प्रेम विवाह VS अरेंज विवाह

 


प्रेम विवाह

क्या प्रेम विवाह से पहले माता पिता की इजाजत लेना अनिवार्य होना चाहिए?

क्योकि इस मामले को लेकर समाज दो भागो में बँटा नज़र आ रहा जहाँ एक पक्ष का मानना है कि शादी जैसे बंधन में बंधने से पहले माता पिता से अनुमति और आशीर्वाद लेना चाहिए क्योंकि यही बच्चे का पालन पोषण करते है वहीं दुसरे पक्ष का तर्क है कि लड़का और लड़की जब बालिग हैं तो वे अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र होते हैं प्रेम विवाह से पहले अनुमति लेने का मामला अब गुजरात से निकलकर देशभर में चर्चा का विषय बन गया दरअसल राज्य के मुख्यमंत्री ने कहा की संविधान के दायरे में रहकर सरकार प्रेम विवाहों में अभिभावकों की सहमति को अनिवार्य बनाने की संभावना पर विचार कर रही है राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ने शादी के लिए लड़कियों के भागने के मामलों का अध्ययन करने का सुझाव भी दिया ताकि प्रेम विवाह के लिए अभिभावकों की सहमति को अनिवार्य बनाने की दिशा में कुछ किया जा सकेभारतीय क़ानून के मुताबिक़ शादी के लिए लड़की की उम्र वर्ष और लड़के की उम्र वर्ष होनी चाहिए ऐसे में लड़का और लड़की चाहें किसी धर्म जाति के हों वो शादी कर सकते हैं अगर इनके धर्म अलग हैं तो ये स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी का रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं इसके लिए इन्हें रजिस्ट्रेशन कार्यालय के बाहर 30 दिन का नोटिस लगाना होता है ताकि अगर किसी को कोई आपत्ति हो तो वो आकर बता सके इसके बाद ऐसे मामलों में दो गवाहों के समक्ष शादी का रजिस्ट्रेशन हो जाता है संविधान के जानकार फ़ैजान मुस्तफ़ा के अनुसार अगर लड़का और लड़की एक दूसरे को पसंद करते हैं और शादी करने का फ़ैसला कर लेते हैं तो ऐसे मामलों में माँ बाप की कोई भूमिका नहीं रह जाती बशर्ते वो शादी करने की क़ानूनी उम्र को ध्यान में रखकर ऐसा कर रहे हों भारतीय संविधान के अनुसार भारत के नागरिकों को कई अधिकार दिए गए हैं जैसे अनुच्छेद 19 में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद में व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार स्वतंत्र और गौरवपूर्ण जीवन जीने का अधिकार भारतीय फिल्मों को देखने से ऐसा लगता है कि युवा भारतीयों के लिए रोमांस और प्रेम के सिवा कोई दूसरा काम नहीं हैये सच भी हो सकता है लेकिन अभी भी अधिकांश भारतीयों ने अरेंज मैरिज ही की हैं के एक सर्वे के अनुसार एक लाख हज़ार से ज़्यादा भारतीय परिवारों में प्रतिशत से ज़्यादा शादीशुदा लोगों ने कहा कि उनकी शादी अरेंज मैरिज है महज तीन प्रतिशत लोगों ने अपने विवाह को प्रेम विवाह बताया जबकि केवल दो प्रतिशत लोगों ने अपनी शादी को लव मैरिज बताया भारत में शादियों की सबसे आवश्यक गुण अपनी जाति में ही शादी काहोना है के एक सर्वे में शहरी भारत के 70 हज़ार लोगों में 10 प्रतिशत से भी कम लोगों ने माना कि उनके परिवार में जाति से अलगकोई शादी हुई है वही महज पांच प्रतिशत लोगों ने माना की परिवार में किसी ने धर्म से बाहर जाकर शादी की है अधिकतर भारतीय युवा जाति के बंधन को तोड़कर शादी करने की इच्छा जताते हैंलेकिन कई सर्वे से यह स्पस्ट होता है कि इच्छा जताने और वास्तविकता में उसे करने में काफ़ी अंतर है 2015 में एक रिसर्च टीम ने मेट्रीमोनियल वेबसाइट के ज़रिए एक हज़ार संभावित दुल्हनों से संपर्क किया जिसमे से आधी दुल्हनों ने जाति से अलग शादी करने की इच्छा जताई 2014 में दिल्ली के सात ज़िला अदालतों में 2013 के बलात्कार के सभी मामलों के फ़ैसले को देखा गया तो क़रीब 600 ऐसे मामले थे जिसमे से 460 मामलों की सुनवाई पूरी हो चुकी थी जिसमे 40 प्रतिशत मामले या तो आपसी सहमति या फिर कथित तौर परबने संबंधों के थे इनमें से अधिकांश जोड़े घर से भाग कर शादी करने वाले प्रतीत हो रहे थे जो बाद में महिला के माता पिता की ओर से अपहरण और बलात्कार के मामले दर्ज किए गए थेइनमें से कई अंतर-जातीय और अंतर-धार्मिक संबंध के भी थे एक सर्वे के मुताबिकभारत में लगभग 75 लोग अरेंज मैरिज करने में यकीन रखते हैंक्योंकि अरेंज मैरिज में आप पार्टनर का चयन भावनाओं में आकर नहीं बल्कि अच्छे से विचार करके अपनी पर्सेनेलिट,बैकग्राउंड, स्टेटस से मैच करते हुए साथी चुनते हैंअक्सर यह देखा जाता है कि लव मैरिज करने के बाद10 में से 9 रिश्ते बहुत जल्दी टूट जाते हैं मुश्किल से एक साल भी नहीं इसके दो खास कारण होते हैं एक प्यार की सही समझ ना हो पाना दूसरा घर वालों का सपोर्ट नहीं मिल पाना शादी का रिश्ता बहुत प्यारा और पवित्र होता हैचाहे वह लव मैरिज हो या अरेंज,दोनों में प्यार और विश्वास होना बहुत जरूरी हैअक्सर लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि लव मैरिज और अरेंज मैरिज में से कौन सी ज्यादा अच्छी हैकुछ लोग यह धारणा बना लेते हैं कि लव मैरिज में व्यक्ति एक दूसरे के बारे में पहले से सब कुछ जानता हैऐसे में आगे का जीवन बेहद बोरिंग हो जाता हैवहीं कुछ लोग यह भी धारणा बनाते हैं कि अरेंज मैरिज में एक दूसरे को नहीं जानते ऐसे में अगर भविष्य में उनके विचार नहीं मिले तो क्या होगा इस कशमकश में लोग लव मैरिज और अरेंज मैरिज के बीच में अटक कर रह जाते हैं और परिवार के दबाव में आकर कोई भी कदम उठा लेते हैंअरेंज मैरिज करने से न केवल परिवार वालों का साथ मिलता है बल्कि अगर भविष्य में कोई परेशानी आती है तो परिवार वाले पार्टनर्स के साथ खड़े रहते हैंअरेंज मैरिज में लड़का लड़की एक दूसरे की पसंद नापसंद से अनजान रहते हैऐसे में वे एक दूसरे को समझने जानने और पहचानने की कोशिश करते हैं यह भी अपने आप में एक अच्छा अनुभव होता हैसाथ ही शुरुआत से ही घर वालों को साथ लेकर चलते हैंइससे उनका आत्मविश्वास भी बढ़ता है लव मैरिज में व्यक्ति पहले से ही पाटनर का स्वभाव, फैमिली, बैकग्राउंड, उसका नेचर आदि जान लेता हैऐसे में लड़का लड़की शादी के बाद एक दूसरे को कम हर्ट करते हैं और एक दूसरे की पसंद का ख्याल रखते हैंलव मैरिज में कई बार लोग आकर्षण को प्यार समझ लेते हैं जो कि शादी के बाद समझ आता हैइसके कारण रिश्ते की डोर थोड़ी हल्की हो जाती है लव मैरिज में परिवार वालों का पूरा समर्थन नहीं होता हैऐसे में बड़ों के अनुभव से लड़का लड़की वंचित रह जाते हैं और अपने शादीशुदा जीवन में कुछ गलतियां कर बैठते हैं लव मैरिज की अच्छी बात यह है कि लोग खुद फैसले लेते हैं और जिंदगी को अपने ढंग से जीते हैंऐसे में खुद पर किसी भी प्रकार का दबाव महसूस नहीं करते एक्सपर्ट की मानें तो मैरिज लव हो या अरेंज दोनों में इंटरेस्ट बनाए रखने के लिए समय-समय पर एक दूसरे को सरप्राइज देना या गिफ्ट्स देना बेहद जरूरी है साथ ही पार्टनर एक दूसरे को आगे बढ़ने के लिए भी प्रेरित करेइससे रिश्ता और मजबूत होता हैजब कभी दोनों के बीच में लड़ाई हो जाए तो बात बंद करने के बजाय उस लड़ाई की वजह को दूर करना बेहद जरूरी होता है शिव पुराण में तो प्रेम विवाह को लेकर कई अध्याय है जैसेशिव पार्वती की पूजा करने से शादी की रूकावट दूर हो जाती है और शादी जल्दी हो जाती है पार्वती जी की तपस्या से प्रसन्न होकर शंकर जी ने इन्हें  अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था इसी तरह प्रेम विवाह जल्दी हो इसके लिए प्रत्येक सोमवार शिव पार्वती की पूजा करने का नियम बताया गया है हिंदू धर्म में विवाह को सोलह संस्कारों में से एक संस्कार माना गया हैविवाह जो वि एंव वाह शब्द से मिलकर बना हैजिसका शाब्दिक अर्थ है विशेष रूप से उत्तरदायित्व का वहन करनाजिसके विधि व विधान के अलावा शास्त्रों में विवाह के आठ प्रकार भी बताए गए हैं विवाह के ये प्रकार ब्रह्म, दैव, आर्ष, प्राजापत्य, असुर, गन्धर्व, राक्षस व पैशाच है इनमें ब्रह्म विवाह को सबसे अच्छा माना गया जैसे अच्छे शील स्वभाव व उत्तम कुल के वर से कन्या का विवाह उसकी सहमति व वैदिक रीति से करना ब्रह्म विवाह कहलाता हैइसमें वर व वधु से किसी तरह की जबरदस्ती नहीं होतीकुल व गोत्र का विशेष ध्यान रखकर ये विवाह शुभ मुहूर्त में किया जाता है वही कन्या व वर की आपसी इच्छा से जो विवाह होता है उसे गांधर्व विवाह कहते हैं जिसे वर्तमान में प्रेम विवाह माना जाता है अन्य धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का कॉन्ट्रैक्ट होता है जिसे किसी भी विशेष परिस्थितियों में तोड़ा जा सकता है परंतु हिंदू विवाह पति और पत्नी के बीच जन्म-जन्मांतरों का सम्बंध होता है हिंदू मान्यताओं के अनुसार मानव जीवन को चार आश्रमों ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, सन्यास आश्रम तथा वानप्रस्थ आश्रम में बाटा गया है और गृहस्थ आश्रम के लिये पाणिग्रहण संस्कार अर्थात् विवाह नितांत आवश्यक है जब दो आत्माएं मिलकर एक हो जाएं और प्रेम के अटूट पवित्र बंधन में बंध जाए तो उस अटूट पवित्र बंधन का नाम विवाह होता हैदुल्हन को उसके पिता के घर से अपने घर ले जाना विवाह या उद्वाह कहलाता है जहां तक घर वालों की मर्जी के खिलाफ शादी करने की बात है तोखुद भगवान श्री कृष्ण-रुकमणी, अर्जुन-सुभद्रा का विवाह या फिर पृथ्वीराज चौहान और संयुक्ता की यानि भगवान और पुराने जमाने के राजा भी लव मैरिज या अंतरजातीय विवाह करते थे इसीतरह प्राचीन धर्म ग्रंथों में प्रेम विवाह के कई उदाहरण मिलते है जो उस समय भी स्वीकार किए गए थे जैसे दुष्यंत और शकुंतला महाभारत की कहानी में, कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह विदेशी आक्रमण काल में हुआ था | 

