भगवान् शिव की महिमा और कावड़ यात्रा की शुरुआत
सनातन धर्म में सावन का महीना देवो के देव महादेव को समर्पित होता है धार्मिक मान्यता है की भगवान् शिव की पूजा करने से उपासक की सभी मनोकामनाये यथा शीघ्र पूर्ण हो जाती है भगवान शिव महज जलाभिषेक से ही प्रश्नं हो जाते है लेकिन क्या आप जानते है कि कावड़िया गंगाजल से ही क्यों जलाभिषेक करते है ?
कालान्तर में जब असुरो का आतंक बढ़ गया तो सभी देवी देवता भगवान विष्णु के पास गए और असुरो पर विजय प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन का सुझाव दिया देवताओ और असुरो ने वासुकी नाग और मंदार पर्वत की मदद से समुद्र मंथन किया जिससे 14 रत्न समेत अमृत और विष की प्राप्ति हुई विष प्राप्ति के बाद असमंजस की स्थिति बन गई की विष कौन ग्रहण करेगा सभी एक एक करके पीछे हटने लगे तो विष्णु जी ने शिव जी के शरण में जाने की सलाह दी
तब समस्त लोको के कल्याण के लिए शिव जी ने विष को ग्रहण किया विष ग्रहण करते समय माता पार्वती ने शिव जी की ग्रीवा (गर्दन) पकड रखी थी इसके कारण से विष गले में ही अटक गया जिसके कारण से अत्यंत पीड़ा , शरीर तपने लगा भगवान व्याकुल हो उठे इस दुःख को कम करने के लिए असुरो और देवताओ ने गंगाजल से शिव जी का अभिषेक किया इसी समय से शिव जी अपने शीश पर चन्द्रमा भी धारण किया क्योकि चन्द्रमा शीतलता का प्रतीक मानी जाती है और भगवान् को आराम मिला इसी कारण से शिव जी नीलकंठ और देवो के देव महादेव कहलाते है |
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