकिन उसे लगता था कि बाहर से कोई आ गया और हमारे पैसे का दुरुपयोग और हमारे पैसे हमारे ऊपर खर्च नहीं किया जा रहा है तो राष्ट्रवाद की भावना का जन्म होता है ऐसी विभिन्न घटनाएं होती हैं जो घटनाएं लोगों को यह महसूस कराती है कि हमारे देश में अन - ब्रिटिश रूल है अंग्रेज जो है ब्रिटेन में क्योंकि सब ब्रिट्रेन जाकर जाते थे वहां पर पढ़ कर आते थे वहां का शासन प्रशासन रूल ऑफ लॉ को देखते थे इंडिया से कंपेयर करते थे तो पाते थे कि इंडिया में कोई ना कोई तरीके से भारत का शोषण हो रहा है तो एक मंच की स्थापना की जाती है अंग्रेजों के द्वारा ही की जाती है उनका उद्देश्य सेफ्टिक वाल्व की तरह ही की जाती है और हम इस मंच का बड़ा प्रयोग करते हैं और कांग्रेस की स्थापना के साथ ही भारत के राष्ट्रीय आंदोलन का मुख्य अग्रणी मंच यह बनता है लेकिन भारत की आजादी में केवल इसका योगदान नहीं है
यह एक मात्र संस्था है एक मात्र मंच है जिसने बड़े स्तर पर लीड किया आंदोलन को अन्यथा की स्थिति में अन्य बहुत सारे कांग्रेस को फिर हम तीन भागों में बांट देते हैं उसकी कार्यकलाप और पद्धति के आधार पर लीडरशिप के आधार पर उसकी डिमांड के आधार पर उदारवादी चरण , उग्रवादी चरण , गांधी वादी चरण और 1885 से 1948 तक में यह पूरे चरण जो है आपके देश की आजादी के लिए निरंतर कार्य करते हैं उदारवादी चरण 1885 से 1905 है कुछ प्रमुख नेता होते हैं कि अपनी डिमांड होती है यह संवैधानिक अधिकारों के माध्यम से देश को आजाद कराना चाहते हैं यह चाहते है कि केवल लोगों के संविधानिक राइट प्रोटेक्ट हो जाएं बाकी की जरूरत नहीं है तो डब्ल्यू सी बनर्जी गोपाल कृष्ण गोखले दादा भाई नौरोजी सुरेंद्रनाथ बनर्जी सामने आते हैं फिर उग्रवादी कहते हैं कि हमें स्वराज्य चाहिए इसी दौरान बंगाल बिभाजन किया जाता है इससे राष्ट्रवाद और प्रबल हो जाता है आपस में लड़ भिड़ते है सूरत में एक-दूसरे पर कुर्सियां भी अच्छा खासा मारपीट हुई है
तो कांग्रेस का बिभाजन 1907 में फिर स्वदेशी मूवमेंट इसी दौरान होता है फिर लखनऊ में फिर एक साथ आ जाते हैं फिर दिल से दिल मिल जाते हैं फिर जलियांवाला बाग हत्याकांड खिलाफत मूवमेंट कुछ प्रमुख घटनाएं इस समय हुई है फिर गांधी आते हैं तो गांधी के बाद फिर एक कड़ी चलती है सबसे बड़ा जो भारत में कह सकते हैं कि व्यापक बड़े आंदोलन जिसमें पूरा देश एक साथ हो गया तो चंपारण के बाद जब गांधी ने सत्याग्रह का प्रयोग चालू किया तो उसके माध्यम से देश को आजाद कराना उन्होंने प्रारंभ किया और वह काम भी किया अंतिम समय तक उनका ब्रह्मास्त्र चलाकर
तो गांधी ने चंपारण अहमदाबाद खेड़ा असहयोग व सविनय अवज्ञा व्यक्तिगत सत्याग्रह भारत छोड़ो संप्रदायिक दंगों की समाप्ति का प्रयास किया हरिजन उत्थान का कार्य किया बहुत सारे काम गांधी ने किए लेकिन यह तो था कांग्रेस का मंच एक मंच था क्रांतिकारियों का तो क्रांतिकारियों में भी बहुत साड़ी संस्थाए थी जो लगातार इस पर काम कर रहे थे इन्होंने बहुत बड़ा योगदान दिया अभिनव भारत हो हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी हो भगत सिंह हो रामप्रसाद बिस्मिल चंद्रशेखर आजाद लाहौर षड्यंत्र कानपुर संयंत्र मेरठ संयंत्र भीखाजी कामा इंडिया हाउस या इसके अलावा आजाद हिंद फौज सुभाष चंद्र बोस ऐसे सारे लोग हैं तो यहां पर सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज यह पूरा एक बीसवीं शताब्दी में इस का भी योगदान रहा लेकिन फिर आपको पता है कि देश में संविधान की मांग तो प्रारंभ हुई लेकिन संविधान की मांग के साथ-साथ सबसे बड़ी जो डिमांड हुई वह क्या हुई भारत का विभाजन देश को विभाजित करवाया गया जिन्ना का सबसे बड़ा योगदान था प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस माउंटबेटन योजना उसने भारत को विभाजित कर दिया और भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के तहत देश को आजाद कर दिया गया
फिर इसके बाद भारत का एकीकरण हुआ आजादी के बाद जब संविधान से पहले एकीकरण की प्रक्रिया पर प्रयास किया गया रियासतों का विलीनीकरण किया गया जम्मू कश्मीर हैदराबाद और जूनागढ़ सभी रियासतों को किसी ना किसी तरीके से मिलाया गया संविधान बनकर तैयार हुआ संविधान सभा के द्वारा बनाया गया और इसके बाद स्वतंत्र भारत में एक लगातार संवैधानिक प्रक्रिया के माध्यम से एक लोकतांत्रिक सरकार के माध्यम से हम देश का प्रशासन सतत चला रहे हैं
पाषाण काल :
शुरुआत में मानव् कुछ ऐसा था एक समूह में रहता था बानर समूह में रहता था और धीरे-धीरे मानव जो है इसके कपि में परिवर्तित हो गया बंदर में आ गया आपको यह दूसरा स्टेज है अभी भी देखेंगे आप गोरिल्ला चैपन्जी यह सब इसी स्टेज में ऐसे खड़े हो सकते हो चिंपांजी को देख लेंगे गोरिल्ला को देखेंगे तो उसके मस्तिष्क का विकास तो दूसरी अवस्था है तीसरी अवस्था है मानव् आदि मानव में बदल गया पूरी तरीके से खड़ा हो गया रीढ़ की हड्डी सीधी हो गई तो फिर इसको हम बोलते हैं आस्ट्रेले पिथेकस यह जो दो अवस्थाएं हैं यही मानव् को हम आदिमानव बोलते है
जिस आदिमानव की बात हम करते हैं तीसरी स्टेज हमारी पहली स्टेज में हम इसको एक तरीके से बानर समूह है कॉमन बंदरों की तरह है दूसरी स्टेटस को रामा पिथेकस बोलते हैं हम एक बंदर समूह से रामा पिथेकस समूह पर आये और इस अवस्था पर मानव खड़ा होकर के सीधा चलने लगा इसके बाद आता है आपका होमो इरेक्टस अगली अवस्था यह है इसको बोलते जावामानव या पीकिंग मानव तो यह होमो इरेक्टस की अवस्था है धीरे-धीरे शरीर के बाल कम होने लगे धीरे-धीरे हम स्मार्टनेस की ओर बढ़ने लगे रीढ़ की हड्डी यह पूरी तरीके से सीधा होने लग गई इसके बाद अगला यह है आपका आधुनिक मानव् तो है
होमो सेफियांस आधुनिक मानव इसी को बोलते हैं बुद्धिमान मानव् यहां से मस्तिष्क का विकास बड़े स्तर पर हो जाता है मानव् बुद्धिमान हो जाता है और इसके बाद है नियंडरथल अगली अवस्था में और यह है आपका मॉडर्न मानव् तो है जो वर्तमान का मानो है इसे एटलांटिस भी बोलते हैं क्रोमैग्नेंन भी बोलते है
अभी जो हम हैं हमारे निकटतम पूर्वज क्रो मैगनन मानव् है इतिहास का विभाजन दो आधारों पर हुआ है एक लिपि के प्रयोग के आधार पर और दूसरा उपकरणों के प्रयोग के आधार पर
लिपि के प्रयोग के आधार पर पाषाण काल , प्रागैतिहासिक काल ,आद्य ऐतिहासिक काल और ऐतिहासिक काल इस तरीके से हमने बांटा है और इसी को ऐतिहासिक काल को धर्म के आधार पर जेम्स मिल ने बाट दिया है हिंदू काल प्राचीन भारत इस्लामिक काल मध्यकालीन भारत और अंग्रेजी का आधुनिक व उपकरणों के आधार पर जर्गेशन थामसन महोदय ने पाषाण काल धातु काल और लौह कला में विभाजन किया था
इतिहास लिखने के पहले का समय प्रगैतिहासिक काल या पाषाण काल इसकी खोज एक भूगर्भशास्त्री रॉबर्ट ब्रूस फुट ने किया था आधार था उपकरणों के प्रयोग के आधार पर उन्होंने इसको विभाजित किया था पहली बात तो कोर टूल्स का प्रयोग किया जाता था मतलब कि पीछे से पूरी तरीके से चिकना होता था और आगे नुकीला होता था इसके अलावा यहां पर फलक होते हैं फलक टाइप में पत्थर को जैसे हम कर देते है और उच्च पाषण काल में ब्लड टूल्स का जो नुकीला होता था
निम्न पूरा पाषाण काल में देखे तो यहां पर जो औजार थे हैं कुल्हाड़ी थी हस्त कुठार था या काटने या खोदने या छिलने के लिए कुछ इन्होंने प्रयोग किया जाता था सोहन घाटी का क्षेत्र पाकिस्तान , कश्मीर थार मरुस्थल का क्षेत्र , नर्मदा घाटी भी, मबेटका यह सारा एरिया है जहां पर निम्न पूरा पाषण का मानव पाया गया
इसके बाद आपका मध्य पूरा पाषाण काल में आपका औजार , फलक भेदनी इस तरीके के औजार यहां पर पाए गए हैं इसके बाद आपका जो है कि यहां पर यह क्षेत्र जो है निम्न पुरापाषाण काल के जितने भी स्थल है यहीं पर मध्य पुरापाषाण काल का भी मानव् पाया गया है कुछ जगह भीमबेटका भीमबेटका यह आजमगढ़ यह रायसेन जिला पड़ता है भोपाल से उज्जैन रायसेन पड़ता है भीमबेटका की गुफाएं हैं जहा पर यह मानव् पाया जाता था वहां पर यह मानव् रहता था
इसके बाद आग का सफल प्रयोग पाषाण काल पर ही मानव ने सीख लिया इसके बाद यहां पर औजार जो उच्च पूरा पाषाण काल में पॉलिश दार होते थे निम्न स्तर के होते थे केवल धार होती चकमक उद्योग यहां पर चकमक पत्थर है जिसके घिसने से आग लगती है तो चकमक इंडस्ट्री भी देखने को मिलती है यहीं से होमो सेपियंस मानव का उदय होता है और आंध्रप्रदेश कर्नाटक महाराष्ट्र केन्द्रीय मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश बिहार के पठारी क्षेत्र इन सभी पर यह मानव् देखने को पाया जाता है
अब है मध्य पाषाण काल मध्य पूरा पाषाण काल अलग चीज है वह पाषाण काल का एक सब डिविजन है यहां पर मध्य पाषाण काल है तो मानव की प्रगति में रफ्तार तेज हो गई और मध्य पुरापाषाण काल की खोज जॉन इवांस के द्वारा की गई पूरा पाषाण काल और नवपाषाण काल के बीच का यह संक्रमण काल होता है यहां पर मानव् जो है छोटे छोटे पत्थरों का छोटे-छोटे औजारों का प्रयोग करने लग जाता है अनेक प्रकार की बढ़िया औजारों का निर्माण करने लग जाता है और यही पर मानव धनुष बाण बनाना सीख जाता है और यहीं से ज्यामितीय आकार के भी पत्थरों का प्रयोग यहां पर एक तरीके से सोचें कि मध्य पूरा पुरापाषाण काल को पूरा पाषाण से अलग करना है तो एक सबसे अच्छा कारण है छोटे पत्थरों का प्रयोग
नवपाषाण काल में मानव् भोजन इकट्ठा करने वाला और भोजन उत्पन्न करने वाला बन गया कि खाद्य संग्रहक से खाद्य उत्पादक बन गया अब भोजन का उत्पादन करने लग गया क्यों क्योंकि उसने कृषि का आविष्कार कर लिए एग्रीकल्चर अब एक तरीके का क्रन्तिकारी बदलाव हुआ मानव जीवन में इसे नव पाषण कालीन क्रांति भी कहा जाता है
मानव् जहां यायावरी था इधर-उधर भोजन के भटकता रहता था यहां से स्थाई जीवन जीने लग गया स्थायी बत्तियां बनाकर रहने लग गया खान-पान के तरीकों में प्रवेश कर गया नए तरीके की चीजें गेहूं , जौ , इस तरीके के सबसे पहले उसने जौ का उत्पादन किया था इसके बाद फिर गेहूं का उत्पादन किया फिर चावल का उत्पादन किया तो खान-पान की बहुत सारी चीजों को सीखा उसने और जब स्थाई हो गया इसके बाद नए प्रकार के औजारों का निर्माण किया
और एक तरीके से मांस केंद्रित से वनस्पति केंद्रित हो गया कि मांसाहारी से शाकाहारी के और उसका जीवन बढना चालू हो गया पशु पालन करता था पशुपालन के साक्ष्य मध्य पाषाण काल पर भी मिलने लग जाते हैं कुछ क्षेत्रों से अंतिम चरण में इसके पशु पालन के साक्ष्य राजस्थान इन सब जगहों पर मानव् पशु पालन करना शुरू कर देता था मध्य पाषाण काल में लेकिन जो आपका नव् पाषाण काल पर मानव् पूर्णतया पशुपालन भी करने लग जाता है पशुओं को क्योंकि एक जगह रहता तो पशुओं को रख पाता है श्रम विभाजन हो जाता है यहां से पुरूष जो है वह घर के बाहर के काम के लिए जाता है क्योंकि महिला को संतानोत्पत्ति करनी होती थी तो महिला को घर के कामों के लिए और पुरुष को घर के बाहर के कामों के लिए
चाक निर्मित मृदभांडों का प्रयोग करना मानव् यहां से चालू कर देता है और यहां से मानव् जो है आस्था तंत्र पर भी विश्वास करने लग जाता है प्रकृति का पूजा करना चालू कर देता है डर और दुनिया भर की चीजे चालू हो जाती है
निजी संपत्ति की भावना नहीं थी इसके अलावा महिला पुरुष को समान दर्जा रहा होगा इसके बाद ही फिर डिफरेंटशिएट होना चालू हुआ है
मध्य प्रदेश में एक जगह हथनौरा नर्मदा घाटी के पास यहां पर मानव खोपड़ी के सबसे पहले प्रमाण मिले 1982 में भीमबेटका में सबसे पुराना मानव् गुफा का निवास स्थान पाया गया कि मानव् यहाँ रहता रहा होगा आदमगढ़ से पाषाण उपकरण मिले तो मध्यप्रदेश में तीन साइट है हथनौरा ,भीमबेटका और आदमगढ़
मद्रास में दक्षिण भारत में पल्लावरम से हैण्ड अक्स ( हाथ की कुलाही ) के प्रयोग का प्रमाण मिला है और राबर्ट ब्रूस फुट ने ही पल्लवरम में पहली बार यह पता किया था 1863 में इसके बाद अतिरमपक्कम्म से हैंड्स , कलिवर ,गेदासे, फलक उपकरण यह सब पाए गए हैं यह भी मद्रास में और एक जगह गुड़ियाम से भी फलक और क्लियर पाए गए इस वक्त कश्मीर में पहलगाम से हष्ट कुठार पाया गया हाथ वाली कुल्हाड़ी पाई गई है
पंजाब के पाकिस्तान से हाथ कुठार व काटने के औजार पाए गए हैं महाराष्ट्र के नेवासा और चिटकी से मध्य पाषाण काल से उच्च कोटि के उपकरण पाए गए हैं
उत्तर प्रदेश में लोह्दानाला जिसे बेलन घाटी कहते हैं विश्व की प्राचीनतम अस्थि निर्मित स्त्री की मूर्ति पाई गई इसे मातृ देवी बोला गया है
मध्य पाषाण काल में कुछ चीजें परिवर्तित हुई मध्य पाषाण काल की अवधि 10,000 BC से लेकर के 6000 BC आते आते धरती जो है गर्म होने लग जाती है आइस एज के बाद से तो हम युग के अंत के साथ ही मध्य पाषाण काल का प्रारंभ हो जाता है और जलवायु गर्म और शुष्क होने लग जाती है पौधे और जीव-जंतु में परिवर्तन देखने को मिलता है बहुत सारे पौधे परिवर्तित लुप्त भी हो जाते हैं बहुत सारे जीव विलुप्त हो जाते हैं आप देखते डायनासोर जैसी प्रजातियां विलुप्त होने लगती है डायनासोर विलुप्त नहीं होते तो शायद स्तनधारी जीव जैसे हम स्तनधारी जीव में यह जमीन पर नहीं आते पहले पेड़ों के रहते थे स्तनधारी जीव डायनासोर के विलुप्त के बाद स्तनधारी जीव जमीन पर आ गए
और पूरा पाषाण काल और नवपाषाण काल के बीच का यह संक्रमण टाइम पीरियड जो है तो यह जलवायु परिवर्तन को भी दिखाता है औजार सूक्ष्म होते थे पांच सेंटीमीटर के औजारों का प्रयोग किया जाता था धनुष बाण , ज्यामितीय आकार के पत्थरों का प्रयोग किया जाता था इसके बाद मानव जो है शिकार करता था खाद्य संग्रहण करता था अंतिम चरण तक मानव पशुपालक भी बन गया था आदमगढ़ और बागौर से पता चलता है राजस्थान के बहुत सारे क्षेत्रों में पता चलता है राजस्थान में दक्षिणी उत्तर प्रदेश में मध्य भारत में पूर्वी भारत में दक्षिण भारत में कृष्णा नदी के किनारे हर जगह पर मानव के बारे में पता चलता है
गोदावरी घाटी को नदियों के किनारे ही आपको मानव् मिलेगा नर्मदा नदी के किनारे आदमगढ़ और भीमबेटका दोनों है यहां पर गोदावरी घाटी के किनारे मानव् है यहां पर कृष्णा नदी के किनारे कृष्णाघाटी है मानव् है
कावेरी घाटी है तो जहा जहा नदियां वह मानव है तो राजस्थान में बागौर में कोठारी नदी था वहां पर मानव था सबसे बड़ा मध्य पाषाणिक स्थल भी यहां पर मिला है और BL मिस्र के द्वारा कुछ पता किया था गुजरात वाले क्षेत्र में लंगनाज है प्रथम शुष्क क्षेत्र स्थल है एचडी संकालिया के द्वारा रेत के टीले प्राप्त किए गए हैं मध्य प्रदेश में आदमगढ़ में पशुपालन के साक्ष्य मिले है
उत्तर प्रदेश में सरायनरहाय है यहां से मृतक संस्कार विधि पता चली है शवो के सिर को पश्चिम और पैर को पूरब में ऐसे कहते हैं कि बहुत सारी एनर्जी वहां से खिंच जाती है तो कहते मृतक का सर हमेशा उत्तर दिशा में होना चाहिए क्यों कि मरने के बाद जो उसके वायु बची हो थोड़ा सा भी वो भी खिंच जाएं
लेकिन कुछ शहर से पाए गए हैं कि जहां पर पूरब पश्चिम में भी मानव् लेकिन उस समय भी मानव को ज्ञान था इसके अलावा पश्चिमी बंगाल में आपका वीर बीरभानपुर है यहां पर भी आवासीय बस्ती मिली है कर्नाटक में आपका जल्लाहट्टी है तमिलनाडु में टेरी है इन सब जगहों पर पाषाण उपकरण पाएं गए है
नवपाषाण काल के खोजकर्ता थे डॉक्टर प्राइम रोज महोदय के द्वारा नवपाषाण काल की खोज की गई और इसमें बताया गया कि मानव् के द्वारा पॉलिश दार टूल्स का प्रयोग करने लगे पत्थर है तो उन पॉलिश करके प्रयोग करने लगे तेज और धारदार हथियारों का प्रयोग किया
खुदाई और कटाई होना चालू हो गया क्योंकि एग्रीकल्चर वर्क मानव् करता था पशु पालन में खान-पान के तरीके में परिवर्तन आ गया मानव मांस केंद्रित से वनस्पति केंद्रित हो गया बस्तियों का विकास हो गया कई सारी वस्तुओं का विकास हुआ जिसमें से एग्रीकल्चर के नजदीक बस्तियां बनने लगे जहां पर कृषि कार्य होता था उसके आसपास फॉर्महाउस बनने लग गए घास-फूस लकड़ी और मिट्टी के मकान बनने लग गए धीरे-धीरे यही विकसित होकर के गांव में तब्दील हो गए है
आकार धीरे-धीरे बढ़ता गया और इससे ही संस्कृतियों का जन्म होने लगा संगठित सामाजिक जीवन संस्कृति का मतलब क्या है संगठित सामाजिक जीवन जहां पर एक खानपान हो एक बोल चाल हो एक भाषाओं एक पहनावा
यह सब चीजें संस्कृति का हिस्सा बनने लग गई मानव जब एक साथ इकट्ठा होने लग गया तो नवपाषाण काल में ही सांस्कृतिक जीवन को भी जन्म देना शुरू कर दिया मिश्रित कृषि चालू होने लगे मिश्रित कृषि का मतलब है कृषि के साथ-साथ पशुपालन का कार्य भी करना पॉलिशदार पत्थर औजार लकड़ी काटने में काम करते थे इनको मनचाहा आकृति भी यह लोग देते थे इससे बढ़ईगिरी का काम भी शुरू हो गया अब गांव के अंदर बहुत सारे नए तरीके के इंडस्ट्रियल इंडस्ट्री डेवलपमेंट उद्योग उपलब्ध होंगे बढ़ाई का कार्य चालू हो गया हल बनाने लगे कि हल की जरुरत पड़ने लग गई नाव बनाते थे लकड़ी के मकान बनाते थे पहिया बनाते थे तो राजमिस्त्री का एक काम हो चाक पत्थर इसके बाद जो है बर्तन बनाए जाते थे तो जो कुंभकार होता था वह एक कई तरीके के बिजनेस चालू हो गए गांव में जरूरतों के हिसाब से तो मिट्टी के बर्तनों का आविष्कार यहां से प्रारंभ हो गया
मिट्टी का लेप किया जाने लगा कुंडली कृत बर्तन प्रारंभ होने लगे पहिए का आविष्कार हो गया बर्तन बनाने की कला शुरू हो गई बाद में पहले का प्रयोग पशु गाड़ी में भी किया जाने लगा शिल्प का भी विकास हुआ यहां पर शिल्प का मतलब होता है उकेरना किसी चीज को जो कृषि से अतिरिक्त समय बचता था उसके टाइम पर वह पत्थरों के औजार बनाते , नक्काशी करते थे बर्तन बनाते थे कुदाल बनाते थे तो उस पर भी लगने लगे श्रम-विभाजन चालू हो गया महिला और पुरुष के कामों को बता दिया गया कृषक और शिल्पी वर्ग का जन्म होने लगा
एक सामाजिक संरचना का जन्म यहां से शुरू हो जाता है धार्मिक विश्वासों को जन्म होने लगा धार्मिक विश्वास मतलब मरने के बाद भी जिंदगी है पार लौकिक जिंदगी की अवधारणा का जन्म हुआ मृतक के साथ आवश्यक वस्तुओं को दफनाना मातृदेवी उर्वरा देवी पाषाण काल यह सारी चीजों को सबको दिखाना शुरू कर दिया गया
नवपाषाण काल की खोज के तहत कर्नाटक के लिंग सुंगुर नामक स्थल से पहली बार डॉक्टर प्राइम रोज के द्वारा दक्षिण भारत में पहली पॉलिश दार कुल्हाड़ी की खोज की गई थी और उसी कुल्हाड़ी से यह माना गया है यहां से नवपाषाण कालीन बस्ती होगी तो इस तरीके से कई जगह पर ऐसे उपकरण मिले नवपाषाण स्थलों की बात करें तो नवपाषाण स्थल महाराष्ट्र और महाराष्ट्र में मृतक को अपने घर के उत्तर से दक्षिण दिशा में गाड़ते थे घर में ही पर्स में गाड़ देते थे
कश्मीर में बुर्जहोम में गर्तावास ( गड्ढे ) मिले है और 1935 में भी डी टेरा और पीटरसन द्वारा इसे खोजा गया था मालिक के साथ पालतू कुत्ते दफनाने का कार्य भी बुर्जहोम में हुआ है कृषि कार्य करते थे
गुफरहाल में हड्डी के औजार मिले हैं धूसर मृद्भांड मिले है सिलबट्टा मिला हड्डी से निर्मित सुई मिली है बलूचिस्तान पाकिस्तान में मेहरगढ़ का नाम आपने सुना होगा मेहरगढ़ हमारी पहली बस्ती थी जहां पर कृषि कार्य किया जाता था 7000 BC में पहला एग्रीकल्चर साक्ष्य हमे यहां से मिला है
लेकिन यह बात पुरानी हो चुकी है अभी नए एविडेंस मिले हैं जिसमें उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर के लहूरादेव लेकिन एक चीज ध्यान रखिएगा यहां पर जो कृषि के प्रमाण मिले है वो गेहूं की खेती है गेहूं और जौ की खेती के प्रमाण है जबकि लहुरादेवा में चावल की खेती के प्रमाण मिला है जो करीब 8000 BC में |
भारत में कृषि के सबसे प्राचीनतम साक्ष्य कहां से मिले हैं यूपी के लहुरादेवा से अगर यह विकल्प में नहीं रहता तो सही ऑप्शन मेहरगढ़ होगा
मेहरगढ़ बलूचिस्तान पाकिस्तान में है यहां पर प्राचीनतम स्थाई जीवन का आयताकार ईटो के मकान भी मिले हैं और गेहूं के तीन प्रकार की किस्मे मिली है और जौ कि दो प्रकार की किस्मे के प्राचीनतम कृषि के साक्ष्य मिले हैं
सबसे पहले देखा जाये विश्व में कौन सी फसल आई थी तो वह है जौ मध्य एशिया वाले क्षेत्र में उसके बाद गेहूं और भारत में भी गेहूं और जौ गेहूं की तीन प्रकार की किस्में मेहरगढ़ से मिली है और जौ कि दो प्रकार की किस्मे
उत्तर प्रदेश के कोल्दीह्वा से धान की प्राचीनतम साक्ष्य मिले हैं जो करीब 6500 BC की बात है अब लेटेस्ट हो चुका है धान की खेती के साक्ष्य संत कबीर नगर लहुरादेवा
गेहूं की खेती के प्राचीनतम साक्ष्य तो मेहरगढ़ और यदि चावल की खेती का प्राचीनतम साक्ष्य की बात करे तो लहुरादेवा लगभग 8000 से 9000 BC के आसपास है
इसके बाद महागडा यहां से पशु बाड़ा मिला है धान और जौ की खेती जो उत्तर प्रदेश में है और जो गोलाकार झोपड़ी के प्रमाण मिले हैं चौपानी मांडो एक जगह है जहा से विश्व के प्राचीनतम मृदभांड हस्त निर्मित साक्ष्य मिले हैं ज्यामितीय आकार के माइक्रोलिफ्स मिले हैं मधुमक्खी के छत्ते जैसे झोपड़ियां मिली हैं बिहार में 3- 4 साइटें है चिरांद एक मात्र नवपाषाण स्थल है जहां प्रचूर मात्रा में हड्डी के उपकरण प्राप्त हुए हैं हिरण के सींग मिले हैं और सेनुअर ने नवपषानिक औजार मिले है
असम में दो जगह है पहला है दाऊजली हार्डिंग्स से कृषि और पशुपालन के साक्ष्य मिले हैं और दूसरा है शारुतारू से आदिम कुल्हाड़ियां और अंकित मृदभांड मिले है कर्नाटक में दो साइटें हैं शंगलकल्लू से राख के टीले मिले है बड़े-बड़े यहां पर हम एक अलग तरीके का कल्चर देख सकते हैं ऐसा माना जाता है कि मवेशियों के बाड़े रहे होंग जब यहां से मानव् गया तो उसने जला दिया और पिकलीहल में भी राख के ढेर मिले हैं पशुपालन के भी साक्ष्य पाए जाते है
नवपाषाण कालीन संस्कृति की बात करें तो नवपाषाण कालीन संस्कृति में प्रमुख स्थल नवपाषाण कालीन स्थल में उत्तर-पश्चिम क्षेत्र 6000 BC के टाइम पर यहां पर मेहरगढ़ है इसके बाद यह है किसेगुल मोहम्मद क्षेत्र है यहां से गेहूं ,जौ ,कपास, खजूर यह सारी दुनिया भर के साक्ष्य मिले हैं
ताम्र पाषाण काल :
ताम्र पाषाण काल तांबे के साथ भी पत्थर का प्रयोग 2800 BC से लेकर 700 BC तक तो इसको कई चरण में हम देखते हैं ताम्र पाषाण कालीन बस्तियों को कई चरण में देखते हैं कुछ इंडस वैली से पहले कि ताम्र पाषाण काल का टाइम काल 2800 BC से लेकर 700 है इसका विभाजन -
पहला 2800 से लेकर 2500 BC तक इंडस वैली सिविलाइजेशन से पहले की जितनी भी ताम्र पाषाण काल इसके प्रमुख स्थल गुजरात में गणेश्वर संस्कृति जहां पर तांबे का प्रयोग पाया गया है
इसके बाद दूसरा टाइम 2500 से लेकर 1750 BC भी तक सिंधु घाटी सभ्यता के समकालीन है मतलब इंडस वैली सिविलाइजेशन भी थी और उसी दौरान ताम्र पाषाण कालीन संस्कृतियां भी थी
प्रमुख संस्कृतिया : कायथा संस्कृति मध्य प्रदेश में पाई गई ताम्र पाषाण कालीन बस्ती थी दूसरा है बनास संस्कृति या आहार संस्कृति बोलते हैं इसके तीन क्षेत्र थे पहला था गिलूंड दूसरा था आहार और बालाथल फिर राजस्थान में भी कुछ हिस्से में इसका प्रसार था गुजरात और मालवा में भी प्रसार था एक और संस्कृति सालदा संस्कृति जो महाराष्ट्र क्षेत्र में पाई जाती थी तीन संस्कृतिया आपकी सिंधु घाटी सभ्यता के समकालीन लिए पाई जाती हैं इसके बाद तीसरा फेज 1750 से लेकर 1200 BC तक तो यह आपकी इंडस वैली सिविलाइजेशन के बाद की है और अंतिम फेज 1200 से लेकर के 700 BC यहां पर है जोर्वे संस्कृति महाराष्ट्र वाले रीजन पर है
विशेषताएं : पत्थर और धातु दोनों का प्रयोग हो रहा धातु के तौर पर यहां पर तांबा है भारत की पहली धातु जो मानव् ने खोजी वह तांबा है छोटे-छोटे पाषण पत्थरों का प्रयोग किया गया तांबे की कुल्हाड़ी का प्रयोग किया गया छोटी-छोटी बस्तियां इस समय देखने को मिल गई लघु संरचना ईटो के मकानों को भी देखा गया
विभिन्न प्रकार के मृदभांड देखे गए और विभिन्न प्रकार की फसल और पशुपालन का काम होता था विभिन्न प्रकार की धार्मिक आस्थाएं भी लोगो की देखी गई चाहे वह मृतक शवाधन पद्धति पर देखा गया हो अर्थव्यवस्था में कृषि पशुपालन शिल्प और व्यापार यह सारी चीजें आपकी ताम्र पाषाण काल इन बस्तियों में देखने को पाई जाती है
तो मानव द्वारा सर्वप्रथम प्रयोग में लाई गई धातु तांबा 5000 BC तांबा के बाद फिर मानव ने टिन का आविष्कार किया और टिन (15%) और तांबा (85%) से मिलकर के कांसा बना सिंधु घाटी सभ्यता कांस्ययुगीन सभ्यता थी एडवांस टेक्नोलॉजी के लोग थे ताम्र पाषाण बस्तिया मध्यप्रदेश में मालवा क्षेत्र में यहां पर मृदभांड पाए गए ताम्रपाषाण मृद्भांडो की उत्कृष्टता पाई गई मालवा मृदभांड पर गए नवदाटोली कताई-बुनाई का कार्य पाया गया तकलियो की प्राप्ति
इसके बाद महाराष्ट्र के दैमाबाद से तांबे के बर्तन पाए गए वस्तुएं पाई गई हैं हाथी , सांड , गैंडा , रथ चलाता हुआ मनुष्य पाया गया है इमाम गांव से कच्ची मिट्टी के मकान पाए गए हैं कलस शवाधन पद्धति घर के नीचे दफन करने के प्रमाण पाए गए हैं नेवाशा से पटसन का प्रथम साक्ष्य चाक निर्मित मृदभांड बर्तन
इसके बाद शवाधन पद्धति दोनों प्रकार की होती थी ताम्र पाषाण काल पर एक तो आंशिक भी होती थी आंशिक मतलब यह है कि जब पशु-पक्षी खा लेते थे उसके बाद हड्डियों को कब्र में रख दिया जाता था यह कम पारसी समुदाय आज भी करता है पूर्ण सावधान उत्तर भारत और पश्चिमी भारत में की पूरी तरीके से शव को दफना देना महाराष्ट्र में शवों के सिर उत्तर और पैर और दक्षिण तरफ पाए गए हैं
सबसे पहले चित्रित मृदभांडों के जो अवशेष हैं ताम्र पाषाण काल से ही प्राप्त होता है
महापाषाण काल : जब उत्तर भारत में पाषाण काल था दक्षिण भारत में महा पाषाण काल चल रहा था उत्तर भारत का जब मानव छोटे-छोटे पत्थरों का प्रयोग अपने जीवन यापन के लिए कर रहा था तो यहाँ समाधान के लिए बड़े-बड़े विशाल पत्थरों का प्रयोग कर रहे थे विंध्य पर्वत के नर्मदा नदी के नीचे का पूरा जो कल्चर है इसको महापाषाण कहते है इसका टाइम 1000 बीसी से 100 BC तक का टाइम
यहां पर महापाषाण का मतलब है बड़े आकार के जो पत्थर होते थे उपयोग विशिष्ट संरचना के लिए किया जाता था डिजाइन का निर्माण किया जाता था खासकर सावधान करने के लिए जैसे एक आदमी को बीच में लिटा दिया और उसके ऊपर बड़े पत्थरों से डाल दिया तो महाराष्ट्र में कर्नाटक में आंध्रप्रदेश में तमिलनाडु में केरल में इन सब जगहों पर महापाषाण काल कल्चर मिलता है
महत्वपूर्ण स्थल कौन कौन से है कर्नाटक में मस्की , ब्रहमपुर , हल्लूर है आंध्र प्रदेश में पिकली हल है तमिलनाडु में आदी चिंतूर है महाराष्ट्र में जानपानी है ऐसे करके कई सारे स्थल है जहां पर यह पाए गए
लौह युगीन संस्कृति : 1,000 BC लोहे का आविष्कार हो जाता है खासकर कर्नाटक वाले क्षेत्र में धारवाड़ क्रम की चट्टानों पर तो उस क्षेत्र में जब लोहा निकलता है तो यहां से लोहे की विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का प्राप्त हुई महापाषाण संस्कृति को लौह कालीन संस्कृति भी बोलते हैं यहां का मानव् तलवार कुल्हाड़ी तीर की नोक भाले की नोक हसिया यह सारी लोहे की चीजें पाई गई
लोहे की अन्य धातुएं जैसे सोना चांदी तांबा कांसा आदि भी यहां पर पाया गया है सोना कर्नाटक में कोलार की खान है तो उस क्षेत्र में थोड़ा बहुत सोना चांदी तांबा कांसा इस दौरान देखने को मिलता है इसके अलावा विभिन्न प्रकार के मृदभांड है यहां पर मृदभांड लाल और काला मृद्भांड पाए गए है
घोड़ों के भी साक्ष्य यहां से मिले हैं कब्रों से घोड़े मिले हैं हड्डिया मिली है घुड़सवारों चित्र मिले हैं तो वहां पाषाण काल कब्र में निवास से हटकर मिलते हैं जिसमें से विभिन्न प्रकार की वस्तुएं प्राप्त हुई है जैसे लोहे व अन्य धातु की वस्तुए , मृदभांड पशु हड्डियां अनाज , मनके, हाथी दांत के आभूषण , रोम के सिक्के यह सारी चीजें प्राप्त हुई है
यहां से क्या प्राप्त नहीं हुआ है यहां पर नगरीय व्यवस्था नहीं मिली है नगर योजना नहीं है यहां पर बड़ी-बड़ी संरचनाएं नहीं मिली है बड़े-बड़े स्ट्रक्चर नहीं मिलेगी कोई बहुत बड़ी-बड़ी इमारतें मिली हो यहां पर लिपि और लेखन का ज्ञान नहीं था लंबी दूरी का व्यापार नहीं मिला है मापदर और कला के विशिष्ठ नमूने यहां से नहीं मिले हैं
यहां से प्राप्त हुआ है लोहे की विभिन्न धातु की वस्तुएं मृदभांड पशु हड्डियां यह सारी चीजें यहां पर प्राप्त हुई हैं तो रोमन सिक्के भी पाए गए रोमन व्यापार होता था ऐसा माना जाता था
सिंधु घाटी सभ्यता :
सामान्य परिचय : सिंधु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से जानते हैं क्योंकि सबसे पहला स्थल हड़प्पा ही था भारतीय पुरातत्व विभाग के अलेक्जेंडर कनिंघम का नाम सूना होगा 1861 में जब भारत में भारत शासन अधिनियम 1861 आया तो उसके बाद ही अलेक्जेंडर महोदय आये थे भारतीय पुरातत्व विभाग को एक डिपार्टमेंट बनाया गया था लेकिन यह पर्टिकुलर डिपार्टमेंट नहीं बना था यह काम लार्ड कर्जन के टाइम पीरियड पर पुरातत्व विभाग की स्थापना की गई डिपार्टमेंट 1902 में एक विभाग ही बनाया गया और इसका काम था कि भारत की जो प्राचीन संस्कृतियां हैं उनके बारे में पता किया जाए और शायद आपको यह चीज का आश्चर्य होगा कि 1920 से पहले हमें पता ही नहीं था की सिंधु घाटी सभ्यता जैसा कोई स्थल है या नहीं है
