PAK जिंदाबाद या Bharat जिंदाबाद का नारा लगाना कितना सही ?

 



 PAK जिंदाबाद या Bharat जिंदाबाद का नारा लगाना कितना सही ?  

आप सभी को याद भी होगा जब देश में नागरिकता अधिनियम कानून लागू करने की बात सरकार कर रह थी तो इसको लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे थे इसी क्रम में 20 सितंबर 2020 को 19 साल की छात्रा अमूल्या लियोना ने बेंगलुरु मे आयोजित विरोध प्रदर्शन में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए थे

बड़ी बात यह थी की अमूल्या को बात पूरी करने का मौका नहीं दिया गया था और इन्हें मंच से खींच कर हटा दिया गया इसके बाद इन पर राजद्रोह यानी कि IPC की धारा 124 A लगा दी गई



मिली जानकारी के अनुसार ये साऊथ की फिल्मों में एक अभिनेत्री के रूप में काम भी किया है और पत्रकारिता का कोर्स भी कर रही थी करीब 110 दिनों तक जेल में रखने के बाद जमानत दे गई थी जबकि पूरा वीडियो देखने पर पता चलता है कि यह इस नारे को समझाने की कोशिश कर रही थी लेकिन किसी ने इनकी एक बात तक नहीं सुनी 

सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाना राजद्रोह है और पाकिस्तान मुर्दाबाद कहना देशभक्ति का सबूत है ?



इस मामले के आने के बाद से देशभर में एक बहस ही छिड़ सी गई थी चाहे वो सामाजिक मंच हो या कोर्ट कचहरी या सबसे बड़ा मंच सोशल मिडिया ऐसे में आज हम लोग भी इसके जवाब तलाशने की कोशिश करेगे 

 1. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील दुष्यंत दबे के अनुसार पाकिस्तान जिंदाबाद कहना राजद्रोह नहीं है राजद्रोह तो दूर की बात यह कोई गुनाह भी नहीं है जिसके आधार पर पुलिस गिरफ्तार कर ले यह कोई पहला मामला नहीं है इसके पहले भी कई बड़े-बड़े मामले सामने आए हैं 

जैसे जब 30 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी जी की हत्या इनके दो सुरक्षाकर्मियों ने कर दिया तो पंजाब सरकार ने दो कर्मचारी बलवंत सिंह और भूपेंद्र सिंह को " खालिस्तान जिंदाबाद " और " राज करेगा खालसा " का नारा लगाने के मामले में गिरफ्तार कर लिया था


हुआ ये था कि बलवंत और भूपेंद्र सिंह ने इंदिरा गांधी जी की हत्या के कुछ घंटे बाद ही चंडीगढ़ में नीलम सिनेमा हाल के पास ही ये नारे लगाए थे इन पर IPC की धारा 124 A के तहत राजद्रोह का केस दर्ज किया गया था 

और मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तो वर्ष 1995 में जस्टिस AS आनंद और जज फैजानुद्दीन की बेंच ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस तरह से एक दो लोगों का नारा लगाना राजद्रोह नहीं है और इससे भारत की सरकार और कानून व्यवस्था के लिए खतरा नहीं है इसमें नफरत और हिंसा भड़काने वाला भी कुछ नहीं है

2. इसी केस को देख रहे दुसरे पक्ष के वकील के अनुसार इन्होंने हिंदुस्तान मुर्दाबाद के भी नारे लगाए थे इस पर भी जजों ने कहा कि एक दो लोगो के इस तरह के नारे लगाने से भारतीय राज्य या भारत देश को कोई खतरा नहीं हो सकता है 

कोर्ट ने इसी केस में कई तर्क दिए थे जो आज भी मिशाल के रूप में उपयोग किये जाते है जैसे कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि राजद्रोह तभी लगाया जा सकता है जब कोई व्यक्ति किसी समुदायों के भीतर नफरत पैदा करें और अगर पुलिस इसके अलावा किसी भी स्थिति में किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करती है तो समाज में इस कानून का गलत प्रभाव पड़ता है जिसके कारण से ही दंगे होते हैं और उसी  अदालत ने बलवंत सिंह व भूपेंद्र सिंह को राजद्रोह के मुकदमे से रिहा कर दिया



2.कन्हैया कुमार : - कुछ ऐसा ही आरोप इनके ऊपर भी लगाया जाता रहा है समय समय पर बात उन दिनों की है जब कन्हैया कुमार दिल्ली में बने JNU विश्वविद्यालय में अध्ययन कर रहे थे और ये यहाँ के छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और नेता भी रह चुके है इनके उपर आरोप ये है की इन्होने देश विरोधी कार्यो में लोगो की मदद की थी लेकिन पुलिस आज तक इनके खिलाफ आरोप पत्र दायर नहीं कर पाई है और अगर कभी भविष्य में आरोप साबित हो जाता है तो फिर जस्टिस AS आनन्द के दिए उस फैसले पर पुन: विचार करना ही होगा देशवासियों के साथ साथ सरकारों को |