श्री कृष्ण ने गीता में उपदेश दिया है कि विवाह का अंतिम लक्ष्य ईश्वर के प्रति जागरूक बच्चों की परवरिश करना है गीता का श्लोकअध्याय 1 का श्लोक 43दोषैः, एतैः, कुलघ्नानाम्, वर्णसंकरकारकैः,उत्साद्यन्ते, जातिधर्माः, कुलधर्माः, , शाश्वताःयहां पर कुल यानि परिवार की बात हो रही है और स्त्रियों के दूषित होने से तात्पर्य किसी अन्य कुल में विवाह करना, प्रेम करना या किसी भी तरह से एक कुल की स्त्री का किसी और कुल में जाना बताया जा रहा है अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच एक वैवाहिक विवाद से जुड़ी ट्रांसफर याचिका पर सुनवाई कर रही थीवकील ने अदालत को बताया कि यह शादी प्रेम विवाह थी कोर्ट ने इस पर टिप्पणी की,कि ज्यादातर तलाक केवल प्रेम विवाह के कारण हो रहे हैं भले ही भारत का संविधान विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत दो व्यक्तियों के बीच प्रेम विवाह को मान्यता देता है, चाहे वह अंतरजातीय हो या अंतरधार्मिक, लेकिन आज भी इन्हें सामाजिक स्वीकृति नहीं मिली हैप्रेम विवाह का विकल्प चुनने वाले जोड़ों को आज भी कई लोग तुच्छ समझते हैं इन्हें अपने माता-पिता को मनाने, अपने परिवार को खुश रखने और दूसरों के बीच एक अलग जाति या धर्म को अपनाने जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता हैयदि ये शादी के बंधन में बंधने में कामयाब हो भी जाते हैं तो और चीजें ठीक नहीं होती हैंइसलिए ऐसे मामले में क़ानून नहीं बल्कि काउंसलिंग की ज़्यादा ज़रूरत है|

 



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