कनिघम महोदय पहले इस क्षेत्र में गए थे कई बार गए हैं और रेल की पटरियां आ गई थी भारत में है 1853 से रेलवे का विकास चालू होता है तो रेल की पटरियां बिछाई जा रही थी और तभी यह वाला पूरा हिस्सा जो आपका पेशावर के बाद जो यह हड़प्पा मोहनजोदड़ो का इलाका है तो यहीं पर राखलदास बनर्जी और दयाराम साहनी यह दोनों पुरातत्व इतिहासकार वेत्ता थे इनके द्वारा ही जब यहां का सर्वेक्षण किया और पाया गया कि यहां पर तो बड़ी संख्या में ईटे पटी पड़ी है तो उनको लगा कि ऐसा कोई साधारण चीज तो होगी नहीं इतनी ईटे यहां कहा से आ गई तो फिर दयाराम साहनी के द्वारा जो है हड़प्पा की खुदाई करवाई जाती है और उस खुदाई के बाद साक्ष्य प्राप्त होता है तो पाया जाता है कि भारत ही नहीं विश्व की सबसे प्राचीनतम सभ्यता भारत भूमि में थी जिसका नाम रखा गया सिंधु घाटी सभ्यता क्योंकि सिंधु नदी के सिंधु झेलम रावी चेनाब सतलज-व्यास इनके इर्द गिर्द क्षेत्र में थी इसलिए सिंधु की सहायक नदियों के आसपास एक बड़ी सभ्यता निकलकर आती है सभ्यता का जो पहला अवशेष निकलकर आता है इसलिए इसको हड़प्पा सभ्यता के भी नाम से जानते हैं
कार्बन डेटिंग के दौरान जब पता किया गया तो पाया गया कि 2500 BC से लेकर 1750 बीच तक यह सभ्यता विकसित अवस्था में थी अपने परिपक्व अवस्था में थी तो माना जाता है कि भारत की प्रथम नगरीय क्रांति है यहां से बड़े स्तर के नगर का डेवलपमेंट हो गया कि और यह सभ्यता कांस्य युगीन सभ्यता थी
इसका विस्तार देख लेते हैं तो महाराष्ट्र में एक जगह है दैमाबाद इसी को भगतराव भी बोलते हैं जो सबसे दक्षिणतम स्थल सीमा पर है सबसे उत्तरतम जगह मांडा यह जम्मू-कश्मीर में है यह मकरान तट है आपका और इसको बोलते हैं सबसे पश्चिमी क्षेत्र सुत्कान्गेदोर बलूचिस्तान पाकिस्तान में है इसके बाद यह आपका आलमगीरपुर यहां पर उत्तर प्रदेश में मेरठ और सहारनपुर वाला क्षेत्र है
प्रमुख शहर : रावी नदी के किनारे हड़प्पा शहर , मोहन जोदड़ो सिंधु नदी के किनारे , लोथल भोगवा नदी के किनारे गुजरात में यहां पर प्राचीन बंदरगाह था कालीबंगा घग्घर नदी जो अब सूख गई है और इसे सरस्वती नदी भी कहते थे
रोपड़ पंजाब में प्रमुख नदी सतुलज नहीं के किनारे , आलमगीरपुर हिंडन नदी के किनारे जो गाजियाबाद से जाती है ,सुत्कान्गेदोर यह दाश्क नदी के किनारे हैं इसके बाद बनवाली सरस्वती नदी जिसे घग्घर नहीं कहते है ये भी हरियाणा में है
चन्हुद्रो सिंधु नदी के किनारे मोहनजोदड़ों और चन्हुद्रो दोनों सिंधु नदी के किनारे
हड़प्पा की उत्खनन दयाराम साहनी माधोस्वरूप वत्स और व्हीलर महोदय ने किया मोहनजोदड़ों का उत्खनन राखलदास बनर्जी और मल्टीमर व्हीलर महोदय ने किया हड़प्पा 1921 में 1922 में चन्हुर्दो का गोपाल मजूमदार और अर्नेस्ट मैके, लोथल कि रंगनाथ राव के द्वारा की गई कालीबंगा की खोज बीके लाल और बीके थापर ने किया था बनवाली कि रवींद्र सिंह बिष्ट , रोपड़ की यज्ञदत्त शर्मा और सुत्कान्गेदोर की सर मार्क स्टाइल ने खोज की है
नगर विन्यास ग्रिड सिस्टम था यहां पर जाल पद्धति था पूरी तरह से प्लांट सिटी की तरह बनाया गया था आधुनिक चण्डीगढ़ की तरह , नगर आयताकार और वर्गाकार होता था चौड़ी गलियां होती थी
एक दूसरे को समकोण पर काटती थी ऐसा बोला जाता था वास्तुकला की बात करें तो इंडिया में वास्तु कला का स्थापत्य कला का जो आरंभ किया था इसे सिंधु घाटी की सभ्यता के निवासियों ने ही किया था क्योंकि एक नगरीय सभ्यता थी सड़के एक दूसरे को समकोण पर काटती थी भवन भी दो मंजिले बने थे दरवाजे सड़कों की ओर खुलते थे मोहनजोदड़ों की सबसे बड़ी इमारत थी अन्नागार विशाल अन्नागार पाया गया पाएंगे और वहां पर एक विशाल जलाशय भी पाया गया है
फर्श कच्चा होता था कालीबंगा में कुछ पक्के फर्श के भी साक्ष्य मिले है मतलब कि जमीन जो है पक्की भी होती थी कि कालीबंगा में अलंकृत ईटे मिली है एग्रीकल्चर की बात करें तो सबसे पहला कपास उत्पादन करने का काम सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों ने ही किया था चावल के साक्ष्य लोथल से प्राप्त हुआ चावल की भी खेती जानते थे बाजरा के साक्ष्य लोथल और सौराष्ट्र से पाए जाते हैं रागी और सरसों के साक्ष्य कालीबंगा से पाए जाते हैं
बनवाली से हल साक्ष्य मिले हैं कालीबंगा से जूते हुए खेत का साक्ष्य मिला है और गन्ना का कोई भी साक्ष्य प्राप्त नहीं हुआ सिंधु घाटी सभ्यता के लोग हाथी घोड़े से परिचित थे लेकिन पालतू बनाने में असफल थे घोड़े के साक्ष्य बहुत कम मिले मतलब घोड़े के साथ ना के बराबर है सुर कोटडा से अस्थिपंजर मिले हैं अन्यथा घोड़े के साक्ष्य वैदिक काल पर ज्यादा था
गैंडा एक सिंगी वाला जानवर मिला है जिसकी एक ही सिंग होती थी विलुप्त हो गया गैंडा बंदर भालू खरहा आदि जंगल जानवरों का ज्ञान था शेर का कोई साक्ष्य नहीं मिलता है गाय का साक्ष्य नहीं मिलता लेकिन बैल का साक्ष्य मिलता है सिंधु घाटी सभ्यता में मुद्रा का प्रचलन नहीं था बार्टर सिस्टम अर्थात वस्तु विनिमय प्रणाली थी पहली बार मुद्रा का प्रचलन आहत सिक्के छठी शताब्दी ईसापूर्व महाजनपद काल में पाए गए तो मुद्रा का कोई प्रचलन नहीं था क्रय-विक्रय या वस्तु विनिमय प्रणाली थी सिंधु घाटी सभ्यता के लोग अन्य सभ्यता के लोगो के साथ व्यापार करते थे जैसे मेसोपोटामिया की सभ्यता के लोगों के साथ व्यापार करते थे विदेशो से आयात की जाने वाले वस्तुए टिन अफगानिस्तान और ईरान से आयात किया जाता था तांबा राजस्थान में खेतड़ी की खान है चांदी भी अफगानिस्तान और ईरान से आयात की जाती थी सोना भी अफगानिस्तान और दक्षिणी भारत से आयात किया जाता था शीशा इरान अफगानिस्तान और राजस्थान से आयात किया जाता था लाजवर्द मेसोपोटामिया और अफगानिस्तान से आयात किया जाता था तो यह बहुत सारी आयातित वस्तुएं हैं तो सिंधु घाटी सभ्यता में सिल्पियो और व्यापारियों का शासन था ऐसा माना जाता है राजा के भी बहुत स्पष्ट प्रमाण नहीं मिले वहां पर ऐसा माना गया कि यहां पर शिल्पियों और व्यापारियों का ही शासन प्रशासन रहा होगा
धर्म की बात करें सिंधु घाटी सभ्यता से मंदिर का कोई अवशेष नहीं मिला है लेकिन मोहनजोदड़ों में एक मोहर मिली जिसमे स्वास्तिक का चिन्ह प्राप्त हुआ है इसके अलावा हड़प्पा सभ्यता में कूबड़ वाले साड़ की पूजा होती थी ऐसा मुंहर में मिला है हड़प्पा सभ्यता में वृक्ष पूजा के भी साक्ष्य है पीपल और बबूल की पूजा होती थी ऐसे साक्ष्य मिले हैं इसके अलावा सिंधु घाटी सभ्यता के लोग भूत-प्रेत में विश्वास रखते थे भक्ति पर विश्वास करते थे पुनर्जन्म पर विश्वास रखते थे पुनर्जन्म पर विश्वास के कारण ही तीन तरीके के अंत्येष्टि के तरीके मिलते हैं पहला तरीका है पूर्ण समाधिकरण में मतलब पूरी तरीके से व्यक्ति को ,दुसरा आंशिक समाधिकरण यानी उसके कुछ बचे हुए हिस्से का पूर्ण समाधिकरण दाह संस्कार आग लगा देना
लोथल से युग्म शवाधन मिला है मतलब एक साथ दो लोगो को भी दफनाया गया और कुछ विद्वान कहते हैं कि यहां पर सती प्रथा थी कि दो लोग कैसे हो गए महिला पुरुष दोनों को कंकाल पाए गए तो युग्म शवाधान के साक्ष्य मिलें रोपण में एक मालिक के साथ कुत्ता को दफनाए जाने के साक्ष्य मिले हैं
लिपि के बारे में पहले अलेक्जेंडर कनिंघम ने सबसे पहले सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि को इस पर विचार किया पढ़ने का प्रयास किया और सबसे पहले पढ़ने का प्रयास किया था ए ए वैडल महोदय ने पढ़ा और बोला कि मेरे से ना हो पाएगा फिर कई और लोगो ने बोला कि मेरे से नहीं हो पाएगा तो सिंधु घाटी सभ्यता भावचित्रात्मक है बहुत सारे उसमें चिन्ह बने हुए हैं कहीं पर मछली का चिन्ह चिड़िया का चिन्ह मानव आकृतियां कृतियां हैं और यह लिपि दाएं से बाए लिखी जाती है जैसे उर्दू को लिखते है इसको बुस्टोफेदन बोलते हैं
आद्य एतिहासिक स्थल है सिंधु घाटी सभ्यता के जो मुख्य लोग थे वह द्रविड़ लोग थे द्रविड़ लोग या भूमध्यसागरीय लोग थे सिंधु घाटी सभ्यता में सर्वाधिक स्थल भारत में गुजरात में पाया गया है लोथल और सुरकोतदा दो प्रसिद्ध बंदरगाह होते थे
मनका बनाने का कारखाना लोथल और चन्हुद्रो में मिला है सिंधु घाटी सभ्यता की मुख्य फसल गेहूं और जौ थी इसके अलावा सिंधु घाटी सभ्यता के लोग तौल की इकाई जानते थे 16 के अनुपात में तौल की इकाई होती थी यहां पर सिंधु घाटी सभ्यता के लोग धरती को पूजा की उर्वरता की देवी के रूप में देखते थे सिंधु घाटी सभ्यता के लोग मातृ देवी की भी पूजा करते थे इस कारण से इनका समाज कैसा था मातृ सत्तात्मक समाज था सिंधु घाटी सभ्यता में पर्दा प्रथा प्रचलित थी और वेश्यावृत्ति भी प्रचलित थी ऐसे भी साक्ष्य पाए गए
प्रमुख स्थल सिंधु घाटी सभ्यता का हड़प्पा : रावी नदी के किनारे 1921 में खोजा गया दयाराम साहनी के द्वारा खोज की गई यहां से एक नटराज की आकृति वाली मूर्ति मिली है इसके अलावा संख का बना हुआ बैल मिला है पैर में सांप दबाये हुए गरुण का चित्र मिला है मछुआरों के चित्र प्राप्त हुए हैं सिर के बल खड़ी नग्न स्त्री का चित्र मिला है और उसके गर्भ से पौधा निकल रहा है तो इसको मातृ देवी बताया गया कि मातृदेवी होगी
मोहनजोदड़ों : यह सिंधु नदी के किनारे है इसकी खोज 1922 में राखलदास बनर्जी ने खोजा भवन पक्की ईटो के द्वारा निर्मित होते थे प्रवेश द्वार जो थे वह गली में होते थे कांसे की एक नृत्य की मूर्ति मिली जो मंगोलायड एक हाथ में उसने कंगन पहन रखी हैं और इसके अलावा एक श्रृंगी पशु की आकृति वाली मोहर भी प्राप्त हुई है और यहां पर नगर दो भागों में बंटा होता था एक को दुर्ग बोलते थे दुसरे को निचला शहर बोलते थे दुर्ग हमेशा पश्चिम में होता था ताकि सूरज उगे तो पूरब वालों को रोशनी मिले
लोथल : यह भोगवा नदी के किनारे पर है गुजरात में स्थित है यहां से दक्यार्क के साक्ष्य मिलें चावल एवं बाजरा के साक्ष्य मिले हैं दो मुंह वाले राक्षस का अंकन वाली एक मुद्रा मिली है पंचतंत्र की चालाक लोमड़ी का अंकन भी से प्राप्त हुआ है ममी का उदाहरण मिला है ममी का मतलब यह सब काम मिस्र के लोग करते थे आज भी बहुत सारी लाशे उस टाइम की हैं उसको एक केमिकल में पूरा बंद करके रखा जाता था तो लोथल से ममी का उदाहरण मिला है बारहसिंघा गोरिल्ला के अंकन प्राप्त वाली मुद्राएं भी प्राप्त हुई है
कालीबंगा : घग्घर नदी के किनारे राजस्थान में कालीबंगा होने का कारण क्योंकि काले रंग की चूड़ियां प्राप्त हुई है जैसे मोहनजोदड़ों को मृतको का टीला बोलते हैं क्योंकि कहते हैं कि आर्यों का आक्रमण हुआ होगा और इस कारण से यहां पर बहुत बड़े बड़े कंकाल मिले
इसलिए उसको आर्य आक्रमण की पुष्टि की जाती है कि आर्यों का आक्रमण इसके पतन का कारण रहा होगा लेकिन कालीबंगा में दोनों प्रकार की सभ्यताए थी प्राक हड्डापन सभ्यता भी थी और विकसित दोनों के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं जूते हुए खेत थे सरसों के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं एक सिंह वाले देवता के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं कपाल में छेद वाले बालक का शव प्राप्त हुआ है तो ऐसा माना जाता है कि किसी की खोपड़ी में छेद यानि मतलब शल्य चिकित्सा हुई होगी
चन्हुद्रो : मनके बनाने वाले कारखाने प्राप्त हुए मनके का मतलब समझते मोतियों की माला टाइप में होती है बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते की पदचिन्ह मिला है
वनवाली : हरियाणा के हिसार जिले में स्थित है अच्छी किस्म के जौ की प्राप्ति हुई है हल की आकृति वाला खिलौना प्राप्त हुए यहां से
रोपण : पंजाब के सतलज नदी के किनारे मानव् के साथ कुत्ते को दफनाए जाने के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं
धोलावीरा : गुजरात के भरूच जिले में स्थित है और जल प्रबंधन के लिए 16 जलाशयों की प्राप्ति है यहां पर ड्रेनेज सिस्टम बहुत अच्छा प्यूरिफिकेशन मेथड बहुत अच्छा प्रयोग किया गया
सुरकोतदा : गुजरात के कच्छ में स्थित है यहां से शापिंग कांपलेक्स के साक्ष्य पाए गए है घोड़े की अस्थियां प्राप्त हुई है
खत्म कैसे हो गई अचानक से इतनी बड़ी सभ्यता : नगरीय सभ्यता खत्म हो गई अचानक से ग्रामीण जीवन जीने वाले लोग आ गए
इसके कई कारण है पर्टिकुलर अभी तक पूर्ण पुष्टि नहीं हुई है क्योंकि लिपि पढ़ी नहीं गई है तो ऐसा बोला जाता है कि यहां पर क्योंकि नदियों वाला क्षेत्र नदिया ही नदिया थी तो ऐसा हुआ होगा कि यहां पर क्या हुआ होगा बड़े स्तर की बाढ़ आ गई होगी जलप्लावन आ गया होगा सभी नदियों में तो यहां पर इस कारण से हो गया होगा पहला कारण तो दिखाएंगे
दूसरा कहां गया कि राजस्थान वाला पूरा क्षेत्र पर मरुस्थल है तो कभी हो सकता है कि आपके घग्घर नदी सूख गई चुकी परिस्थितिकिय पर्यावरण पारिस्थितिकी में असंतुलन आया नदियां सूख गई जिसके कारण से अकाल पड़ गया यहां के लोग तो शुष्कता के कारण से लोग भूख से मर गए होंगे
तीसरा बाहरी आक्रमण हो गया होगा विदेशी आकर यहां पर तो आर्यों का प्रमाण मिलता है यहां पर नदियों ने अपने मार्ग परिवर्तन कर लिया होगा प्रशासनिक शिथिलता रही होगी है ज्यादा अच्छा प्रशासन नहीं चलता रहा होगा या फिर जलवायु परिवर्तन तो ऐसे कई सारे कारण बताए जाते हैं जिसके कारण से सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों के बारे में बताया जाता है
यदि हम क्रम से बात करे तो सबसे बड़ा नगर मोहनजोदड़ों था दूसरे नंबर पर हड़प्पा तीसरे नंबर पर धौलावीरा और चौथे नंबर पर कालीबंगा
तो भारत में देखा जाए तो सबसे बड़ा है धोलावीरा लेकिन साइट के हिसाब से देखा जाए क्षेत्रफल जिसका बहुत बड़ा तो वह आपका राखिगढ़ी है
सबसे नंबर 1 पर मोहनजोदड़ों सबसे बड़ी साइट है और भारत में अवस्थित सबसे बड़ी साईट राखिगढ़ी है
वैदिक काल :
सिन्धु घाटी सभ्यता और वैदिक सभ्यता के मध्य में करीब 150 से 200 वर्षो का अंतर है तो ऐसे में इस बीच में वैदिक सभ्यता का जन्म हो रहा था और सिन्धु घाटी सभ्यता खत्म हो रही थी वैदिक काल को दो भागों में बांटते हैं पहला है ऋग्वेद काल इसकी प्रशंसा सबसे ज्यादा करते हैं हम लोग और दूसरा उत्तर वैदिक काल
समय काल की बात करे तो वैदिक काल 1500 BC से लेकर के 1000 BC और उत्तर वैदिक काल 1,000 से लेकर 600 BC कि तो यह दो टाइम पर है
सबसे पहले सिंधु घाटी सभ्यता पूरी तरीके से शहरी सभ्यता थी वैदिक सभ्यता ग्रामीण सभ्यता थी ऋगवैदिक समाज का आधार परिवार था मूल इकाई की परिवार था समाज पितृसत्तात्मक होता था जबकि सिंधु घाटी सभ्यता का समाज मातृसत्तात्मक था यहां से पितृसत्तात्मक समाज हो जाता है महिला के बहुत सारे अधिकार छीन लिए जाते हैं ऋग वैदिक काल में मूलभूत व्यवसाय कृषि और पशुपालन ही था गाय का बड़ा महत्व था गाय को लेकर युद्ध हो जाते थे
तो वेदों की वैदिक कालीन जो समाज है वेदों पर आधारित से वेदों से जानकारी मिलती है जो ऋग वैदिक काल में इसका स्रोत है कुल 4 ऋग्वेद यजुर्वेद ,सामवेद और अथर्ववेद है ऋग्वेद सामवेद यजुर्वेद को वेदत्रई कहा जाता है अथर्वेद बहुत बाद का है
ऋग्वेद : इसमें विभिन्न देवताओं की स्तुति और गाये जाने वाले मंत्रों का संग्रह है तो एक तरीके से स्तुति है मंत्र है मंत्रों का संग्रह है और कहा जाता है कि वेद व्यास जो कृष्ण द्वैपायन व्यास थे उनके द्वारा इस का संकलन किया गया और इसमें जो है विश्वामित्र का भी इसमें जिक्र है इसमें कुल 10 मंडल है 1028 सूक्त हैं 10462 मंत्र है
दूसरा और सातवां मंडल सबसे पुराना है इन्हें वंश मंडल कहते हैं दसवां मंडल दसवां मंडल सबसे नवीन मंडल है इसको जो पढ़ने वाला पुरोहित होता था उसे होता/होत्र बोलते थे
नवा मंडल जो है वह सोम को समर्पित है दसवें मंडल में पुरुष सूक्त में शुद्रो का भी उल्लेख किया गया है इसी में ही विराट पुरुष की संकल्पना है बताया गया है कि सर जो है ब्राहमण है हाथ जो है क्षत्रिय है पेट जो है वैश्य और पैर जो शुद्र है इस तरीके से विभाजन किया गया
ऋग्वेद में ईरानी ग्रंथ जेंद अवेस्ता से समानता पाई जाती है सबसे प्राचीनतम नदी सबसे पवित्र नदी सरस्वती नदी को माना गया है ऋग्वेद में सबसे पवित्र नदी आपकी सरस्वती नदी इसे नदीतमा की उपमा दी गई है
ऋग्वेद में यमुना का तीन बार उल्लेख है गंगा का एक बार उल्लेख है दसवें मंडल पर इसके अलावा ऋग्वेद में पुरुष देवताओं की प्रधानता है ज्यादातर महिलाएं आप नहीं मिलेंगे इसमें क्योंकि इंद्र देवता का वर्णन 250 बार तो पुरुष देवताओं की प्रधानता है पितृसत्तात्मक समाज के जो बात करते हैं इससे कुछ यहां पर मिलते हैं असतो मा सद्गमय भी ऋग्वेद में लिखा हुआ है
यजुर्वेद : इसमें यज्ञ विधिया कर्मकांड करने की विधियों पर बल दिया गया है और इसको पाठ करने वाले व्यक्ति को अरधयु बोलते है इसमें 40 मंडल है और 2000 मंत्र है इसमें यज्ञ और यज्ञ बलि की विधियों को प्रतिपादित किया गया है यजुर्वेद में हाथियों के पालने की भी उल्लेख की गई है यजुर्वेद में ही राजसूय यज्ञ , वाजपेय यज्ञ का भी उल्लेख मिलता है
सामवेद : दिए संगीतशास्त्र का प्राचीनतम ग्रंथ हैं इसको पाठ करने वाला पुरोहित को उद्ग्रात बोलते हैं सामवेद के प्रथम दृष्टा वेदव्यास के शिष्य जैमनी को माना जाता है और सामवेद में सरगम के सात स्वरों की बात की गई है सा रे गा मा पा धा नि सा की जानकारी प्राप्त होती है सामवेद और अथर्ववेद का कोई अरण्डक ग्रंथ नहीं है सामवेद का उपवेद गंधर्व वेद कहलाता है
अथर्ववेद : इसमें तंत्र मंत्र जादू टोना टोटका भारतीय औषधि विज्ञान संबंधी भी जानकारी दी गई है इसकी 2 शाखाये है पहली शौनक दूसरी है पिपलाक इसे ब्रह्मवेद भी कहा जाता है और इसमें वास्तु शास्त्र का बहुमूल्य ज्ञान उपलब्ध है अथर्ववेद का कोई अरण्यक नहीं है दो उपनिषद है इसके पहला है मुंडक उपनिषद् और दूसरा मांडूक्योपनिषद
भारत का जो राष्ट्रीय वाक्य सत्यमेव जयते हैं वह मुंडकोपनिषद से लिया गया है अथर्ववेद में कुरु के राजा परिक्षित का उल्लेख है जिसे मृत्युलोक का देवता भी बोला जाता है परीक्षित के बारे में कहा जाता है की ये जो पांडव थे जब यह हिमालय चले गए उनके ही वंसज थे राजा परीक्षित और एक सांप के बारे में चर्चा की जाती है जिसका नाम था तक्षक उसी समय धनवंतरी भी थे धनवंतरी लक्ष्मी जी के भाई है क्योकि इनका भी जन्म समुन्द्र मंथन के द्वारा हुआ था तो उस समय कहते थे जिस पर दृष्टिपात करते थे यदि कोई सूखा पेड़ भी होता था वह लहलहा जाता था इतने बड़े आयुर्वेदा शास्त्र थे तो परीक्षित को बोला गया की तक्षक उसको डसने वाला था तो फिर पूरी कहानी आती है कि तक्षक नाग से वह बचाते हैं धन्वन्तरी कहते हैं कि टेंशन ना ले मैं हूं मई तेरा इलाज करूंगा लेकिन फिर तक्षक धनवंतरी कोई डस लेता है कैसे डालता है क्योकि आंख नहीं पड़नी चाहिए इसलिए लकड़ी बनकर जो है कहते हैं पड़ा रहता है और धनवंतरी उसे उठाकर अपने पीछे डालते है पीछले हिस्से में ही डस लेता है
इसके बाद धनवंतरी खत्म हो जाते है फिर राजा परीक्षित भागवत की कथा सुनते हैं इसीलिए कथा सुननी चाहिए बहुत सारे दुख आपकी जो यह अकाल मृत्यु होती है खत्म होती है इसे जोड़ा गया है
अथर्ववेद में सभा और समिति को प्रजापति की दो पुत्रियां कहा गया है दो संस्थाएं लोकतांत्रिक संस्थाएं हैं यहां पर शासन-प्रशासन करने में उनका बड़ा योगदान होता था सभा जो वरिष्ठ लोगों की संस्था होती थी और समिति आम लोगो की
आरण्यक : वनों में रचने के कारण से जिनकी रचनाएं की गई बहुत सारी जो एकांत में ऋषि-मुनियों ने रचा वनों में उसे आरण्यक कहा गया वर्तमान में कुल 7 आरण्यक हैं एतरेय , तैतरीय , मंदिन, संख्यायन, मैत्रीय ,तलावकार और बृहदारण्यक उपनिषद :
भारतीय दार्शनिक विचारों का प्राचीनतम ग्रंथ एक तरीके से फिलोस्पी ग्रंथ है इनको भारतीय दर्शन का स्रोत कहा जाता है वेदांग : वेदांगों की संख्या कुल 6 है बिना वेदांगों की जानकारी किए हुए आप वेदों को नहीं पढ़ सकते हैं जैसे कि शिक्षा : शिक्षा आपका एक वेदांग है इसको पुरुष की नाक बोला जाता है बिना एजुकेशन कि आप कुछ नहीं कर सकते दूसरा व्याकरण : व्याकरण से ही आप बोल पाते हैं यदि आपको व्याकरण का ज्ञान नहीं होगा ग्रामर का ज्ञान होगा तो इसको मुंह बोला जाता है शिक्षा को पुरुष की नाक बोला जाता है व्याकरण वेद रूपी पुरुष मान लें
छंद : छंद वेद रूपी पुरुष के पैर हैं छंदों के माध्यम से उनको रचा गया है कल्प सूत्र , निरुक्त और ज्योतिषी हैं 6 वेदांग शिक्षा व्याकरण छंद कल्प सूत्र निरुक्त और ज्योतिष है
वेदों से संबंधित ब्राह्मण ग्रंथ : ऋग्वेद का एक ब्राह्मण ग्रंथ है ऐतरेय और कौषीतकिय दो ब्राह्मण ग्रंथों है यजुर्वेद का शतपथ ब्राह्मण , अथर्ववेद का गोपथ एक ही ब्राह्मण है और सामवेद के दो है पंचविश और जैमिनी है
वेदों से संबंधित उपनिषद : ऋग्वेद का ऐतरेय और कौसितकीय और सामवेद का छांदोग्य, यजुर्वेद का बृहदारण्यक और अथर्ववेद का मुंडक है
वेदों से जुड़े हुए आरण्यक : ऋग्वेद का येतेरेय है सामवेद का छांदोग्य आरण्यक और जैमिनी आरण्यक यजुर्वेद का बृहदारण्यक और अथर्ववेद का कोई नहीं कोई अरण्यक नहीं है
वेदों से संबंधित उपवेद ऋग्वेद का है आयुर्वेद सामवेद का है गंधर्व वेद यजुर्वेद का है धनुर्वेद और आयुर्वेद का है शिल्पवेद है
ऋग वैदिक काल की राजनीतिक स्थिति : सबसे पहले कबीलाई संरचना थी यहां पर और ग्रामीण संस्कृति थी राजा को जो है कई नामों से जाना जाता था जन्श्य गोपा, पुरहेत्ता ,विश्पति, गणपति गोपति यह सब राजा के नाम होते थे
स्त्रियां भी शासन-प्रशासन में भाग लेती थी सभा समिति और विदथ ये तीन संस्थाएं थी इनमें महिलाए भाग लेती थी प्रशासन की सबसे छोटी इकाई परिवार/कुल थी जन प्रशासन की सर्वोच्च इकाई थी राजा नियमित स्थाई सेना नहीं रखता था सभा यह श्रेष्ठ अभिजात लोगों की संस्था होती थी वृद्धों की संस्था भारतीय समाज का एक्सपीरियंस्ड पर्सन होता था जैसा वर्तमान में राज्य सभा में एक्सपीरियंस 30 साल से ज्यादा उम्र के लोग इसको न्यायिक अधिकार भी प्राप्त सभा को और समिति जनसाधारण की संस्था होती थी और सभा और समिति को अथर्ववेद में प्रजापति की दो पुत्रियां कहा गया है विद्थ जो थी यह आर्यों की प्राचीनतम संस्था थी कहते थे कि जो चीजें लूट कर लाते थे जैसे कहीं पर जाते थे आक्रमण करने और वहां से कोई लूट के लाट थे तो लूटी हुई चीजों का बंटवारा करती थी यह संस्था ऋग्वेद में विदथ का 122 बार प्रयोग किया गया है
विदथ में अध्यात्मिक विचार विमर्श भी होता था और उत्तर वैदिक काल में इस संस्था को समाप्त कर दिया जाता है केवल सभा और समिति बचते हैं
वैदिक काल के प्रमुख क्षेत्र : सप्तसिंधु प्रदेश है जिसमें सिन्धु , रावी , व्यास झेलम ,चिनाब ,सतलज और सरस्वती नदी का क्षेत्र यहां पर थे यहां पर सिंधु घाटी सभ्यता थी फिर इसके बाद ये गए दूसरा ब्रह्मावर्त प्रदेश दिल्ली के समीप क्षेत्र जितना भी है या फिर गंगा और यमुना का दोआबी वाले क्षेत्र को ब्रह्मावर्त बोला जाता है इसे ब्रम्हर्षि प्रदेश भी बोला जाता है
आर्यावर्ता हिमालय से लेकर विंध्याचल पर्वत तक के क्षेत्र को आर्यवर्त बोला जाता है इस पूरे क्षेत्र में थे इसके साथ ही दक्षिण का भी आर्यीकरण हुआ दक्षिणी का अगस्त ऋषि ने आर्यीकरण किया
उत्तरापथ विद्यांचल के उत्तर प्रदेश हिमालय तक के क्षेत्र को उत्तरापथ और दक्षिण पथ कहा जाता था
अथर्ववेद के अनुसार राजा को आय का सोलहवां भाग टैक्स होता था लेकिन बहुत कम टैक्स लेता था बलि नामक एक टैक्स होता था और ऐतरेय ब्राह्मण पुत्री को कृपण कहा गया है कृपण का अर्थ दुखों का स्रोत है
ऐसा था यहां से उत्तर वैदिक काल से स्थिति विपरीत होनी चालू हो जाएगी पितृसत्तात्मक समाज आने लगेगा महिलाओं की स्थिति को दबाना शुरू किया जाए उनके राइट खत्म कर दिया जाएंगे एजुकेशनल राइट खत्म कर दिया जाते हैं
सामाजिक बंधन का आधार गोत्र तथा जन्म मुल्क होता था जो जन्म से जो होता है व्यक्ति की पहचान गोत्र बन गई थी ऋग वैदिक समाज से यह बनना चालू हो गया था लेकिन समाज कुछ हद तक समतामूलक होता था क्योंकि कर्म को भी प्रमुखता दी जाती थी कर्म के आधार पर भी आपका वर्ण बदल जाता था लेकिन ऋग वैदिक समाज में समाज को तीन भागों में तभी बांट रखा गया था वह व्यवस्था उस तरीके से नहीं आई थी लेकिन पुरोहितवर्ग राजा वर्ग और सामान्य वर्ग इन तीन भागो में समाज बट गया था पुरोहित वर्ग का जन्म हो चुका था और ऋग्वेद के दसवें मंडल में जो सबसे बाद का है उसमें फिर चार वर्णों की उत्पत्ति की बात हो जाती है पुरूष सूक्त में ही चार वर्णो की बात करता है ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र जिसमें से इस व्यवस्था का स्थापना की जाती है सबसे ऊपर पर ब्राह्मण फिर क्षत्रिय फिर वह वैश्य सबसे नीचे शुद्र तो यह एक उर्धवाधर व्यवस्था बना दी जाती है
स्त्रियों को उपनयन संस्कार का अधिकार था अर्थात शिक्षा के लिए जब आप जाते है तो सर मुड्वाया जाता था स्त्रियों का उपनयन संस्कार होता था और शिक्षा की व्यवस्था दी जाती थी स्त्रियां सभा समिति और विदथ में भाग ले सकती थी
महिलाओं को पति के साथ यज्ञ में भाग लेने का अधिकार था और अपाला घोषा लोपामुद्रा विश्वरा सिकता ऐसी बहुत सारी वैदिक ऋचाये इन महिलाओं ने लिखा बाल विवाह की प्रथा नहीं थी
तलाक की प्रथा नहीं था सती प्रथा नहीं थी पर्दा प्रथा नहीं थी बहुपत्नी प्रथा नहीं थी यह सब कुछ ऋग वैदिक काल में नहीं थी
लेकिन विधवा विवाह होता था और नियोग प्रथा होती थी नियोग प्रथा का मतलब यदि पति नपुंसक निकल जाता है किसी कारण से संतान उत्पत्ति करने में अक्षम हो जाता है तो ऐसे में देवर के साथ संबंध बनाया जा सकता था पुत्र प्राप्ति के लिए
इस काल में दास प्रथा प्रचलित थी लेकिन घर के कामों में नहीं लगाया जाता था दासों को केवल कृषि कार्यों में प्रयोग किया जाता था जीवन भर अविवाहित रहने वाली महिलाओं को अमाजू बोला जाता है
घोड़े का मांस अश्वमेघ यज्ञ के अवसर पर खाया जाता था इस अवसर पर प्रसादा बटता था गाय को ना मारने योग्य कहा जाता था गाय के लिए अघन्या शब्द का प्रयोग किया गया है लेकिन जब कभी घर पर अतिथि आता था तो गौ मांस भी खिलाया जाता था ऐसे भी साक्ष्य मिले है
वैदिक काल के आभूषण : कर्णशोभन कान का आभूषण होता था शरीर में पहनने वाला जो पूरा आभूषण होता था इसको कुरीर कहा जाता था निष्क गले में पहने जाने वाले आभूषण होता था अंगूठी को ज्योचिनी कहा जाता था
ऋग वैदिक अर्थव्यवस्था : ग्रामीण संस्कृति पशुचारण और कृषि पर आधारित थी जो है पशु पालन मुख्य व्यवसाय और कृषि गौण व्ययसाय था कृषि का इतना महत्व नहीं था संपत्ति का मुख्य स्रोत गोधन होता था आर्य मुख्यतः तीन धातुओं का उपयोग करते थे सोना कांसा तांबा इन तीनों धातुओं का उपयोग करते थे तांबे और कांसे के लिए आयस शब्द का प्रयोग किया जाता था
यह लोग लोहे से परिचित नहीं थे लोहे का प्रयोग उत्तर वैदिक काल में होना शुरू होता है ऋग वैदिक काल में एक ही अनाज था यौ (जौ ) का उल्लेख मिलता है वस्त्र बनाना यहां का मुख्य शिल्प था वस्त्र बनाती थी यह काम महिलाए घर पर करती थी
ऋग वैदिक काल में कपास का उल्लेख नहीं मिलता है जबकि सिंधु घाटी सभ्यता में मिलता है व्यापारियों को पणी कहा जाता था मुद्रा के रूप में निष्क और सतमान का उल्लेख होता था परंतु यह नियमित मुद्राएं नहीं थी
लोग बहुदेववादी होते थे बहुत सारे देवताओं की संख्या हो गई थी लेकिन इसके बाद भी कुछ लोग ऐसे होते थे जो एक ही ईश्वर पर विश्वास रखते थे धर्म मुख्यतः प्रकृति पूजा और यज्ञ पर केंद्रित था प्राकृतिक शक्तियों का मानवीकरण किया गया उनकी पूजा की गई
इसके अलावा जैसे इंद्र को वर्षा का देवता बना दिया गया अग्नि को देवता मान लिया गया हवा को देवता मान लिया गया ऋग्वैदिक देवकुल की देवियों की संख्या नहीं थी 33 देवताओं को तीन श्रेणियों में बांट दिया गया था पहले थे आकाश में निवास करने वाले देवता
आकाश के देवता : वरुण मित्र सूर्य पूषण विष्णु आदित्य धौस सबसे ऊपर स्वर्ग लोक वाले
अंतरिक्ष में निवास करने वाले देवता : बादल इंद्र वायु पर्जन्य यम प्रजापति यह देवता आपके अंतरिक्ष में रहते थे और धरती में रहने वाले देवता पृथ्वी अग्नि सोम बृहस्पति पृथ्वी पर रहने वाले देवता
धौस आकाश का देवता है ऋग वैदिक देवताओं में सबसे प्राचीनतम देवता के तौर पर मानते हैं इंद्र को समस्त संसार का स्वामी माना जाता था राजा था यह देवताओं का राजा था और वर्षा का देवता माना जाता था अग्नि को मध्यसता है देवताओं और मनुष्यों के बीच मध्यस्थ का काम करती है अग्नि को साक्षी लेते हैं विवाह भी होगा आपका तो अग्नि के चारों तरफ फेरे लगाने का कांसेप्ट है
इसके अलावा वरुण को ऋतस्य गोपा कहा गया है सोम एक पेय पदार्थ का देवता होता था गायत्री मंत्र जो है ऋगवेद के तीसरे मंडल पर उल्लिखित है इसकी रचना विश्वामित्र ने की जो सूर्य को समर्पित है
सूर्य की उपासना होती है सूर्य का मंत्र है और ऋग्वेद के तीसरे मंडल सूर्य को समर्पित है विश्वामित्र के द्वारा इसकी प्रशंसा की गई है
ऋग वैदिक धर्म की दृष्टि मानवीय और अलौकिक था इसमें मोक्ष की संकल्पना नहीं थी और उपासना की विधि प्रार्थना और यज्ञ हुआ करती थी यज्ञ के स्थान पर प्रार्थना का अधिक प्रचलन था ज्यादातर प्रार्थना ही की जाती थी यज्ञ बाद में बन गया कर्मकांड बाद में फिर ज्यादा बढ़ जाता है उत्तर वैदिक काल में