3. समय समय पर कई सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख जज रह चुके लोग भी इस कानून को ख़त्म करने या इसमें व्याप्त कमियों को दूर करने के लिए आवाज उठाते रहे है जैसे जब अमूल्या को पुलिस ने हिरासत में लेकर राजद्रोह का आरोप लगाया था तो कई बड़े बड़े लोगो की टीम से खुलकर सरकार के कदम का विरोध किया था इसमें कई पूर्व जज भी शामिल थे


 
इस पर इनका तर्क ये भी था की जब भारत के लोग अमेरिका जिंदाबाद या ट्रम्प जिंदाबाद ( उसी समय तत्कालीन अमेरिकी रष्ट्रपति भारत की यात्रा पर आये थे ) का नारा लगा सकते है और इससे किसी को कोई समस्या नहीं है तो फिर पाकिस्तान जिंदाबाद कहने पर रोक क्यों ? या फिर इतनी समस्या क्यों पैदा की जाती है ? हां अगर पाकिस्तान और भारत के मध्य युद्ध या युद्ध जैसी स्थिति बनी हो तो कुछ गलत माना जा सकता है 

इसके अलावा और कई क्षेत्र जहां पर ऐसे मामले देखने को लगातार मिलते हैं जैसे क्रिकेट में : - 1. जून 2017 में क्रिकेट चैंपियंस ट्रॉफी में भारत के खिलाफ पाकिस्तान की जीत पर जश्न मनाने के आरोप में 20 भारतीय मुसलमान को गिरफ्तार कर लिया गया था यह मामला भारत के मध्य प्रदेश और राजस्थान राज्य में हुआ था और राजद्रोह का केस लगाया गया था लेकिन बाद में 15 लोगों पर से इस मामले को हटाया गया 



पर क्या भारत पाकिस्तान के मैच में पाकिस्तान की जीत पर खुशी मनाना राजद्रोह  है ? 

2. वर्ष 2020 में T20 वुमन वर्ल्ड कप का आयोजन ऑस्ट्रेलिया में हुआ था और इसका फाइनल मैच ऑस्ट्रेलिया और भारतीय टीम के मध्य हुआ जिसमे भारत को   ऑस्ट्रेलिया ने 17 रनों से हरा दिया मैच के बाद जब ऑस्ट्रेलिया की खिलाड़ियों का प्रेस कॉन्फ्रेंस हुआ तो उसमें उन्होंने भारतीय दर्शकों की तारीफ की और इन्हें अच्छा लगा कि इतनी बड़ी संख्या में लोग उन्हें देखने आए 



यह देखा भी गया है की जब भी भारत में हो या कहीं विदेश में अगर ऑस्ट्रलिया और भारत का कोई भी मैच होता है तो बहुत ही संख्या में दर्शक आकर इसमें विदेशो भी शामिल होते है  " भारत माता की जय ",  " वंदे मातरम " के नारे लगाते हैं तब कोई सवाल नहीं उठाता है कि आप यहां विदेश में भारत माता की जय का नारा क्यों लगा रहे हो ? 

इस पर तो उस देश की सरकार तो कानून बनाकर गिरफ्तार कर ही सकती है की जब आप लोग खाते मेरे देश का हो तो आप " भारत माता की जय " या " बन्दे मातरम का नारा " क्यों लगाये जा रहे हो भले ही इसमें से कुछ पहले भारतीय नागरिक रह चुके हो लेकिन अब तो उस देश के निवासी है जहा पर ये मैच हो रहा है 

इस बात को सभी को समझना ही होगा कि यह एक निजी इमोशनस है इसे किसी के उपर जबरदस्ती थोपा नहीं जा सकता है 

3.इसके पहले भी एक मामला बहुत चर्चित हुआ था भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान विराट कोहली ने नवंबर 2018 में एक प्रशंसक से यह कह दिया था कि अगर उन्हें भारतीय खिलाड़ी से ज्यादा इंग्लिश और ऑस्ट्रेलिया खिलाड़ी अच्छे लगते हैं तो उन्हें भारत देश छोड़कर विदेश में चले जाना चाहिए बाद में कोहली ने इस पर माफी भी मांगी थी इसके बाद भी समय समय पर इनको ट्रोल किया जाता है 



विशेषज्ञो की राय :- 1. राजद्रोह केस को लेकर सबसे महत्वपूर्ण फैसला 1962 में केदारनाथ सिंह बनाम बिहार सरकार मामले में सुनाया गया था केदारनाथ सिंह ने 1953 में बिहार के बेगूसराय में आयोजित एक रैली में भाषण दिया था भाषण कुछ इस तरह से था कि " CID के कुत्ते बरौनी में घूमते रहते हैं कई सरकारी कुत्ते इस सभा में भी बैठे होंगे भारत के लोगों ने ब्रिटिश गुलामी को उखाड़ फेंका और कांग्रेसी गुंडो को कुर्सी पर बैठा रखा हम उन्हें भी उखाड़ फेंकेंगे " इस प्रकार और भी भाषण दिए थे

 इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के जज ने साफ़ और सीधे शब्दों में कहा था कि सरकार के खिलाफ शख्त शब्दों का प्रयोग करना राजद्रोह नहीं है सरकार की गलतियों को और उसमें सुधार को लेकर विरोध जताना और कठोर शब्दों का इस्तेमाल करना राजद्रोह नहीं है


2. वर्ष 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से कई चीजे सामने आई जिन्हें राष्ट्रवाद के सबूत के तौर पर पेश किया गया सिनेमाघरो में फिल्म शुरू होने से पहले बजने वाला राष्ट्रगान के समय खड़े होना अनिवार्य किया गया लेकिन कई लोगों ने इनकार कर दिया तो उनकी पिटाई भी कर दी गई थी

इसके बाद लोगों के खान-पान पर बहस शुरू हो गई की भी बीफ खाने के शक में में पीट पीट कर कितने लोगों की जान ले ली गई ये तो किसी से छिपा नहीं है और यह भी तो होने लगा कि किसे क्या बोलना चाहिए और किसे नहीं |



3. जिस रविंद्र नाथ टैगोर ने तीन देशों का राष्ट्रगान ( भारत , बंगलादेश और श्रीलंका ) लिख कर दिया उनके अनुसार राष्ट्रवाद के विचारों को समझना काफी जरूरी हो जाता है " राष्ट्रवाद हमारा अंतिम आध्यात्मिक लक्ष्य नहीं हो सकता है मेरी शरणस्थली में तो मानवता ही है " हीरो की कीमत से मैं कभी भी शीशा नहीं खरीद सकता हूं जब तक मैं जीवित हूं तब तक देशभक्ति को मानवता पर विजयी नहीं होने दूंगा 

4. महात्मा गांधी जी ने भी इस कानून के बारे में " यंग इंडिया पत्रिका 1922 " में लिखा था कि कोई भी लक्ष्य हासिल करने से पहले जरूरी है कि हम बोलने की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करें 

5. इसी तरह भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने S रंगराजन बनाम P जगजीवन राम केस में साफ शब्दों में कहा था कि लोकतंत्र में जरूरी नहीं है कि हर इंसान एक ही गीत गाये

6. इस कानून के होने के कारण ही महात्मा गांधी जी और बाल गंगाधर तिलक जी भी जेल जा चुके थे और अंग्रेज इस कानून से देश के स्वतंत्रता सेनानियों को जेल में डालते थे और सबसे बड़ी बात अंग्रेजो ने इन कानून को इसलिए ही तो बनाया था की अधिक से अधिक लोगो को जेलों में बंद करके इस देश में अधिक से अधिक वर्षो तक शासन करे


7.ये तो अच्छा हुआ था कि ब्रिटेन देश दितीय विश्व युद्ध में काफी कमजोर हो गया और संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन होने के कारण से ब्रिटेन पर लगातार अन्तराष्ट्रीय दबाव बनाया जा रहा था इसी समय दुनिया में करीब 50 देश आजाद हो चुके थे या वो अंतिम रूप लेने वाले ही थे और इसी तरह भारत को आजाद करने की तारीख जून 1948 रखी गई थी लेकिन ब्रिटेन में हुए राजनीतिक परिवर्तन के कारण निश्चित समय से 1 वर्ष पहले ही देश को आजादी दे दी गई ऐसे में यह उस समय भी सही नहीं था देश के लिए तो फिर आज कैसे सही हो सकता है |

8.सुप्रीम कोर्ट के ही कई जजों का कहना है कि अब तो इस कानून का कोई मतलब नहीं है 1950 में संविधान लागू होने के बाद इसे खत्म कर देना चाहिए था ऐसा नहीं है कि इस कानून का गलत इस्तेमाल इसी सरकार में ही हो रहा है हर सरकार में ऐसा ही होता है

9.सबसे बड़ी बात है की अंग्रेजी द्वारा बनाए गए इस राजद्रोह कानून को अपने देश में 2009 में खत्म कर दिया गया लेकिन हम तो पूर्वजों की चीजे बड़े ख्याल से रखते है इसलिए अभी हमारे पास सुरक्षित है 

10. आपको जानना भी चाहिए कि यह कानून भारत में 1870 में लागू हुआ था 

और इसके साथ ही एक सबसे बड़ा सवाल की राजद्रोह कानून का इस्तेमाल कितना सही हो रहा है इसको लेकर आपकी क्या राय है ? 

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