सुन्दरवन डेल्टा : बाघ और इंसानों पर संकट
खबर बहुत बड़ी है इसलिए जरूरी हो जाता है बात करना पश्चिम बंगाल के सुंदरबन इलाके में इंसान और बाघों के बीच बढ़ता संघर्ष बड़ा खतरा बनता जा रहा है इसकी वजह से विधवाओं की संख्या लगातार इस सुंदरबन इलाके में फैल रही है
विधवा होने की संख्या कोई कम नहीं है बल्कि 3000 से अधिक महिलाएं हो गई है इस क्षेत्र में कुछ ऐसे गांव है जिन्हें विधवाओं का गांव ही कहा जाता है इस सुंदरबन जंगल में लकड़ी काटना या मछली पकड़ना ही रोजी - रोटी का मुख्य जरिया है और इसके लिए जाने वाले लोग अक्सर रॉयल बंगाल टाइगर्स का निवाला बन जाते है
इस सुंदरबन इलाके में पिछले गिनती या गणना के अनुसार 100 से अधिक बाघ है लेकिन पर्यावरण असंतुलन की वजह से यहां बाघों को ही नहीं बल्कि इंसानों का वजूद भी खतरे में पड़ गया
सुंदरबन यानी दुनिया में रॉयल बंगाल टाइगर का सबसे बड़ा घर कहते हैं पश्चिम बंगाल और पड़ोसी बांग्लादेश की सीमा पर 4262 किलोमीटर स्क्वायर क्षेत्र में फैला यह इलाका इन बाघों के अलावा अपनी जैविक विविधताओं के लिए भी मशहूर है लेकिन अब यह सब खतरे में है
सुंदरबन दुनिया का सबसे बड़ा मैग्रोव क्षेत्र है बाघों को सुंदरवन का रक्षक कहा जाता है लेकिन सुंदरबन के इस इलाके में कम होते क्षेत्र , घटते भोजन और शिकारियो के कारण भारी नुकसान हो रहा है
बाघों की शरणस्थली मैग्रोव जंगल भी अब तेजी से खत्म होते जा रहे हैं प्राप्त जानकारी के अनुसार सुंदरबन इलाके में कुल 102 द्वीप है उनमें से 54 द्वीपों पर आबादी रहती है इन लोगों का प्रमुख कार्य मछली मारना और खेती करना ही है केंद्र सरकार के द्वारा किए गए बाघों की गिनती के आधार पर बताया यह गया कि इन इलाके में 26% बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है
लेकिन वही एक अन्य अध्ययन में बताया गया है कि इसी तरह से अगर मैग्रोव जंगल तेजी से खत्म होते रहे तो आने वाले 2070 तक एक भी बाघ इस सुंदरबन में नहीं रह जायेगा सरकारी आंकड़े के अनुसार प्रति वर्ष 35 से 40 बाघ शिकारियों के शिकार हो जाते हैं और वही स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रतिवर्ष लगभग 100 से अधिक इंसान बाघों का ही शिकार बन जाते हैं
सुंदरबन क्षेत्र में जिस स्थान पर सबसे अधिक बाघ रहते हैं उन स्थानों पर लकड़ी काटना , मछली पकड़ने का अधिकार नहीं होता है लेकिन ज्यादातर लोग बिना परमिट लिए ही जंगल में घुसते हैं इसलिए सरकार के पास कोई सटीक जानकारी नहीं होती है कि कितने लोग इन बाघों का शिकार हो गए
मिली जानकारी के अनुसार बाघ तभी जंगल से बाहर निकलता है जब वह बूढ़ा हो जाता और जंगल में शिकार आसानी से नहीं मिलता है और इसके साथ ही एक सबसे बड़ा कारण ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ते तापमान को जिम्मेदार बताया गया है ये इसलिए भी सही मानी जा सकती है क्योंकि सुंदरवन के जिस इलाके में बाघ रह रहे है वहां पर पानी खारा है और पिछले 10 वर्षों में यह खारा होने की दर लगभग 15 से 20% और बढ़ गई है
इसलिए अधिक से अधिक बाघ धीरे-धीरे इंसानी बस्तियों में पहुंचने लगे हैं बाघ और इंसान के बीच जंग की कड़वाहट सबसे ज्यादा दक्षिण 24 परगना जिले के आरामपुर गांव में दिखती है इस गांव का नाम ही विधवापल्ली यानी की विधवाओं का गांव हो गया है
आश्चर्यजनक बात यह है कि देश में यह शायद ऐसी अकेली जगह जहां हर दो चुनाव के मध्य पुरुष वोटरों की संख्या बढ़ने के स्थान पर लगातार घट रही है सबसे बड़ा दुःख ये है कि गांव की ज्यादातर विधवाओं के पास अपनी स्वयं की जमीन भी नहीं है और जीवन यापन करना मुश्किल सा हो गया
बड़ी बात और राहत की बात यह भी है कि अब एक संगठन ने सरकार से उनके लिए 10-10 लाख की मुआवजे और 3000 मासिक पेंशन की मांग की है गांव के लोगो का कहना है कि मौत ही हमारी नियति है घर में बैठे तो भूख से मर जाएंगे और जंगल में जाए तो बाघ नहीं छोड़ेंगे
सुंदरबन क्षेत्र में द्वीपों पर भी संकट मंडराने लगा है क्योकि लगातार पर्यावरण में होने वाले बदलाव का नतीजा है की 2 द्वीप तो पहले ही डूब चुके है कम से कम 12 और द्वीपों के डूब जाने का खतरा बना हुआ है बड़ी दुःख की बात यह है कि अगर इसी तरह जलस्तर बढ़ता रहा तो एक दिन सुंदरबन भारत के नशे से ही गायब हो जाएगा तब न बाघ बचेंगे और न हीं इंसान...........
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