महत्वपूर्ण शब्द : राजा के लिए गोप्ता शब्द प्रयोग किया गया अतिथि को गोहंता/गोहन बोला जाता था युद्ध को गविष्टि/गेसू/गम्य शब्द प्रयोग किया गया है गाय के लिए अघन्या शब्द प्रयोग किया गया है हल के लिए लांगल शब्द प्रयोग किया गया है सीता शब्द का उपयोग खेत में हल चलाने के बाद बने निशान को कहा जाता है जो नालियां बन जाती हैं
बढ़ाई के लिए तक्षण शब्द प्रयोग किया गया है इसके बाद नाई के लिए वापती शब्द का प्रयोग किया गया है मरुस्थल के लिए धन्व् शब्द प्रयोग किया गया है अनाज के लिए धान्य शब्द का प्रयोग किया गया है और जूते हुए खेत को उर्बरा बोला जाता था चारागाह के लिए खिल्ल शब्द प्रयोग किया गया है सूदखोर के लिए बेकनाट शब्द का प्रयोग किया गया है
चारागाह प्रमुख को वाज्रपति कहा जाता था कुलप परिवार का प्रधान होता था परिवार का मुखिया होता था और गुप्तचर को स्पा कहते थे
वर्तमान में बहुत सारी नदियां है ऋग वैदिक काल में कुछ और नामों से जानी जाती थी जैसे कुरुमु नदी यह कुर्रम नदी हुआ करती थी कुभ्रा नदी को काबुल नदी बोलते हैं सिंधु की सहायक नदी है वितास्ता नदी झेलम का नाम था बिपाशा व्यास नदी को दृष्टवती घग्घर नदी को स्किनी चिनाब नदी को पुरुषनी रावी नदी को सतुद्री सतलज नदी को और गड़क जो सदानीरा हमेशा जिसमें जल हो
ऋग वैदिक काल में बहुत सी देविया रहती थी जैसे ऊषा सुबह की देवी, पृथ्वी , इसके बाद रात्रि होती है, अरियांदीयानी जो जंगल की रानी ईला देवी है इसके अलावा अदिति को भी बोला जाता था
ऋग वैदिक कला के प्रमुख यज्ञ : राजसूय यज्ञ तब होता था जब राजा सिंहासन पर बैठता था वाजपेय यज्ञ मनोरंजन और शौर्य प्रदर्शन से जुड़ा हुआ होता था अश्वमेघ यज्ञ तब होता था जब राजा को लगता था की मेरा राजीनीतिक विस्तार बहुत ज्यादा हो गया है तो घोड़े की बलि दी जाती थी और कुछ सैनिकों के साथ स्वतंत्र छोड़ दिया जाता था और जितने क्षेत्रों में जाता था वहां उस राजा का अधिकार हो जाता था उसको चुनौती देने वाले को युद्ध करना होता था युद्ध करना होता था
अग्निष्टोम यज्ञ यह अग्नि को समर्पित होता था देवताओं को प्रसन्न करने के लिए अग्नि में पशु बलि दी जाती थी
उत्तर वैदिक :
इसका समय 1000 BC से लेकर 600 BC तक माना जाता है इसमें क्षेत्रगत राज्यों का उदय होने लगा कबीले आपस में मिलकर राज्यों का निर्माण करने लगे यहां से आपका महाजनपद काल की पृष्ठभूमि हो जाती है सबसे बड़ी चीज थी उत्तर वैदिक काल से लोहे का आविष्कार हो जाता है करीब 1000 BC के आसपास
सबसे पहले लोहा देखने को गंगा-यमुना के दोआब क्षेत्र में अतरंजीखेड़ा में मिलता है तो अतरंजीखेड़ा से लोहे के प्रथम साक्ष्य मिलते है उत्तर वैदिक काल में वेद, अथर्ववेद में लोहे के लिए श्याम अयस /कृष्ण अयस शब्द का प्रयोग किया गया है इस काल में ही वर्ण व्यवस्था का उदय होता है
राजनीतिक व्यवस्था : यहां पर कबीलाई ढांचा टूट गया पहली बार क्षेत्रीय राज्यों का उदय होता है यहीं पर जन का स्थान जनपद लेते हैं धीरे-धीरे जनपदों का प्रारंभ होना शुरू होता है इसके बाद युद्ध गायों के लिए न होकर क्षेत्र के लिए होने लग जाते हैं क्योकि क्षेत्रवाद बढ़ना शुरू हो जाता है महाभारत का युद्ध क्षेत्र के लिए ही तो था
सभा और समितियों पर राजाओं पुरोहित और धनी लोगो का अधिकार हो गया विदथ को समाप्त कर दिया गया स्त्रियों को सभा की सदस्यता से बहिष्कृत कर दिया गया अब स्त्रियों को केवल समिति जनसाधारण में रखा गया राजा अधिक ताकतवर होने लगा शक्ति का केंद्रीकरण होना शुरू हो गया और राष्ट्र नामक शब्द की उत्पत्ति हुई यहां से ही राष्ट्र क्षेत्रों को राष्ट्र नामक तौर पर देखा जाना चालू कर दिया गया
टैक्स में वृद्धि कर दी गई तो बलि के अतिरिक्त भाग और शुल्क दो नए टैक्स लगा दिए गए टैक्स का स्वरूप बड़ा होना चालू हो गया राजा की सहायता करने वाले उच्चधिकारियों को रत्निन कहा जाता था राजा की कोई स्थाई सेना अभी भी नहीं होती थी
सामाजिक व्यवस्था की बात करें तो वर्ण व्यवस्था का आधार अब कर्म ना होकर के जन्म हो चुका था जन्म आधारित हो गई थी सभी लोग स्थाई जीवन जीने लगे थे यहां पर चार वर्णो में से ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र अस्पष्टता स्थापित हो गए थे और जो जिस वर्ण में जन्म लेता था उसी वर्ण का वह बन जाता था यज्ञ का महत्व बढ़ गया ब्राह्मणों की शक्ति में अपार वृद्धि हो गई येतेरेय ब्राह्मण में चारों वर्णों के कार्यों का उल्लेख मिलता है कि चारों वर्णों के क्या कार्य हैं इस काल में तीन आश्रम ब्रह्मचर्य गृहस्थ और बानप्रस्थ की स्थापना हुई चौथा जो आश्रम संन्यास आश्रम यह आपका महाजनपद काल में जोड़ा गया था
जबालो उपनिषद से सर्वप्रथम चारों आश्रमों का उल्लेख मिलता है स्त्रियों को शिक्षा प्राप्ति का अधिकार था धीरे-धीरे खत्म होना शुरू हो गए शुद्रो के शिक्षा के अधिकार को समाप्त कर दिया गया बाल विवाह नहीं होता था विधवा विवाह और नियोग प्रथा के साथ अंतरजातीय विवाह का प्रचलन प्रारंभ हो गया
लेकिन शुद्र को छोड़कर कोई भी किसी के भी साथ विवाह कर सकता था लेकिन यह स्थिति बाद में जटिल बहुत हो गई लेकिन स्त्रियों की दशा में गिरावट आई
अर्थव्यवस्था : इस काल में मुख्य व्यवसाय कृषि था क्योंकि लोहे की खोज हो गई स्थाई जीवन की खोज हो गई मुख्य फसल धान और गेहूं हो गई यजुर्वेद में व्रीहि शब्द का प्रयोग किया गया धान के लिए जौ के लिए यौ शब्द का प्रयोग किया गया है गेहूं के लिए गोधूम शब्द का प्रयोग किया गया है उत्तर वैदिक काल में कपास शब्द का उल्लेख नहीं मिलता है ऊन शब्द का प्रयोग हुआ है
उत्तर वैदिक सभ्यता भी ग्रामीण सभ्यता के तौर पर हुई थी यह कि ग्रामीण सभ्यता थी और इसके खत्म होने पर जब समाप्त होती है तो फिर नगरों का प्रारंभ हो जाता है हस्तिनापुर और कौशांबी यह प्रारंभिक नगर देखने को मिलते हैं नियमित सिक्के अभी भी प्रारंभ नहीं हुए थे सामान्य लेनदेन की वस्तु विनिमय प्रणाली द्वारा ही सामान्य लेनदेन होता था निष्क , सतमान ,पाद और कृष्ण माप की इकाईया होती थी सर्वप्रथम अथर्ववेद में चांदी का उल्लेख किया गया है लाल मृदभांड इस काल में सर्वाधिक प्रचलित है
धार्मिक स्थिति धर्म भी बहुदेववादी था यहां पर उद्देश था भौतिक सुखों की प्राप्ति प्रजापति विष्णु तथा रूद्र महत्वपूर्ण देवता होते थे यानी कि ब्रह्मा विष्णु महेश का कांसेप्ट यहां पर तीनों के काम बट गए रुद्र का काम होता था संहार करना समाप्त करना और विष्णु को काम था प्रजा पालन करना और ब्रह्म का काम किया था उत्पत्ति करना / सृजन करना
सृजन के देवता में प्रजापति का सर्वोच्च स्थान था पूषण शुद्रो के देवता होते थे यज्ञ का महत्व बढ़ गया जटिल कर्मकांडों का समावेश हुआ था मृत्यु की सबसे बड़ी चर्चा शतपथ ब्राह्मण से मिलती है और मोक्ष की सबसे पहले चर्चा में उपनिषद में मिलती है पुनर्जन्म की अवधारणा भी हमे उपनिषदों में मिलती है बृहदारण्यक उपनिषद् में सबसे पहले पुनर्जन्म के बारे में चर्चा मिलती है
आश्रम व्यवस्था का जन्म उत्तर वैदिक काल में तीन आश्रम कब जुड़े उत्तर वैदिक काल में चौथा आश्रम संन्यास जुड़ा महाजनपद काल पर तो छान्दोग्य उपनिषद में केवल तीन आश्रमों का उल्लेख था और जबालो उपनिषद में चारों आश्रमों के बारे में बात की गई थी
ब्रम्हचर्य आश्रम जीरो से 25 वर्ष तक काम पढ़ाई करना ज्ञान की प्राप्ति करना पुरुषार्थ इनका धर्म था ग्रहस्थ आश्रम 26 से 50 साल की उम्र काम संसारिक जीवन और पुरुषार्थ अर्थ और काम यानि संतान उत्पत्ति करना और अर्थ कमाना पैसा कमाना है बानप्रस्थ आश्रम 51 से 75 साल के लिए था काम था इनका मनन चिंतन और ध्यान करना जो समाज से लिया समाज को वापस करना और पुरुषार्थ मोक्ष की प्राप्ति की प्रिपरेशन करना और अंतिमा आश्रम था संन्यास आश्रम 76 से 100 साल तक मोक्ष के लिए तपस्या करना और पुरुषार्थ मोक्ष होता है मतलब जन्म-मरण के बंधनों से मुक्ति पा लेना
तो सभी आश्रमों में से सबसे महत्वपूर्ण आश्रम ग्रहस्थ आश्रम को माना जाता था क्योंकि इसी आश्रम में मनुष्य सभी प्रकार के पुरुषार्थों को उपयोग कर सकता था धर्म भी अर्थ भी काम भी बाकी में केवल एक ही था
क्योंकि आश्रम में मनुष्य त्रिवर्ग पुरुषार्थ धर्म अर्थ काम मोक्ष का एक साथ उपयोग करता था और इस आश्रम में त्रिऋण से निवृत्त हो जाता था 3 तरीके के हमारे ऊपर ऋण है पहला है ऋषि ऋण मतलब ग्रंथों का अध्ययन करना पीत्र ऋण पुत्र प्राप्ति जब आप कर लेंगे तो आप पिता के ऋण से मुक्त हो जाएंगे और तीसरा होता देव ऋण यज्ञ करने को देव ऋण बोलते थे तो यज्ञ कार्य भी आप करते थे शूद्र केवल एक ही आश्रम गृहस्त्र अपना सकते हैं
वर्ण व्यवस्था : वर्ण व्यवस्था दसवें मंडल में पुरुषसूक्त में चार वर्णो का उल्लेख मिलता है ऋग वैदिक काल में वर्ण का आधार कर्म था लेकिन बाद में उत्तर वैदिक काल में वर्ण का आधार जन्म को बना दिया गया और
विराट पुरुष का की ब्रह्मा के मुख से पुरोहित का उत्पत्ति हुई जिसका मुख्य कार्य तथा धार्मिक अनुष्ठान करना ब्रह्मा की भुजाओं से क्षत्रिय उत्पत्रि मुख्य कार्य होता था शासन कार्य करना धर्म की रक्षा करना वैश्य की उत्पत्ति ब्रह्मा के जांघों से हुई पेट से हुई उधर से हुई जिसका काम होता था कृषि या व्यापार वाणिज्य करना शुद्र की उत्पत्ति ब्रह्मा के पैरों से हुई जिसका कार्य सेवा कार्य होता था अन्य वर्णों की सेवा
उत्तर वैदिक काल में शूद्रों को गैर आर्य/दस्यु माना जाता था कर की अदायगी केवल एक ही वर्ग वैश्य करता था
विवाहों के प्रकार : समान वर्ण में विवाह हो एक ही जाति में विवाह हो गोत्रों को थोड़ा सा ध्यान में रखकर के समान गोत्र नहीं हो तो ऐसे विवाह को ब्रह्म विवाह कहा जाता था कुल 8 प्रकार का विवाह होता है ब्रह्म विवाह दूसरा होता दैव विवाह तीसरा होता आर्य विवाह चौथा है प्रजापत्य विवाह पांचवा असुर विवाह छठवां गंधर्व विवाह सातवां राक्षस विवाह और आठवा है पैशाच विवाह
तो ब्रह्म विवाह समान वर्ण में विवाह इसमें कन्यादान किया जाता है कन्या दान का मतलब हम किसी को कुछ वैल्यू दे रहे है कन्या को मूल्य समझा जाता है दैव विवाह पुरोहित के साथ विवाह किया जाता है दक्षिणा सहित इसको दैव विवाह करते हैं आर्य विवाह में कन्या के पिता को वर पक्ष 1 जोड़ी बैल प्रदान करता है मतलब लड़की के पिता को मिलता है
प्रजापत्य विवाह में बिना लेन-देन के योग्य वर के साथ विवाह अर्थात जिस विवाह में दहेज़ ना लिया जाये इसके बाद असुर विवाह जो सब लोग कर रहे हैं आजकल कन्या को उसके माता-पिता से खरीद कर विवाह
गांधर्व विवाह लव मैरिज प्रेम प्रेम विवाह यदि आप करते थे तो गंधर्व विवाह
राक्षस विवाह है कि कोई राजा है उससे लड़ाई लड़ी लड़ाई लड़ने के बाद उस राजा को पराजित किया उसकी बहन और पत्नी से उसकी इच्छा के विरुद्ध विवाह राक्षस विवाह कहलाता है और पैचास विवाह मैं सोती हुई स्त्री से नशे की हालत में या विश्वासघात के द्वारा किया जिसे लव जिहाद बोलते हैं
ऊपर कि तीन-चार सही ब्रह्म ,दैव विवाह, आर्य ,प्रजापत विवाह तो ठीक हैं बाकी के तीन नहीं करने चाहिए गंधर्व विवाह में कोई कमी नहीं है
तो ब्राह्मणों के लिए तीन विवाह थे ब्रहम, दैव , प्रजापत्य और आर्य विवाह ब्राह्मणों के लिए थे असुर विवाह केवल वैश्य और शुद्रो के लिए होता था और गंधर्व-विवाह केवल क्षत्रियों में होता था लेकिन स्वयंवर होता था तो लड़कियां अपनी योग्यता के अनुसार फिर विवाह करती थी यह एक शर्त रखती थी
भारतीय दर्शन : हमारे यहाँ छह दर्शन की बात की गई है पहला सांख्यदर्शन सांख्य दर्शन का प्रतिपादन कपिल मुनि द्वारा किया गया है इसका ग्रंथ सांख्यसूत्र है दूसरा योग दर्शन योग दर्शन के प्रतिपादक पतंजलि आधार ग्रन्थ योगसूत्र अगला है
न्याय दर्शन के प्रतिपादक गौतम है पुस्तक न्यायसूत्र इसके बाद वैशेषिक दर्शन के उलूक/कणाद हैं कणाद ऋषि थे जो आपका परमाणु बम और दुनिया भर की अणु परमाणु थे यह सब वैशेषिक दर्शन की देन है
इसके बाद है पूर्व मीमांसा जैमिनी ग्रंथ है पूर्व मीमांसा और उत्तर मीमांसा इसके है वादरायण /वेदा व्यास ब्रह्म सूत्र ग्रंथ है
महाजनपद काल :
अब यहां पर दो-तीन चीजें होती है एक बड़ी घटना घटती है धार्मिक क्रांति की थी एक प्राचीन धार्मिक आंदोलन होता है 2 बड़े आंदोलन निकलते हैं जो कि उत्तर वैदिक काल और वैदिक काल में कर्मकांडों की जटिल व्यवस्था विकसित हो चुकी थी तो वर्ण-व्यवस्था जटिल हो चुकी थी कर्मकांडों की स्थिति बहुत जटिल हो चुकी थी कर्म के आधार की जगह पर जन्म के आधार पर कर्मकांड हो चुके थे वर्ण व्यवस्था हो चुकी थी तो ऐसे में जीवन जो है कैसा हो गया था आडम्बर पूर्ण हो गया था यज्ञ और बली प्रधान बन चुका था
महा जनपद काल में आने से पहले बौद्ध धर्म और जैन धर्म को देखते है तो धार्मिक जीवन आडंबरपूर्ण हर चीज में कर्मकांड हर चीज में यज्ञ हर चीज में बलि और आपको जैसा कि पता है कि अर्थव्यवस्था कैसी थी कृषि प्रधान तो लगातार पशुओं की बलि देना यह सब कृषि कार्य के लिए भी जरुरी थे तो ऐसे में उत्तर वैदिक काल के अंत में धार्मिक कर्मकांडों पुरोहितों का प्रभुत्व और उनके विरुद्ध विरोध की भावना शुरुआत होती है विरोध की भावना प्रकट होती है तो उसके बाद उत्तर पूर्वी भारत में कृषि व्यवस्था का विकास धार्मिक आंदोलन की शुरुआत का मुख्य कारण था
क्योंकि एग्रीकल्चर के लिए पशुओं की सबसे अधिक जरूरत होती थी और एग्रीकल्चर के लिए पशु ही जरूरी थे तो ऐसे में दो अहिंसक धर्मों का जन्म होता है पहला रहता है जैन धर्म और दूसरा होता है बौध धर्म बौध धर्म से भी पुराना धर्म जैन धर्म वैदिक कालीन धर्म है ये ऋषभदेव का नाम ऋग्वेद में मिलता है जैन धर्म के संस्थापक यही थे ऋषभदेव/आदिनाथ के नाम मिलता है
जैन धर्म : जैन धर्म की स्थापना प्रथम तीर्थंकर थे जिनका नाम था ऋषभदेव/आदिनाथ था जैन धर्म को संगठित करने एवं विकसित करने का श्रेय वर्धमान महावीर को जाता है चौबीसवें तीर्थंकर थे इनके द्वारा किया गया
प्रतीक चिन्ह : आदीनाथ जिन्हें ऋषभ देव कहते हैं इनका प्रतीक चिन्ह सांड/बैल/वृषण था दूसरे अजितनाथ के हाथी तीसरे संभवनाथ का घोड़ा 30 ,मल्लिनाथ के कलस , नेमिनाथ के हैं नीलकमल ,अरष्टिनेमि का शंख और पार्श्वनाथ का सांप या सर्प महावीर स्वामी का सिंह
ऋषभदेव का उल्लेख ऋग्वेद यजुर्वेद अथर्ववेद श्रीमद भगवत गीता विष्णु पुराण भागवत पुराण में हुआ है ऋषभदेव का जन्म अयोध्या में हुआ था और इनकी मृत्यु अष्टथव/ कैलाश पर्वत पर हुई थी ऋषभदेव का प्रतीक चिन्ह सांड है
दूसरा पार्श्वनाथ 23वें तीर्थंकर थे जन्म वाराणसी में हुआ था पिता जो है वाराणसी के राजा थे नाम था अश्वसेन माता का नाम था वामा देवी पत्नी का नाम था प्रभावती ज्ञान प्राप्ति इनको हुई थी संवेद पर्वत पर और पारसनाथ की पहाड़ियों पर इन्होंने अपना शरीर त्याग दिया पार्श्वनाथ के अनुयाई निग्रंथ कहलाते हैं यही जैन धर्म का एक शाखा है
महावीर स्वामी : महावीर स्वामी जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर थे वास्तविक संस्थापक भी थे जन्म 540 BC में और जन्म स्थान कुंडग्राम पिता का नाम सिद्धार्थ यह वज्जी संघ के ज्ञातक कुल से थे माता का नाम त्रिशला जो लिच्छवि वंश के शासक चेतक की बहन थी पत्नी का नाम यशोदा पुत्री का नाम प्रियदर्शना /अमोज्जा दामाद का नाम जमाली जो इनका पहला शिष्य और पहला विरोधी भी था बचपन का नाम वर्धमान महावीर था
ज्ञान की प्राप्ति साल के पेड़ के नीचे रिजुपलिका नदी के तट पर जम्भिक ग्राम में इनको ज्ञान की प्राप्ति हुई 42 साल की उम्र में है पहला उपदेश इन्होंने वितुलाचल पर्वत पर दिया था जो कि राजगिरी/राजगृह में था निर्वाण इनको पावापुरी में मल गणराज्य के प्रधान शास्तिपाल के यहां पर 468 BC हो गया
जैन धर्म के पांच महाव्रत बताए गए हैं किसी भी जैन धर्म के मानने वाले को पांच महाव्रतों का पालन करना होता है पहला है अहिंसा है मतलब जीवों की हत्या ना करना दूसरा सत्य सत्य मतलब सदा सत्य बोलना तीसरा अपरिग्रह संपत्ति को एकत्रित ना करना चौथा आसतेय चोरी ना करना ब्रम्हचर्य स्त्री से संपर्क ना बनाना
ब्रह्मचर्य को महावीर स्वामी ने जोड़ा था जैन धर्म के त्रिरत्न पहला है सम्यक ज्ञान दूसरा है सम्यक दर्शन और तीसरा है सम्यक चरित्र सम्यक ज्ञान का मतलब वास्तविक ज्ञान सम्यक दर्शन मतलब जैन तीर्थंकर तथा उनके उपदेशों पर दृढ़ आस्था रखना उनपर विश्वास करना और सम्यक चरित्र का मतलब है इंद्रिय कर्मों पर पूर्ण नियंत्रण रखना ये तीन रत्न है
जैन धर्म की मान्यताये : अहिंसा पर विशेष बल दिया गया बड़े स्तर की अहिंसा को लोग स्वीकार करते हैं जैन धर्म के अनुसार कर्मफल ही जन्म तथा मृत्यु का कारण है जैन धर्म में वर्ण व्यवस्था की निंदा नहीं की गई है इसलिए लोग बौध धर्म में ज्यादा जुड़े इन्होंने वर्ण व्यवस्था को बनाए रखने जैसी बात की कि
जैन धर्म संसार की वास्तविकता को स्वीकार करता है सृष्टि कर्ता के रूप में ईश्वर को स्वीकार नहीं करता है भगवान को ईश्वर को नहीं मानता है लेकिन ईश्वर को अपने तीर्थंकरों से नीचे मानते है इनका मानना है कि सृष्टि का निर्माण ईश्वर ने नहीं किया किसी शक्ति ने नहीं किया बल्कि प्रकृति ने किया है
जैन धर्म में देवताओं का अस्तित्व है जैसे जितने भी देवता हैं जो भी आप मानते हिंदू धर्म में लेकिन उनका स्थान जिन से नीचे रखा गया है यह जिन का मतलब तीर्थंकर
आप कभी भी जाइएगा जैन टेंपल्स में सबसे ऊपर तीर्थंकर होंगे यदि तीर्थंकर नहीं है तो उनके प्रतीक चिन्ह होंगे उसके नीचे देवी-देवता होंगे जो हिंदू धर्म है तो सृष्टिकर्ता के रूप में ईश्वर को नहीं मानते देवताओं को मानते हैं लेकिन उनका स्थान जिन से नीचे हैं
जैन दर्शन ईश्वर और वेदों की सत्ता को अस्वीकार कर देता है मोक्ष और आत्मा को स्वीकार किया गया है मोक्ष यानी कि मरने के बाद जीवन का अंतिम समाप्ति अंतिम लक्ष्य मोक्ष हो सकता है इसको स्वीकार किया गया और आत्मा को भी स्वीकार किया गया दोनों चीजों को स्वीकार किया गया है जैन धर्म का दर्शन अनेकांतवाद ,स्यादवाद ,अनीश्वरवादिता से जुड़ा हुआ है यानि कि सृष्टि नित्य है इस दर्शन में सृष्टि की नित्यता को शामिल किया गया है
अनेकांतवाद का मतलब है कि जिस प्रकार जीव अलग-अलग होते भिन्न-भिन्न होते हैं उसी प्रकार उनकी आत्माएं भिन्न-भिन्न होते हैं इसे बोलते है अनेकांतवाद जैसे मेरे अंदर की आत्मा आपके अंदर कि आत्मा एक जैसी नहीं होगी यह जैन धर्म मानता है इनके अनुसार आत्मा परिवर्तनशील है अच्छा और बुरी आत्माओं का विभेद किया गया इसके अंतर्गत इसे बोलते अनेकांतवाद अनेकांतवाद जितने लोग हैं इतने उतनी प्रकार की आत्माएं
दूसरा स्यादवाद ज्ञान तत्व को प्रथक प्रथक दृष्टिकोण से इसके तहत देखा जाता है इनका कहना है कि प्रत्येक काल में जीव का ज्ञान एक नहीं हो सकता जिसे आज जो आपका ज्ञान है कल के दिन वह ज्ञान दूसरा हो सकता है प्रत्येक काल में व्यक्ति का ज्ञान अलग-अलग हो सकता है ज्ञान विभिन्न प्रकार से लगातार आपके अंदर बढ़ता जाता है और इसी को यह बोलते हैं सप्त भंगिय भी कहा जाता है इसको यानी कि ज्ञान आपके जीवन की विभिन्न अवस्थाओं में आपको अलग-अलग मिलता जाएगा इसलिए हर व्यक्ति चाहे तो वह मोक्ष प्राप्त कर सकता है मतलब यह नहीं कि आपकी आत्मा का रूप कुछ भी हो लेकिन आप अपने ज्ञान पर काम करेंगे तो इसलिए इसे अनेकांतवादी और स्याद्वादी विचारधारा से जोड़ते हैं
ज्ञान के विभिन्न सात प्रकार हो सकते हैं लगातार ज्ञान आपको इसको लिए इसे सप्तभंगियन भी कहा जाता है
अगला है अनीश्वरवादिता और सत्यनिष्ठता इस पर भी बात करता है जैन धर्म ईश्वर पर विश्वास नहीं करते है ईश्वर को विश्व का निर्माण कर्ता और नियंता नहीं मानते हैं इनके अनुसार सृष्टि आदिकाल से चलती चली आ रही है अनंत काल तक चलती ही रहेगी यानी सृष्टि को बनाने वाला ना तो कोई पैदा हुआ है यह शाश्वत नियम के आधार पर काम करती है इसी लिए इसे अनीश्वरवादीता और सृष्टि की नित्यता का सिद्धांत कहते है
जैन धर्म की मौलिक शिक्षाये :
जैन धर्म में संसार को दुख मूलक माना गया व्यक्ति को संसारिक जीवन की तृष्णाये घेरे रहती हैं और यही दुख का मूल कारण है संसार त्याग और संन्यास मार्ग ही व्यक्ति को सच्चे मार्ग पर ले जा सकता है यदि आप या तो संसार को त्याग दें और या तो संन्यासी हो जाएं तो आप सच्चे मार्ग पर आप जो है तब दुख से बच सकते यही एक तरीका है इनका और संसार के सभी प्राणी अपने अपने संचित कर्मों के अनुसार ही कर्म फल भोगते हैं जिसके जो कर्म होंगे उसी आधार पर उसको कर्म फल मिलेगा कर्म से छुटकारा पाकर ही व्यक्ति निर्वाण की ओर अग्रसर हो सकता है जब तक आप कर्मों से छुटकारा नहीं पायेंगे तब तक आप निर्वाण की ओर नहीं जाएंगे
पुद्गल : पुद्गल का मतलब यह है कि जैन धर्म कहता है कि प्रत्येक जीव में विद्यमान आत्मा जो होती है वह स्वभाविक रुप से सर्व शक्तिमान होती है सर्व-ज्ञाता होती है मतलब आपकी आत्मा सर्वशक्तिमान है उसमें स्पेशल पॉवर हैं वह सब कुछ जानती है उसे कुछ भी बताने की जरूरत नहीं लेकिन लोग पुद्गल में पड़ जाने के कारण से बंधन में पड़ जाते मुद्गल का मतलब है कर्म पदार्थ
जीवन बंधन में फस जाना संसार में फंस जाना तो मुद्गल का मतलब है जो लोग कर्मों के बंधन में फंस जाते हैं तो वह जो आपकी आत्मा है जो सर्वशक्तिमान है सर्व-ज्ञाता है तो वह कर्म बंधन में पड़ जाती है जब आत्मा में पुद्गल घुल मिल जाता है तो आत्मा में एक प्रकार कर रंग उत्पन्न होता है यह रंग लेश्य कहा जाता है और यह छह रंगों का होता है कहते हैं जब आप सांसारिक बंधनों में इतना घुल मिल जाओगे तो 6 तरीके का रंग उत्पन्न होता है काला नीला धूसर बुरे चरित्र का सूचक है यदि आप कर्म बंधनो फंस चुके हैं और पीला लाल सफेद अच्छे चरित्र का सूचक है
मुद्गल का मतलब है सांसारिक भव-बंधन जिसमें हमारी आत्मा आकर फंस जाती है तो पुद्गल से मुक्ति पाने के लिए त्रिरत्नो का कार्य करना पड़ेगा त्रिरत्न का मतलब सम्यक ज्ञान सम्यक दर्शन और सम्यक चरित्र इनका अनुशीलन करना अनिवार्य है जब कर्म पुद्गल का अवशेष समाप्त हो जाता है तो मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है जब पुद्गल हमारे शरीर से समाप्त हो जाएंगे तो हमें मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी
जैन संघ की स्थापना महावीर स्वामी ने पावापुरी में की थी संघ के अध्यक्ष सबसे पहले महावीर स्वामी स्वय ही थे इसके बाद अध्यक्ष सुधर्मन को बनाया गया और फिर जम्मू स्वामी इनको भी अध्यक्ष बनाया जाता है 3 अध्यक्ष हैं जम्मू स्वामी को अंतिम केविन कहा जाता है
संघ की संरचना : सबसे पहले तीर्थंकर जो होते थे इन्हें अवतार पुरुष माना जाता था दूसरा अरहंत मतलब जो निर्माण के बहुत करीब थे उन्हें अरिहंत कहां गया है और तीसरा है आचार्य मतलब सबसे ऊपर तीर्थंकर फिर अरिहंत इसके बाद आचार्य जैन संन्यासियों के समूह का प्रधान होता था उसे आचार्य कहा जाता था उपाध्यक्ष जैन धर्म के अध्यापन करने का काम जो संत होते थे उन्हें उपाध्यक्ष कहा जाता था भिक्षु और भिक्षुणियां यह संन्यासी जीवन व्यतीत करते थे
श्रावक-श्राविका एक गृहस्थ होकर संघ के सदस्य हो जाते थे जैसे हम गृहस्थ लोग हैं जैन धर्म को ग्रहण कर लें तो हम श्रावक-श्राविका सबसे ऊपर तीर्थंकर अवतार पुरुष कुल 24 तीर्थंकर हुए
निष्क्रमण : जैन संघ में प्रवेश के लिए एक विधि संस्कार है जैन संघ में ऊंच-नीच अमीर-गरीब का कोई भेद नहीं है
चंदना : यह भिक्षुनुओ के संघ के अध्यक्षा थी कि चंदना जो है चेलना : श्राविकाओं के संघ की अध्यक्षा थी
श्वेतांबर और दिगंबर : मगध में अकाल पड़ा और अकाल के दौरान पर भद्रबाहु के साथ कुछ लोग जो है दक्षिण भारत चले गए कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में जहा गोमतेश्वर की मूर्ति है कुछ यही मगध में ही रह गए तो कहते हैं कि जब अकाल पड़ा और वापस दिगंबर लौटे दिगंबर बोलते हैं जो दक्षिण भारत में भद्रबाहु के साथ चलें गए थे दिगंबर जैन संत नग्न में रहते हैं
श्वेतांबर है सफेद वस्त्र धारण करते हैं तो जो स्थूल भद्र के साथ मगध में रह गए थे जब शेताम्बर वापस आते है तो भद्रबाहु के लोगो ने आरोप लगाया कि अकाल पड़ गया होगा तो अपने धर्म का पालन नहीं किया होगा कुछ भी खाया होगा तो इनको मगध वाले क्षेत्रो में रहने वाले को श्वताम्बर कहा गया और जो दक्षिण भारत गए थे इनको दिगंबर कहा गया
दोनों में अंतर : श्वेतांबरों का कहना है कि मोक्ष प्राप्ति के लिए वस्त्र त्याग की आवश्यकता नहीं है लेकिन दिगंबर वस्त्र नहीं पहनते है कहते मोक्ष प्राप्ति करना तो अपने शरीर को जलाना पड़ेगा तपाना पड़ेगा
श्वेतांबरों का कहना है कि स्त्रियां भी मोक्ष की अधिकारी हैं दिगंबर कहते हैं कि स्त्रियों को निर्वाण संभव नहीं है इनको निर्वाण नहीं मिलेगा
श्वेतांबरों कहते हैं कि कैवल्य( ज्ञान ) के बाद भी भोजन की आवश्यकता पड़ती है दिगंबर कहते हैं कि जब हमें कैवल्य प्राप्त हो जाएगा तो हमे भोजन की जरूरत नहीं पड़ेगी
श्वेतांबर महावीर स्वामी को विवाहित मानते हैं कि विवाह किया था इन्होंने लेकिन दिगंबर का कहना है की विवाह नहीं किया था इतिहास कहता विवाह किया था
श्वेतांबरों जो है वह 19 वें तीर्थंकर मल्लीनाथ को स्त्री मानते हैं जबकि दिगंबर इनको पुरुष मानते हैं मतलब कि श्वेतांबरों को देखेंगे महिला सशक्तीकरण की बात करते हैं महिलाओं के अधिकारों की बात करते हैं दिगंबर बिल्कुल खिलाफ है कि निर्वाण नहीं मिल सकता
दिगंबर साहित्यो में ज्यादा विश्वास नहीं करते श्वेतांबर जो है वह अंग-उपांग प्रकरण छंद सूत्र मूल सूत्र आदि को मानते हैं और श्वेतांबरों के प्रमुख थे स्थूलभद्र और दिगंबरों के प्रमुख थे भद्रभाव है
और श्वेतांबरों से कई सारे और भी संप्रदाय निकल कर आए सितंबर से पुजेरा संप्रदाय निकलकर आया जो मूर्तिपूजक बन गया जैसे जो महावीर स्वामी की मूर्तियां बनाकर पूजा करते हैं डेरावासी मंदिरमार्गी मंदिर बनाकर जो पूजा पाठ करते है
धुडिया स्थानकवासी, साधुमार्गी ,तेरापंथी यह सारी ऊप संप्रदाय है मतलब श्वेतांबर के अंदर भी कई सारे उप संपदाएं दिगंबर के अंदर बीसपंथी, तेरह पंथी, तीस पंथी , गुमान पंथी और तोता पंथी
जैन साहित्य : जैन साहित्य को आगम कहा जाता है कुल 12 अंग हैं बारह उपांग ,10 प्रकीर्ण, 6 छेद सूत्र 4 मूल सूत्र जो ग्रंथ लिखे है अर्धमागधी में लिखे गए हैं प्राकृत भाषा में और भद्रबाहु ने कल्प सूत्र को संस्कृत में लिखा है
कुछ प्रमुख पुस्तकें हैं जैसे अचरांग सूत्र यह जैन मुनियों के जीवन के आचार्य नियम लिखे हुए हैं भगवती सूत्र में महावीर के जीवन कृत्यों और उनके समकालीनों का वर्णन किया गया है इसमें 16 महाजनपदों का उल्लेख है
नाय्धम्म्व कहा इसमें महावीर की शिक्षाओं का संग्रह है 12 उपांग जिसमें ब्राह्मणों का वर्णन है प्राणियों का वर्गीकरण है खगोल विद्या का काल विभाजन मरणोपरांत जीवन का वर्णन 10 प्रकीर्नो में जैन धर्म से संबंधित विधियों का वर्णन दिया गया है छेद सूत्र इसमें भिक्षुओं के लिए उपयोगी नियम और विधियों का संग्रह दिया गया है
थेरावाली इसमें जैन संप्रदाय के संस्थापको की सूची दी गई है नादी सूत्रों और अनियोगसूत्र में जैनियों के शब्दकोष हैं इसमें भिक्षुओं के लिए आचरण संबंधी बातें दी गई है अन्य जैन ग्रंथ जैसे कल्पसूत्र को भद्रबाहू ने संस्कृत में लिखी है द्रव्यसंग्रह नेमिचंद्र ने लिखी है कुबलय माला उद्योतन सूरि ने लिखी है श्यादवाद जरी मल्लीसेन ने लिखी है
जैन संगतिया दो जैन संगति हुई है पहली जैन संगति पाटलिपुत्र में हुई जो 320 BC हुई थी अध्यक्ष स्थूलभद्र थे इस सम्मेलन में जैन धर्म दो संप्रदायों में बट गया श्वेतांबर और दिगम्बर में द्वितीय जैन संगति बल्लभी गुजरात में हुई थी 512 AD के करीब में इसके अध्यक्ष क्षमा श्रवण या देवेर्धिगण थे बिखरे हुए ग्रंथों का संकलन किया गया
प्रमुख जैन तीर्थ स्थल : अयोध्या में पांच तीर्थंकरों का जन्म हुआ है प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का जन्म भी अयोध्या में ही हुआ था सम्मेद शिखर इसी पर पार्श्वनाथ ने अपना शरीर त्यागा था पावापुरी महावीर स्वामी ने निर्वाण प्राप्त किया था कैलाश पर्वत ऋषभदेव ने अपना निर्वाण प्राप्त किया था श्रवणबेलगोला यहां पर बाहुबली की गोमतेश्वर की प्रतिमा है हर 12 वर्ष में महामस्तिकाभिषेक नामक पर्व मनाया जाता है जैसे हमारे कुम्भ मेला होता है माउंट आबू में दिलवाड़ा का एक मंदिर है
अन्य बहुत सारे संप्रदाय इसमें छोटे-छोटे हैं पहला यापनीय संप्रदाय यह दिगंबरों की एक शाखा है और श्वेतांबर भी इसकी की मान्यताओं का पालन करते हैं
जैन धर्म को आश्रय प्रदान करने वाले राजा : महापदम नंद जैनी थी , घनानंद जैनी था , बिंबसार, अजातशत्रु ने तो जैन धर के साथ साथ बौध धर्म को संरक्षण प्रदान किया था उदियन जैनी था चंद्रगुप्त मौर्य ने तो कर्नाटक में जाकर संथारा के माध्यम से अपने शरीर को त्याग दिया था मतलब मृत्यु के पहले अपना खाना पीना सब छोड़ देते हैं बिंदुसार ,संप्रति जैन धर्म, चंद्रप्रद्योत, कलिंगराज खारवेल अमोघवर्ष और कुमार पाल इतने राजा थे जो जैन धर्म को इन्होंने आश्रय प्रदान किया
बौध धर्म :
