दिव्यांगता(विकलांगता): एक वरदान या श्राप ?
अक्सर हम सभी इंसानों को देवी देवताओ ने अपने कर्मो के माध्यम से हम सभी को कुछ न कुछ सीख दिया है भले ही हम इंसान इस पर ध्यान दिया हों या नहीं आज इसी को लेकर बात करेंगे की क्या इंसान का पूरा शरीर होना ही काफी होता है अगर ऐसा है तो फिर भगवान ने दिव्यांग ( विकलांग ) को क्यों ही बनाया ?
इसके पीछे के रहस्य को आज समझने की कोशिश करेगे जैसे मेसोपोटामिया की सभ्यता के आख्यान शास्त्र के अनुसार दिव्यांग या जिसे हम अक्सर विकलांग भी कहते है इसको लेकर एक रोचक कहानी भी प्रचलित है जैसे एंकी नामक देवता ने इंसानों को बनाकर इस पृथ्वी पर भेजा और सबको अपने अपने अलग अलग काम भी बाट दिए और इससे सभी देवी देवता अपने अपने कामों और दायित्वो से मुक्त हो गए क्योंकि सभी कार्यों का बटवारा तो इन्होंने इंसानों को दे दिया था जैसे हम इंसान ही है की थोड़ा सा मौका मिला की नहीं हम अपने काम दूसरे को देने से पीछे नहीं हटते है
हुआ ऐसा की एक दिन मजाक मजाक में एक निम्माह नामक देवी ने सभी देवी देवताओं से कहा ही वह एक अपूर्ण इंसान का निर्माण कर सकती है इस बात को सुनकर वहा उपस्थित कोई भी देवी देवता कुछ नही बोला लेकिन एक देवता इंकी ने कहा की आप भले की अपूर्ण इंसान को सृजित कर सकती है लेकिन मैं उसके बाद भी उसमे वो सारे गुण भर दूंगा जो एक सम्पूर्ण इंसान में होता है
बात कुछ मजाक से शुरू होकर बहस का रूप ले लिया और देवी निम्माह ने देवता एंकी की परीक्षा लेनी चाही जैसे इंसान ही है कि मौका मिला की नहीं दूसरे की चाल चरित्र को जांचने के साथ साथ तर्क वितर्क करने में तनिक भर परहेज नहीं करते है
और इस तरह से निम्माह ने एक दृष्टिहीन इंसान को बनाया इसी इंसान को एंकी देवता ने दुनिया का सबसे बड़ा संगीतकार बना दिया इसके बाद निम्माह ने एक ऐसे इंसान को बनाया जिसकी दोनो भुजाए ही नही थी इस पर इंकी ने राजा का सबसे बड़ा जासूस बना दिया इसके बाद निम्माह ने एक ऐसी महिला को बनाई जो किसी बच्चे को कभी भी जन्म नही दे सकती थी जिसे हम सामान्य भाषा में बांझ कहते है इस पर एनकी देवता ने बांझ महिला को गणिका बना दिया ऐसे ही क्रम चलता गया
निम्माह ने एक नपुंसक पुरुष को बनाया तो एंकी देवता ने राजा के अंत:पुर ( रानियों के निवास करने का स्थान ) का सबसे महान और सबसे बड़ा अंगरक्षक बना दिया अब निम्माह देवी को लगने लगा की अब तो हार पक्की ही है
और इस तरह से निम्माह देवी ने हार मान ली क्योंकि हर बार एक नई खासियत के साथ इंसानों का निर्माण या सृजन हो जाता था
अब ऐसे ही बात किया जाए अपने हिंदू धर्म की संस्कृति में इसको लेकर क्या क्या मान्यताएं उपलब्ध है जैसे पूरी की जगन्नाथ मंदिर में कृष्ण जी की मूर्ति की सुंदरता का हर स्थान पर वर्णन किया गया है लेकिन आप को जानकर हैरानी होगी की इसी मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण पूर्ण नहीं है इस मंदिर में बने मूर्ति के न तो हाथ है ,ना ही पैर है मूर्ति पर आंख और नाक तो है लेकिन इसी मूर्ति पर आंखो की पलके ही नहीं है और न ही मूर्ति के कान है जबकि इस मंदिर में वर्ष के लगभग 6 महीने तो हिंदू त्योहार से ही बीत जाता है और इसमें कृष्ण जी को सोने की धातु से ये सभी अंग जो इस मूर्ति के नही है उसको पूरा किया जाता है
इसके पीछे की कहानी कुछ इस प्रकार है की राजा ने अपने राज्य में घोषणा करवाई की वह एक ऐसी मूर्ति की स्थापना करना चाहते है जो अपने आप में सबसे श्रेष्ठ हो और एक मूर्तिकार इसको बनाने के लिए तैयार हुआ लेकिन इसकी एक शर्त रखी मूर्तिकार ने |
कि राजा तब तक उस गेट को न खोले जब तक मूर्ति पूरी तरह बनकर तैयार न हो जाए लेकिन काफी दिन बीत जाने के बाद जब कार्यशाला से कोई आवाज नहीं आई तो राजा को शक हुआ कि कही मूर्तिकार हमे धोखा तो नहीं दे रहा है और राजा से रहा नही गया तो उसने उस गेट को खोल दिया और यही मूर्ति जो अपने अंतिम रूप की ओर बहुत ही तेजी से बढ़ रही थी
अब गेट खुलने के कारण से अपूर्ण ही रह गई और आज भी आप कई गीत भजनों में इसकी अपूर्णता का संदेश सुन सकते है तो क्या भगवान हमे इस अपूर्णता के माध्यम से कोई बड़ा संदेश देना चाहते है यदि हां तो क्या है वह संदेश ?
