जब दवा ही बन जाये जहर : दवा vs मासूम बच्चे

 


जब दवाये ही बन जाए दुश्मन :

मामला थोड़ा कुछ हटकर है लेकिन बिना बात किये भी नहीं चलने वाला है कहा भी गया है जब दवा ही जहर बन जाये तो सोचना ही पड़ता है की इस जहर से आखिर में नुकसान क्या क्या हुआ है 




यह मामला तब देश के सामने आया जब जम्मू - कश्मीर के 12 मासूम बच्चो की मौत हो गई बच्चो की मौत इस कारण नहीं हुई थी की वे बीमार थे बल्कि उन्हें दवा में मीठा जहर दिया गया था 

बात जब बढ़ी तो पता चला की दवा बनाने वाली कंपनी हिमांचल प्रदेश की है इस राज्य के सिरमौर के कालाअम्ब में यह दवा बनाई जाती है



विज्ञान से  जुड़े साहित्य खासतौर पर गद्य में मीठे जहर का जिक्र आता है किसी को चुपचाप मारने का यह एक माध्यम होता है इस मीठे जहर को डाई ऐथलीन गलाईकोल कहा जाता है कलाअम्ब की कंपनी डिजिटल इंडिया की पीने की पानी वाली दवा कोल्ड वेस्ट में यही डाला था बेशक इसमें प्रोपोलिन गलाईकोल का इस्तेमाल होना था


प्रोपेलिन की खासियत यह है की इसे आमतौर पर खाने में सुरक्षित समझा जाता है इस दवा का काम दवा में उपस्थित अतिरिक्त पानी को सोख लेना होता है जबकि व्यक्ति इसका सेवन कर चुका होता है और दवा खाने से पहले दवा में नमी बरकरार रहे लेकिन होना क्या था जहर ही सही मीठा था इसलिए उचित कच्चा माल मिला या नहीं यह सोचने का वक्त किसी के पास नहीं थी आर्डर आया की कितना माल चाहिए और दवा की जगह जहर बना दिया गया दवाओ को जब लैब में टेस्ट किया गया तो निर्धारित एक भी मानक पर खरा नहीं पाया गया इस बात से आप अंदाजा लगा ही चुके होंगे की गलती कहा पर और किसकी है इसके बाद तो कंपनी के खिलाफ मामला दर्ज कराया जा चूका है लेकिन अभी तक किसी की गिरफतारी नहीं हुई है कंपनी के लाइसेंस को तत्काल रद्द कर दिया गया है और 17 फ़रवरी 2020 से कोई भी उत्पाद का निर्माण नहीं हो रहा है



यहाँ पर कुछ प्रश्न से बात को समझते है जैसे :

1. किसका नुकसान हुआ ?

2. जम्मू -कश्मीर के उधमपुर में 12 घर सुने हुए बस यही ?

3. जब एक ही घर के किसी व्यक्ति की अचानक मौत हो जाती है उसके दर्द को कोई बया नहीं कर सकता है ऐसे में अगर जहर दिया गया हो वह भी दवा के रूप में तो क्या बीत रही होगी उन परिवारों के उपर ?

हमे सोचना होगा अगर ये 12 जीवन आज अपने परिवार में जीवित होते तो सबसे पहले अपने परिवार और बाद में ये देश के काम जरुर आते |



जम्मू कश्मीर राज्य में ऐसे समय में इतनी बड़ी घटना को कोई छोटी घटना तो नहीं मान सकते है यह झटका जम्मू -कश्मीर को कम लगा सबसे ज्यादा हिमांचल प्रदेश राज्य और भारत देश को लगा क्योकि यह दवा कंपनी एशिया महाद्वीप की सबसे बड़ी फार्मा हब मानी जाती है और है भी |

यह कोई पहला मामला नहीं है इस कम्पनी के साथ ऐसे कई मामले जो सामने आये ही नहीं पहले ही पैसा देकर दुसरे की गलती साबित की जा चुकी है |




इस राज्य में इतनी बड़ी घटना होने का सबसे बड़ा कारण ये बताया गया है की इस राज्य में प्रतिस्पर्धा इतना बढ़ गया है की फायदा कमाने , लालच देने की कि ये भूल गए की दवा किसके लिए बनाई जा रही है


इस राज्य में लगभग 500 से अधिक दवा कंपनिया पंजीकृत है लेकिन इनकी निगरानी के उचित सरकारी संख्याबल ही नहीं है तो आप जाँच , निरीक्षण , पड़ताल आदि स्वत: ही विदेशी शब्द लगते है हिमाचल प्रदेश की आर्थिक उन्नति में दवा उद्दोग की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है लेकिन इस तरह के मामले कुछ अलग ही अपनी बात कह रहे है



सरकार को अपना सिस्टम तुरंत ही मजबूत करना ही होगा सिर्फ हर बार यह कह देना काफी नहीं है की डॉक्टर जेनेरिक दवाए ही लिखे वे दवाये किन हालतों में , किस मंशा से और किस जानकारी के साथ बन रही है इस पर भी सरकार की नजर हो वरना ब्रांड बनाने की नजर में हिमांचल प्रदेश ही पीछे छुट जायेगा छवि का सूचकांक गिराने के लिए जम्मू- कश्मीर जैसी एक ही घटना काफी होता है

1.जेनरिक दवाओ के आग्रह में क्या उचित कच्चे माल की जगह मीठा जहर इस्तेमाल होने देंगे ? केन्द्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन समय समय पर मानक पूरे न करने वाली दवाओ के बारे में चेतावनी जारी करता है पिछले वर्ष इस कम्पनी का नाम कई बार आया था सवाल यह है की क्या उस बैच और लाट की सारी दवाईया वापस मगाई गई है ?

संदेह इसलिए होता है क्योकि अगर विभाग के पास लोग ही नहीं है तो यह सब निगरानी कौन करता है ?





इसके साथ ही एक और मामले को जोडकर देखा जा रहा है वह ये है की कानपुर के दो भाई भी एक दवा की कारखाना चला रहे थे हैरान करने वाली बात ये थी की इनके पास लाइसेंस फ़ूड का था लेकिन दवाई बना रहे थे इनकी अंगेजी दवाई पर जिन कम्पनी का नाम दर्शाया जा रहा था उन्हें भी इनकी जानकारी नहीं थी जाहिर है की इसमें हिमांचल प्रदेश की बदनामी हो रही है यह मामला काफी दिनों से चल रहा था लेकिन यह खबर सरकार को अब पता चली है अच्छी बात तो ये है की भंडाभोड़ तो हुआ



प्रचलन तो यह है की जब निश्चित अवधि में सामान तैयार कर भेजना होता है तो वह अपना काम किसी छोटी कंपनी को सौप देती है लेबल, बैच , लाट सब पहली कंपनी के होते है यदि इससे भी काम नहीं बनता है तो तीसरी कंपनी को काम सौप दिया जाता है इस प्रक्रिया में मानक ध्वस्त हो जाता है प्रोपलीन गलाईकोल के स्थान पर डाई एथेलीन गलाईकोल आ जाता है इसी प्रकार की और गलतिया होती है इस प्रक्रिया में ऐसी कंपनिया भी उग आती है जो दो कमरे में चलती है जिनके पास फ़ूड लाइसेस पर दवा बनाने का कातिल हुनर होता है ऐसे तत्वों पर रोक लगाने के जरूरत है क्योकि बात जिन्दगी की है ..........



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