बौद्ध धर्म की स्थापना महात्मा बुद्ध ने की थी प्रवर्तक सिद्धार्थ/बुद्धा थे 563 बीसी लुंबिनी वन कपिलवस्तु में इनका जन्म हुआ था पिता का नाम शुद्धोधन था शाक्य छत्रिय कुल से थे यह यह कपिलवस्तु के शासक थे कपिलवस्तु के शाक्यो के मुखिया थे माता का नाम महामाया कोलिय वंश की थी पालन-पोषण इनका जन्म के समय इनकी माता की मृत्यु हो जाती है तो पालन-पोषण उनकी सौतेली माता करती है मतलब पिताजी ने दूसरा विवाह कर लिया सौतेली माता उसको मौसी भी बहुत सारे लोग बोलते है जिनका नाम प्रजापति गौतमी था
पहली स्त्री का प्रवेश अपनी मौसी को ही देते हैं पत्नी यशोधरा दूसरे नाम भी है इसने बिम्बा/ गोपाल यह नाम भी मिलते हैं एक पुत्र की प्राप्ति भी व्यक्ति हुई थी राहुल नाम था उसका जन्म के समय बुद्ध की कुछ भविष्यवाणी की गई एक ब्राह्मण थे जिनका नाम था काल देव /कौनदिल्य भी बोलते थे भविष्यवाणी की और बोला कि आपका बेटा या तो चक्रवर्ती राजा बनेगा या तो संन्यासी बनेगा तो पिताजी को पहले वाले में तो कॉन्फिडेंस नहीं था दूसरे वाले में कॉन्फिडेंस ज्यादा था तो उन्होंने क्या किया पूरा सपोर्ट कर दिया कि बेटे को दुख का अनुभव नहीं होने दूंगा ताकि चक्रवर्ती राजा बने कही संन्यासी ना बन जाए तो ऐसे में उन्होंने सारे सुख सुविधाओं का व्यवस्था कराएं गांव को बिल्कुल इस तरीके से बना दिया कि दुख नाम की कोई चीज नहीं जिस वातावरण में इनको रखा गया इनको 29 साल की उम्र तक पता ही नहीं चला की दुख का अनुभव नहीं हुआ
उस व्यक्ति को दुख का पता ही नहीं है कि लोग मरते हैं लोग बूढ़े भी होते हैं लोग बीमार भी पढ़ते हैं पहली बार उसने 29 साल की उम्र में जिद की पिता से की अब बहुत बड़ा हो गया हु मुझे राजपाठ संभालना है तो मुझे एक बार तो पिता ने कहा कि बड़ा हो गया होगा 16 साल में शादी कर दी गई होगी पत्नी का प्यार इतना ज्यादा है कि वे कहीं जा नहीं पाएगा पत्नी छोड़ो बच्चा हो गया तो और कहीं नहीं जाएगा लेकिन भविष्यवाणी हो चुकी थी या तो राजा बनेगा या तो यह सन्यासी बनेगा
तो उन्हें लग रहा था कि सब कुछ मैंने अपना काम कर दिया है और गांव और शहर में ढिंढोरा पिटवा दिया कोई नहीं निकलेगा कोई बुढा घर से बाहर नहीं निकलेगा कोई बीमार घर से बाहर नहीं निकलेगा कोई मर जाएगा तो भी नहीं निकलेगा और बुद्ध जब घर से बाहर निकले तो सबसे पहले बूढ़े व्यक्ति को देखते हैं चन्ना नामक सारथी था तो बुद्ध पूछते हैं ये कौन है चन्ना बोला आने वाला तुम्हारा भविष्य है तुम भी ऐसे हो जाओगे बोले अच्छा अब इसके बाद एक बीमार व्यक्ति को देखते हैं तो पूछते है यह कौन है बोले शरीर में जब रोग दोष आ जाते हैं तो तुम ऐसे हो जाओगे तुम अभी भी हो सकते हो ऐसा इसके बाद एक मृत व्यक्ति को देखते हैं तो पूछते है ये कौन है बोले कि जब तुम्हारा जीवन समाप्त हो जाएगा तुम बूढ़े हो जाओगे मृत बीमार हो जाओगे तुम ऐसे हो जाओगे और जब मर जाओगे तो उसके बाद तुम को जला दिया जाएगा यहां पर लाकर करके और फिर अचानक एक संन्यासी को देखते हैं तो संन्यासी बिल्कुल मद मस्त था अपने आप में यह कौन है बोले यह जिसने संसार त्याग दिया है जब बुद्ध चार दृश्यों को देखते हैं उनका अपना राजपाठ से अपने पिता से अपनी पत्नी ने अपने पुत्र से मोह खत्म हो जाता है और सत्य की खोज में महाभिनिष्क्रमण करते हैं चार दृश्यों को देखकर सिद्धार्थ ने 29 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग कर देते हैं और बौद्ध ग्रंथों में इसी को महाभिनिष्क्रमण कहा जाता है
तो महाभिनिष्क्रमण की घटना होती है बुद्ध के जीवन में और गृह त्याग की घटना का उल्लेख पाली ग्रंथ में मिलता है सबसे पहले कि महात्मा बुद्ध ने गृह त्याग कर दिया घर छोड़ दिया और गृहत्याग के समय सिद्धार्थ जो है एक घोडा ले गए थे जिसका नाम था कन्थक और चन्ना को ले गए थे कि चल अब तू ही छोड़कर मुझे और सिद्धार्थ ने अनोमा नदी पर अपने घोड़ा और सारथि को छोड़ दिया बोला अब यहां के बाद मै चला जाऊंगा इसके बाद सिद्धार्थ से बुद्ध बनने तक की एक यात्रा है उनकी सिद्धार्थ तो घर से निकल गया लेकिन ज्ञान प्राप्त की यात्रा इतनी आसान नहीं थी छह साल का एक बड़ा लंबा समय लगा ज्ञान की खोज में सबसे पहले वैशाली पहुंचे और अलारकलाम के आश्रम में पहुंचे इनके पहले गुरु यही थे
और पहली बार जो अलारकलाम ने इन्हें तप की क्रियाएं बताई उपनिषदों के बारे में बताया ब्रह्मविद्या के बारे में बताया सब जगह पर यहां पर इन्होंने सीखा इसके बाद वैशाली से राजगीर पहुंचे राजगीर में रुद्र का राम पुत्र के आश्रम में पहुंचे यहां पर योग का ज्ञान लिया इसके बाद राजगीर से उरुवेला गए उरुवेला में मोहना तथा निरंजना नदी के संगम पर छह वर्ष तक तपस्या की बिल्कुल पतले दुबले हो गए कुछ बचा ही नहीं शरीर में तो उरुवेला में निरंजना नदी के संगम पर तपस्या करते करते बिल्कुल खत्म होने की स्थिति में आ गए थे तभी इनको सुजाता नाम महिला आती है और एक कथन के माध्यम से बुद्ध को समझाती है की बीड़े के तार को इतना भी मत खींचो की टूट जाए और इतना ढीला भी मत छोडो की उससे तो वाही से बुद्ध को विचार आने लगता है की ये सब बेकार की चीज है अब कुछ नहीं होने वाला है
और खीर खाकर तपस्या को तोड़ देते है छह साल तक व्यक्ति ने कुछ खाया ही नहीं केवल हवा और पानी में जी रहा था और जैसे ही खीर खाई वैसे ही तुरंत बैसाख पूर्णिमा की रात्रि को पीपल के नीचे बटवृक्ष के नीचे उन्हें सत्य का ज्ञान प्राप्त हो गया और इस घटना को संबोधि कहा जाता है यह ज्ञान उन्हें अपने समाधि के 49 में दिन प्राप्त हुआ था तो 49 वें दिन बुद्धा सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध बन जाते हैं
सत्य और ज्ञानप्राप्ति के बाद उरुवेला का यह क्षेत्र बोधगया कहलाता है धर्मचक्रप्रवर्तन गौतम बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति के बाद प्रथम उपदेश देने की घटना को धर्मचक्रप्रवर्तन कहते हैं और महात्मा बुद्ध ने अपना पहला उपदेश ऋषि पत्तन में दिया ऋषि पत्तन को ही बाद में सारनाथ कहा जाता है और यहां पर इन्होने 4 आर्य सत्य को बताया था बताया तो ये भी जाता है की बौद्ध अकेले नहीं थे तपस्या के समय इनके साथ 5 और लोग थे तपस्या के समय इन्होने सभी से खीर खाने के लिए कहा था लेकिन सभी ने मना कर दिया और खीर खाते ही ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है और बाकि लोगो को बुद्ध ने बाद में सारनाथ में ही ज्ञान दिया और यही इनके पहले शिष्य भी बने
चार आर्य सत्य : पहले बताएं दुख है इसको एक्सेप्ट करना पड़ेगा दुख है और दुख का कारण भी है और दुख का निदान भी है और दुख का निदान है दुख निरोध गामिनी प्रतिपदा है
अब बोला कि दुख से आप कैसे खत्म होंगे अष्टांगिक मार्ग पर चलकर के आप दुख को समाप्त कर सकते हैं अष्टांगिक मार्ग ही जो है दुःख के निदान का कारण बताया चार आर्य सत्य पहला क्या है दुख है इसका मतलब है संसार की सभी वस्तुएं कैसी हैं दुखमय है जो जन्म और मरण का दुष्चक्र है यह दुख का मूल कारण है कि हम इसमें बधे हुए है बस जन्म और मरण हो रहा है और कर्म के बन्धनों में फंसे हुए हैं दूसरा उन्होंने कहा कि दूसरा जो आर्य सत्य है दुख समुदाय इसमें बताया की दुःख कैसे उत्पन्न हो रहा है तृष्णा के कारण उत्पन्न और हमारी जरूरतों के कारण हो रहा है हम जितनी जरूरतें बढ़ाते जा रहे हैं वैसे हमें दुख बढ़ता जा रहा है और तीसरा आर्य सत्य उन्होंने बताया दुख निरोध दुख निरोध का मतलब है कि दुख के निवारण और निरोध के तृष्णा का उन्मूलन आवश्यक है हमे तृष्णा का पूर्ण उन्मूलन करना होगा और चौथा आर्य सत्य बताया दुख निरोध गामिनी प्रतिपदा यानी कि चौथे आर्य सत्य में गौतम बुद्ध ने दुखों के उन्मूलन के लिए अष्टांगिक मार्ग बताएं कि अष्टांगिक मार्ग के माध्यम से हम क्या कर सकते हैं दुखों को दूर कर सकते हैं
अष्टांगिक मार्ग : पहला सम्यक दृष्टि से मतलब वस्तुओं के वास्तविक स्वरूप का ध्यान रखना जो वास्तव में है दूसरा है सम्यक आशक्ति से ,द्वेष से , हिंसा के विचार से मुक्त हो जाना सम्यक् वाक् जो अप्रिय वचन है उनका परित्याग कर देना सम्यक कर्मांत हमारे अच्छे कर्म होने चाहिए का मतलब दान दया सत्य अहिंसा सत्कर्मों का अनुसरण जो अच्छे कर्म है वो हमें करना है सम्यक आजीव सदाचार के नियमों के अनुकूल जीवन जीना
सम्यक व्यायाम विवेक पूर्ण प्रयत्न करना सम्यक-स्मृति मिथ्या धारणाओं का परित्याग करना सच्ची धाराओं पर आस्था रखना और सम्यक समाधि का मतलब क्या है मन अथवा चित की एकाग्रता तो यह आठ चीजे यदि आप करेंगे तो आप दुखों से दूर हो जाएंगे
बौद्ध संघ की स्थापना महात्मा बुद्ध ने की सारनाथ में की बौध संघ का संगठन गणतांत्रिक प्रणाली पर आधारित है संघ में प्रवेश पाने के लिए न्यूनतम आयु 15 वर्ष होनी चाहिए थी माता-पिता की अनुमति आवश्यक थी बिना माता-पिता की अनुमति के आप संघ में प्रवेश नहीं पा सकते थे कोई अस्वस्थ व्यक्ति शारीरिक विकलांगता का व्यक्ति कोई ऋणी व्यक्ति कोई सैनिक और दास संघ में प्रवेश नहीं कर सकता था
उन्होंने बोला कि यदि कोई भी प्रस्ताव होगा यदि वहां पर कोई लोग नहीं माने तो मतदान कराया जाएगा बहूमत प्रणाली गणतांत्रिक प्रणाली मतदान दोनों तरीके से होगा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष बुद्ध ने पहली बार मतदान पद्धति का प्रयोग किया और गणपूर्ति 20 सदस्य कम से कम होने ही चाहिए तभी मतदान होगा कोरम व्यवस्था के जन्मदाता भी बौध धर्म में बुद्धा है
इसके बाद इन्होने संघ के अनुयायी को दो भागों में बांट दिया पहला बना दिया भिक्षु और भिक्षुणियां और दूसरा बना दिया उपाशक और उपासिका है उपासक वर्गो में हम ही लोग है भोगी/कामी व्यक्ति जो संसार बंधन में बंधे हुए नहीं छोड़ सकते तो यह सोर्स आफ इनकम होती हैं इनको जरूर रखना होता है क्योंकि चंदा दान-धर्म दक्षिणा कौन देगा तो बुद्ध ने भिक्षु और भिक्षुणियां एजेंट थे संन्यासी जीवन जीने वाले लोग थे और उपासक और उपाशिका जो गृहस्थ जीवन जीने वाले लोग थे और बौध धर्म का अनुसरण कर सकते थे और यह संन्यासी जीवन में जीने वाले लोग थे भिक्षु और भिक्षुणियां बुद्ध बहुत अच्छी इकोनॉमिस्ट थे इकोनामिक बहुत अच्छा ज्ञान था
इसलिए व्यापारियों को इनको जो चंदा खूब अच्छा दे सकें उन लोगों सबको प्रवेश को वर्जित नहीं किया सभी जातियों के लिए प्रवेश इन्होने सदस्यता दे दी चोर और हत्यारों को भी वर्जित रखते थे जो मर्डर करके आएगा चोरी करके आएगा
प्रारंभ में स्त्रियों को संघ में शामिल होने का अधिकार बुद्ध ने नहीं दिया परंतु जब गौतम बुद्ध जो है कपिलवस्तु पहुंचे तो उनकी सौतेली माता प्रजापति गौतमी थी उन्होंने इच्छा प्रकट की तो बुद्ध ने फिर वही भाई-भतीजावाद और पहले तो मना कर दिया था लेकिन आनन्द के आग्रह करने के बाद सबसे पहले प्रजापति गौतमी को प्रवेश मिलता है
तो बुद्धा इस बात को बोलते हैं कि यदि महिलाएं प्रवेश कर जाएंगे तो बौध धर्म जो है 500 साल तक भी नहीं जियेगा क्योंकि उनको ज्यादा कांफिडेंट महिलाओं को लेकर नहीं था पुरुषों पर कॉन्फिडेंस था की महिलाओ के प्रवेश कर जाने के बाद पुरुष लोग काम नहीं करेगे और सही बात है बौध संघो क्या हालत हो गई है सब जो है आस्तेय की बात करते हैं अपरिग्रह की बात करते हैं सोना नहीं रख सकते पर दुनिया भर के सब यही कंडीशन है वैवाहिक जीवन जी रहे हैं बौध संघो को स्थिति है इस समय बहुत अच्छी नहीं है इसीलिए उन्होंने शुरुआत में इस चीज का विरोध भी किया था लेकिन आनंद के आग्रह पर बुद्ध ने जो है अनुमति प्रदान की थी
इस प्रकार भिक्षुणी संघ की स्थापना सबसे पहले वैशाली में हुई और बौद्ध संघ की स्थापना सारनाथ में हुई थी कहीं कही पर कपिलवस्तु भी मिलता है क्योकि सबसे पहले यही पहुचे थे सौतेली माता प्रजापति गौतमी से जब मिलने तब
पहले मना कर देते हैं पहले उनकी माता बोलती है कि मुझे अपने संघ में शामिल कर ले लेकिन बाद में फिर शामिल करते हैं संघ में प्रवेश के समय बुद्ध त्रिरत्नों की बात करते हैं बुद्धम, संगम और धम्म
इन तीनो पर विश्वास करते हैं शपथ भी लेते है जो भी कोई जाता था तो यह त्रिरत्नो की शपथ लेनी पड़ती थी उसे और 10 प्रतिज्ञाओं को दोहराना पड़ता था 20 वर्ष की आयु पूर्ण करने के बाद पूर्ण सदस्यता दी जाती थी 15 वर्ष यदि आपके हो गई तो 5 वर्ष तक अस्थायी रहते थे पहले नियमों को सीखते थे और 20 वर्ष के बाद पूर्ण सदस्यता मिलती थी
महात्मा बुद्ध ने अपना कोई उत्तराधिकारी नहीं बनाया उन्होंने घोषणा किया कि मेरी मृत्यु के बाद धर्म और संघ ही संघ के जो नियम होंगे वहीं उत्तराधिकारी होंगे तो जो विनयपिटक सुत्तपिटक अभी धम्म पीटक है उसी के माध्यम से संघ चलाया जाएगा
बुद्ध ने दस सिद्धांत बताए थे पहला बताया था दूसरे के धन की इच्छा नहीं करना दूसरा झूठ नहीं बोलना तीसरा हिंसा से दूर रहना चौथा मादक पदार्थों से दूर रहना मादक पदार्थों का सेवन नहीं करना पाचवा व्यभिचार नहीं करना छठवां संगीत और नृत्य में भाग नहीं लेना सातवा सुगंधित द्रव्यों का उपयोग नहीं करना आठवा असमय भोजन नहीं करना नवा सुखप्रद बिस्तर पर नहीं सोना दसवां किसी प्रकार के द्रव्यों का संचय नहीं करना है 10 प्रकार के सील बौध धर्म से जुड़े हुए लोगों को मारना होता है
लेकिन शुरुआत के जो पांच सील है यह पांच सिद्धांत दूसरे के धन की इच्छा न करना झूठ नहीं बोलना हिंसा से दूर रहना मादक द्रव्यों का सेवन नहीं करना व्यभिचार नहीं करना इसका पालन करना उपासकों के लिए अनिवार्य था यानी जो गृहस्थ लोग थे उनको इसका करना है और संन्यासियों के लिए 10 के 10 सिद्धांत है
संघ के अधिकारी : नौकम्बिक : निर्माण से संबंधित अधिकारी होता था भंडागारी खान-पान से संबंधित अधिकारी होता था इसके अलावा कापिक्यकारी कर से संबंधित अधिकारी होता था चीवर वस्त्रागार का अधिकारी होता था और आमरीक आराम से संबंधित अधिकारी होता था
चैत और विहार इन दोनों में अंतर : चैत एक तरह का समाधि स्थल है इन समाधि स्थलों में महापुरुषों के शवादाह तथा धातु अवशेषों को सुरक्षित रखा जाता था आप देखेंगे जो चैत होता था चैत्र कहीं पर भी जाएंगे जो स्तूप है इस स्तूप के जो सबसे ऊपर वाले भाग को हरिमिका बोलते हैं
इन समाधियों में भूमि के अंदर ही गाड़ दिया जाता था और ऊपर एक भवन निर्माण रहता था इसे उपासना केंद्र भी कहते हैं यानी कि चैत्र एक पूजा स्थल है
दूसरा बिहार चैत्रो के पास ही बौद्ध धर्म के भिक्षुओं को रहने के लिए निवास स्थान बनाया जाता था यह आवास स्थान को ही बिहार कहते हैं
पवरना समारोह : मतलब क्या होता है कि वर्षा ऋतु होते हैं वर्षा ऋतु के चार महीने उसमें बौध धर्म का प्रचार का कार्य नहीं किया जाता यानी कि जो भिक्षु होते हैं वह विहारों में ही रहते हैं तभी आप देखेंगे जितनी गुफाएं बनाई गई है अजंता की ,एलोरा की ,अजेरा की गुफाये , नागार्जुनी गुफाएं यह रहने के लिए होती थी चार महीने जो होते थे गुफाओं को काट करके बौद्ध विहार बनाए गए वहीं पर चैत्यभूमि भी है उन गुफाओं की
वर्षा ऋतु की समाप्ति के बाद ही पवरण समारोह का आयोजन किया जाता था जिसमें सभी बोध भिक्षु चार माह तक क्या करते थे अपने अपराधों को अपने किए गए गलत कर्मों को स्वीकार थे
उपोष्ठ समारोह : इस समारोह का आयोजन कभी भी किया जा सकता कोई भी विशेष अवसर पर इसका आयोजन किया जा सकता है और इसके अंतर्गत भिक्षुओं के द्वारा धर्म पर चर्चा की जाती है
प्रमुख शब्द : पहला शब्द है नती -नेति -वृत्ति यह बौध संघ में अगर कोई प्रस्ताव लाया जाता था तो उसके लिए शब्द प्रयोग किया था इसके बाद प्रज्ञापक सभा में बैठने वाले व्यवस्था करने वाले अधिकारी के लिए शब्द प्रयोग किया जाता था
उपसंपदा जो है संघ की पूर्ण सदस्यता के लिए प्रयोग किया जाता था समरेंण प्रव्रज्या ग्रहण करने वाला व्यक्ति होता था
गौतम बुद्ध का धर्मोपदेश स्थान ; सबसे पहला उपदेश सारनाथ में दिया इसी को धर्म चक्र प्रवर्तन बोलते है दूसरा फिर गए यह उरुवेला गया में गए कश्यप गोत्रीय ब्राह्मण शिष्य को उपदेश दिया इसके बाद राजगिर गए राजगीर में बिंबिसार को बेलुबन में और शारी पुत्रि मोग्लायणको अपना शिष्य बनाया फिर इसके बाद बुद्ध अपने परिवार में गए कपिलवस्तु में गए और बुध परिवार को शिष्य बनाया
इसके बाद बुद्ध वैशाली गए गौतमी को प्रवज्या/भिक्षु संघ की स्थापना की वैशाली में इसके बाद पावापुरी में गए कहते हैं
सुकर्म मद्दक खाने से सुअर का मांस खाने से महात्मा बुद्ध की मृत्यु हो जाती हैं उन्हें अतिसार हो जाता है अतिसार का मतलब लूज मोशन पेचिश ऐसा कहते हैं इस कहानी में कितनी सच्चाई है अभी तक क्लियर नहीं है
बौद्ध धर्म के नियम के अनुसार आपको प्रतिदिन भिक्षा मांगनी होती है और जो भी भिक्षा मिलता है उसको ग्रहण करना होता है ज्यादा होता है तो दूसरों पर बाट देना होता है तो बुद्धा जब गए दीक्षा लेने के लिए तो जिसके घर पर गए उसके घर पर सुअर का मांस बना था अब बुद्ध घर के बाहर आए तो वापस नहीं कर सकते और उसमें दूसरा नियम है कि जो मिलेगा उसे ग्रहण भी करना उसे खाना भी यह जब बुधवार को मिलता है तो बुद्ध उसे खा लेते हैं और उसकी मजबूरी होती है वहीं परोसता है वो ऐसे में फिर बुद्ध अपने जीवन को समाप्त कर देते हैं अतिसार से 80 साल की उम्र में खत्म हो जाती है तो बुद्ध 45 वर्षों तक धर्मोपदेश देते रहे
भ्रमण काल के दौरान वह चंपा पश्चिम में कुरुक्षेत्र कपिलवस्तु कौशांबी तक की यात्रा कि उज्जैन नहीं गए बुद्ध कभी भी उज्जैन खुद ना जाकर अपने शिष्य महा कच्चायन को भेजा था
बौध धर्म की मानता और दर्शन : सबसे पहली बात बौध धर्म क्षणिक वादी है और दूसरा यह अंत: शुद्धवादी है इसके अलावे कर्मवादी है कर्म को ज्यादा प्रभाव कर देता है इसके अलावा यह कर्म का आशय कायिक और मानसिक चेष्टाओं से जो हम कार्य करते हैं शरीर के द्वारा जो हम सोचते हैं और जो हम बोलते हैं इनकी चेष्टाओं को कर्म कहा गया है
यह भी अनीश्वरवादी है यह भी ईश्वर को नहीं मानते हैं लेकिन पुनर्जन्म पर विश्वास रखते हैं बहुत धर्म अनात्मवादी है यानि कि यह आत्मा में विश्वास नहीं करते लेकिन पुनर्जन्म पर विश्वास करते हैं लेकिन बौध धर्म की एक शाखा है जिसका नाम है सामित्य में आत्मा को माना जाता है
बौध धर्म का मूल आधार चार आर्य सत्य हैं और बौध धर्म के त्रिरत्न बुद्धम संगम और धम्मं जो है बुध के चार महत्वपूर्ण घटनाएं इनके जीवन की पहला तो बुद्ध ने गृह त्याग किया गृह त्याग को महाभिनिष्क्रमण कहा गया दूसरा संबोधि संबोधि को ज्ञान प्राप्त हुए इनको प्रथम उपदेश को धर्मचक्रप्रवर्तन कहां गया और जब उन्होंने देवाशान/शरीर त्याग दिया तो उसे वहां पर महापरीनिर्वाण कहा गया
बुद्ध के जीवन की घटनाओं के प्रतीक चिन्ह :
जन्म का प्रतीक है कमल है और जब गर्भ में थे तो गर्भ का प्रतीक हाथी उनकी माता ने हाथी को देखा होता है स्वप्न को फिर वही हाथी को बताने के लिए कौदिल्य को बुलाते हैं वह 7 हाथी देखा था उन्होंने तो गर्भ का प्रतीक है यौवन का प्रतीक सांड है गृह त्याग का प्रतीक घोड़ा है घोड़े से किया था उन्होंने ज्ञान-प्राप्ति का प्रतीक बोधि वृक्ष है
शेर को समृद्धि के रूप में दिखाया गया है चक्र प्रतीक प्रथम उपदेश है उनका धर्मचक्रप्रवर्तन है और पद चिन्ह कहीं दिख जाते है तो बुद्ध के पदचिन्ह बने होते तो इसका मतलब निर्वाण की प्राप्ति है और कहीं पर स्तूप बना हो तो मृत्यु का प्रतीक है
बौध संगतिया : चार बहुत विसंगतियां हुई है प्रथम 483 BC में हुई है राजगीर में हुई है अध्यक्ष महाकश्यप और और संरक्षक अजातशत्रु था और यहीं पर सूत्रपिटक ,विनयपिटक की रचना की गई
दूसरी 383 BC वैशाली में अध्यक्ष थे सर्वकामी/सब्ब्कामी इनको स्थितियर यश भी बोलते हैं राजा था कालाशोक और यहां पर बौध धर्म दो भागों में बंट गया महासंघीक और स्थियरवादी यहीं पर स्थावरवादी और महासंघीय दो भाषाएं हो गई यही महासंघ आगे जाकर महायान धर्म में परिवर्तित हो जाएगी
तीसरी बौध संगति 250 BC पटना में हुई थी था अध्यक्ष मोगलतिस्स पुत्र राजा अशोक था अभिधम्म पिटक का संकलन किया गया एक चौथी बौध संगति जो करीब 98 AD में हुई थी कुंडल वन कश्मीर कुंडलवन में अध्यक्ष थे वासुमित्र प्रथम सदी के करीब में हुई थी राजा कनिष्क पर यहां पर बौध धर्म दो भागों में बंट गया हीनयान और महायान
बुद्ध के प्रमुख शिष्य :पहले हैं मलिक और तपस्सु दो शिष्य इसके बाद पंचवर्गीय ब्राम्हण इसके बाद सारी पुत्र मोद्लायन राहुल उनका पुत्र भी उनका शिष्य बन गया नंद उनका सौतेला भाई था वह भी शिष्य बन गया उपाली उनका शिष्य था आनंद आनंद के बारे में तो जानते हैं स्त्रियों को संघ में सदस्यता दिलाने में योगदान था इसका
जीवक के बारे में आपने सुना होगा जीवक यह बिम्बिसार के शासन में रहता था और यह एक तरीके से डॉक्टर था कि जब अवन्ती के शासक नरेश प्रदोत को सिर में दर्द हुआ तो उसके सिर के ढक्कन को खोलकर उसमें पूरी जड़ी-बूटी लगाकर पूरा बंद करके जीवक ही ने किया था शल्य चिकित्सा के बहुत बड़े डॉक्टर थे
इसके बाद बिंबिसार मगध का राजा भी इनका शिष्य बन गया अजातशत्रु अजातशत्रु जो है पहले महावीर स्वामी जैन धर्म का पक्ष धारित था बाद में गौतम बुद्ध से जुड़ गया इसके बाद प्रसेनजीत और इसके बाद महाकश्यप जो प्रथम बौद्ध संगीति के अध्यक्ष थे
बुद्ध की शिष्याये : पहली महाप्रजापति गौतमी सौतेली माता और प्रथम शिष्या यशोधरा पत्नी दूसरी शिष्या नंदा सौतेली बहन आम्रपाली आम्रपाली कहते हैं एक वेश्या थी विशाखा , क्षेमा बिम्बिसार की पत्नी थी और मल्लिका तो 7 प्रमुख शिष्याये है इनकी
प्रमुख बोधिसत्व : अवलोकितेश्वर/पदमपाणि भी बोलते हैं इनको हाथ में कमल लिए रहते हैं अजंता की गुफाओं में इन्हीं का चित्र बना हुआ है मंजूश्री यह भी बोधिसत्व ,वज्रप्राणी यह भी बोधिसत्व्, क्षितिगर्भ है एक है मैत्रेय ये आना वाला/भावी बोधिसत्व
बौध धर्म के संरक्षक : बिमिबिसार और अजातशत्रु ये मगध के राजा थे प्रसेन जीत कोशल नरेश थे , उदयिन वत्स्य नरेश थे,परदोत अवनति नरेश थे , अशोक और दशरथ मौर्य वंश थे कनिष्क कुषाण वंश का शासक था पुष्यभूति हर्षवर्धन शासक था और सह्सिवंश और पालवंश के शासकों ने संरक्षण दिया है
बौद्ध धर्म के अष्ठ स्थान : पहला है लुंबिनी ,बोधगया, सारनाथ चौथा कुशीनारा पांचवा श्रावस्ती छटवा संखिसा सातवा राजगिरी और आठवां वैशाली बुद्ध सर्किट डेवलप किया जा रहा है यहां पर
बौध धर्म की लोकप्रियता के कारण ; पहली चीज धार्मिक बाल विवाद से अलग रहा ज्यादा धार्मिक वाद-विवाद नहीं किया बुद्ध से अगर कोई भी पूछता था जैसे आप देखते हैं कि आत्मा को नहीं मानते तो बुद्धा से जब कोई लोग पूछते थे कि आत्मा क्या होती है तो चुप करा देते थे क्या पूछ लिया ऐसा ही होता था उन्होंने इस बारे में कुछ बोला ही नहीं जब वह कुछ बारे में बोलेंगे ही नहीं उन्होंने कहा की नि चीजो में क्या पड़ा है
क्यों इन चक्रों में पड़े हुए पुनर्जन्म के बारे में तो चर्चा इसलिए मिला क्योंकि जातक कथाओं में बुद्धा के पुनर्जन्म की कथाएं है तो ऐसा माना गया कि बुद्ध पूर्व जन्म मानते हैं नहीं तो फालतू बातें नहीं करते थे विश्व दूसरी दुनिया कि मरने के बाद क्या होगा यह क्या होगा इन सब चीजों पर कभी चर्चा ही नहीं की जो प्रश्न लेकर आते तो उसे शांत करा देते थे
इसीकारन से जनसामान्य को आकर्षित कर पाए वर्ण व्यवस्था की निंदा की बोले की यह गलत है सभी धर्मों के लोग जो है तो सभी धर्मों का समर्थन किया है बौध संघ को सभी जातियों के लिए खुला छोड़ दिया
ब्राह्मणवाद के विरोध में लोगों को बौद्ध धर्म में रुचि होने लगा इसके अलावा बुद्ध का व्यक्तित्व और उनकी पर्सनालिटी ऐसी थी कि लोग भगवान की तरह से मानने लग गए उपदेश प्रणाली बहुत अच्छी थी उनकी बोलते बहुत अच्छे थे जहां बोलते थे भीड़ लग जाती थी अंगुलिमाल को देख लो है उसी के साथ उसी को कुछ चमत्कार कर दिए तो ह्रदय परिवर्तन कर देते थे
उपदेश की भाषा लोकल लैंग्वेज चुनी थी जनसाधारण की भाषा जो लोग समझ पाए तो उपदेश की भाषा पालि भाषा थी संघ की स्थापना महत्वपूर्ण शासकों का सहयोग इन सब चीजों से लोकप्रिय हो गया
बौध धर्म और जैन धर्म में अंतर :
समानता : दोनों वैदिक सिद्धांतों को नहीं मानते थे दोनों वैदिक सिद्धांतों के विरोध में थे दोनों धर्म अनीश्वरवादी थे दोनों भगवान को नहीं मानते थे दोनों धर्म यज्ञ विवाद और कर्मकांडों का विरोध करते थे दोनों धर्मों द्वारा जातिप्रथा का और लिंगभेद की निंदा की गई दोनों धर्मों द्वारा पुनर्जन्म पर विश्वास किया गया दोनों धर्म पुनर्जन्म को मानते थे
असमानताए : जैन धर्म अहिंसा पर बहुत बल देता था बौध धर्म अहिंसा को कम बल देता था बुद्ध कहते थे कि जहां जरूरत पड़ जाए तो वहां पर यह कर सकते हैं कोई दिक्कत नहीं है अब जैसे कृषि कार्य करना है तो कृषि कार्य करने के लिए जैन धर्म उसमें भी रोक लगाता है कि कृषि करना ठीक नहीं है तो बुद्धा यह सब चीजों को नहीं वह जितना पॉसिबल हो सके इसलिए मध्यम मार्ग को चुना और हर बार बोलते थे मध्यम मार्ग पर ज्यादा बल देते थे
जैन धर्म आत्मा को सास्वत मानता है आत्मा है और हमेशा से जीव में आत्मा होती है लेकिन बौध धर्म ईश्वर और आत्मा दोनों को नहीं मानता है अनेकांतवाद के सिधांत के अनुसार हर व्यक्ति में आत्मा अलग अलग होती है
जैन धर्म आत्मवादी है बौध धर्म अनात्मवादी है जैन धर्म में कठोर तपस्या और आत्महत्या का वर्णन किया गया है जैसे सल्लेखना और संथारा
जैन धर्म आत्मवादी जीवन की कठोर तपस्या की बात करता है बौध धर्म ऐसा नहीं करता है जैन धर्म का विकास भारत के बाहर नहीं हुआ लेकिन बौध धर्म वैश्विक है इंटरनेशनल धर्म बन गया चीन आधा बौध धर्मी जापान बौध धर्मी तिब्बत पूरा बौध धर्म आसियान कंट्रीज बौध धर्म श्रीलंका बौध धर्म राजाओं ने इस काम को किया है अशोका ने सब जगह अभियान भेजा था
जैन धर्म वर्ण व्यवस्था की निंदा नहीं करता है लेकिन बौद्ध धर्म वर्ण व्यवस्था की निंदा करता है तो यह सब चीजें हैं इसी कारण से लोकप्रिय भी ज्यादा हो गया और लेकिन अब बौध धर्म को देखेंगे कि विश्व में तो हर जगह पर लेकिन अपने इस देश से ही गायब हो गया फिर क्योंकी हिंदू धर्म का संयंत्र बुद्ध को नवा अवतार बता दिया गया
बौध धर्म का विभाजन : हीनयान महायान इन दोनों में अंतर क्या है
हीनयान बुद्धा को एक साधारण आदमी मानते महापुरुष मानते हैं यह नहीं मानते भगवान है लेकिन महायान वाले बुद्ध को देवता मानते हैं भगवान मानते हैं कि ईश्वर है और जो हीनयान है यह कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति यदि अपने व्यक्तिगत प्रयत्न करेगा तो बुद्धा बन सकता है मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं यह सभी लोग बुद्धा बन सकते हैं यानि कि व्यक्तिवादी धर्म है हीनयान व्यक्तिवाद पर ज्यादा भरोसा करता है जब महायान पर सेवा परोपकार पर बहुत बल देता है यह मानते हैं कि सभी का कल्याण होना चाहिए इनका मानना है कि बोधिसत्व से गुणों का स्थानान्तरण होगा
जो हीनयान वाले हैं मूर्तिपूजा पर विश्वास नहीं करते हैं जबकि महायान वाले मूर्ति पूजा के पक्ष में हीनयान में साधना पद्धति कठोर है तथा भिक्षु के जीवन के हिमायती हैं जबकि महायान में सिद्धांत सरल व सुलभ हैं भिक्षुओं के साथ उपासको का भी महत्त्व रखा गया है हीनयान का साहित्य पालि है और महायान का साहित्य संस्कृत भाषा है
बौध धर्म के अन्य संप्रदाय : पहला है बज्रयान संप्रदाय जो आप तिब्बत वाले हिस्से पर देखते है इधर भी हिमाचल प्रदेश में भी वज्रयान का तंत्र मंत्र का प्रभाव पड़ गया है कोलकाता का जादू टोना बौध धर्म में घुस गया तो पूर्व मध्यकाल में बौध धर्म के अंदर तंत्र मंत्र का प्रभाव आ गया और तंत्र मंत्र के प्रभाव के कारण ही वज्रयान शाखा का तो यह वज्रयान का मतलब जो जादू टोना इस पर विश्वास करें
ये धर्म के साथ स्थापित करते हैं इनका कहना है कि मोक्ष की प्राप्ति के लिए पंच मकार होने चाहिए पांच मकार मतलब मद्द्य, मांस ,मैथुन, मुद्रा और मत्स्य खूब सेवन करो ईश्वर मिलेगा और जादुई शक्ति को प्राप्त करके मुक्त होने की संकल्पना की सब जादू है तो ये जादू पर बहुत भरोसा करते हैं और ज्यादातर क्षेत्र इनके केंद्र नालंदा विक्रमशिला सोमपुरी जगदल्ला और तंत्रवाद बौद्ध संप्रदाय में अपनाने वाले पहले सरवग्र मित्र नामक कोई बोधिसत्व थे वहीं तंत्रवाद को बौद्घ संप्रदाय में ले करके आए थे चक्र यान और सहजीवन का संबंध भी वज्रयान संप्रदाय से है
बौद्ध विद्वान : अश्वघोष यह कनिष्क के समकालीन थे और इन्होने एक पुस्तक लिखी बुधचरित्र ग्रंथ की रचना की इसके बाद नागार्जुन नागार्जुन बौद्ध दर्शन के माध्यमिक विचारधारा का प्रतिपादन किया इन्होंने शून्यवाद का प्रतिपादन किया है अगले है वसुबंधु जो है बौध धर्म का विश्व कोष कहे जाने वाले अभिधम्म की रचना की थी बुद्ध घोष कहे जाने वाली पुस्तक का नाम है विशुद्ध मार्ग हीनयान संप्रदाय का ग्रंथ है
प्रमुख साहित्य : तो इनमें त्रिपिटक सुत्तपिटक विनयपिटक अभिधम्म पिटक है सुत्तपिटक में बुद्धि के धार्मिक विचारों और उपदेशों का संग्रह है बुद्ध की शिक्षाएं बुद्ध की शिक्षाएं गद्य और पद्य दोनों का मिश्रण है इस पिटक में कुल पांच निकाय है दीर्घ निकाय मज्झिम निकाय संयुक्त निकाय अंगुत्तर निकाय और खुद्दक निकाय है