सबसे बड़ा संदेश यही है की जो इंसान इस दुनिया में अपने आप को सबसे बलशाली , शक्तिशाली समझते है उनको संदेश देने के लिए की हमे उन लोगो को नहीं भूलना चाहिए जो उनके जैसे ही है लेकिन कुछ कमियां है जो उनकी गलती के कारण से नहीं है बल्कि प्रकृति की देन है
जैसे पुराणों के अनुसार ऋषि कश्यप की पत्नी विनता ने दो अंडे को जन्म दिया था आप सभी को जानकारी होनी ही चाहिए पहले इंसान भी अंडे के रूप में ही जन्म देते थे लेकिन जब ऋषि कश्यप की पत्नी ने जन्म दिया तो इसके बीच में काफी हजार वर्षों का अंतर था अर्थात ऐसा हुए हजारों साल बीत चुके थे ऐसे में जब ये घटना घटित हुई तो इनकी पत्नी को शर्मिंदगी महसूस हुई जैसे आपको आज समाज से होता है और विनता ने एक अंडे को चुपके से फोड़कर नष्ट कर दिया
और इस फूटे हुए अंडे से एक ऐसी संतान की उत्पति हुई जिसका निचला भाग अधूरा था ( कमर के नीचे का हिस्सा अपूर्ण ) था इसके ना ही पैर थे ना ही जननांग थे और इस संतान का नाम अरुण रखा गया और जो आगे चलकर भोर के देवता बन गए
इसलिए आप जानते भी होंगे की सूर्य एक का एक नाम अरुण भी है अक्सर हम पर्यायवाची में याद भी करते है अरुण का एक अर्थ किसी काम की शुरुआत भी होता है और इस तरह से इस भोर के देवता को हिंदू धर्म ग्रंथो में सूर्य देवता का सारथी के रूप में आज भी सम्मान दिया जाता है जबकि ये है तो अपूर्ण ही |
लेकिन समस्या ये आ रही थी की जब जननांग ही नही है तो कैसे तय किया जाए की ये महिला है या पुरुष जैसे आजकल हम ट्रांसजेंडर के अधिकारों को लेकर करते है जैसे अगर आप हिंदू धर्म के कुछ पुराने या सबसे पहले के ग्रंथो को देखेगे तो आपको मिलेगा की अरुण को भोर का देवता और सूर्य का सारथी होने के साथ साथ उष्म नामक स्त्री कहकर सम्मान दिया गया है और इतनी कमी होने के बाद भी इनको देवी देवता में उसी तरह का सम्मान दिया गया है
ऐसे ही एक घटना का और जिक्र मिलता है जब राजा पांडू को श्राप मिला की आप पूर्ण संतान की उत्पत्ति नही कर पाएंगे तो इन्होंने राजा की गद्दी ही त्याग दिया ये सिर्फ हम इंसानों के साथ ही नहीं होता है इंसानों की तरह ही जानवर भी इस समस्या से कही ज्यादा पीड़ित है जैसे जो जानवर किसी कारण से अस्वस्थ होते है वो पहले ही खतरनाक जानवरों या हम इंसानों की द्वारा सबसे पहले शिकार होते है और अपनी जान देने पर मजबूर होते है क्योंकि उनके पास मरने के अलावा और कोई विकल्प है भी तो नहीं |
लेकिन हम इंसानों के द्वारा जब जानवर से भी बदतर कर्म किए जाते है तो इस बात पर बहस जरूर शुरू हो जाती है की हम इंसान ही है या जानवर का रूप धारण कर लिए है
1.सबसे बड़ा सवाल ये है की क्यों हम दिव्यांग लोगो को अपने जैसा नहीं समझ पाते जबकि बनाने वाले ने जब भेद नहीं किया तो हम इंसान होते ही कौन है भेदभाव करने वाले ?
2.भोर का देवता हो या पूरी की जगन्नाथ मंदिर के श्री कृष्ण जी हमे अपने दिव्यांगता को लेकर हमे क्या संदेश देना चाहते है ?
3.आपके मन में ऐसा क्यों ही आता है की ये हमसे भिन्न है क्या समाज के कारण , क्योंकि यह धर्म का मामला नहीं है क्योंकि ये सभी धर्मो में उपलब्ध है ऐसे में हमे अपने गलत मानसिकता को बदलने का समय आ गया है वरना विकलांग से दिव्यांग कर देना ही सब कुछ नही होता है...................