विनय पिटक में बौद्ध धर्म के अनुशासन संबंधी नियम है अभिधम्म पिटक दर्शन है दार्शनिक व्याख्या बुद्ध के उपदेशों और सिद्धांतों की दार्शनिक व्याख्या जो है अभीधम्म पिटक में है और तृतीय बौद्ध संगति में ही इसको संकलित किया गया था अशोक के टाइम पीरियड में वसुबंधु थे उन्होंने ही इसका संकलन किया था इसके अलावा प्रज्ञा पारमिता यह महायान संप्रदाय की सबसे महत्वपूर्ण दार्शनिक पुस्तक और लेखक है नागार्जुन है इसके बाद जातक इसमें भगवान बुद्ध के 84 हजार पूर्व जन्मों की 500 से अधिक गाथाएं हैं खुद्दक निकाय इसका दशवा ग्रंथ है इसके बाद थेरीगाथा , थेरगाथा जो भिक्षुओं द्वारा संघ बौद्ध भिक्षुओं द्वारा संस्कृत ग्रंथ है और थेरीगाथा जो यह बहुत भिक्षुओं द्वारा संकलित ग्रंथ है
बौद्ध धर्म का पतन कैसे हो गया : सबसे पहले चीज बौध धर्म में धार्मिक कर्मकांडों का प्रभाव बढ़ गया यहां पर भी मूर्ति पूजा को बढ़ावा मिलने लगा
दूसरी चीज पालि भाषा को त्यागकर संस्कृत को अपना लिया इन्होंने जनसाधारण की भाषा में गड़बड़ कर दिया मूर्ति पूजा का प्रारंभ कर दिया भक्तों से भारी मात्रा में दान लेना चालू कर दिया जो इनके मूल सिद्धांत थे उसी से यह लोग इधर-उधर भटकने लगे ब्राह्मण धर्म का पुनरुत्थान होने लग गया फिर से बौद्ध विहारों में कुरीतियां हो गई भोग विलास था हो गई स्त्रियों का प्रवेश हो गया इसके बाद कुछ शासकों द्वारा बौध विरोधी दृष्टिकोण अपना लिया गया जैसे कि पुष्यमित्र शुंग था उसने फिर बौद्ध धर्म के संरक्षण को समाप्त कर दिया
महाजनपद काल :
बौध साहित्य अंगुत्तर निकाय में 16 महाजनपदों के विषय में जानकारी मिलती है इसके साथ ही जैन धर्म के साहित्य भगवती सूत्र में महाजनपद काल के बारे में जानकारी मिलती है विदेशी विवरण भी कुछ मिलते हैं बहुत सारे विदेशी भी आते हैं उन विदेशियों के द्वारा भी यह जानकारी दी जाती है जैसे निआर्कास , जस्टिस ,प्लूटार्क है बहुत सारी विदेशी यात्री सिकंदर के साथ आए थे
तो सिकंदर के साथ आये सभी लोगो ने महाजनपद काल के बारे में जानकारी दी थी
16 महाजनपद काल और उनकी राजधानी : अंग अंग की राजधानी चंपा है दूसरा अवंती अवंती की उज्जैन इसी को महिष्मति भी बोलते थे काशी वाराणसी राजधानी थी इसकी कौशल कौशल की राजधानी कुशावती /श्रावस्ती थी इसके बाद कंबोज की इसकी राजधानी हाटक है कुरु की राजधानी हस्तिनापुर इसके बाद गंधार की राजधानी तक्षशिला इसके बाद अश्मक सबसे दक्षिणतम सबसे दक्षिण में यही था इसकी राजधानी पोटन/पैठन थी मगध की दो राजधानी थी एक तो गिरिव्रज/राजगीर/राजगृह भी बोलते है मल्ल की राजधानी कुशीनगर है मत्स्य मत्स्य की है विराट नगर इसके बाद वत्स्य है इसकी राजधानी है कौशाम्बी है वज्जी की है वैशाली ,पांचाल की है अहिक्षत्र या काम्पिलय ,चेदि की सुक्तिमती है शूरसेन की मथुरा है 15 महाजनपद नर्मदा नदी के उत्तर में है एक नर्मदा नदी के दक्षिण में है तो अश्मक आपका दक्षिण में है 15 ऊपर है और दूसरा महावास्तु में जिन जनपदों की सूची मिलती इसमें गंधार और कंबोज के स्थान पर सीबी एक पंजाब का क्षेत्र है और दर्शना मध्य भारत के क्षेत्र इनका उल्लेख किया गया तो महावस्तु यह भी एक बौध ग्रंथ है
महाजनपद काल में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता आहत सिक्का यहीं से पंचमार्क सिक्के यानि कि सिक्के का प्रचलन चालू हो जाता है महाजनपद काल के लोग उत्तरी काले मृद्भाँड़ो का प्रयोग करते थे
महाजनपदो की विशेषता : पहला है महाजनपद अंग-अंग की राजधानी है चंपा चंपा का प्राचीन नाम था मालिनी इसके बाद दूसरा क्षेत्र यह जो है आधुनिक जो आपका भागलपुर है और मुंगेर वाला क्षेत्र है यहाँ पर बिंबिसार के समय यहां का शासक ब्रह्मदत्त था और ब्रह्म दत्त को मगध के शासक ने पराजित कर अंग को मगध में मिला लिया इसको बाद अवंती अवंति की राजधानी है कि उज्जैन या महिष्मति उज्जैन जिला नर्मदा नदी तक मध्य प्रदेश के क्षेत्र में विकसित था और महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध के समकालीन यहां का शासक था चंडप्रद्योत था
पुराणों के अनुसार अवंती के संस्थापक हर्यंक वंश के लोग थे बिंबिसार ने वैद्य जीवक को चन्द्रप्रदोत के उपचार के लिए भेजा था लोहे की खान होने के कारण यहां पर एक प्रमुख एवं शक्तिशाली समन्वय जनपद बना हुआ था
इसके बाद अगला है वत्स्य इसकी राजधानी कौशांबी वर्तमान इलाहाबाद और बांदा जिला जो है और इस क्षेत्र में इलाहाबाद और मिर्जापुर का जिला है शासक जो यहां पर गौतम बुद्ध और बिम्बिसार के समकालीन उदयईन यहां का शासक था उद्यान के साथ चंद्रप्रद्योत एवं अजातशत्रु का संघर्ष हमेशा लगातार चलता रहा चंद्रप्रद्योत ने अपनी पुत्री वासवदत्ता का विवाह उद्दीन के साथ किया था और महात्मा बुद्ध के शिष्य पिंडोल ने उदयइन बौध धर्म की दीक्षा दी थी
कालांतर में अवंति ने वत्स्य पर अधिकार कर लिया और अंतिम रूप से शिशुनाग वंश ने वत्स्य को मगध में मिला लिया
अश्मक अश्मक की राजधानी है पोटन प्राचीन नाम इसका प्रतिष्ठान है क्षेत्र नर्मदा और गोदावरी नदियों के मध्य भाग जो है यहां पर इक्ष्वाकु वंश का शासन था एक मात्र महा जनपद है जो दक्षिणी भारत में है जातक के अनुसार यहां के शासक प्रवर अरुण को कलिंग पर विजय प्राप्त की और अपने राज्य में मिला लिया कालांतर में अवंति ने अस्मक राज्य पर विजय प्राप्त कर लीऔर पांचवा है काशी काशी आपका बनारस के पास है राजधानी बनारस वाराणसी काशी का संस्थापक था दिबोदास काशी का शासक अजातशत्रु था आपको शायद पता वह बिम्बिसार का विवाह हुआ था काशी नरेश के साथ कौशल के शासक ने काशी दान में दे दिया था कौशल की राजकुमारी से बिम्बिसार का विवाह हुआ था और दहेज़ में मिला काशी
अब क्या हो गया अजातशत्रु आ गया अब अजातशत्रु के समय कोशल नरेश ने काशी को छीन लिया वापस अजातशत्रु ने कहा ऐसा नहीं बनेगी बात नाना बिगड़ जाएगी फिर उसने युद्ध किया सब को बंधक बना लिया तो ऐसे में बोला कि काशी मेरे पास ही रहेगा और फिर पूरा बवाल हुआ था अजातशत्रु ने पिता बिम्बिसार को मार दिया
इसके बाद यह सब नाना मामा जितने थे इनको खत्म किया काशी को फिर ले लिया विवाह किया मामा की बेटी से विवाह करके इसके बाद अजातशत्रु का बेटा उदयींन मारता है अजातशत्रु को भी ऐसे ही मारते हैं बहुत खतरनाक था अजातशत्रु कहते हैं कि उस समय वैशाली संघ बहुत मजबूत हुआ करता था और वैशाली संघ इतना मजबूत था कि वैशाली संघ को छोड़कर कि उसने बाकी सभी क्षेत्रों को कैप्चर कर रखा था तो उसने क्या किया जाए तो इसको लेकर एक रणनीति बनाई उसके यहां पर जी वस्कार सेनापति मन्त्री था उसको देश निकाला दे दिया तो प्रतिशोध की भावना में वैशाली संघ में पहुंचा बोला मुझे भी अजातशत्रु से बदला लेना है तुम्हारा दुश्मन अब मेरा भी दुश्मन है देखो मुझे देश निकाला दे दिया अब वैशाली वालो को कहां पता कि यह एक चाल है पूरी सब कुछ है तो यह पहुंचा यहां पर और पहुंचने के बाद वस्स्कार ने सबसे पहले वैशाली संघ को आपस में लडवाया और कमजोर कर दिया
इसके बाद वैशाली पर आक्रमण करने के बाद अजातशत्रु ने वैशाली संघ पर भी कब्जा कर लिया अजातशत्रु मतलब हर तरीके से उसने युद्ध किया
काशी का सबसे पहला उल्लेख हमें मिलता है अथर्ववेद में
जातक के अनुसार राजा दशरथ एंव राम काशी के राजा थे ऐसा बताया जाता है इसके बाद यहां पर दो नदिया है वरुणा और अस्सी के संगम पर यह शहर बसा हुआ है सूती वस्त्रउद्योग है यहां पर बड़े स्तर पर जुलाहा वर्ग है जुलाहा उद्योग बहुत ज्यादा यहीं पर कबीर के पिता थे
कोसल कोसल की राजधानी श्रावस्ती/कुसावती/अयोध्या था सरयू नदी के किनारे हैं और बुद्ध के समकालीन यहां का शासक प्रसनजीत था महाकाव्य में इसकी राजधानी अयोध्या हुआ करती थी प्रसेनजित ने अपनी पुत्री बाजीरा का विवाह अजातशत्रु के साथ किया था और दहेज में काशी को दे दिए
कुरु कुरु राजधानी इंद्रप्रस्थ और हस्तिनापुर थी बुद्ध के समकालीन यहाँ के शासक कौरंड कहा जाता था इसका उल्लेख जो है महाभारत और अष्टाध्याई में मिलता है इस महा जनपद के अंतर्गत पूरा मेरठ मंडल मेरठ इसी के अंतर्गत आता था दिल्ली और हरियाणा का थानेश्वर वाला क्षेत्र है
पंचाली की बात करें तो पंचाल की राजधानी अहिक्ष्त्र या कम्पिलय है और यहां का शासक चाल्मी ब्रहमदत्त था इसके अंदर बरेली बदायूं फर्रुखाबाद का क्षेत्र शामिल था इसका उल्लेख महाभारत व पाद्नी की पुस्तक में मिलता है
सुरसेन सूरसेन की राजधानी मथुरा थी मथुरा वाला क्षेत्र है यहां पर यदुवंशी भगवान कृष्ण यहीं से हैं मेगास्थनीज की पुस्तिका इंडिका में शूरसेन का उल्लेख मिलता है और बुद्ध के समय यहाँ पर अवंती पुत्र यहां का शासक था
मल्ल मल्ल की राजधानी है कुशीनारा या पावापुरी यहां पर शासक था ओक्काव था यहां पर गणतंत्रात्मक व्यवस्था थी इस महाजनपद में महात्मा बुद्ध ने महा परिनिर्वाण प्राप्त किया है
वज्जी में मिथिला और वैशाली वाला क्षेत्र इस क्षेत्र में आठ गणराज्यों का संघ था विदेह ,वज्जी , लिच्छवी , ग्तातिव्क , कुंडग्राम ,भोज ,इक्वाक्ष और कौरव इतने गण राज्यों से मिलकर के वज्जी महाजनपद बना था गणतंत्रात्मक व्यवस्था होती और इसकी राजधानी वैशाली हुआ करती थी इक्शाव्क वंशी विशाल ने इसकी जो है स्थापना की थी
कंबोज कंबोज की राजधानी आपकी हाटक है वैदिक युग में राजपूर कहा जाता है यह पाकिस्तान के रावलपिंडी पेशावर काबुल घाटी का क्षेत्र है यहां पर यह क्षेत्र श्रेष्ठ घोड़े के लिए प्रसिद्ध था इसके अलावा महाभारत में यहां पर दो शासक हैं चंद्र वर्मण और शुद्धक्षण की चर्चा हुई है
चेदी महाजनपद चेदि की राजधानी है सूक्तमति यहां पर महाभारतकालीन राजा शिशुपाल का राज होता था शिशुपाल का नाम सुना है आपने सौ गालियां दी कृष्ण ने सौ के बाद सर उड़ा दिया सुदर्शन चक्र चलाया बुआ का लड़का था तो इस क्षेत्र में मध्यप्रदेश बुंदेलखंड का यमुना क्षेत्र है
गंधार गंधार की राजधानी तक्शिला यहां का शासक पुष्कर सरीन था बिमिबिसार के समय आधुनिक पेशावर रावलपिंडी का क्षेत्र शामिल था इस क्षेत्र में ऊनी वस्त्र के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था
मत्स्य मत्स्य की राजधानी है विराट नगर इसमें राजस्थान का अलवर जयपुर भरतपुर क्षेत्र शामिल था मनुस्मृति में मत्स्य का कुरुक्षेत्र पंचाल सुरसेन को ब्राह्मण मुनियों का अधिवास यानि कि ब्रह्मर्षि प्रदेश कहा गया है
मगध मगध की राजधानी गिरिव्रज है आधुनिक बिहार के पटना और गया को मिला दिया जाये तो और पुराणों में बौद्ध जैन ग्रंथों के अनुसार मगध पर सर्वप्रथम शासन को लेकर मतभेद है पुराणों के अनुसार मगध पर सबसे पहले वृहद् वंश का शासन था और बौद्ध ग्रंथों के अनुसार सर्वप्रथम हर्यक वंश का शासक था
तो पुराणों के अनुसार वृहदत वंश का शासक था संस्थापक वृहदत रहा होगा इसका नाम पुराणों में महाभारत के काल में भी आता है इसका ही पुत्र था जरासंध जो एक पराक्रमी राजा था कंस को हराया था इसने राज्य-विस्तार कहां तक किया था मथुरा तक किया था तो भगवान कृष्ण के कहने पर पांडव भीम ने इसका वध किया था कहते है इसको चमत्कारिक शक्तियां प्राप्त थी
लेकिन बौध और जैन ग्रंथ कहते हैं कि मगध का पहला शासक हर्यंक वंश था इसको पितृहंता वंश भी कहते है
क्योंकि सभी ने अपने पिता को मारा
हर्यक वंश :
इसको बोलते पितृहंता वंश इसकी स्थापना बिंबिसार ने किया था इसका जैन ग्रंथों में श्रेणिक नाम कहा गया बिंबसार ने विजयो और वैवाहिक संबंधो के द्वारा वंश का विस्तार किया
पहला विवाह लिक्ष्वी गणराज्य के शासक चेटक की बहन चेलना के साथ दूसरा विवाह कोसलनरेश प्रसनजीत की बहन के साथ किया महाकौशला से और तीसरा विवाह मद्र प्रदेश की राजकुमारी क्षेमा से किया
इसके बाद इसने पहले तो अंग महाजनपद को मिला लिया इसके बाद बिंबसार ने अवन्ती नरेश प्रसेनजित दोनों की मित्रता बहुत ज्यादा थी और चंद्र प्रद्योत पीलिया से पीड़ित हो गए थे पीलिया को पांडुरोग बोलते हैं तो पीलिया इलाज कराने के लिए इनको भेजा गया इसके बाद इनकी पुत्र ने इसकी हत्या कर दी
अजातशत्रु : अपने पिता की हत्या कर राजगद्दी पर बैठा इसका नाम था कुडिक कोसलनरेश प्रसनजीत को हराया पहले तो इसके बाद लिच्छवी गणराज्य की राजधानी वैशाली को जीत लिया इसने इसके बाद दोनों को मगध साम्राज्य का हिस्सा बना लिया कौशल को और इधर वैशाली को वज्जी संघ से युद्ध में दो नए हथियारों का प्रयोग इसने किया पहला था रथ मूसल यह एक टैंक होता था आधुनिक टैंक की तरह और एक महा शिला कंटक
वज्जी संघ को मगध में मिला लिया ठीक इसके बाद यह गौतम बुद्ध के समकालीन था ही बुद्ध के समय महापरिनिर्माण मोक्ष की प्राप्ति हुई इसके शासनकाल में प्रथम बौद्ध संगीति हुई फिर इसकी हत्या भी उदयइन ने कर दी
इसके बाद इसके बेटे उदयइन ने शासन को संभाला और इसका उपनाम था उदयभद्र और पाटलिपुत्र/पटना नगर की स्थापना इसने ही की थी इसने अपनी राजधानी बनाई पटना को राजगृह से पाटलिपुत्र बौद्ध ग्रंथों में इसे भी पितृहंता कहा जाता है यह जैन धर्म का पालन करता था इसकी हत्या भी किसी ने चाकू मारकर कर दी किसी अंजान ने निपटाया
इसके बाद इसके बच्चों ने कुछ समय तक शासन किया लेकिन शीघ्र ही जनता ने एक सुयोग्य व्यक्ति जिसका नाम था शिशुनाग जो इनका प्रधानमत्री हुआ करता था उसको अपना राजा बना लिया सुना और मगध में शिशुनाग वंश की स्थपाना हो जाती है
शिशुनाग वंश : इसका संस्थापक था शिशुनाग 412 से लेकर 394 BC तक इसका सबसे मुख्य कारण है अवंती राज्यों को जीतकर मगध में मिला लेना इसने पाटिलपुत्र से वैशाली राजधानी को स्थांतरित कर लिया है इसके बाद इसका बेटा आता है कालाशोक काला काला था बिल्कुल काकवर्ण भी बोलते हैं इसे इसकी राजधानी इसने फिर राजधानी वापस ले आया वैशाली से पटना फिर राजधानी पाटलिपुत्र ले आया इसके शासनकाल में द्वितीय बौध संगति का आयोजन किया गया और हर्षचरित्र के अनुसार महापदम नंद ने कालाशोक की हत्या कर दी और कहते हैं नंदी वर्धन महाननन्दिन शिशुनाग वंश का अंतिम शासक था
नंदवंश : शिशुनाग वंश के अंतिम शासक महानंदन की हत्या करके महापदम नंद ने नंद वंश की नींव डाली तो नंद वंश का संस्थापक कौन था महापदम नंद बौद्ध ग्रंथ में महाबोधिवंश में उसने उग्रसेन पुराणों में उसको जो है सर्वान्त्रक और एकराट कहा जाता बहुत सारे उपाधि ग्रहण कर रखी थी इसने
जैन ग्रंथों के अनुसार महापदम नंद नापित उसके पिता जो हैं inter-caste मैरिज की थी उनका यह पुत्र था पुराणों के अनुसार इसके बहुत सारे नाम बताए गए हैं कलि का अंश बताया गया है सभी क्षत्रियों का नाश करने वाला बताया गया है परुशराम का अवतार बोला जाता है महापदम नंद को अत्यधिक संपत्ति व सेना रखने वाला कहा जाता है
खारवेल के हाथी गुफा अभिलेख में महापदम नंद की कलिंग विजय की जानकारी दी गई है पाद्नी ने 14 महेश्वर सूत्र के माध्यम से संस्कृत भाषा का जन्म किया था तो पाड्नी इसके मित्र और इसके दरबार में रहते थे
घनानंद : नंद वंश का अंतिम शासक था पश्चिमी साहित्य यूनानी साहित्य में इसको अग्र्मिज या नाइ कहा जाता था और इसके शासनकाल में सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया था नंद वंश के शासक जो है जैन मत के पोषक थे चाणक्य की सहायता से चंद्रगुप्त मौर्य ने घनान्नद को मारकर मौर्य वंश की स्थापना कर दी
मगध के उदय के कारण : इस महाजनपद में सबसे पहले ही अनुकूल भौगोलिक स्थिति उपजाऊ मिट्टी थी यहां पर वन संसाधनों की पर्याप्तता थी तो उपजाऊ अनुकूलित भोगोलिक स्थिति के कारण से यहां पर अर्थव्यवस्था बहुत अच्छी दूसरा सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण जगह थी यहां पर चारों तरफ पहाड़ियां थी उन पहाड़ियों के कारण से यह स्थान सुरक्षित था जल्दी आक्रमण नहीं हो सकता था
दूसरा नगरीकरण इसका और लोहे की उपस्थिति होने के कारण से यहां पर नगरीकरण हो गया आहत सिक्के के कारण से भी मगध साम्राज्य का उत्कर्ष हो गया
सबसे बड़ी बात मगध सम्राज्य रूढ़िवादी समाज नहीं था बाकी के समाजों में यह था और साथ में यहां के शासकों में साम्राज्य विस्तार की लालसा थी अजातशत्रु जैसे यहां पर बड़े शासक थे तो उन्हें सम्राज्य विस्तार की लालसा थी इस कारण भी मगध सम्राज्य सभी महाजनपदों में सबसे बड़ा साम्राज्य था
महाजनपदों का उदय कैसे हुआ होगा आप सोचिए उत्तर वैदिक काल में ही यह पृष्ठभूमि बन रही थी नवपाषाण काल में तो धीरे-धीरे बस्तियां बननी चालू हो गई कबीले बनने चालू हो गए लेकिन धीरे-धीरे कृषि क्षेत्र का विस्तार हुआ होगा कृषि क्षेत्र का विस्तार हुआ होगा युद्ध और विजय की प्रक्रिया हुई होगी बहुत सारी वैदिक जनजातियों और अनार्यों का आपस में संपर्क हुआ होगा जनपदों का एकीकरण हुआ होगा कई जनपद आपस में मिल गए होंगे और महाजनपद बन गए होंगे या फिर कुछ महाजनपद अपनी आंतरिक और सामाजिक संरचना में होने वाले परिवर्तनों के कारण विकसित हुए होंगे तो ऐसे बहुत सारे कारण उपस्थित है जिसके कारण से महाजनपदों का उदय हो गया और यह 16 महाजनपद अस्तित्व में आ गए
और इनमें से एक महाजनपद सबसे प्रभावशाली बन कर निकला वह था मगध
महाजनपद कालीन प्रशासन : सबसे पहली चीज यहां पर राजा और राज्य की संकल्पना स्पष्ट हो गई उत्तर वैदिक काल में राजा और राज्य की संकल्पना तो स्टार्ट हो गई थी लेकिन यहाँ पर स्पष्ट इतना नहीं थी राज्य अपनी भौगोलिक सीमा बढ़ाने लग गए महाजनपद काल में स्थाई सेना रखी जाने लग गई पहले स्थाई सेना नहीं थी उत्तर वैदिक काल में ग्राम प्रशासन की छोटी इकाई थी पहले परिवार हुआ करता था प्रशासन की छोटी ईकाई जिसका प्रमुख मुखिया होता था अब क्या हो गया प्रशासन की छोटी ईकाई गांव बन गया
गांव से ऊपर जो है खटीक और द्रोंमुख में ये दो संस्थाएं और थी इसके अलावा टैक्स तीन प्रकार के टैक्स वसूले जाते थे बली भाग और कर यह तीन प्रकार के टैक्स होते थे कर देने वालों का आधार बढ़ा दिया गया आधार मतलब नए टैक्स पेयर जो लिए गए शिल्पियों से बोला गया तुम भी टैक्स दो व्यापारियों से बोला तुम भी टैक्स दो नए करदाता जोड़ लिया है
इसके अलावा सॉल्वकिक नामक अधिकारी जो है वह रिवेन्यू ऑफिसर होता था मतलब व्यापारियों से कर वसूलने वाले अधिकारी को सॉल्वकीक कहा जाता था इसके अलावा तुन्दिया और आकाशिया यह दो अधिकारी और होते थे यह कर वसूली करने वाले उग्र अधिकारी होते थे मान लो कोई टैक्स नहीं देता है तो इस मारपीट से टैक्स लेते थे यह जो भी अधिकारी 10 साल की जो सौल्किक जो है यह व्यापारियों से कर वसूलता था इस काल में राजतंत्र बहुत मजबूत होता था राजा का शासन हो गया था स्वतंत्र नौकरशाही हो गई थी ब्यूरोक्रेटिक सिस्टम डेवलप हो गया था एक स्थाई सेना का विकास हो रहा था यहां पर मुख्य विशेषताएं बन गई थी
वस्त्रकार मगध का मंत्री था कुछ इसी तरह से कौशल का एक मंत्री दीर्घ चरायण था ग्रामणिक ग्राम प्रशासनिक अधिकारी इस काल में कानून और न्याय व्यवस्था का भी जन्म हुआ सभा और समिति का लगभग महत्व समाप्त कर दिया गया क्योंकी बड़े बड़े राज्य हो गए थे राज्यों का स्वरूप बड़ा हो गया था जातीय संगठन प्रभावी होने लग गए थे सभा और समिति का कार्य स्वतंत्र नौकरशाह करने लग गए
प्रमुख अधिकारी : बल्कि साधक बली ग्रहण करने वाला ,शौल्किक शुल्क वसूल करने वाले अधिकारी , रज्जुक भूमि नापने वाला अधिकारी होता था द्रोण मापक अनाज की तौल करने का निरीक्षक होता था
महाजनपद कालीन अर्थव्यवस्था : नगरों का विकास होने लगा बड़े-बड़े क्यों क्योंकि लोहा आ गया कृषि कार्य आ गया युद्ध अस्त्रों का उपयोग होने लगा इस काल के महत्वपूर्ण विशेषता बन गए लोहे के कारण से बड़े युद्ध अस्त्र बनाए जाने लगे और तैत्तिरीय आरण्यक में सबसे पहले नगरों का उल्लेख किया गया है और बताया कि टोटल 60 बड़े बड़े नगर यहां पर डेवलप हो गए थे महाजनपद काल में राजगिरी श्रावस्ती कौशांबी चंपा काशी, साकेत अयोध्या ऐसे करके बड़े-बड़े नगर बन गए थे
अर्थव्यवस्था में सकारात्मक परिवर्तन के कारण से बड़ी सारी मजबूती मिली पहली बात लोहे के विस्तृत और विभिन्न क्षेत्रों का मिलना प्रारंभ हो गया विस्तृत क्षेत्र पर कृषि होने लगी विभिन्न फसलों का उत्पादन होने लगा विभिन्न नगरों का उदय होने लगा विभिन्न नगरों का विकास होने लगा हस्तशिल्प उद्योग का विविधीकरण और श्रेणियों का गठन होने लगा कर वसूली में नियमितता होने लगी अनिवार्यता होने लगी कर अदा करने वालो का विस्तार होने लगा लेनदेन एवं विनिमय के लिए आहत सिक्कों का प्रचलन होने लगा संगठित और सुनियोजित प्रशासनिक व्यवस्था का विकास होने लगा तो ये यह सारी चीजें जो है यहां पर डिवेलप हो गए थे
इसके बाद कुछ यज्ञ किए जाते थे फसल को तैयार किए जाने वाले यज्ञ किया जाता था जिसे अग्र हायन यज्ञ ग्रहण कहा जाता था सुत्तनिपात इस ग्रंथ में गाय को अन्नदाता वनदाता ,सुखदा कहां गया गृहपति यह शब्द बड़े और धनवान जमींदारों के लिए प्रयोग किया जाता था इस श्रेणी और युग में अंतर किया गया श्रेणी एक जैसा व्यापार करने वाली जो व्यापारी होते थे युग मतलब अलग-अलग व्यापार करने वाले जो व्यापारियों की संस्था थी से युग कहा जाता था
आहत सिक्कों की बात करें तो इस समय धातु के सिक्के बनाए जाने लगे सबसे पहले आहत सिक्कों की इसी समय प्रारंभ होता है बुद्ध काल पर ही गौतम बुद्ध का टाइम पर है और यहीं से चांदी के सिक्के शुरू हो जाते हैं भारत में चांदी के सिक्के तांबे के सिक्के इस तरीके के सिक्के चालू हो जाते हैं और इसमें सिक्कों की कुछ नाम रखे जाते निष्क ,स्वर्ण, मासक ,कनिकी, कसार्पण यह सारी सिक्के इस तरीके के सिक्के चलते हैं
इस काल में वेतन और भुगतान भी सिक्को द्वारा सैलरी भी आने चालू हो जाती है अब गाय नहीं सैलरी में सिक्के आने लगे समाज कैसा था गंधर्व विवाह प्रेम विवाह को अनुमति मिल गई राक्षस विवाह को क्षत्रिय समाज ने मान्यता दे दी है दहेज लेंगे तो यहां पर जितने भी विवाह होते हैं सब राक्षस विवाह होते हैं
पहले राक्षस विवाह केवल वैश्य और शुद्र ही किया करते थे अनुलोम विवाह पुरुष का उच्च वर्ण का होना चाहिए मतलब लड़की हमेशा उच्च कुल में ही जानी चाहिए प्रतिलोम विवाह की अनुमति नहीं थी
तो बहु विवाह का प्रचलन शुरु हो गया एक पुरुष कई पत्नियां रख सकता था बिम्बिसार ने ही तीन पत्नियों से विवाह किया था सती प्रथा का साहित्यिक साक्ष्य प्राप्त होता है यहां पर कहते हैं कि सती प्रथा की शुरुआत होती है सती प्रथा का साहित्यिक साक्ष्य प्राप्त होता है व्यवहारिक साक्ष्य नहीं
विधवा को अपनी संपत्ति के पति की संपत्ति का अधिकार होता था कुछ परिस्थितियों में विधवा पुनर्विवाह भी कर सकते थे दहेज प्रथा की शुरुआत महाजनपद काल से चालू होती है अच्छे से दहेज लेना देना शुरू हो गया
दहेज प्रथा की शुरुआत महाजनपद काल से हो जाती है जाति व्यवस्था का प्रसार चालू हो जाता है और महाजनपद काल में दास प्रथा का अत्यधिक विकास हुआ इस काल में दासों को कृषि कार्यो में लगाया जाने लगा इससे पहले दास केवल घरेलू कार्य के लिए होते थे
इस काल में दासों की खरीद बिक्री होने लगी क्यों खरीद-फरोख्त होने लगी क्योंकि कृषि का विस्तार होता है धर्म की बात करें तो इस काल में मुख्यतः बौद्ध धर्म और जैन धर्म का प्रभाव था ब्राह्मणवाद और पुरोहित वर्ग कमजोर स्थिति पर थे
छोटे छोटे प्रमुख संप्रदाय : जैसे नियतवादी , भाग्यवादी आजीवक सप्रदाय थे नियतवादी संप्रदाय : का मतलब सब कुछ पहल से ही नियत होता है सब ईश्वर ने लिख कर के दे दिया है हम बैठे हैं आप पढ़ रहे हैं भोजन मिल रहा है तो ठीक है नहीं मिल रहा तो भी ठीक है तो इसके प्रथम आचार्य नंदभक्ष इसी को आजीवक संप्रदाय कहते हैं जैन धर्म से जुड़ाव रखता है लेकिन वास्तविक संपादक थे मक्खलि गोसाल मक्खलि गोसाल के द्वारा यह बुद्ध के समकालीन थे इनके द्वारा आजीवक संप्रदाय या नियत वादी या भाग्यवती संप्रदाय का प्रतिपादन किया गया था
तो ये कर्म सिद्धांत को नहीं मानते थे उनका कहना था कि हम जो ये काम कर रहे हैं यह कुछ नहीं है सब बेकार है हाथ-पांव मारने से कुछ नहीं होगा
ये लोग अनीश्वरवादी थे कपड़े नहीं पहनते थे और बिंदुसार ने इसको आजीवक संप्रदाय को बिंदुसार जो अशोक का पिता था उसने संरक्षण प्रदान किया था और अशोक ने इनके लिए गुफाओं का भी निर्माण करवाया था बोले बनवा दो वरना बिना वस्त्र के पड़े रहेंगे
लोकायत दर्शन/संप्रदाय : दूसरे महापुरुष चार्वाक कहते थे कि जीवन को सुखमय जीना चाहिए चाहे खूब कर्ज लो चाहे सब कुछ गहने रख दो फिर भी खूब घी पियो और मस्त रहो
यह एक भौतिक दर्शन था पहले आचार्य बृहस्पति को माना जाता है इसका लेकिन इस विचार को इस दर्शन को प्रमुख तौर पर प्रवर्तक चार्वाक महोदय थे
इसा दर्शन के लोग परलोक को ,मोक्ष्य को , अलौकिक शक्ति को ईश्वरीय सत्ता को कर्मकांड को विश्वास नहीं करते थे इन सब चक्करों में मत पड़ो खूब खाओ पियो मस्त रहो कहां पड़े जो आप लोग की अगले जन्म में क्या होगा उसके अगले जन्म में क्या होगा कोई दूसरी शक्ति ईश्वर कोई कर्म करें यह सब बकवास है जीवन मस्त होना चाहिए
इनके अनुसार मानव् अपनी बुद्धि और इंद्रियों को जो महसूस कर सकता है वही सही है मतलब जैसे अब खा रहे हैं लग रहा है मीठा है अच्छा लग रहा और खाओ उसे जो चीज आप महसूस कर सकते हो जो अब जी सकते हो जो फील कर सकते हो वही आपको वही सत्य है बाकी सब मूर्खता है जब ईश्वर देखा नहीं कुछ नहीं तो यह यथार्थ को ज्यादा बल देते हैं
तो यह कर्म कांड पर विश्वास नहीं करते हैं यह कहते हैं कि मानव बुद्धि और जो इंद्रियां महसूस कर सकती है वही सत्य यथार्थ है इसके अनुसार प्रत्यक्ष अनुभव ही ज्ञान का एक मात्र साधन है
यह कहते हैं कि पृथ्वी जल वायु अग्नि यह हम सब देख रहे हैं यही वास्तविक दृश्य हैं बाकी सब तो जो पुनर्जन्म स्वर्ग-नरक मोक्ष भक्ति साधना उपासना से हमे कोई मतलब नहीं है
उच्छेदवाद का सिद्धांत/संप्रदाय : उच्छेदवाद का कहना है कि मृत्यु के बाद सब खत्म हो जाता है मतलब मृत्यु जैसे ही होता है आपका पूरा क्रेडिट जीरो हो जाएगा मरते ही सब कुछ जीरो | मरने के पहले फिर जो करना है करो ये कर्मफल के विरोधी थे कर्म का कहते है कोई फल नहीं मिलता मरने के बाद परलोक में कोई जज जस्टिस नहीं कोई स्वर्ग-नरक नहीं है
फिर करना क्या है कहते है की फिर खूब संसारिक सुख जियो खूब भोग करो जितने ज्यादा से ज्यादा चीजों को भोग सको खा सको एक तरह से यह लोकायत संप्रदाय का ही एक रूप था
अक्रियावादी संप्रदाय : इसका मतलब है कर्मों का कोई फल नहीं होता है और आत्मा शरीर अलग-अलग है दोनों एक दूसरे से कोई संबंध नहीं रखते शरीर जो करेगा उसका आत्मा से कोई संबध नहीं रहेगा क्योकि दोनों अलग-अलग है तो इससे आपकी आत्मा क्यों खराब होगी आप जो भी कर रहे है वो आपका शरीर कर रहा है आत्मा कहां कर रही है
और इसी से कहते हैं सांख्यदर्शन का भी आगे चलकर विकास होता है
नित्यवादी संप्रदाय : इनके अनुसार नित्यवादी का मतलब है कि संसार में कुछ चीजें नित्य है हमारा शरीर 7 चीजों से मिलकर बना है पहला है पृथ्वी दूसरा है जल तीसरा अग्नि चौथा है वायु पांचवा आकाश छठवा सुख-दुख और सातवा है आत्मा इन सभी से जीवन मिलकर बना है और इसी से जाकर फिर वैशेषिक दर्शन का जन्म होता है
वैशेषिक दर्शन का जन्म नित्यवादियों से और जो शांख्य दर्शन का जन्म अक्रियावादी से होता है
संशयवादी/संदेहवादी/अनिश्चयवादी संप्रदाय : इनके अनुसार जीवन संबंधी किसी भी प्रश्न का कोई सही उत्तर नहीं हो सकता है जीवन से आप जो भी प्रश्न पूछे जैसे की ईश्वर है या नहीं है तो इनके अनुसार है भी और नहीं भी है
भारत पर विदेशी आक्रमण : कुछ विदेशी आक्रांता भी इसी दौरान पर आये थे पहले थे पारसी ईरानी आक्रमण भारत में हुआ इरान में इस समय हखमनी वंश का शासन था भारत में पहला विदेशी आक्रमण हख्मनी वंश के शासको के द्वारा किया गया था
इस वंश का संस्थापक था साइरस दितीय इसको कुरुष भी बोला जाता है लेकिन भारत में जिस व्यक्ति ने पहली बार आक्रमण किया था उसका नाम था दारा प्रथम/डेरियस प्रथम जो साइरस का ही उत्तराधिकारी था
तो डेरियस प्रथम द्वारा 516 ईसा पूर्व कंबोज पश्चिमी गंधार सिंधु क्षेत्र पर विजय प्राप्त कर ली अब उसका प्रभाव क्या पड़ा भारत का पश्चिम के साथ संबंध बहुत अच्छे हो गए विदेशी व्यापार को बढ़ावा मिला बल प्रदान हुआ खरोष्ठी लिपि का विकास हुआ खरोष्ठी लिपि समझते हैं जो उर्दू है उर्दू की लिपि भी खरोष्ठी लिपि है
यूनानी आक्रमण : मकदूनियाई मेसिडोनिया निवासी सिकंदर का आक्रमण हुआ भारत में ,सिकंदर स्थानीय शासक फिलिप द्वितीय का पुत्र था स्थानीय शासक था और भारत पर 326 ईसा पूर्व विश्व विजेता का सपना लेकर के भारत को जीतने के लिए निकला था
तो सिकंदर का भारत विजय अभियान शुरू हुआ तो खैबर दर्रे से आया था सबसे पहले उसने कई जातियां जो जब-जब भारत की तरफ प्रवेश करा था खबर दर्रे से तो यह आपका जो हिंदूकुश पहाड़ियों है वहीं से प्रवेश किया तो अश्वजित, निशा और अश्वक जातियों को हराया पहले छोटी-छोटी जातिया थी
इसके बाद तक्षशिला का शासक अम्भी मिलता है उसे सबसे पहले अम्भी को भारत का पहला गद्दार कहा जाता है क्योंकि जैसे ही सिकंदर आया तो उसके सामने उसने आत्मसमर्पण कर दिया किसी भी तरीके से लड़ा ही नहीं और पोरस के खिलाफ उसने युद्ध करने की सलाह दी क्योंकि अम्भी और पोरस की आपस में नहीं बनती थी और पोरस बहुत आत्मसम्मानी शासक था तो सिकंदर से जा मिला अम्भी और इसने ही पोरस के साथ युद्ध करने के लिए बोला और अम्भी के साथ एक और शासक शशि गुप्त था जो सिकंदर के सामने आत्मसमर्पण किया था उसी क्षेत्र में तो एक युद्ध हुआ जिसको हम वितस्ता का युद्ध/झेलम का युद्ध /कार्की का युद्ध बोला जाता है इसमें पोरस की हार होती है लेकिन पोरस की वीरता से प्रसन्न होकर सिकंदर ने उसका राज्य वापस लौटा दिया पूरा का पूरा और अम्भी का भी राज्य इसे ही दे दिया और पोरस से मित्रता कर ली
इसके बाद सिकंदर और आगे बढ़ा आगे बढ़ने व सिकंदर की सेना ने व्यास नदी को पार करने से मना करती है क्यों मना कर दिया ऐसा कहते हैं की सेना थक चुकी थी बीमारी से ग्रस्त हो गई थी पूरा इनवायरमेंट ही बदल गया जिसके कारण से उसकी सेना बीमार हो गए
कुछ लोग कहते हैं उन्हें भारतीय शौर्य की जानकारी मिल गई थी कि भारतीय लोग बहुत पराक्रमी होते हैं तो नंद वंश के शासक जो घनानंद थे ऐसा बोला जाता था कि इनके पास बहुत बड़ी सेना थी यहीं से जल मार्ग और स्थलमार्ग से वापस देश जाने लगे तो स्वदेश से 10 माह बिताने के बाद सैनिक घर जाना चाहते थे
इस घटना के बाद सिकंदर के विजित प्रदेश को सिकंदर ने अपने सेनापति फिलिफ को सौप कर चला गया वापस और रास्ते में बेबीलोन में ही इसकी मौत हो गई और भारत में दो नगरों का नाम भी रखा था एक नगर का नाम अपने घोड़े बुकाफेला के नाम पर रखा था और अपने विजयी स्मृति में एक नगर का नाम निकैया रखा था फिर इसके बाद सिकंदर की अंतिम विजय पाटन राज्य के विरुद्ध हुई थी और जन्म जो है इसका मक़दूनिया यूरोप में हुआ था मृत्यु वेबिलोन एशिया में हुआ था अंतिम संस्कार इसका सिकंदरिया में किया गया अफ़्रीका में हुआ था एक मात्र महापुरुष है जिसका जन्म मृत्यु अंतिम संस्कार अलग-अलग देशों में हुआ है इतिहास में
मौर्यकाल :
मौर्यकाल के लिए जानने के स्रोत किसी चीज को भी जानना है तो दो ही स्रोत हो सकते हैं क्योंकि ऐतिहासिक काल में प्रवेश कर चुके हैं यहां पर लिखित स्रोत होंगे तो पुरातात्विक स्रोत होंगे या तो कुछ चीजें पाई गई होंगी हो या तो कुछ चीजें लिखी पाई गई होंगी तो लिखी पाई गई चीजें हैं साहित्यिक रूप में एक बौध और दुसरा जैन साहित्य हैं
बौध साहित्य के दीपवंश में, महावंश में दिव्यावदान में जातक कथाओं में मौर्य वंश के बारे में जानकारी मिलती हैं
पुरातात्विक साक्ष्य के रूप में मिले हैं सबसे पहले चंद्रगुप्त मौर्य के अभिलेख बहुत सारी मिले हैं अशोक के अभिलेख मिले हैं रुद्रदामन का अभिलेख मिला है मृदभांड बहुत मिले हैं और बहुत सारी स्थापत्य कला मिली है और एक बहुत बड़े महापुरुष थे चाणक्य उनकी एक पुस्तक अर्थशास्त्र उससे भी मौर्यकाल के बारे में बहुत जानकारी मिलती है तो मौर्यकालीन इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ कौन है विष्णु गुप्त या चाणक्य कौटिल्य का अर्थशास्त्र इसकी रचना संस्कृत भाषा में की गई थी यह राजनीति और लोक प्रशासन की पुस्तक है ना कि इकॉनामिक यह गद्य और पद्य में महाभारत शैली में लिखी गई पुस्तक है चाणक्य को भारत का मैक्यावली कहा जाता है
मेगस्थनीज की इंडिका यह भी एक दूसरे इंपोर्टेंट सोर्स है कहते हैं इंडिका तो नहीं मिली जो मेगास्थनीज आया था इंडिका अपने साथ ले गया और वहां खो गई लेकिन इंडिका उस दौरान उसको ध्यान में रखकर के बहुत सारे लोगों ने इंडिका का रेफ्रेंस दिया था तो मेगस्थनीज सेल्यूकस का राजदूत था और चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया था
मेगास्थनीज ने चंद्रगुप्त मौर्य को एक नाम सैंड्रोकोटस दिया था इंडिका में क्या-क्या लिखा इसने : भारत के लोग बहुत संपन्न लोग थे इस समय चोरी नहीं होती थी घरों में ताले नहीं लगाए जाते थे उसने बोला यहां अपराध नहीं थे न्यायालयों की जरूरत नहीं थी भारतीय लोग ब्याज नहीं लेते थे बहु-विवाह प्रचलित थी केवल धनी लोग ही बहु विवाह करते थे सती प्रथा का प्रचलन नहीं था जाति समाज का मूल आधार था जाति व्यवस्था का पालन करना अनिवार्य हो गया था दास प्रथा प्रचलित नहीं थी यहां पर इंडिका में यह बात इसने लिखिए कि दास प्रथा का प्रचलन नहीं था इंडिका में बताया गया की दास प्रथा नहीं था बाकी सब जगह पर मिलता है कि दास प्रथा थी भारतीय लोग लेखन कला से अनभिज्ञ थे
इंडिका के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था कैसी थी भारत की अर्थव्यवस्था जो यहां पर कृषक वर्ग थे वे धनी थे यहां पर अकाल नहीं पड़ता था कभी भारत में मुख्य व्यवसाय कृषि होता था पैतृक व्यवसाय का प्रचलन होता था सोना खोदने वाली चीटियों का उल्लेख किया है कि लोग चीटी रखते थे
भारतीय घोड़े और विशेष प्रकार से एक सींग वाले घोड़ों की भी उसने चर्चा की है जिनका नाम उसने कार्टेजन दिया है उसने एक नदी की भी चर्चा की है जिससे सोना निकलता था वह स्वर्ण नदी हो सकती है धर्म की स्थिति उसने कहा कि ब्राह्मण धर्म की विशेषता थी ब्राह्मण धर्म का बोलबाला था लोग पुनर्जन्म में विश्वास करते थे श्री कृष्ण और शिव की पूजा की जाती थी श्रीकृष्ण के लिए इसने शब्द प्रयोग किया उसने हेराक्लीज़ और शिव के लिए प्रयोग किया डायोनिसस मिलता है राजा अत्यधिक शक्तिशाली था राजा की अंगरक्षक महिलाये भी होती थी अपराध कम होते थे और दंड का प्रावधान कठिन था सार्वजानिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर मृत्यु दंड तक का प्रावधान था राजा न्याय प्रिय और जनता शांत और सुखी होती थी
मौर्यकालीन राजा :मौर्य शब्द बहुत विवादित है क्योकि ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार बोला गया है कि मौर्य वंश शुद् लोग थे शुद्रो का शासन था मुरा से पैदा हुआ था ऐसा कहते हैं कि घनानंद की एक पत्नी जो इसकी दासी थी जो शूद्र थी और उससे चंद्रगुप्त मौर्य पैदा हुआ तो कथा सरित्सागर वृहत कथा मंजरी में मौर्यों को शुद्र माना गया है
जैन और बौद्ध ग्रंथों मौर्यों को छत्रिय कुल का माना गया है तो यूरोपीय महत्व में मौर्यों को सामान्य कुल का माना गया है अधिकतर विद्वानों ने मौर्य को क्षत्रिय ही माना है क्योंकि शुद्रो की स्थिति इतनी अच्छी नहीं रही होगी जहां पर वर्ण व्यवस्था जाति व्यवस्था इतने कठोर रहे हो की शुद्र राजा बन जाये और आपको क्या लगता है चाणक्य कौन था ब्राह्मण शुद्रो को बना सकता था शासक यह भी थोड़ा सा बड़ा जटिल लगता है
पहला शासक था चंद्रगुप्त मौर्य 322 BC से लेकर 298 BC तक चंद्रगुप्त मौर्य ने अंतिम नंद शासक धनानंद की हत्या कर दी और मौर्य साम्राज्य की स्थापना की और चंद्रगुप्त मौर्य यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर को भी पराजित किया
सेल्यूकस ने मेगस्थनीज को अपने राजदूत के तौर पर चंद्रगुप्त के दरबार पर भेजा सिकंदर की मृत्यु के बाद सेल्यूकस ही बेबीलॉन का राजा बना इसके बाद सेल्यूकस ने सिंध नदी को पार करके चंद्रगुप्त पर आक्रमण किया जिसमें सेल्यूकस की हार हुई 303 BC में यह युद्ध हुआ था इसमें चंद्रगुप्त और सेलूकस के बीच में एक संधि हुई और इस संधि के तहत सेल्यूकस को अपनी पुत्री हेलना का विवाह चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ
इसके अलावा चंद्रगुप्त मौर्य ने 500 हाथियों को उपहार में सेलुकस को दिया सेल्यूकस ने दहेज में चार राज्य चंद्रगुप्त मौर्य को दिए पहला एरिया जिसे हेरात क्षेत्र बोलते है दुसरा अरकेशिया इसे कंधार का क्षेत्र बोलते है जूडोशिया मकरान तट और बलूचिस्तान का क्षेत्र जो था और पेरिमिदाई काबुल का क्षेत्र था
रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख से चंद्रगुप्त के पश्चिम भारत में विजय का पता चलता है इस अभिलेख में चंद्रगुप्त नाम की प्राप्ति होती है यूरोपीय लेखकों ने चंद्रगुप्त का नाम एन्द्रोकोट्स लिखा है तो चंद्रगुप्त मौर्य के समय जैन धर्म के दो संप्रदायों में जैन धर्म विभाजित हो जाता है चंद्रगुप्त अपने जीवन के अंतिम समय में जैन साधु भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोला चला जाता है और चंद्र गिरी पर्वत कर्नाटक में पड़ता है चंद्र गिरी पर्वत में तपस्या करते हुए सल्लेखना पद्धति द्वारा अपनी जीवनलीला आत्महत्या कर लेता है इसके बाद इसका बेटा आता है बिंदूसार जो 298 BC से लेकर 272 BC तक तो चंद्रगुप्त मौर्य पुत्र होता है यूनानियों ने इसका नाम दिया था अमित्रघाट शब्द प्रयोग करते हैं इसको कई सारे नाम मिलते हैं जैसे कि इलेक्ट्रोकेतस, सिंह सेन ,भंडासर ऐसे करके वायु पुराण में कई सारे नाम मिलते हैं सीरिया के शासक एंटियोकस से बिंदुसार ने कुछ चीजें मंगवाई थी जैसे मीठी मदिरा , सूखे अंजीर मंगवाए और एक दार्शनिक की मांग की थी
और कहते हैं कि एंटियोकस ने उसके दो मांगों को स्वीकार किया तो उसने मदिरा और अंजीर भेज दिया ऐसे मित्रता थी उनकी बिन्दुसार ने सुदूरवर्ती दक्षिणी क्षेत्रों में मगध को मिला लिया कई क्षेत्रों को इसने जितना चालू किया धीरे-धीरे अपने पिता के साम्राज्य को बढ़ाना शुरू किया सीरियाई शासक एंटियोकस ने डायमेकस नामक व्यक्ति को बिंदुसार के दरबार में राजदूत के तौर पर भेजा
इसके बाद इसका बेटा आता है अशोका सम्राट अशोक सबसे इंपोर्टेंट शासक कभी भी प्राचीन भारत में आपसे पूछा जाता है कि आपको सबसे अच्छा शासक कौन लगता है तो आम तौर पर 99% स्टूडेंट अशोक का नाम लेते है 273 से लेकर के 232 BC के टाइम पर सम्राट अशोक था बिंदुसार का पुत्र था इसकी मां का नाम था सुभांद्रंगी दिव्यावदान के अनुसार यह नाम मिलता है और इसके अलावा पत्नी का नाम बहुत सारी पत्नियां थी एक पत्नी थी देवी उसे महादेवी बोलते हैं विदिशा के व्यापारी की पुत्री थी पहली पत्नी थी इसकी और इसी से ही महेंद्र और संघमित्रा का जन्म हुआ था महेंद्र और संघमित्रा जिनको यह भेजता है बहुत धर्म के प्रचार के लिए अन्य पत्नियों की बात करें तो असंघमित्रा, कापुआरी तीवर की माँ थी त्रुरक्षा बोधि वृक्ष को क्षति पहुंचाई थी इसी ने
पद्मावती कुणाल की मां थी तो ऐसे करके कई सारी पत्नी थी तो बौद्ध ग्रंथ में अशोक के दो पुत्र जो है महेंद्र और कुणाल और दो पुत्रियां संगमित्रा और चारुमती का उल्लेख मिलता है राजभिसेक की बात करें तो कहते हैं कि जब बिन्दुसार मर रहा था तो अपने बेटे शुशुम को राजा बनाना चाहता था लेकिन कहते हैं कि अशोक ने अपने 99 भाइयों की हत्या है और इसके बाद राजा बना एक एक करके सबको मारता चला गया उस समय मंत्री था राधागुप्त की सहायता से उसने जो है वह राजा बना ऐसा उसका विरोध किया जाता है इतना ज्यादा क्रूर था यह क्योंकि बाद में जाकर उसने पूरा धम्म प्रतिपादित किया
राज्यारोहण के पूर्व अशोक जो है उज्जैन अवंती व तक्षशिला का प्रांतीय शासक था जब अशोक शासन में बैठता है बैठने के बाद फिर एक के बाद एक खूब सारे अभियान करता है उसने छोड़ा क्याजो हिस्सा अशोक कभी जीत नहीं पाया वक् क्षेत्र था चोल , पांडय, सतीपुत्र. केरलपुत्र ताम्रपर्णी (श्रीलंका ) को छोड़कर अशोक का सम्राज्य संपूर्ण भारतवर्ष में था दितीय शिलालेखों से पता चलता है कि एक अशोक के समकालिन यहां का जो श्रीलंका का शासक था उसका नाम तिस्स था
अशोक के पांच यवन राजाओं के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध थे पहला था एंटीओक्स सीरिया का शासक दूसरा तुरमय मिस्र का शासक था एनिकिनी यह मेसेडोनिया का शासक था इसके बाद एक था मेगा शायरीन का शासक था और अलिक सुंदर अलेक्जेंडर - यह एपिरिज का शासक था तो आसपास से विदेशी संबंध इसने कई जगह से बना रखे थे और 13वें शिलालेख में इसके पता चलता है कि जब अशोक अपने राज्यभिषेक का 8 वर्ष पूरे होते हैं तो वह अपने पड़ोस में कलिंग पर आक्रमण करता है जो उसके जीवन का एक सबसे महत्वपूर्ण जो है तो कलिंग पर वह आक्रमण विजय प्राप्त करता है
उस समय कलिंग का राजा था नंद राजवंश यह खारवेल के हाथी गुफा लेख से पता चलता है अशोक ने कश्मीर श्रीनगर नेपाल देव पत्तन नामक नगर बसाया यह कल्हण की राजतरंगिणी में पता चलता है कि कश्मीर में जो श्रीनगर है श्रीनगर का अशोक ने बताया है नेपाल में देव पत्तन नामक नगर भी अशोक ने बताया है अशोक ने कश्मीर नेपाल अफगानिस्तान , बंगाल , कर्नाटक और आंध्रप्रदेश वाले क्षेत्र को भी सबको शामिल कर रखा था अपने साम्राज्य में लेकिन जब कलिंग का युद्ध हुआ तो कलिंग के भीषण युद्ध में नरसंहार को देखकर अशोक विचलित हो गया जब उसने देखा उसके कारण लाखों लोग मरे थे उस युद्ध में और जो अपने आसपास लाशें ही लाशें देखी उसने तो उसके बाद उसका मन विचलित हो गया उसने शस्त्र का त्याग कर दिया बौध धर्म को स्वीकार कर लिया
पहले ब्राह्मण मतानुयाई होता था और अपने शासनादेशों को उसने शिलालेखों पर खुदवाना चालू किया दिव्यावदान के अनुसार देखा जाए तो उप गुप्त ने अशोक को बौद्ध धर्म से दीक्षित किया पहले उप गुप्त एक का बौध भिक्षु थे अशोक ने महात्मा बुद्ध के चरण चिन्हों को पवित्र स्थानों पर भी जहा जहा पर महात्मा बुद्ध थे वहा वहां पर अशोक गया उनकी पूजा की और इस यात्रा क्रम में पहले बोधगया यहां पर उनको ज्ञान प्राप्त हुआ था फिर कुशीनगर गया फिर लुंबिनी गया फिर कपिलवस्तु गया फिर सारनाथ गया फिर श्रावस्ती गया था इन सभी स्थानों पर पहुंचा वहां जाकर यात्रा की यात्रा करने के बाद फिर अपनी धार्मिक यात्रा के दौरान उसने लुंबिनी पर धार्मिक करों को समाप्त कर दिया बलि एक प्रकार का धार्मिक कर होता था और जो भूमि कर था उसे एक बटे आठ कर दिया कम कर दिया जो पहले 1/6 लिया जाता था फिर अशोक ने धम्म का प्रतिपादन किया यह धम्म कोई धर्म नहीं है यह भी आपका मानव जीवन के जीने के लिए ही बनाया गया है तो धर्म को पाली भाषा धम्म कहा जाता है अशोक ने धम्म को परिभाषा राहुल वासुसुत्त से ली गई है स्वनियंत्रण धमनी नीति का मुख्य सिद्धांत है व्यक्ति को स्वनियंत्रित होना चाहिए इसका उसे क्या करना चाहिए स्वनियंत्रण अशोक की धार्मिक नीति का मुख्य सिद्धांत बना अशोक के अलावा सालशुक ने धम्म का अनुसरण किया
धम्म की व्याख्या अपने दुसरे और सातवे अभिलेख में किया है अशोक ने कहा धम्म का मतलब है मानवता, साधुता ,कल्याणकारी रूप से कार्य करना पाप रहित होना मृदुता दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करना दान करना दया करना सूचिता रखना जीव हत्या ना करना माता-पिता व बड़ों की आज्ञा मानना गुरुजनों के प्रति आदर का भाव रखना सभी के प्रति उचित व्यवहार करना आदि धम्म के अंतर्गत आता है
धम्म प्रचार के लिए उसने बहुत सारे लोगों को भेजो उसने अपने पुत्र और पुत्री को भेजा महेंद्र और संघमित्रा को श्रीलंका भेज दिया इसके अलावा महारक्षित को यूनान भेजा महा धर्म रक्षित को महाराष्ट्र भेजा महादेव को मैसूर भेजा मझान्तिक को कश्मीर और कंधार वन क्षेत्र में भेजा तो यहां पर ध्यान रखिएगा अशोक व्यक्तिगत रूप से बौध धर्म से जुड़ा हुआ था परंतु उसका धम्म बौध धर्म से भिन्न था अशोक चार आर्य सत्य अष्टांगिक मार्ग निर्वाण में विश्वास नहीं करता था तो अशोक का धम्म मानव धर्म था ना कि बौद्ध धर्म यह ध्यान रखिएगा
अशोक के अभिलेख : अशोक के अभिलेखों को तीन भागों में बांटते हैं पहला शिलालेख दूसरा स्तंभलेख तीसरा है गुहा/गुफा अभिलेख तो जो पत्थर की शिलालेख होती थी उस पर उत्कीर्ण शासनादेश बड़े-बड़े शासनादेश अपने उत्कृष्ट करें स्तंभलेख ऊपर स्तंभों पर भी उसने शासनादेश उत्कृष्ट कराएं ब्राह्मी लिपि में और जो आपको शिलालेख थे शिलालेखों को उसने ब्राह्मी लिपि और खरोष्ठी लिपि दोनों लिपि में उसके शिलालेख पाए गए हैं
लेकिन स्त्मभ्लेख केवल ब्राह्मी लिपि में है और उसके गुफा लेख भी केवल ब्राह्मी लिपि में तो शिलालेख और स्तंभलेख में कोई विशेष अंतर नहीं देखने को मिलता है आकार और आकृति भिन्न है
सर्वप्रथम जेम्स प्रिंसेप ने ही अशोक के अभिलेखों को पढ़ने का दावा किया इससे पहले टिन पैंथर नामक विद्वान थे इन्होने भी बोला था कि मैंने इनको पढ़ लिया है लेकिन बाद में फिर जेम्स प्रिंसेप ने अशोक के लेखों को पढ़ा बताया
रुम्मिनदेई अभिलेख अशोक का सबसे छोटा अभीलेख था और अशोक के सभी अभिलेखों के विषय प्रशासनिक जबकि रुम्मिनदेई अभिलेख का विषय आर्थिक था राजा शासन कैसे चलाएगा क्या-क्या नियम होंगे लेकिन रुम्मिनदेई अभिलेख में इकोनामिक है आर्थिक बातें लिखी हुई है तो पहला जो शिलालेख उसमें पशु की बलि की निंदा की गई है कि पशु बलि नहीं होनी चाहिए दूसरे शिलालेख में उसने कहा है कि मनुष्यों पशुओं की चिकित्सा पर चर्चा की है आठवां शिलालेख सम्राट की धर्म यात्राओं का उल्लेख है नवा अभिलेख जन्म बीमारी विवाह के उपरांत समारोहों की निंदा की बात की गई है इसके बाद 11वां अभिलेख जो है 11वां अभिलेख धम्म निति की व्याख्या करता है
बारवा अभिलेख सर्व धर्म सम्भाव या स्त्री मात्र की चर्चा की बात करता है तेरहवा अभिलेख कलिंग की लड़ाई के बारे में बताता है तो कलिंग लड़ाई विनाश का वर्णन अशोक के सीमावर्ती राज्यों का वर्णन और चौथा शिलालेख जो है अशोक ने जनता को धार्मिक जीवन बिताने के लिए प्रेरित किया इससे जुड़ी बातें बताता है
स्तम्भ लेख : मेरठ में था इसे फिरोज शाह तुगलक दिल्ली लेकर आया था फ्र्खुर्शियर के शासनकाल में इसको खंडित कर दिया है टोपरा स्तंभलेख यमुनानगर हरियाणा में पड़ता है फिरोज शाह इसे भी दिल्ली ले आया प्रयाग स्तम्भ लेख कौशांबी इलाहाबाद से प्राप्त करके अकबर के इलाहाबाद के किले पर लाया गया इसके बाद लौरिया नंदनगढ़ स्तंभ लेख चंपारण जिला बिहार से प्राप्त किया गया इसपर मयूर का चित्र अंकित हैं इसके बाद रमपुरवा स्तंभलेख इसमें दो स्तंभ लेख प्राप्त हैं एक हिस्सा लेखा विहीन है लेखा युक्त पर सिंह की आकृति उत्कीर्ण है वर्तमान में यह राष्ट्रपति भवन में स्थापित है लेखाविहीन में बैल की आकृति है इसके बाद रुम्मन देई अभिलेख यह सबसे छोटा स्तंभलेख है इसमें आर्थिक विषय हैं और बुद्ध के जन्म किस स्थान पर हुआ इसके बारे में भी पता चलता है
साँची का स्तम्भलेख रायसेन मध्यप्रदेश से प्राप्त किया गया सारनाथ अभिलेख वाराणसी उत्तर प्रदेश से प्राप्त किया गया रानी का अभिलेख कौशांबी से प्राप्त किया गया
लघु शिलालेख इसके रूपनाथ जबलपुर से प्राप्त होता है गुर्जरा दतिया से प्राप्त होता है भभ्रु जयपुर से प्राप्त होता है मांसकी रायचूर कर्नाटक से प्राप्त होता है ब्रह्मगिरि चित्ताकुल्र कर्नाटक से प्राप्त होता है और आपका अरोरा मिर्जापुर उत्तर प्रदेश से प्राप्त होता
अशोक के उत्तराधिकारियों की बात करें तो कुणाल इसका बेटा था फिर दशरथ आता है दशरथ जो है कुणाल का बेटा था इसके बाद संप्रति आता है संप्रति यह कहते हैं कि ज्यादा योग्य था जैन मतावलंबी था इसकी दो राजधानियां थी एक राजधानी इसने पाटिलपुत्र रखी दूसरी उजैनी बना दी
इसको बाद चंद्र गुप्त मौर्य की तरह सल्लेखना पद्धति से यह भी मृत्यु को चला जाता है सालेसूख आता है इसके समय में यवनों ने एंटियोकस के नेतृत्व में हमला कर दिया फिर इसके बाद देव वर्मा /वृहदत अंतिम शासक आता है मौर्य काल का अंतिम शासक होता है इसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने ही इसकी हत्या कर दी और मौर्य वंश का समापन शुंग वंश की नीव रखी
इतना बड़ा साम्राज्य अचानक से समाप्त कैसे हो गया : सबसे बड़ी चीज अशोक की शांति प्रियता था और अहिंसा की नीति राइटर हेमचंद्र राय चौधरी कहते हैं कि अशोक ने शांति की नीति की आगे के शासक इसे संभाल नहीं पाए और बहुत से लोगों ने सम्राट अशोक को कमजोर मान लिया दूसरी कुछ लोग कहते हैं कि जो यह धार्मिक नीति अशोक ने धम्म नीति चालू किया तो ब्राह्मणवाद इसके खिलाफ खड़ा हो गया और ब्राह्मणों ने प्रतिकिया कर दी पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण था जो सुंग वंश का संस्थापक था जिसने मौर्य वंश को समाप्त किया
तो कुछ लोग यह भी कहते हैं कुछ लोग कहते हैं अयोग्य और निर्मल उत्तराधिकारी थे उत्तराधिकारी अच्छे नहीं मिले तो सबसे बड़ी बात होती है इसके बाद राष्ट्रीय चेतना का अभाव था तो एकजुट नहीं रह पाए एक कारण यह भी है इसके बाद जो है प्रांतीय शासकों के अत्याचारों करों की अधिकता हो गई थी
इसके अलावा मौर्यों के अत्याचारों से विदेशी विचारों के विरुद्ध पुष्य मित्र शुंग द्वारा राज्य में क्रांति कर दी गई ऐसा बोला है निहार रंजन राय के द्वारा और इस तरीके से पतन के कई सारे कारण बताया जाता है
मौर्यकालीन प्रशासन : प्रशासन में केंद्रित शासन था सबसे सेंट्रल में राजा था प्रशासन का केंद्र बिंदु था कार्यपालिका विधायिका और न्यायपालिका का प्रमुख यही होता था इसके अलावा प्रांतों की स्थिति प्रांतों में भी प्रांतपति होते थे राजपरिवार के सदस्य होते थे राजा द्वारा नियंत्रित होते थे जितने भी परिवार के अन्य सदस्यों थे सबको प्रांतपति बना देता था प्रांतों का अधिकारी बना देता था गवर्नर बना देता था तो केंद्र जो था प्रांतों में विभाजित था
प्रांतों को मंडल में भी विभाजित कर रखा था मंडलों का सर्वोच्च अधिकारी महामात्य कहलाता था और मंडलों को जिलों में बांट रखा था जिले का सर्वोच्च अधिकारी विषय पति होता था
इसके बाद जो है जिला एवं गांव में एक मध्यवर्ती स्तर होता था जिसका सर्वोच्च अधिकारी स्थानिक कहलाता था और अन्य अधिकारी वहां पर गोप होते थे और जो प्रशासन की सबसे छोटी इकाई होती थी वह गांव होती थी उसका प्रधान ग्रामीक होता था केंद्रीय प्रशासन मौर्य प्रशासन में केंद्रीकृत शासन प्रणाली थी जिसमें प्रशासन का केंद्र बिंदु राजा होता था राजा कार्यपालिका व्यवस्थापिका न्यायपालिका का प्रमुख होता था और यहां पर उपधा प्रशिक्षण किया जाता था पिता मतलब है मंत्री परिषद सदस्यों के चुनाव से पूर्व उनके चरित्र को जानने के लिए जांच पद्धति होती थी
अर्थशास्त्र में सर्वोच्च अधिकारी को तीर्थ कहा जाता था टोटल 18 तीर्थों की चर्चा मिलती है यहां पर 18 अधिकारी होते थे पहला है पहला प्रमुख तीर्थों में से उच्च अधिकारी होते थे पुरोहित पुरोहित जो होता था धर्माधिकारी होता था दूसरा होता था प्रधानमंत्री का पद समाहर्ता जो राजस्व विभाग का प्रमुख होता था सन्नी दाता जो राजकीय कोषाध्यक्ष तथा प्रदेस्तथा फौजदारी न्यायालय का न्यायाधीश तथा व्यवहारिक जो तथा दीवानी न्यायालय का न्यायाधीश , दंडपाल सेना की सामग्री जुटाने वाला व्यक्ति होता था नागरक नागर का प्रमुख अधिकारियों तथा दैवारिक राजमहलों का देखरेख करने वाला प्रधान अधिकारी था
आटविक वन विभाग का प्रमुख अधिकारी, करमांत्रिक उद्योग-धंधों का प्रमुख प्रधान होता था
मौर्य साम्राज्य पांच बड़े प्रांत में विभाजित था उत्तरापथ की राजधानी तक्षशिला होती थी दक्षिणापथ की राजधानी स्वर्णगिरी /कर्नाटक ,अवंति की राजधानी उज्जयिनी थी और कलिंग की राजधानी तोशाली थी इसके बाद प्राची इसकी राजधानी पाटलिपुत्र तो पांच राज्य थे
प्रांतों का सबसे बड़ा अधिकारी प्रांतीय गवर्नर होता था यह राजा के परिवार का ही सदस्य होता था कुमार या आर्यपुत्र जो होते थे उन्हें को बनाया जाता था तो प्रांत है प्रांत को मंडल में विभाजित किया गया था मंडल को जिला में अब विषय में विभाजित किया गया था मौर्य सम्राट में प्रांतों को चक्र कहा जाता है मतलब चारों तरफ से प्रांतों ने घेर रखा था सेंट्रल में केंद्रीय शासन था कई प्रांत मंडलों में विभाजित था
इनका अधिकारी महामात्य होता था मंडल कई विषय और जिलों में विभाजित अधिकारी विषय प्रति होता था स्थानीय प्रशासन की बात करें तो मौर्यकाल में जिलों को विषय कहा जाता था और सर्वोच्च अधिकारी विषयपति होता था जिले में तीन अन्य अधिकारी होते थे पहला प्रादेशिक यह क्षेत्र का दौरा करता था प्रदेशों में जाता था जिले और गांव के अधिकारियों का विवरण यह समाहर्ता होता था रज्जुक इसका सम्बन्ध गांव में भूमि का सर्वेक्षण करने से होता था मूल्य निर्धारित करता था यह राजस्व वसूलते थे और लेखा-जोखा रखते थे यह काम युक्त करता था ग्राम प्रशासन की सबसे छोटी इकाई थी परंतु कुछ गांवों को मिलाकर कोटियो का निर्माण किया जाता था जो जिला एवं गांव के मध्यवर्ती स्तर का विभाजन था मतलब 800 गाँवों की मिलाने से स्थानीय बन जाता था 400 गाँवो को मिला दें तो द्रोणिमुख बनता था 200 गावो को मिला दे तो खरवाटिक बनता था और 10 गांव को मिला तो संग्रहण बनता था
कौटिल्य का सप्तांग सिद्धांत : राज्य के सात अंग होते हैं राज्य का सिर जो है वह राजा होता है आंख मंत्री होते हैं कान उनके मित्र होते हैं जितने अच्छे मित्रों के उसके कान होंगे मुक्त होता है कर या कोष जितना बड़ा कोष उतना बड़ा मुख होगा सेना उसका मस्तिष्क होती है जितनी बड़ी सेना होगी उतना अच्छा सोच पाएगा राज्य/प्रान्त जो होते हैं उसके जांघ होते हैं और बाहे उसकी दुर्ग होते हैं जितने अच्छे दुर्ग बना लेगा किले बना लेगा उतनी अच्छी उसकी बाहे हो जाएगी भुजाएं हो जाएंगे तो ऐसा सप्तांग सिद्धांत एक राजा को एक राज्य के लिए उसके 7 सिधांत बहुत अच्छे होने चाहिए
न्याय प्रशासन की बात करें तो सम्राट न्याय प्रशासन का सर्वोच्च अधिकारी होता था सबसे नीचे जो है ग्राम था जो केंद्रीय न्यायलय था जैसे आज सुप्रीम कोर्ट है उस समय पाटलिपुत्र में था क्योंकि मगध में ही राजा रहता था
न्यायालयों के प्रकार की बात करें तो एक होता था धर्म स्थलीय न्यायालय यह दीवानी मामले के मुद्दे सुनता था इसमें तीन व्यावहारिक और तीन अमात्य नियुक्त किए जाते थे एक था कंटक शोधन न्यायालय फौजदारी मामलों को सुनता था इसमें तीन प्रदेस्था होते थे और तीन अमात्य नियुक्त होते थे गुप्तचर को गूढ़ पुरुष कहा जाता था प्रमुख अधिकारी सर्प महामात्य कहलाता था
राजस्व प्रशासन : राजस्व प्रशासन विस्तृत और अत्यधिक केंद्रीकृत था कृषि पर कर एक बटे 6 भाग कई जगहों पर 1/4 भाग लिया जाता था और जहां सरकार ने सिंचाई की व्यवस्था की थी वहां पर 1/3 था
प्रणय यह आपातकाल टैक्स था कुल उपज का ⅓ भाग कर लिया जाता था सबसे अधिक यही कर लिया जाता था सेना भक्त कर मतलब किसी अभियान के समय सेना से लिया जाने वाला कर इसके अलावा सीमा कर ,आयात कर विदेश से आता था उस पर यदि कोई वस्तु का निर्यात किया जाता था एक्सपोर्ट ड्यूटी लगाई जाती थी बरतनी पथकर होता था जिसे टोल टैक्स कहते हैं
व्याज कर क्रय-विक्रय पर संपूर्ण गांव से एक बार में लिए जाने वाले कर को पिंड कर कहा जाता है रज्जू कर भूमिकर तो यह सारे टैक्स है
मौर्यकालीन राजस्व आय के स्रोत :दुर्ग से इनको टैक्स मिलता था नगरों से प्राप्त आय होती थी इसको दुर्ग कहते थे जनपदों से प्राप्त आय को राष्ट्र बोलते थे फल-फूल सब्जियों वालों से प्राप्त कर सेतु कहां जाता था पशुओं से प्राप्त आय को वज्र कहा जाता था राजकीय भूमि से आय प्राप्त को सीता कहा जाता था सिंचाई कर को उदगभाग बोला जाता था और नगद राजस्व को हिरणय कहते थे
मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था की बात करें तो एग्रीकल्चर सबसे इंपोर्टेंट सबसे बड़ी संख्या में शूद्रों को कृषि कार्यो में लगाया जाता था कृषि कार्य में अत्यधिक वृद्धि मजदूरों की आवश्यकता होती थी इसलिए दासों को भी लगाया जाता था राजकीय भूमि को सीता कहा जाता था यह बहुत उपजाऊ होती थी राज्य की ओर से सिंचाई की व्यवस्था की जाती थी ओर इसे सेतुबंध कहा जाता था बिना वर्षा के खेती वाली भूमि को अदेव मात्रिक कहते थे
उद्योग व्यापार की बात करें तो मौर्यकाल में सबसे इंपोर्टेंट है उद्योग-धंधा सूत कातना बुनना यह प्रमुख था काशी मालवा कलिंग बंग में सूती वस्त्रउद्योग बड़ी सबसे विकसित अवस्था में था बंगाल में मलमल विश्व विख्यात था उस समय पर वाणिज्य व्यापार में राज्य का नियंत्रण होता था प्रमुख बंदरगाहों की बात करें तो भड़ोंच और सोपारा दो प्रमुख बंदरगाह जहां पर इंपोर्ट एक्सपोर्ट होता था
व्यापारियों के नेता को सार्थवाह कहा जाता था जो व्यापारियों का लीडर होता था एग्रो नोमोई यह मार्ग निर्माण के लिए जिम्मेदार अधिकारियों था भारत का निर्यात की बात करें तो हाथी दांत निर्यात होता था कछुए निर्यात किए जाते थे सीपी निर्यात की जाती थी मोती निर्यात की जाती थी रंग निर्यात किया जाता था नींल निर्यात किया जाता था बहुमूल्य लकड़ी जो है निर्यात की जाती थी
यदि आयात की बात करें तो रेशम चीन से आयात की जाती थी ताम्रपर्णी से मोती की जाती थी चमड़ा नेपाल से आयात किया जाता था मदिरा जो है यह आपका सीरिया से आयात किया जाता था पश्चिम एशिया से घोड़े आयात किए जाते थे
मुद्रा की बात करें तो राजकीय मुद्रा को पण कहा जाता था सोने के सिक्कों को शुवर्ण तथा पाद कहा जाता था चांदी के सिक्कों को कर्सार्पण, पण या धरन कहा जाता था तांबे के सिक्के को मांसक कद्किया या अर्ध कद्किया कहा जाता था आहत सिक्के भी चलते थे
मौर्यकालीन समाज के अंतर्गत कौटिल्य ने वर्णाश्रम व्यवस्था को सामाजिक संगठन का आधार बनाया है यानी वर्ण व्यवस्था होनी आवश्यक है इसके अलावा इंडिका में बताया कि 7 जातिया थी सबसे पहले दार्शनिक कि समाज में दार्शनिक वर्ग तथा दूसरा किसान दूसरा वर्ग तथा किसान तीसरा चरवाहे चौथा वर्ग शिल्पी तथा कारीगर इसेक बाद योद्धा फिर निरीक्षक और अमात्य होते थे
जाति व्यवस्था का स्वरूप कठोर था कोई भी व्यक्ति जाति से बाहर विवाह नहीं कर सकता था ना अपना पेशा बदल सकता था दार्शनिक और ब्राम्हण चाहे तो अपना पेशा बदल सकते थे और जाति से बाहर विवाह भी कर सकते थे स्त्रियों की बात करें तो स्त्रियों को पुनर्विवाह की और नियोग की अनुमति थी अर्थशास्त्र के अनुसार विवाह की उम्र 12 वर्ष रखी गई थी स्त्री के लिए और पुरुष के लिए 16 वर्ष रखी गई थी दहेज प्रथा चरमसीमा मे थी
इसके अलावा रूप जीवा यह स्वतंत्र रूप से वेश्यावृति करने वाली स्त्रियां होती थी और सम्राट जो है स्त्रियों को अंगरक्षक भी नियुक्त कर सकता था दास प्रथा की बात करें तो इंडिका ने भारत में दास प्रथा नहीं बताया था कि दास प्रथा नहीं थी परंतु बौद्ध साहित्य कौटिल्य के अर्थशास्त्र अशोक के अभिलेखों में दास प्रथा का प्रचलन की बात को स्वीकार किया गया था अर्थशास्त्र में नौ प्रकार के दासों का उल्लेख किया गया था
कृषि कार्य के लिए दास कारखानों के लिए दास खदानों के लिए दास महिला दास भी घर के कार्यों को करती थी सेवा काम करना होता था सारी चीजें उनका काम होता था शिक्षा केंद्र की बात करें तो मौर्य काल में शिक्षा केंद्र तक्षशिला शिक्षा केंद्र तथा उज्जैन और वाराणसी मौर्यकाल में प्रमुख शिक्षा केंद्र थे शुद्रो की स्थिति बात करें तो शुद्रो के उत्थान प्रारंभ होता है इस समय में पुराणों में शूद्रों को अनार्य माना गया है परंतु कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में शुद्रो को आर्य माना है और मलेच्छों से भिन्न माना है मौर्यकाल में शूद्रों को कृषि कार्यों में शामिल किया गया इस कारण से इनको माना गया
मौर्योत्तर काल :
मौर्योत्तर काल के जो अभिलेख थे पहला अभिलेख रुद्रदामन का गिरनार अभिलेख जूनागढ़ अभिलेख संस्कृत भाषा में है सबसे बड़ा अभिलेख है रुद्रदामन की सातकरणी विजय पर रुद्रदामन शक शासक था और रुद्रदामन के बारे में आपको यह याद रखना चाहिए की इसने सुदर्शन झील का पुनर्निर्माण करवाया है तो इसके अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य के समय झील का निर्माण हुआ था सुदर्शन झील का और उस समय सौराष्ट्र का गवर्नर पुष्यगुप्त था उसने करवाया था मतलब चंद्रगुप्त मौर्य शासक था
इसके बाद इससे एक नहर निकाली गई थी इसी झील से उसका अशोक के समय पर एक वहां पर गवर्नर था तुसास्प के द्वारा वहां से नहर निकाली गई थी और इसके बाद रुद्रदामन ने झील चुकी काफी खराब हो चुकी थी तो उस बांध की मरम्मत करवाई थी यह रुद्रदामन के गिरनार अभिलेख से पता चलता है इसके अलावा इससे अभिलेख में चंद्रगुप्त मौर्य का नाम चंद्रगुप्त प्राप्त हुआ और इस अभिलेख में सर्वप्रथम विष्णु के साथ लक्ष्मी का भी उल्लेख प्राप्त हुआ
अयोध्या अभिलेख पुष्यमित्र शुंग द्वारा राजधानी अयोध्या में बताया गया शुंगो की यवनों पर विजय के बारे में पुष्यमित्र शुंग द्वारा दो अश्व मेघ यज्ञ कराए गए उसकी भी जानकारी हमें अयोध्या अभिलेख से मिलती है खारवेल का हाथीगुंफा अभिलेख इसमें भुवनेश्वर के उदयगिरी पर्वत से प्राप्त होता है खारवेल द्वारा मगध के शासक बृहस्पति मित्र को पराजित किया जाता है खारवेल द्वारा यवन सातकरणी तथा पांडय के शासको को पराजित किया जाता है
इसके बाद आपका नासिक प्रशस्ति नासिक गौतमीपुत्र सातकर्णि के विषय में है और इसके अंतर्गत यह गौतमीपुत्र सातकर्णि के द्वारा जो है उत्कीर्ण कराया गया था इसके अनुसार गौतमीपुत्र सातकर्णि ने शक , पल्ह्व , यवन को हराकर गुजरात सौराष्ट्र और मालवा पर अधिकार कर लिया तो गौतमीपुत्र सातकर्णि जो था सातवाहन शासक था और उसी समय पर विदेशी आक्रमण हो रहे थे
गौतमीपुत्र सातकर्णि ने क्षत्रियो को मर्दन करने वाला परशुराम के समकक्ष अपने आपको बताया और गौतमीपुत्र सातकर्णि ने अपने आपको त्रिसमुद्रतोपित्त वाहन कहा यानि जिसके घोड़े ने तीन समुद्र का पानी पिया है हिंद महासागर का अरब सागर का बंगाल की खाड़ी का उसने बोला मैं परशुराम के समान जैसे परशुराम ने क्षत्रियविहीन कर दिया पूरे समाज को वैसे ही मैंने जो है शक, पल्ह्व और यवन को सबको खत्म कर दिया यह उपाधि धारण की इसके बाद अमरावती अभिलेख सातवाहन वंश का पहला अभिलेख है बेसनगर अभिलेख जो है यह हीरो डेट्स ने खुदवाया था यूनानी राजदूत था यह भागवत धर्म से संबंधित है वासुदेव विष्णु को समर्पित है यह गरुड़ स्तंभों पर उत्कीर्ण है
मौर्योत्तर काल के सिक्के इस काल में पहली बार सिक्कों के विभिन्न राजवंशों के नाम लिखने की प्रथा का विकास हुआ इसी के टाइम पर सर्वप्रथम इंडो ग्रीक शासकों ने सोने के सिक्कों को जारी किया साहित्यिक साक्ष्य के अंतर्गत गार्गी संहिता यह ज्योतिष शास्त्र है इसमें यौवन आक्रमण की जानकारी मिलती है मालविकाग्निमित्रम् इसमें एक नाटक की रचना की है कालिदास ने रचना की है कालिदास का प्रथम नाटक था अग्निमित्र की विधर्म विजय की जानकारी मिलती है अग्निमित्र के पुत्र वसुमित्र यवनों को हराया है
इसके बाद दिव्यादान यह बौध ग्रन्थ था महाभाष्य इसके लेखक पतंजलि थे यवन आक्रमण की जानकारी इससे मिलती है पतंजलि पुष्यमित्र शुंग के राजपुरोहित थे शुंगवंश : यह वंश ब्राह्मण परिवार से था इसकी स्थापना पुष्यमित्र शुंग ने की थी मौर्य सम्राट वृहदत्त की हत्या कर दी थी अंतिम मौर्य सम्राट की हत्या करके इस वंश की स्थापना की थी दिव्यादान में पुष्यमित्र शुंग को बौद्धों का शत्रु बताया गया और इसने विधर्भ के शासक यज्ञसेन को हराया था
इसके बाद इसका पुत्र अग्निपुत्र आता है कालिदास के मालविकाग्निमित्रम् नाटक का नायक भी यही अग्निपुत्र ही था फिर इसके बाद अगला आता वसुज्येष्ठ इसके बाद वसुमित्र फिर भाग भद्र देवभूति देव भूत शुंग वंश का अंतिम शासक था इसके मंत्री वासुदेव ने इसकी हत्या करके कण्ड वंश की स्थापना की
भरहुत स्तूप का निर्माण पुष्यमित्र शुंग ने करवाया था पुष्यमित्र शुंग ने सांची के स्तूप की लकड़ी के वेदिका के स्थान पर पत्थर की वेदिका का निर्माण करवाया था
कडव वंश : स्थापना वसुदेव ने की इसने शुंग वंश के अंतिम शासक देव भूत की हत्या कर दी और हत्या करके वंश की नीव रखी इस वंश में चार राजा थे वासुदेव भूमित्र नारायण और शुशर्मा अंतिम शासक सुशर्मा था इसकी हत्या सिमुख ने कर दी और सातवाहन वंश की स्थापना कर दी सातवाहन प्राचीनतम सिक्के अधिकांश आरंभिक अभिलेख महाराष्ट से प्राप्त हुए उसे पता चलता है कि उत्तरी महाराष्ट्र में शुरुआत मे थे राजधानी की बात करें तो सात वाहनों की राजधानी प्रतिष्ठान/पैठन थी सातवाहनों के वंशों की बात करें तो शीमुख इसने सातवाहन वंश की स्थापना की दूसरा तक कृष्ण शिमुख का भाई था सातवाहन को नासिक तक बढ़ाया नाशिक की गुफाओं की स्थापना की फिर आया सातकर्णि प्रथम सातकर्णि प्रथम ने कई सारे क्षेत्रों को जितना शुरू किया इसने नर्मदा घाटी के विदर्भ क्षेत्र को जीता इनको आधिपत्य किया अपनी राजधानी अमरावती गुंटुर आंध्र प्रदेश को बनाया इसने सर्वप्रथम दक्षिणाधिपति की उपाधि धारण की और दक्षिण में राज्य को बढ़ाया इसके बारे में स्पष्ट है कि नाना घाट अभिलेख से प्राप्त होता है कि जिसमें रानी नाग्र्निका का नाम उत्कीर्ण कराया
इसने ब्राह्मणों और बौद्धों को भूमि अनुदान में थी यह भूमि दान का पहला अभिलेखीय साक्ष्य है इसने दो अश्वमेघ यग्य भी कराया है इसके बाद हाल आता है हाल के सेनापति का नाम है विजयानंद और इसने श्रीलंका पर विजय की
गौतमीपुत्र सातकर्णि सातवाहन वंश का सबसे महानतम शासक यही था इस शासक की उपलब्धियों की जानकारी नासिक अभिलेख से प्राप्त होती है नासिक अभिलेख में इसे एक मात्र ब्राह्मणी /अद्वितीय ब्राह्मण भी कहा गया है और इसने अपने आप को खतयदिपद्मासन की उपाधि धारण करता है और साथ में अपने आपको त्रिसमुद्रपित्तवाहन भी कहता है मतलब तीन समुद्रों का पानी जिसके घोड़े ने पिया हो और इसने शक शासको को पराजित किया बहुत सारी उपाधियां ली इसने राजराज की उपाधि ली वेंकटस्वामी की विन्ध नरेश की उपाधि ली इसने इसके बाद वाशिस्ती पुत्र पुल्मावी यह गौतमीपुत्र सातकर्णि का पुत्र था उसका उत्तराधिकारी था शक शासक रुद्रदामन ने इसको दो बार हराया परंतु संबंधी होने के कारण से बर्बाद नहीं किया यज्ञ श्री शतकरणी सातवाहन वंश का अंतिम शासक था इसके सिक्कों पर नाव का चित्र अंकित है इसके बाद सातवाहन वंश के बारे में अन्य बहुत सारे तथ्य है सातवाहन वंश ने ही सर्वप्रथम शीशे के सिक्के चलाए थे है सातवाहन राज परिवार की महिलाएं बौध धर्म को प्रश्रय देती हैं पुरूष वैदिक धर्म को प्रश्रय देते हैं सातवाहन काल में महिलाएं शिक्षित थी पर्दा प्रथा नहीं थी इस काल में स्त्रियां संपत्ति में भागीदारी होती थी समाज में अंतर जातीय विवाह होते थे सातवाहन काल में मातृ सत्तात्मक समाज होने का आभास मिलता है क्योंकि शासको के द्वारा अपने माता का नाम जो है अपने नाम के साथ लगाया जाता है
इसके बाद कलिंग का चेदि वंश तो सातवाहन वंश जब हुआ था उसी समय चेदि वंश भी था इसका संस्थापक महामेघवाहन था चेदि वंश का ही महत्वपूर्ण शासक था खारवेल इसके शासन की उपलब्धियों के बारे में जानकारी हाथीगुंफा अभिलेख से प्राप्त होती इसने भुवनेश्वर मंदिर का निर्माण कराया इसने मगध के शासक बृहस्पति मित्र का अभियान किया तथा जैन तीर्थंकर शीतल नाथ की मूर्ति को वापस कलिंग ले गया
हाथीगुंफा अभिलेख के अनुसार खारवेल ने चोल चेर पांडय शासकों को पराजित किया इसने यवनों और सात्करनी को भी पराजित किया नहरों की जानकारी का पहला अभिलेखीय साक्ष्य भी हाथीगुंफा अभिलेख से प्राप्त होता है
इच्छाक वंश के शासकों के बारे में बात करें तो सात वाहनों के सामंत थे पहले सात वाहनों के अंदर ही काम करते थे कृष्णा की गुंटूर क्षेत्र में शासन करते थे इनका संस्थापक शांत मूल था सांत मूल के उत्तराधिकारी वीर पुरुष दत्त ने ही नागार्जुन कोंडा स्तूप का निर्माण करवाया बौद्ध मत के प्रतिपादक और पोषक थे
वाकाटक वंश और इसके संस्थापक विंध्यशक्ति और राजधानी बरार वाले क्षेत्र में थी ब्राह्मण धर्म को मानने वाला था पुराणों में इसकी तुलना इंद्र और विष्णु से की गई है
मौर्योत्तर काल में विदेशी आक्रमण : पहले आये इंडो ग्रीक दूसरे नंबर पर आये शक तीसरे नम्बर पर आये पर्शियन चौथे नंबर पर कुषाण यह क्रम था तो हिंद-यवन का आक्रमण ही सबसे बड़ी राजनीतिक घटना मौर्य काल की यही थी कि भारत में यूनानी आक्रमण हुआ बैक्ट्रिया में यवनों द्वारा भारत में आक्रमण के कारण क्या थे
पहले चीज सेल्यूकस का जो सम्राज्य था वह कमजोर हो चुका था तो बैक्टीरिया से यवनों द्वारा भारत में हमला कर दिया गया दूसरा शको का प्रभाव बढ़ रहा था भारतीय क्षेत्र में लगातार इनकी कई सारी ब्रांच आते जा रहे थे इनकी टोटल पांच शाखाएं भारत में आई थी अफगानिस्तान शाखा पंजाब शाखा मथुरा शाखा ,नासिक शाखा, मालवा शाखा तो इनका भी प्रभाव बढ़ रहा था दूसरा जो डियोडोट्स द्वितीय था उसने अपने राज्य को सेल्यूकस साम्राज्य से अलग कर लिया फिर इनको एक मौका मिल गया इंडो ग्रीक को कि उन्होंने भारत पर आक्रमण कर दिया
तो पहला शासक था जिसने भारत पर आक्रमण किया हिन्द यवन उसका नाम था डिमिट्रियस प्रथम डिमिट्रियोस प्रथम ने पहला हिंद-यवन शासक था मतलब सिकंदर के क्षेत्र से आए लोग
मिनांडर शासक : मिनांडर को मिलिंद के नाम से जाना जाता है इसने गंगा-यमुना दोआब पर आक्रमण किया भारत में सिकंदर से भी बड़े क्षेत्र को इसने जीता और मिलिंदपन्हो ग्रंथ है जिसमें मिलिंद और नागसेन के मृंद वार्तालाप का संकलन किया गया है
हेलियोडोरस ने भागवत धर्म को ग्रहण कर लिया और विदिशा में गरुड़ स्तंभ की स्थापना की गई है तो गरुण स्तम्भ में हेलियोडोरस के बारे में जानकारी प्राप्त होती है
तो यूनानियों की देन : राजत्व का सिद्धांत है , सिक्को निर्माण की पद्धति ,मुद्राओं पर राजा का नाम लिपि चित्र तिथि अंकित करना सब यूनानियों से मिला
काल गणना करना भारतीय कैलेंडर सप्ताह या 7 दिनों में विभाजन करना ,संवत का प्रयोग करना यूनानियों से सीखा जाता है 12 राशियों ज्योतिष विद्या यूनानियों की देन है नाटकों में प्रयुक्त होने वाला पर्दा यवनिका यूनानियों की देन है भारत में सोने के सिक्का चलाने का श्रेय भी यूनानियों को इंडो ग्रीक को ही जाता है स्थापत्य की गंधार शैली यूनान कला एंव भारतीय कला का मिश्रण है शको की कुल पांच शाखाये थी : अफगानिस्तान शाखा भारत से बाहर बसने वाली पहली बड़ी शाखा यही थी, दूसरी शाखा पंजाब शाखा , तीसरी मथुरा शाखा, चौथी है महाराष्ट्र /नासिक शाखा पांचवी है मालवा शाखा थी पंजाब शाखा की राजधानी तक्षशिला थी इस शाखा के शासक को एजेली सेज के सिक्कों में भारतीय देवी लक्ष्मी को अंकित किया गया है इसके बाद मथुरा शाखा जो यह मालवा राजा विक्रमादित्य द्वारा भगाए गए शक थे
मथुरा शाखा का प्रथम शासक राजूल था अगला है महाराष्ट्र शाखा महाराष्ट्र का सबसे प्रसिद्ध शासक नेह्पाल था इसने सात वाहनों से महाराष्ट्र में एक बड़ा भूभाग छीना था इसको गौतमीपुत्र सातकर्णि ने पराजित किया था इसके बाद है मालवा शाखा मालवा शाखा में रुद्रदामन सबसे प्रमुख शासक था मालवा आपका यह गुजरात वाला हिस्सा सबसे इंपोर्टेंट है संस्कृत भाषा के जूनागढ़ अभिलेख से प्राप्त होती है मालवा के अंतिम शासक रुद्र सिंह तृतीय को गुप्त शासक चंद्रगुप्त विक्रमादित्य को मारकर भगाया इसी के उपलक्ष में विक्रम संवत की शुरुआत की जाती है
यह घटना करीब 57 BC की बात है तभी से विक्रम संवत शुरू होता है और व्याघ्र शैली के चांदी के सिक्के भी चलाए गए हैं पल्ह्व/पार्थियन वंश : तो यह मध्य एशिया से इरान से आए थे इसका संस्थापक मिथ्रो डेट्स प्रथम
कुषाण वंश : यह मध्य एशिया से आए थे यह उची जनजाति के लोग थे कुजुल कड फिसेस पहला व्यक्ति था जिसने सबसे पहले कुषाण वंश की ओर से भारत में आक्रमण किया था विम कडफ़ाइसिस यह कुषाण शक्ति का वास्तविक संस्थापक था
इसने तक्षशीला और पंजाब पर अधिकार कर लिया इसके बाद इसके सिक्कों में एक तरफ यूनानी लिपि तो दूसरी तरफ खरोष्ठी लिपि देखने को मिलती है और इसके सिक्कों पर शिव नंदी बैल त्रिशूल की आकृति भी अंकित मिलती है
कनिष्क : सबसे इंपोर्टेंट शासक इसी वंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक था और कनिष्क के राज्यारोहण की तिथि 78 AD थी इसी उपलक्ष में कनिष्ट द्वारा शक् संवत् का आरंभ किया गया इसी के समय कश्मीर के कुंडल वन में चौथी बौद्ध संगति भी प्रारंभ हुई है इसके समय में ही मथुरा एवं गंधार कला का जन्म होता है मूर्ति कला है इसकी राजधानी पुरुष पूर पेशावर थी यह बौद्ध धर्म की महायान शाखा का अनुयायी था
चीन और रोमन के बीच तीन शिल्क रूटों की शाखाओं पर नियंत्रण किया हुआ था इसीलिए जो है व्यापार की दृष्टि से इसका सम्राट उचतम स्तर पर था कनिष्क के दरबार में अश्वघोष नागार्जुन चरक वासुमित्र पार्श्व जैसे महान विद्वान रहते थे
उत्तराधिकारियों की बात करें तो उसके उत्तराधिकारियों में वशिष्ठ फिर हुविष्क और वासुदेव वासुदेव अंतिम शासक था
मौर्यउत्तर कालीन प्रशासन : शक शासक त्रातर मुक्तिदाता की उपाधि धारण करते हैं यह फ़िक्र है और राजत्व को देवत्व से जोड़ने पर बल दिया गया है इसके राजाओं ने अपने आप को देवताओं का अवतार बोलना चालू कर दिया इसके काल में प्रांतों में द्वैध शासन की शुरुआत होती है द्वैध शासन का मतलब इन्होंने स्थानीय जो यहां पर लोग थे उस हिसाब से और दूसरा अपना एक प्रतिनिधि चुनकर के यहां पर स्थापित करना शुरू किया मौर्य काल का जो पूर्ण केंद्रीकरण था उसको विकेंद्रीकरण की तरफ शासन सत्ता को देना शुरू कर दिया
और कुषाण राजाओं ने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थे मौर्य उत्तरकालीन अर्थव्यवस्था : आर्थिक दृष्टि से प्राचीन भारत का स्वर्ण काल कहा जाता है कारण क्या है इसको स्वर्ण काल कहने का क्योंकि इस शिल्प , अंतर्देशीय व्यापार में अभूतपूर्व वृद्धि में बहुत सारे विदेशी आक्रांताओं के उससे व्यापार बढ़ गया वाणिज्य में उन्नति के कारण क्या थे पहला कारण था नगरीय और ग्रामीण क्षेत्रों में नए वर्ग का उदय हुआ क्योंकि नई-नई जनजातियां भारत आ गए दूसरा रोम और चीन के साथ व्यापारिक संबंधों का विकास हुआ रेशम मार्ग की खोज हुई रेशम मार्ग सिल्क रूट की खोज हुई नियंत्रण हुआ
दक्षिण पूर्व एशिया के साथ व्यापारिक जुड़ाव हुआ इसके बाद शिल्पियों का विभेदीकरण किया जाने लगा मौर्य उत्तरकाल में एक प्रमुख उद्योग बनाया गया वस्त्र उद्योग इसके बाद लोहा एवं इस्पात उद्योग में भारी वृद्धि हुई लोहा और इस्पात उद्योग में आंध्रप्रदेश का करीमनगर वाला क्षेत्र है नलकुंडा वाला क्षेत्र है यह लोहा और इस्पात के प्रमुख केंद्र बन गए रोमवासी मसाले यहां से खूब आयात करते थे
काली मिर्च को यवन प्रिय बोला जाता था भदौच का बंदरगाह जो था मिश्र एवं अरब के घोड़े सुंदर लड़कियां यहां पर लाई जाती थी सोपारा बंदरगाह था यह पश्चिमी तट तथा भदौच गुजरात में था देवल सिंधु वाले हिस्से में था तमिल वाले क्षेत्र में नागपट्टनम था और मसूलीपट्टनम और मुजरिस यह मालाबार तट में था
सिक्कों की बात करें तो इनके द्वारा सोने के सिक्के चलाए गए निष्क , दीनार ,स्वर्ण पहला स्वर्ण सिक्का चलाने का श्रेय भी हिन्द यवन शासको को जाता है और सबसे शुद्ध सोने का सिक्का कनिष्क के टाइम पर चलता है सर्वाधिक तांबे के सिक्के भी कुषाण शासकों द्वारा चलाए गए भारत में शीशे के सिक्के सर्वप्रथम सातवाहन शासकों ने चलाया था अच्छा शीशे के सिक्के भी सातवाहन शासकों ने चलाया
समाज : इस काल में समाज को प्रभावित करने के दो महत्वपूर्ण कार्य है पहला भारतीय समाज में बड़ी जनसंख्या में बहुत सारी जनजातियां मिल गई तो जो विदेशी जनजातियां आई यह भारत में मिलते चले गए जनजातियों का मिश्रण होता चला गया इस काल में विदेशियों का भी आत्मसातीकरण हुआ
प्राचीन भारत में विदेशियों का सर्वाधिक आत्मशातीकरण इसी काल में हुआ सबसे अधिक विदेशी यदि भारत में आए हो यहां पर बस गए वह कौन सा काल था मौर्योत्तर काल था जनजातियों और विदेशियों के मिलने से समाज में वर्ण संकरो की वृद्धि हो गई इस काल में शुद्रो की सामाजिक स्थिति में सुधार आया
महिलाओं की दशा : महिलाओं की इस समय पर सबसे अधिक शंकर ब्रिडो का जन्म हुआ और महिलाओं को पुरुषों के अधीन कर दिया गया विधवा विवाह पर पाबंदी लगा दी गई बाल विवाह को प्रोत्साहन दिया गया इसी दौरान बाल विवाह बड़ी तेजी से क्यों विदेशी लोग आए और विवाह करना इसके अलावा नियोग प्रथा से बहुत सारी संतानें उत्पन्न हुए
अनैतिक संबंधों से बहुत सारी संतानें पैदा हुई क्षेत्रज नियोग प्रथा से जन्म लेने वाली संतान को और जारज अनैतिक संबंधों से जन्मी संतान कुषाणों ने केवल तांबे और सोने के सिक्के चलाए थे चांदी के सिक्के नहीं चलते थे इनकी राजभाषा संस्कृत थी मथुरा में साल्क नामक कपड़ा प्रसिद्ध था इस काल में अनुलोम विवाह को अनुमति प्राप्त थी अनुलोम विवाह मतलब पुरुष उच्च वर्ण का महिला निम्न वर्ण की
धार्मिक स्थिति बौध धर्म और जैन धर्म का प्रभाव कम हुआ इस दौरान वैष्णव और शैव धर्म को मान्यता प्राप्त हुई मौर्यों के बाद बौध धर्म को राजकीय प्रश्रय नहीं मिला शुंग और एवं कंव वंश बौध धर्म के विरुद्ध रहा बौध धर्म को दो शाखाओं में विभाजित कर दिया गया इसी दौरान महायान और हीनयान शाखाए हो जाती है अन्य संप्रदायों को राजकीय प्रश्रय मिलने लगा बौध धर्म आडंबरपूर्ण हो गया और बौध धर्म की बौद्ध विहारों में विलासिता और संभोग के केंद्र बन गए
गुप्तकाल ; साहित्यिक साक्ष्य और अभिलेखीय साक्ष्य में इनके बारे में जानकारी मिलती है साहित्यिक साक्ष्य के रूप में पुराण है इस समय पुराणों का जन्म हो चुका था और इस समय ही सभी ग्रंथो का संकलन होना शुरू होता है क्योकि कागज़ का आविष्कार चीन में हो चूका था पहली जानकारी मिलती है पुराणों से वायु पुराण से विष्णु पुराण से ब्रह्म पुराण से जानकारी मिलती है
विशाखदत्त की पुस्तक देवी चंद गौतम इससे भी जानकारी हमें गुप्त साम्राज्य के बारे में मिलती है कालिदास की बहुत सारी रचना है चाहे वह मेघ्दुत्त ,ऋतू श्रृंगार , अभिज्ञान शकुंतलम और मालविकाग्निमित्रम् और मेघदूतम रघुवंश और अभिज्ञान शकुंतलम तो जितनी कालिदास की रचनाएं हैं विदेशी यात्री भी आते हैं फायहान और ह्वेनसांग आता है फायहान फु-यु -की और हवेंसोंग सी-यु-की लिखता है
और अभिलेखीय साक्ष्यों में समुद्रगुप्त की प्रयाग-प्रशस्ति कुमार गुप्त का विल्सन अभिलेख स्कंद गुप्त का भीतरी अभिलेख प्रभावती गुप्त का पूना ताम्रलेख ऐसे बहुत सारे अभिलेख भी प्राप्त हुए हैं
गुप्त कौन थे : सबसे पहले वैश्य होने के पक्ष में तर्क रोमिला थापर और रामशरण शर्मा ने कहा कि गुप्त वैश्य है क्योंकि देखो अपने नाम के पीछे गुप्त लगा रहे हैं पहले तो यह यानी स्मृतियों के अनुसार नाम के पीछे गुप्त लगाना वैश्यों की विशेषता है और गुप्त वैश्यों का एक गोत्र भी है और यही कारण है कि गुप्त वंश के संस्थापक जो है वह गुप्त प्राप्त होता है और आदर भाव से जोड़ा गया उपसर्ग भी हो सकता है तो इस कारण से गुप्त वंश के संस्थापक को गुप्त माना जाएगा
ब्राह्मण के पक्ष में तर्क : हेमवंत राय चौधरी महोदय ने कहा की ब्राह्मण वंश है क्योकि पुष्यमित्र शुंग था उसने अपने आपको गुप्त गोत्र का ब्राह्मण वंशी बताया था और इसका एक कारण है कि गुप्त शासकों द्वारा अपनी पुत्रियों का विवाह ब्राह्मणों के साथ क्यों किया गया वैश्यों के साथ करते अब जैसे चंद्रगुप्त द्वितीय ने अपनी पुत्री प्रभावती गुप्त का विवाह वाकाटक शासक के साथ किया ब्राह्मण था भानुदत्त के साथ किया इसके बाद भानु गुप्ता ने भी अपनी बहनों का विवाह भी ब्राह्मण शासकों के साथ कर रहा है गुप्त और विवाह ब्राह्मण के साथ करना है
तो इन सब चीजों से उन्होंने बताया कि इस समाज में अंतरजातीय प्रथा अंतर जाति विवाह इतना ज्यादा प्रबल नहीं था जातिप्रथा बहुत ज्यादा प्रबल थी अपनी जातियों में विवाह करना बहुत इंपोर्टेंट माना जाता था तो गुप्तो की पुत्रियों का विवाह ब्राह्मणों में कैसे हो सकता है तो यह ब्राह्मणी रहे होंगे ऐसे करके चीजें उलझा देती है लेकिन ऐसा नहीं है कि अंतर जाति विवाह नहीं था मौर्योंत्तर काल में जातिप्रथा जरूर थी लेकिन अंतरजातीय विवाह को पूरी तरीके से अमानता नहीं प्राप्त थी फिर अनुलोम विवाह को अनुमति थी ना कि लड़का उच्च जाति का है तो कर दिया विवाह फिर यह गुत्थी फिर से हो जाती है तो फिर क्या हुआ इतिहासकार बैठ जाता है
तो गुप्त वंशी शासकों में तो संस्थापक श्रीगुप्त था प्रभावती गुप्त का पुणे स्थित ताम्रलेख के अनुसार श्रीगुप्त को गुप्त वंश का अधिराज कहा जाता आदि पुरुष कहा जाता है यानी गुप्त वंश की स्थापना का श्रेय इसी महापुरुष को मिलता है इसने महाराज की उपाधि धारण कर ली थी इसके बाद घटोत्कच गुप्त यह श्री गुप्त का उत्तराधिकारी था इसने भी महाराज की उपाधि धारण कि
लेकिन अब एक चीज मानी जाती है की श्री गुप्त और घटोत्कच जो दो शासक हैं इन्होंने महाराज की उपाधि धारण की और महाराज की उपाधि उससमय सामंतों को मिलती थी तो क्या यह सामंत थे यह स्वतंत्र शासक नहीं थे किसी के अधीन थे इन्होने महाराजाधिराज की उपाधि धारण क्यों नहीं तो इन दोनों को ऐसा माना जाता है कि हो सकता है कि उस समय सामंत रहे हो क्योंकि चंद्रगुप्त प्रथम ने सबसे पहली बार महाधिराजा की उपाधि को धारण किया था
इस लिए वास्तविक संस्थापक चंद्रगुप्त प्रथम को गुप्त वंश का माना जाता है 319 AD से लेकर 334 AD में चंद्रगुप्त प्रथम गद्दी पर बैठता है इसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की गुप्त वंश में सर्वप्रथम सोने के सिक्के चलाने वाला पहला शासक भी यही था इसी के समय से गुप्त संवंत की भी स्थापना चालू होती है इसके राज्यारोहण से
और इसने लिच्छवि राजकुमारी कुमार देवी से विवाह भी किया और समुद्रगुप्त का जन्म हुआ था 335 से लेकर 380 AD तक समुद्रगुप्त रहे और समुद्रगुप्त को विसेंट स्मिथ ने एक पुस्तक लिखी अर्ली हिस्ट्री ऑफ द इंडिया उसमें भारत का नैपोलियन बोला इसने दो अभियान किये हैं एक दक्षिणापथ और उत्तरापथ
इसने कई सारी उपाधिया ली पहली उपाधि प्रक्रमांक की उपाधि व्याघ्र पराक्रम की पांच चरणों में इसने अभियान किए पहला चरण में इसने अहिक्षत्र, चंपावती ,विस्ता सहित उत्तर भारत के नौ राज्यों को इनको अपने सीमा में मिला लिया जो इसके नजदीक के थे दूसरे चरण में पंजाब और सीमावर्ती क्षेत्र को मिला लिया तीसरे चरण में विंध्य क्षेत्र को मिला लिया है इसने चौथे चरण में पल्लव , कोशल ,कोच्चि सहित 12 राज्यों पर विजय प्राप्त की है पांचवें चरण में उत्तर पश्चिम भारत के कुछ विदेशी राज्यों पर विजय प्राप्त की और अपने विजय अभियान को पूरा करने के बाद इसने अश्वमेघ यज्ञ कराया अश्वमेध यज्ञ कराने के बाद अश्वमेध पराक्रम की उपाधि की कई सिक्को पर इसको वीणा बजाते हुए दिखाया गया है और समुद्रगुप्त को कविराज की उपाधि दी जाती है
चंद्रगुप्त द्वितीय / चंद्रगुप्त विक्रमादित इसे देवगुप्त भी बोलते हैं तो उसने भी कई उपाधियां ली पहले विक्रमांक की विक्रमादित्य की परम भागवत की इसके देवगुप्त देवराज देव श्री कई नाम भी मिलते हैं इसके शासनकाल में गुप्त सम्राट अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया और चंद्रगुप्त द्वितीय सम्राट पश्चिम में गुजरात से लेकर के बंगाल तक और उत्तर में हिमालय से लेकर नर्मदा नदी तक फैला हुआ था
चंद्रगुप्त द्वितीय ने शक छत्रप रुद्र सिंह दितीय को पराजित किया व्याघ्र शैली में चांदी के सिक्के चलाए सकारी की उपाधि धारण की
तो चंद्रगुप्त द्वितीय ने विक्रम संवत की स्थापना की ऐसा माना जाता है बहुत सारे प्रमाण नहीं मिलते हैं लेकिन विक्रम संवत जो शक शासक को पराजित करते ही जो
चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में चीनी यात्री फाह्यान आया था चंद्रगुप्त के दरबार में नवरत्न थे पहला धनवंतरी चिकित्सा क्षेत्र का प्रभु दूसरा कालिदास यह लेखक था इसके बाद वराह मिहिर खगोल शास्त्री था अमर सिंह छपनक् ज्योतिषी था शंकु शिल्पशास्त्र से जुड़ा हुआ था वेतालभट्ट मंत्र से जुड़ा हुआ था वररुचि संस्कृत व्याकरण से जुड़ा हुआ था घात्खर्पर यह कवि था
चंद्रगुप्त के शासनकाल में कला एवं साहित्य का स्वर्ण काल बोला जाता है कि आर्ट एंड कल्चर की दृष्टि से स्वर्ण काल था अब देखो इकॉनामिक के आधार से स्वर्ण काल मौर्योत्तर काल और आर्ट एंड कल्चर और इसी समय मंदिर स्थापत्य का प्रारंभ होता है भारत में नागर शैली बेसर शैली द्रविड़ शैली के मंदिर स्थापत्य ही से शुरू होता है और इसके समयकाल पर बहुत सारे नवरत्नों के कारण से साहित्य का बड़ा विकास होता है
लेकिन डीएन झा कहते हैं कि कोई भी काल में ना कभी स्वर्ण काल रहा है और ना कभी पत्थर काल रहा है हर टाइम पर स्वर्ण काल रहता था अब जो गरीब व्यक्ति है जो अछूत व्यक्ति है जिसके अधिकारों की तो उसके लिए तो स्वर्ण काल कभी भी नहीं है अभी भी नहीं है
कुमार गुप्त उत्तराधिकारी तो कुमार गुप्त चंद्रगुप्त द्वितीय का पुत्र था इसने भी कई उपाधि धारण की महेंद्रादित्य कि श्री महेंद्र की गुप्त काल वैमेश राशि की अश्वमेध महेंद्र की कुमार गुप्त की मुद्राओं पर गरुण के स्थान पर मयूर की आकृति अंकित है कुमारगुप्त प्रथम के शासनकाल में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना कराई गई कुमार गुप्त के सिक्कों पर कार्तिकेयन का अंकन मिलता है
स्कंद गुप्त : इसने क्रमादित्य की उपाधि ली थी अन्य नाम इसके देवराय भी था स्कंद गुप्त के शासनकाल में हुण फिर एक बिन बुलाए मेहमान आ गए हूणों का आक्रमण हो गया भारत में दो महापुरुष आए पहले उसका पिता या फिर उसका पुत्र कौन थे पहले तोरमार आया उसके बाद मिहिरकुल का शासन भारत में आक्रमण किया बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं हुआ क्योंकि स्कंद गुप्त ने उसको किसी हद तक संभाला था
स्कन्गुप्त के बाद उसके उत्तराधिकारी है स्कंदगुप्त ने अपनी राजधानी को अयोध्या स्थांतरित कर ली हुण आक्रमण से बचने के लिए उत्तराधिकारियों की बात करें तो पूर्व गुप्त कुमारगुप्त द्वितीय बुधगुप्त नरसिंह गुप्त भानुदत्त यह उसके उत्तराधिकारी थे
भानु गुप्त : इसकी जानकारी एरण अभिलेख से प्राप्त होती है और भानुगुप्त का मित्र गोपराज भानुगुप्त की तरफ से हूणों से लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त होता है तो ऐसा माना जाता है कि गोपराज की पत्नी आग में जल कर सती हो जाती हैं तो भारत में पहली बार सती होने का वास्तविक प्रमाण कहां से मिला है एरण अभिलेख से
विष्णुगुप्त तृतीय है गुप्त वंश का अंतिम शासक और इसके बाद गुप्त सम्राट छिन्न-भिन्न हो गया
गुप्त वंश कैसे समाप्त हो गया : जो समुद्रगुप्त ने बनाया तो पहले वही कहानी अयोग्य निर्मल उत्तराधिकारी शासन व्यवस्था विकेन्द्रित हो गई थी संघात्मक नहीं थी उच्च पदों पर योग्यता के आधार पर लोगों की नियुक्ति नहीं हो रही थी अनुवांशिक तौर पर लोग आ रहे थे प्रांतीय शसको को बहुत ज्यादा विशेष अधिकार दे दिए गए थे और फिर हूणों जैसे विदेशी आक्रमण चालू हो गए थे तो इसके बाद फिर गुप्त सम्राट भी आपका तहस-नहस हो जाता है
गुप्तकालीन प्रशासन : राजत्व या दैवीय सिद्ध उत्पत्ति के सिद्धांत पर आधारित था यहां पर भी शासक को ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था राजा का पद वंशानुगत था गुप्तकाल प्रशासन विकेंद्रीकरण व्यवस्था पर आधारित था प्रांतों और प्रांतीय अधिकारियों को बहुत ज्यादा विशेष अधिकार दिए गए थे राजा न्याय व्यवस्था का प्रधान होता था विधि निर्माण का अधिकार सीमित था राजा का मुख्य कारण जनता एवं राज्य की सुरक्षा करना वर्ण व्यवस्था कायम रखना धर्म की रक्षा करना यह सारे राजा के कार्य होते थे
तो केंद्रीय प्रशासन की बात करें तो राजा सबसे ऊपर था प्रशासन का सर्वोच्च अधिकारी होता था कार्यपालिका न्यायपालिका और सेना का प्रधान होता था विधि निर्माण का अधिकार जो है राजा के पास नहीं होता था इसके लिए सर्वोच्च इकाई और बनाई जाती थी जिसको राष्ट्र कहा जाता था
राजा के नीचे संस्था होती थी देश या राष्ट्र यह प्रशासन की सबसे बड़ी इकाई होती थी इसका शासन गोप्ता कहलाता था देश जो तथा भुक्तियो में बंटा होता था इसको ही प्रांत बोलते हैं यहां पर कुमार अमात्यो की नियुक्ति किया जाता था यहां पर ऊपरनिक नामक अधिकारी होता था और प्रांतों का विभाजन विषय में होता था जिला में होता था यानी कि देश सबसे ऊपर देश या राष्ट्र जिला का सर्वोच्च अधिकारी विषयपति होता था जैसे मौर्यकाल में है विषय पति की सहायता के लिए सार्थवाह ,श्रेष्टि और कुलिक बहुत सारे अधिकारी होते थे विषय तहसील में बंटा होता था विधि और तहसील पेठ में बटी होती थी पेठ को एक इकाई बनाई गई सबसे छोटी ईकाई गांव ही होगी
गुप्त साम्राज्य के अधिकारियों की बात करें तो महाबलाधिकृत होता था महाबलाधिकृत सेनापति और अग्रहारिक दान विभाग का प्रधान होता था महादंडनायक न्यायधीश होता था भंडार अधिकृत राजकोष का अधिकारी होता था दंडपाशविक पुलिस विभाग का सर्वोच्च अधिकारी होता था संधिविग्रहिक युद्ध तथा संधि से संबंधित विदेश मंत्री होता था
अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि था भूमि को चार भागों में बांट दिया गया था वास्त्व भूमि मतलब जहां पर लोग निवास करते थे अप्रहत बिना जोती गई सबदल भूमि मतलब घास का मैदान वाली भूमि अवदिक दलदली भूमि तो चार आधार पर भूमि को दिया गया था
राजस्व की बात करें तो राजस्व आय का मुख्य स्रोत होता था टोटल उपज का 1/6 हिस्सा राजस्व के तौर पर लिया जाता था विभिन्न प्रकार के कर लगाए गए थे पहले प्रकार के कर का नाम धान्य होता था अनाज में राजा का एक हिस्सा होता था दूसरा भटकर मतलब पुलिसकर राज्यों को प्रोटेक्शन देता था चाटकर लुटेरों से बचाने के लिए लगाया गया कर है प्रणय यह अनिवार्य होता था विस्ति बेगार कर होता था शुल्क बिक्री कर होता था
बलि एक धार्मिक कर था उपरी कर यह उन रैयतों पर लगाया जाता था जो भूमि के स्वामी नहीं थे तो भू-राजस्व नगद और अनाज दोनों रूप में वसूला जाता था हिरण्य राजस्व वसूलने वाले होते थे और औदारंगिक अनाज के रूप में भू राजस्व वसूलने वाले होते थे
गुप्तकाल में व्यापार की बात सबसे पहली चीज गुप्तकाल में रोमन से जो हमारा मौर्यउत्तर काल तक व्यापार हो रहा था उसका पतन हो गया दूसरा दक्षिण-पूर्वी एशिया चीन के साथ व्यापार में वृद्धि हो गई चीन के साथ व्यापार ज्यादा होने लगा आंतरिक व्यापार में काफी कमी आ गई
समाज ब्राह्मणवादी समाज था ब्राह्मण धर्म का बोलबाला था विभिन्न पेशेवर समूहों में जातियों का बढ़ना कई समूह में जातियों को लगातार बढ़ती चली जा रही थी पुनरुत्थान के कारण से उच्च वर्णों के विशेष अधिकारों में वृद्धि हो गई वैश्यों की सामाजिक दशा तुलनात्मक रूप से नीचे गिर गई शुद्रो की सामाजिक सुधार में थोड़ा बहुत सुधार आया दास प्रथा की बात करें तो इस काल में दास प्रथा प्रचलित थी दासों को मुख्यतः घरेलू कार्यो में लगाया जाता था
इस समय स्त्रियों की सामाजिक दशा में तुलनात्मक गिरावट आई पर्दा प्रथा का प्रचलन यहीं से चालू होता है बाल विवाह की प्रथा बहु विवाह की प्रथा बड़े तेजी से व्याप्त हो जाती है सती प्रथा का साक्ष्य एरंड अभिलेख से प्राप्त होता है देवदासी प्रथा मंदिर की मंदिर स्थापत्य प्राप्त होता है यहां पर एक और दशा प्रारंभ दासी प्रथा मंदिर में बच्चियों को छोटी छोटी बच्चों को मंदिर में ईश्वर की दासी बना दिया जाता था देवदासी प्रेम मंदिर के पुजारियों द्वारा यौन शोषण बहुत तेजी से बढ़ गया गणिकाओं और वेश्यावृति में वृद्धि हुई और कुछ सकारात्मक परिवर्तन की बात करें तो इस महिलाओ के संपत्ति-संबंधी अधिकार दिए गए स्त्रियों को पत्नी और पुत्रों के संपत्ति का उत्तराधिकारी बना दिया गया स्त्रियां प्राकृत भाषा का प्रयोग कर सकती थी गुप्तकाल में धार्मिक व्यवस्था के प्रमुख लक्षण है जटिलता और विविधता दोनों को देखने को मिलती है एक तरफ तो ब्राह्मणवादी पुरवुथान होता है यज्ञ पद्धति पुनः जिंदा हो जाती है जनजातीय तत्वों का प्रभाव स्वरूप भक्ति की अवधारणा को प्रोत्साहन मिलता है मंदिर और मूर्तियों का निर्माण बहुत तेजी से होता है अवतारवाद की अवधारणा का जन्म हो जाता है
ब्राहमण धर्म के अंतर्गत ब्राह्मण और वैष्णव और शैव भक्तों विकासधारा का विकास होता है नव् हिंदू धर्म की शुरुआत इसी काल में होती है और वैष्णव धर्म सबसे प्रधान धर्म गुप्तकाल में बन जाता है शैव धर्म को भी संरक्षक मिलना चालू होता है भगवान हरहरी की मूर्ति देखने को मिली है यह वैष्णव और शैव धर्म में समन्वय को दिखाती है इसी काल में देवताओं के साथ देवियों का नाम भी जोड़ा जाता है त्रिदेव की संकल्पना भी गुप्त काल में प्रारंभ होती है ब्रह्मा विष्णु महेश का जो संकल्पना है वह भी इसी काल में विकसित होती है ब्राह्मण धर्म के कर्मकांडों की वृद्धि हो जाती है मूर्तिपूजा का प्रभाव हो जाता है भक्ति का प्रभाव हो जाता है बौध धर्म और जैन धर्मों पर भी इसका प्रभाव होता है बौद्ध धर्म और जैन धर्म के लोग भी मूर्ति बनाना चालू कर देते हैं तो मंदिरों का निर्माण भक्ति कर्मकांड मूर्तिपूजा इसी काल की प्रमुख विशेषताएं
कला व संस्कृति के तौर पर इसको हम स्वर्ण काल के नाम से जानते हैं क्योंकि इस समय बहुत सारे मंदिरों का निर्माण हुआ गुप्तकाल के प्रमुख मंदिरों की बात करें तो देवगढ़ का दशावतार मंदिर ललितपुर जिला उत्तर प्रदेश में है तिगुआ का विष्णु मंदिर यह जबलपुर मध्य प्रदेश में है एरंड का विष्णु मंदिर यह सागर जिला मध्य प्रदेश में है घुमरा का शिव मंदिर सतना जिला मध्य प्रदेश में नचना कुठारा का पार्वती मंदिर पन्ना मध्य प्रदेश में है भीतर गांव का कृष्ण मंदिर कानपुर उत्तर प्रदेश में है नागौर का शिव मंदिर यह सतना मध्य प्रदेश में तो विभिन्न प्रकार के महत्वपूर्ण मंदिर इस समय बने गुप्त काल में शिक्षा और साहित्य में भी अपार वृद्धि होती है साहित्य की बात करें तो अधिकांश रचनाएं प्रेम प्रधान और सुखांत थी
महाभारत और रामायण काल का अंतिम रूप से संकलन यहीं पर समाप्त होता है रचनाओं की बात करें तो मालविकाग्निमित्रम् कालिदास की थी अग्निमित्र और मालिका कि प्रणव कहानी है प्रेम कथा का वर्णन है इसके बाद अभिज्ञान शकुंतलम कालिदास दुष्यंत और शकुंतला की प्रेमकथा इन्होंने लिखित फिर इसके बाद विक्रमोर्वशीयम् लिखी इन्होंने इसमें पूरा हुआ उर्वशा और अप्सरा उर्वशी का प्रेम लिखा इसमें उन्होंने विक्रमोर्वशीयम् में मुद्राराक्षस विशाखदत्त ने चंद्रगुप्त मौर्य का विश्लेषण कथा बताता है
चंद्रगुप्त द्वितीय द्वारा शक राजा का वध करना ध्रुदेवी से विवाह करना उसका वर्णन मिलता है मृच्छकटिकम् यह शुद्रक की एक पुस्तक है जिसमें चारूदत्त और वसंतसेना की प्रेम कथा के बारे में बताया गया है स्वप्नवासवदत्तम् भी इसी समय की पुस्त जो भास्य द्वारा लिखी जाती है इसमें महाराज उदयन और वासवदत्ता की प्रेम कथा के बारे में चर्चा की गई है इसके अलावा अन्य बहुत सारी रचनाएं लिखी गई इसमें कालिदास ने ऋतुसृंगार कुमारसंभव लिखी मालविकाग्निमित्रम् लिखी रघुवंशी अभिज्ञान शाकुंतलम् विक्रमोर्वशीयम् यह सारी रचनाएं कालिदास की हैं दस कुमार चरित्र डंडीन ने लिखी थी काव्य दर्शन यह भी दंदीन की पुस्तक है अमर सिंह ने एक पुस्तक लिखी अमरकोश वराहमिहिर ने पंचसिद्धांतिका को लिखा आर्यभट्ट ने ब्रह्म सिद्धांत, सूर्य सिद्धांत ,आर्यभट्टीयम इसी टाइम पर आपको पता विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी आर्यभट्ट ने बहुत सारे काम किए पंचतंत्र विष्णु शर्मा की पुस्तक इसी समय आई काम-सूत्र वात्सायन की पुस्तक इसी समय आई चरक द्वारा चरक संहिता लिखी गई
गुप्तोत्तर काल : भारत के राजनीतिक इतिहास में गुप्तवंश के पतन के पश्चात फिर विकेंद्रीकरण हो गया फिर छोटे-छोटे भागों में छोटे-छोटे क्षेत्रों का आविर्भाव हो गया और गुप्त वंश के पश्चात छोटे-छोटे राज्य ने जैसे कि थानेश्वर जो पंजाब में है वहां पर पुष्यभूति वंश आया और काफी लंबा शासन किया और कहते हैं अंतिम शासक थे प्राचीन भारत के इतिहास में इसके बाद फिर पूरा भारत पूर्व मध्यकाल में विखंडित हो जाता है राजपूत कारों की स्थिति आ जाती हैं
तो गुप्त वंश के बाद अनेक छोटे छोटे राज्यों ने जैसे कि थानेश्वर का पुष्य भूति वंश कन्नौज में मौखरि वंश के शासक आ गए बंगाल में गौड़ शासक आ गए मालवा में यशोवर्मन आ गए इसी दौरान दक्षिण भारत में भी विभिन्न प्रकार के राजपूत वंश चुके थे और फिर बड़ा बवाल चालू हुआ
पुष्यभूति या वर्धन वंश के शासक तो पुष्यभूति वंश की स्थापना थानेश्वर का हरियाणा में यह संभवता गुप्तों के सामंत थे जिन्होंने मौका पाकर स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया इस वंश की प्रारंभिक राजधानी थानेश्वर थी पुष्यभूति वंश के प्रभावशाली शासकों की बात करें तो प्रभाकर वर्धन से जो इसके संस्थापक थे इस वर्धन वंश की शक्ति और प्रशंसा और इसका संस्थापक काम किसने के प्रभाकरवर्धन ने किया प्रभाकर वर्धन ने परम भट्टारक की उपाधि ली महाराजाधिराज की उपाधि ली और इस बात का द्योतक है कि एक स्वतंत्र शक्तिशाली शासक थे उसी समय एक राइटर था बाणभट्ट उसने पुस्तक लिखी हर्ष चरित्र तो बाणभट्ट ने हर्षचरित में प्रभाकर वर्धन के लिए अनेक अलंकरणों का प्रयोग किया है अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के लिए प्रभाकर वर्धन ने अपनी पुत्री का विवाह राजश्री का विवाह कन्नौज के मौखरी शासक गृह वर्मन से कर दिया यहां पर कन्नौज में मौखरि वंश का शासन था कन्नौज को लेकर बवाल कटेगा अभी तक सभी यह पाटलिपुत्र में थे अभी पटना तक कहानी चल रही थी अभी केंद्र पटना था अब केंद्र यह बन जाएगा कन्नौज लड़ेंगे सब एक दूसरे को मारेंगे पीटेंगे
त्रिपक्षीय संघर्ष होगा दक्षिण भारत से राष्ट्रकूट आएंगे बंगाल से पाल वंश के लोग आएंगे इधर से गुर्जर प्रतिहार के तो लड़ाई चलेगी तो प्रभाकर वर्धन ने अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए अपनी पुत्री का विवाह दूसरे राज्य के शासक के साथ कर दिया जो मौखरि वंश का शासन ग्रिहवर्मन था फिर इसके बाद प्रभाकरवर्धन के बाद उसका बेटा आता है जिसका नाम रहता राज्यवर्धन तो होता क्या है कि हूणों का आक्रमण हुआ जो प्रभाकरवर्धन का अंतिम समय चल रहा था तो हूणों का आक्रमण हुआ लेकिन हूणों से युद्ध जितने भी प्रभाकरवर्धन असमर्थ रहा है
और उसने अपने पुत्र राजवर्धन को युद्ध के लिए गया लेकिन प्रभाकरवर्धन की मृत्यु हो जाती है जब युद्ध से राजवर्धन वापस लौटता है तो पिता प्रभाकरवर्धन की तब तक मृत्यु हो जाती है और इसी दौरान जो है गड़बड़ हो जाती है गड़बड़ ये हो होती है मालवा का शासक देवगुप्त था इसने बंगाल के शासक शशांक गौड शासक था उससे मिला मिलने के बाद बोला की मौखरी वंश के शासक को खत्म कर देते है पूरी प्लानिंग बनाई अब यह राजवर्धन का कौन था मौखरि वंश का शासक बहनोई था बहन की शादी की थी वहां पर तो ऐसे में मिलकर निपटा ही देते हैं और राजश्री को किडनैप कर ले गए बंदी बना लिया अब यह जब जानकारी उसे मिलती है तो राजवर्धन बदला लेने के लिए देवगुप्त से शशांक से और इसी क्रम में राज वर्धन ने देवगुप्त को पराजित कर दिया लेकिन शशांक ने राजवर्धन से पहले मित्रता का हाथ मिलाया और अपने शिविर में बुलाया और हमला कर दिया
अब छोटा भाई बचा हर्षवर्धन राजवर्धन की सूचना पाकर हर्षवर्धन थानेश्वर से पूरी बागडोर संभाली और बागडोर संभालने के बाद जो है अपने बहन को बचाने के लिए निकल पड़ा बहन देवगुप्त की कैद में थी और भाई और बहनोई की हत्या का बदला भी लेना था उसे तो हत्या का बदला लेने के लिए हुआ क्या कि देव गुप्ता ने जब सुना कि हर्षवर्धन और इतनी बड़ी सेना लेकर आ रहा है तो राजश्री को छोड़ दिया
और भाई और पति के मरने के बाद विंध्य पहाड़ियों में सती होने के लिए चली जाती है और इसी समय बौध भिक्षु दिवाकर मित्र की सहायता से हर्ष राजश्री को बचाता है और ग्रहवर्मन का कोई उत्तराधिकारी नहीं था तो राजश्री की सहमति से हर्ष कन्नौज आ जाता है भाई-बहन दोनों बैठ शासन करते हैं पहला प्रमाण मिलता है इतिहास में जहां भाई बहन दोनों शासक बनते हैं एक साथ दिए यानि कि थानेश्वर को कन्नौज में मिला लेता है अधीनता स्वीकार कर लेता है तो पांच क्षेत्रों को छोड़कर पहले जो है पंजाब का क्षेत्र कन्नौज का हिस्सा था कन्नौज क्षेत्र यह बहन के माध्यम से इसके पास आ जाता है गौड बंगाल का शशांक वाला हिस्सा चढ़ाई करके उस क्षेत्र को भी अपने अधीन बना लेता है मिथिला उडीसा के क्षेत्र को भी अपने साथ मिला लेता है और मालवा के राज्यों को भी अपने अधीन बना लेता देवगुप्त का जो क्षेत्र था
वल्लभी के शासक ध्रुवसेन दितीय के साथ अपनी पुत्री का विवाह भी करता है वैवाहिक संबंध स्थापित करके अपने आप को और मजबूत बनाने का प्रयास करता है हर्ष ने दक्षिण में भी अभियान किया लेकिन दक्षिण में उससे खतरनाक व्यक्ति बैठा था चालुक्य शासक पुलकेशिन दितीय तो जैसे यह नर्मदा नदी के नीचे जाता है यह हार जाता है
और पुलकेशिन दितीय को पल्लव शासक हरा देते है हर्ष बौद्ध धर्म की महायान शाखा का संरक्षक बन जाता है और इसी के समय पर ह्वान्सोंग आता है यह बहुत दानी प्रवृत्ति का था कहते हैं कि प्रयाग में हर 5 साल में जाता था वह अपने साम्राज्य का जितना भी है धन-दौलत होता सारा धन दान कर देता था इसके बाद मौखरि वंश कन्नौज में था इस वंश का संस्थापक शुरुआत में गुप्तो के सामंत थे लेकिन इस वंश के प्रारंभिक तीन शासको में से नाम पता चलते हैं हरी वर्मा आदित्य वर्मा ईश्वर वर्मा महाराज की उपाधि धारण की ओर बाद के जो शासक हैं तो जिसकी हम बात करते हैं जिससे विवाह हुआ था उसका क्या नाम था ग्रह वर्मा ग्रह वर्मा से पहले तीन शासक थे इसान वर्मन सरवन अवंतिवर्मन चौथा ग्रह भ्रमण और बाद में हर्ष आ जाता है और राजश्री के साथ शासन करता है और फिर अंतिम शासक होता है सू चंद्रवर्मन अंतिम शासक के तौर पर सू चंद्रवर्मन बैठता और इसी दौरान कन्नौज की स्थिति बहुत कमजोर हो जाती है हर्ष रहता नहीं है और इसी दौरान भारत में भारत का जो पूरा क्षेत्र है यह राजपूत काल में तब्दील हो जाता है छोटे छोटे वंशों का हर जगह पर कहीं पर प्रतिहार वंश कहीं परमार वंश कही पर चंदेल वंश कहीं भी पाल वंश इनका स्थापना चालू हो जाता है अब क्योंकि सेंटर पॉइंट यह बन चुका था कन्नौज व्यापारिक दृष्टिकोण से तो कन्नौज के लिए सब घात लगा कर बैठ जाते हैं यह कन्नौज को लेना है तो कन्नौज के लिए त्रिदल संघर्ष होता है
सबसे पहली बात सबको एकछत्र सम्राट बनना होता है भारत में इस जगह को लोकेशन को अपने-अपने सबसे इंपोर्टेंट होता दूसरा यह जो क्षेत्र गंगा-यमुना के दोआब क्षेत्र था यह क्षेत्र पटना से मगध साम्राज्य से यह सेंटर बन चुका था व्यापारी कृषि संसाधनों थे यहां पर नियंत्रण करना था इस पूरे क्षेत्र में और दूसरी सामरिक दृष्टिकोण से बहुत जरूरी थी तो अब इनको यह नीचे यहां पर राष्ट्रकूट शासक कृष्णा नदी के तटीय वाले हिस्से में
दक्षिण भारत का इतिहास : नर्मदा नदी से नीचे का पूरा क्षेत्र हैं लगभग ग्यारह सौ BC के आसपास यहां पर लोहे का प्रयोग प्रारंभ हो जाता है और इसका प्राचीनतम साक्ष्य हुलुरु से प्राप्त होता है दक्षिण भारत में लौह युगीन अधिकांश जानकारी महापाषाण काल के कब्रों की खुदाई करने पर मिलती है जब मृतकों को आबादी से दूर के कब्रिस्तानों में पत्थरों के बीच जाता दफनाया जाता है तो इस परंपरा की शुरुआत लौह युग के साथ प्रारंभ होती है इसी को महापाषाण काल कहते हैं तो दक्षिण भारत में महापाषाण काल को कई तरीके के शोध के तौर पर देखते हैं इस काल आरंभ 1000 BC से होता है महापाषाण कालीन संस्कृति की स्थापना की जो विशेषताएं सबसे पहले लोहे से संबंधित है इस क्षेत्र की और काले और लाल रंग की मृदभांडों का व्यापक उपयोग किया जाता है
यहां के लोग जो है पहाड़ी ढलानों पर रहते थे कृषि का व्यापक विकास नहीं हुआ होगा ईसा की प्रथम शताब्दी में लोग नदियों के मुहानों और भूमि के उपजाऊ क्षेत्रों पर कृषि के विकास को प्रारंभ करना शुरू कर चुके थे महा पाषाण काल में शवाधान के प्रकार कितने मिलते हैं पहला है पिट सर्किल इसको गर्त चक्र बोलते हैं शव को मांसरहित बनाकर दफनाया जाता था गड्ढे के चारों ओर पत्थरों का चक्र बना दिया जाता था
ताबूत ताबूत में ग्रेनाइट की चट्टानों के ताबूत में शव को रखकर ऊपर से बड़ी-बड़ी शिलाए रख दी जाती है इसको ताबूत कहते थे ताबूत प्रकार का महा पाषाण काल और एक है मिन्हिर इसे पंक्तिबद्ध दीर्घमा स्थल कहते हैं इसके तहत एक स्तंभ के रूप में जो है किसी भी चीज को बड़े-बड़े पत्थर रखे जाते थे लगभग 2 से 6 मीटर की ऊंचाई के पत्थर के टुकड़ों को दक्षिण भारत में यहां पर कोई ऐसा पर्टिकुलर शासन काल नहीं मिलता है यहां के जो इस समय के बहुत सारे विद्वान है और उन विद्वानों के द्वारा जो यहां पर साहित्य का संग्रह किया गया तो दो संगम होते हैं संगम काल के निर्धारण में विद्वानों में बहुत मतभेद भी है उस समय को सही से निर्धारित नहीं कर पाते कुछ का कहना है कि प्रथम शताब्दी से लेकर तीसरी शताब्दी तक यह संगम काल जैसे आरसी मजूमदार कहते हैं कि संगम काल प्रथम सदी से लेकर के तीसरी शताब्दी तक
काल के राजनीतिक जीवन के बारे में जानकारी नहीं मिलती है बल्कि साहित्य को पढ़ने के बाद जो इस समय पर बहुत सारे साहित्य का संकलन किया गया उनसे ही यहां के शासनकाल की जानकारी यहां पर सामाजिक जीवन के बारे में जानकारी यह सब मिलती है तो संगम साहित्य के सृजन का काल जो माना जाता है आमतौर पर जो आपका सबसे मान्य मत है वह 320BC से लेकर कि 300 AD तक माना जाता है संगम काल का है तो संगम क्या है संगम एक सभा है टोटल तीन संगम सभा हुई पहली संगम मदुरै में हुई है जिसके अध्यक्ष अगस्त ऋषि इन्हें अगस्तियार भी बोलते हैं और दक्षिण भारत का आर्यीकरण अगस्त ऋषि के द्वारा किया गया 449 सदस्य इसमें उपस्थित हुए थे और इसमें अगत्यिन ग्रंथ को संकलित किया गया इसके बाद दूसरा संगम कपाट पुरम में होता है इसके अध्यक्ष का नाम जो है अगतियार/तोल्कापीयार बोलते है इसमें टोटल 49 सदस्य सम्मिलित हुए और यहां पर तोलकाप्पियम ग्रंथ जो तमिल व्याकरण है उसका संकलन किया गया
तीसरी संगम भी उतरी मदुरै में होती है इसके अध्यक्ष नखनीर होते हैं और इसमें भी 49 सदस्य सम्मिलित होते हैं और इसमें पत्तोंपात्तू ,इत्तौतुगाई करके कई किताबे तमिल किताबों का संकलन किया जाता है और इनके किताबों को पढ़ने के बाद हमें संगम कालीन तीन राजवंशों के बारे में पता चलती है जानकारी मिलती है पहला राजवंश चेर है
संगम कालीन राजवंशो में सबसे प्राचीन चेर राजवंश है इसमें केरल एवं तमिलनाडु का हिस्सा सम्मिलित है इसकी राजधानी कोरकई /वन्जिपुर प्रथम शासक था उदयन जेराल प्रतीक चिन्ह धनुध था सेन गुट्वन ने सर्वप्रथम पत्नी पूजा आरंभ की थी अच्छी तरह भारत में गन्ने की खेती की शुरुआत भी हो जाती है आदिल गिमाम या औदिग्म आची ने दक्षिण भारत में गन्ने की खेती की प्रारंभ की चोल वंश : पेन्नार और वेंनार नदी के मध्य का स्थान है और इसकी राजधानी थी उरैव्रुर/ कवेरी पत्तनं इसका प्रतीक चिन्ह बाघ था और चोल राजा येलारा ने श्रीलंका पर विजय भी प्राप्त की थी तो इसमें कुछ प्रमुख शासको में में कराइकल एक प्रमुख शासक था सर्वाधिक महत्वपूर्ण चोल राजाओं में कराइकल था इसने जो है कई युद्धों में एकभिंडी का युद्ध हुआ था जिसमें चेर और पांडे सहित 11 राजाओं को हराया था उसने इसके अलावा ऐसे और भी युद्ध हुए हैं
इसने कावेरी नदी पर पुल बनवाया था राजधानी कावेरिपत्तिनम स्थांतरित की थी और इसने राजसू यज्ञ भी करवाया था पांडव वंश : यह भारतीय प्रायद्वीप के दक्षिण-पूर्व भाग में अवस्थित था तमिलनाडु वाले क्षेत्र में इनकी राजधानी मदुरा/कोल्कई यहां का प्रतीक चिह्न था मछली
तो संगम काल जो है राजतंत्रात्मक था यहां पर राजा का पद वंशानुगत होता था न्याय व्यवस्था का सर्वोच्च प्राधिकारी राजा ही होता था समाज में वर्ण व्यवस्था का प्रभाव था अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि और व्यापार तथा आंतरिक व्यापार वस्तु विनिमय प्रणाली पर ही आधारित था यहां पर वैदिक धर्म की प्रधानता थी मुरूगन या सुब्रह्मण्यम की मुर्गा मतलब कार्तिकेय कार्तिकेय की पूजा यहां पर होती थी पशुबलि प्रथा जो है यहां पर बड़े स्तर पर प्रचलित थी दक्षिण भारत का प्रथम चरण इस पर तीन-चेर , चोल और पांड्य अब दूसरा चरण भी है कि अब पल्लव वंश, चोल वंश यह फिर से आएंगे इस समय भूमि अनुदान की प्रचुरता में वृद्धि हुई बौद्ध जैन धर्म की तुलना में ब्राह्मण धर्म का प्रसार हुआ इस युग में दक्षिण भारत में अनेक मंदिर बनवाए गए मंदिरों का युग भी कहा जाता है दूसरे चरण को प्राकृत भाषा के स्थान पर स्थानीय और संस्कृत भाषा का प्रभाव बढ़ा तो दक्षिण भारत का जो द्वितीय चरण है इसमें पहला है
पल्लव वंश : पल्लव वंश का संस्थापक बप्प देव था सातवाहन वंश के विघटन के बाद तीन वंशो का जन्म होता है इछाकु वंश ,वकाटक वंश और पल्लव वंश तो ये यही से आये थे ऐसा माना जाता था कि यह सात वाहनों के अधीन किया था प्रांतीय शासक था और मौका पाकर स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर ली पल्लव वंश का वास्तविक जो संस्थापक उसे सिंह विष्णु माना जाता है और यह एक शक्तिशाली शासक था इसने अवनी सिंह की उपाधि धारण की थी इसके बाद जो प्रमुख शासक थे नरसिंह वर्मन प्रथम नरसिंह वर्मन प्रथम ने महाबलीपुरम/मल्लापुरम नगर बसाया
नरसिंह वर्मन द्वितीय : नरसिंह वर्मन द्वितीय को राज सिंह भी इसको बोलते हैं इसने कांची में कैलाश मंदिर बनवाया महाबलीपुरम में शोर मंदिर बनवाया इसके दरबार में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति दन्दीन रहते थे इन्होने ही 10 कुमार चरित और अवंतिसुंदरी दो पुस्तकों को लिखा इसके बाद पल्लव वंश के राजाओं की बात करें तो सबसे पहला राजा विष्णु सिंह विष्णु दूसरे नंबर पर महेंद्र वर्मन प्रथम इसके बाद नरसिंह वर्मन प्रथम फिर महेंद्र वर्मन द्वितीय फिर इसके बाद परमेश्वर वर्मन प्रथम फिर नरसिंह वर्मन द्वितीय है फिर परमेश्वर वर्मन दितीय है फिर नंदि वर्मन द्वितीय फिर अपराजित जो है पल्लव वंश का अंतिम शासक था
चालुक्य वंश : प्राचीन ग्रंथों के अनुसार जयसिंह ने चालुक्य वंश की स्थापना की थी लेकिन इसका कोई प्रमाण नहीं है वास्तव में देखा जाए तो इस वंश की स्थापना का श्रेय जाता पुलकेशिन प्रथम को जाता है इस वंश को कई शाखायो में विभाजित किया जाता है लेकिन मुख्य शाखा का नाम बादामी या वातापी की शाखा है पुलकेशिन प्रथम ने वादामी को अपनी राजधानी बनाया पुलकेशिन दितीय के बाद से ही इसका विभाजन होना शुरू हो जाता है पुलकेशिन द्वितीय का भाई था विष्णु वर्धन इसने बेगी की शाखा बना ली इसके बाद निकलकर आये विक्रमादित्य प्रथम विक्रमादित्य प्रथम से ही उसका भाई निकला जयसिंह वर्मन उसने कल्याणी की शाखा गुजरात को जन्म दिया
इसके बाद अगली कल्याणी की शाखा /पश्चमी शाखा जब राष्ट्रकूट खत्म हो जाएंगे हैं
चोल वंश : चोल साम्राज्य का संस्थापक था विज्यालय है संगम काल में चोल वंश का संस्थापक इसे ही माना जाता है और तन्जुर को अपनी राजधानी बनाई और इसके बाद जो है इसने मैं पांडय शासको को हराया राजराज प्रथम इसका नाम अरमोली वर्मन भी रहता है चोलो की वास्तविक संस्थापक कह सकते हैं
इसने तंजौर के बृहदेश्वर मंदिर राजराजेश्वर मंदिर का निर्माण कराया तो बृहदेश्वर मंदिर तंजौर पर है पूरी तरीके से ग्रेनाइट का बना हुआ मंदिर है शिव का मंदिर है यह इसका निर्माण राजराज प्रथम ने कराया है यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में नाम है फिर आता है राजेंद्र प्रथम सबसे ज्यादा खतरनाक व्यक्ति राजराज का पुत्र और उसका उत्तराधिकारी सबसे पहले पूरा श्रीलंका जीता है श्रीलंका जीतने के बाद पांडोर केरल से चेरो को खत्म कर देता पूरी तरीके से वेगी की शाखा को खत्म कर देता है इसके बाद राजेंद्र प्रथम की सर्वाधिक महत्वपूर्ण जो विजय थी वह कार्ड रारम के श्री विजडम थी इसके बाद यह जावा समुद्र यह मलय जितना भी इंडोनेशिया वाले क्षेत्र को जीतता है
अकेले राजेंद्र प्रथम अंडमान निकोबार दीप समूह को जीता यह पूरा है बंगाल की खाड़ी को चोल झील में तब्दील कर देता है तो यह को सबसे महत्वपूर्ण शासक था यह और यह गंगा नदी तक जाता है और अपना नाम रखता गंगाईकोंडचोलापुरम इसके साम्राज्य का विस्तार हो जाता है
राजेंद्र प्रथम के बाद उसका पुत्र आता है राजाधिराज प्रथम चोल गद्दी पर बैठता है और यह भी खतरनाक था लेकिन चालुक्य नरेश सोमेश्वर के विरुद्ध कोप्पम के युद्ध में यह वीरगति को प्राप्त हो जाता है फिर इसका भाई आता है राजेंद्र दितीय है
चोल वंश का सबसे बड़ा फीचर था ग्रामीण प्रशासन था इन्होंने ग्रामीण प्रशासन को सबसे अच्छे से इन्होंने डेवलप किया था केंद्रीय प्रशासन में सर्वोच्च अधिकारी राजा होता था राजा का पद वंशानुगत था युवराज बड़े पुत्र को ही बनाया जाता था गांव कई तरीके से बांट रखा था वह स्थानीय प्रशासन इन की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता थी गांव में साधारण गांव था जिसे उर कहा जाता था अग्रहार गांव जो था यह ब्राह्मणों को दान दिए गए मुक्त गांव होते थे और देवदान यह गांव मंदिरों को दान कर दिए जाते थे
साउथ में मंदिर इकॉनमी एक अलग तरीके से चलती थी मंदिर भी अर्थव्यवस्था का केंद्र हुआ करते थे दक्षिण भारत में स्थानीय स्वशासन में इन्होंने सभाओं को तीन प्रकार से बनाया था एक संस्था उर गांव की प्रधान समिति होती थी सर्वसाधारण की समिति होती थी सभा और महासभा होती थी यह अग्रहार गांव में होती थी तथा ब्राह्मणों का संगठन था नगर व्यापारियों की समिति होती थी समाज एवं वर्ण व्यवस्था पर आधारित होती थी सजातीय अनुलोम-विलोम प्रतिलोम विवाह होते थे पर्दा प्रथा का प्रचलन नहीं था सती और बहु विवाह प्रचलित थे
सबसे पहला एक ही कब्र से 3 मानव कंकाल निकले हैं दमदमा से जो प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश में है इसके बाद विंध्य क्षेत्र में लेखैया इलाके में सर्वाधिक मानव कंकाल मिले हैं विक्रमशिला की स्थापना और विक्रमशिला महाविहार की स्थापना धर्मपाल के द्वारा करवाई गई कलिंग युद्ध का निवारण अशोक के शिलालेख 13वें शिलालेख में मिलता है जो इतिहासकार सिकंदर के साथ भारत आए प्लूटार्क , कर्तेयस ,दियोडोरस ,अरियन ,जुस्टिक,निर्य्कस थे
एलोरा की गुफाएं इसका निर्माण राष्ट्रकूट शासक ने कराया था औरंगाबाद में बौद्ध जैन और हिंदू तीनों धर्मों से संबंधित हैं अजंता की केवल बौध धर्म से जुडी है अगला है मीनाक्षी मंदिर तमिलनाडु में मदुरै में है इसका निर्माण पांडय शासकों के द्वारा करवाया गया था यह माता पार्वती को समर्पित मंदिर है खजुराहो मंदिर इसका निर्माण चंदेल राजाओं ने करवाया था मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में यह मंदिर अवस्थित हैं हिंदू धर्म के शासक वैष्णव और शैव संप्रदाय जैन धर्म से भी जुड़ाव रखते हैं इसके जो प्रमुख मंदिर है खजुराहो के पहला है चौसठ योगिनी मंदिर माकन दंतेश्वरी मंदिर वराह मंदिर लक्ष्मण मंदिर महिषासुरमर्दिनी मंदिर विश्वनाथ मंदिर हनुमान मंदिर ऐसे बहुत सारे मंदिर है यहां पर मंदिरों का समूह है पूरा का पूरा यह जैन धर्म वाले कौन से हैं
कीर्तिस्तंभ चित्तौड़गढ़ में और इसका निर्माण महाराणा कुंभा ने करवाया था मालवा शासक महमूद खिलजी की विजय पर इन्होंने किया था पृथ्वीराज चव्हाण के बारे में आप जानते हैं चौहान वंश का यह पृथ्वीराज तृतीय तीन पृथ्वी-2 पृथ्वीराज इससे पहले हो चुके थे इसको पृथ्वीराज तृतीय भी कहते हैं तराइन का प्रथम 1191 में हुआ पृथ्वीराज चव्हाण मोहम्मद गौरी के बीच हुआ पृथ्वीराज चौहान जिंदा रहा जीत गया तराइन का द्वितीय युद्ध अगले ही वर्ष का 1192 में पृथ्वीराज चव्हाण की मृत्यु हो जाती है और मोहम्मद गोरी जीत जाता है यहीं पर दो लोग रहते थे पृथ्वीराज चौहान के दरबार पर चंदरबरदाई और ज नक दो कवि रहते थे चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराज रासो लिखी है और ज्यानक ने पृथ्वीराज विजय लिखि पुराणों की कुल संख्या 18 इसकी रचना लोमश ऋषि ने और उग्र सवा दो लोगों ने मिलकर कि अशोक द्वारा स्थापित सबसे सुरक्षित स्तंभ कौन सा है लोरिया नंदनगढ़ भारत के प्राचीनतम शिलालेख किस भाषा में पाए गए हैं प्राकृतिक में गंगा घाटी में धान के प्राचीनतम स्रोत कहां मिला है लहुरादेवा में भीमबेटका की गुफाएं मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित है
