भागवत मे श्री राधा नाम क्यों नहीं है ?




श्री राधा जी का नाम भागवत पुराण मे क्यू नहीं लिखा है?

कई बार लोगों के द्वारा यह प्रश्न पूछा जाता है कि राधा जी का नाम श्री मद भागवत पुराण मे क्यू नहीं है कई लोग तो राधा जी को ही काल्पनिक कहने लग जाते है ।

पहले मैं संक्षेप में इसका उत्तर दे दूँ फिर विस्तार से इस पर चर्चा करते है ।

जो भागवत कथा हम सुनते और पढ़ते है वो वेद व्यास जी के पुत्र श्री शुक देव जी ने राजा परीक्षित जी को सुनाई थी जिन्हे 7 दिन बाद तक्षक सर्प डसने वाला था । श्री शुक देव जी राधा जी के अनन्य भक्त है एवं एक बार श्री राधा नाम नाम उच्चारण से ही 6 माह कि समाधि मे चले जाते है चूंकि परीक्षित को 7 दिन मे भागवत कथा सुनानी थी इसलिए उन्होंने  कहते समय श्री राधा ना कह कर गोपी से संबोधित किया है एवं समूह के लिए गोपियों शब्द का प्रयोग किया है |

बृहदारण्यक उपनिषद के अनुसार - प्रोक्षप्रियैव हि देवः प्रत्यक्षद्विशः (बृहदारण्यक उपनिषद 4.2.2) “देवता और ऋषि अप्रत्यक्ष वर्णन पसंद करते हैं और स्पष्ट वर्णन नापसंद करते हैं।"

यह सब 11.3.44, 4.28.65, और 11.21.35 में भी कहा गया है। इसलिए, शुकदेव अप्रत्यक्ष रूप से राधा को संदर्भित करते हैं।

श्री राधा कृष्ण की आत्मा हैं और वह स्वयं परा ब्रह्म है, जो मन और वाणी सभी से परे है,

जैसा कि तैत्रिय उपनिषद में कहा गया है- यतो वाचः निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह ( तैत्रिय उपनिषद 2.9)  इसलिए उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है ।

श्री मद भागवत के दशम स्कन्ध मे-

अनायराधितो नूनं भगवान हरिश्वर: |

यन्न-नो विहाय गोविंद: प्रीतो यम अन्यद राह: || (भागवत श्लोक 10.30.28)

"भगवान हरि, ईश्वर, की इस गोपी ने निश्चित रूप से पूजा की है क्योंकि हमें छोड़कर, गोविंदा प्रसन्न होकर उसे एक एकांत स्थान पर ले गए” इसी प्रकार भागवत मे कई स्थानों पर श्री राधा जी को गोपी कह कर संबोधित किया गया है ।

श्रीराधा का  नाम पद्मपुराण , ब्रह्मवैवर्त , ब्रह्माण्ड , स्कंद और देवी भागवत  जैसे पुराणों में पाया जाता  है इसके अलावा कई लोक कथाओ यहाँ तक कि पाँचवी शताब्दी मे लिखे गए पंचतंत्र मे भी राधा जी कि कथाओ का वर्णन है पंचतंत्र के मित्रभेद अध्याय की पाँचवी कहानी मे राधा जी का नाम आता है इसमे उन्हे कृष्ण की पत्नी के रूप मे दिखाया गया है|

श्रीमद भागवत वेदव्यास जी की सर्वोत्तम रचना है वे कहते है यह उन लोगों के लिए है जो रस पारखी है वो संकेत रूप मे ही समझ लेंगे किसी अभक्त द्वारा श्री राधा नाम का निरादर ना हो इसलिए उनके नाम को गोपनीय करके रखना आवश्यक है|


श्री सनातन गोस्वामी पाद के हरि-भक्ति-विलास में सम्मोहन-तंत्र ((2.147)) से एक पद है :

गोपयेद देवताम इष्टम,
गोपयेद गुरुम आत्मान
गोपयेक च निजम मंत्र,
गोपयेन निज-मलिकम्

जिसका अर्थ है अपने प्रिय देवता को छिपाओ।
अपने गुरु को छुपाओ, अपने मंत्र को
छुपाओ, अपनी माला को  छुपाओ 

अर्थात हमे अपनी भक्ति का गोपन कर के रखना चाहिए यहाँ तक की अपने इष्ट के नाम का भी गोपन कर के रखना चाहिए दिखावे की भक्ति को श्रेष्ठ नहीं माना जाता उचित समय आने पर जब भगवद भक्ति रस की अधिकता होती है तो वह स्वयं ही प्रकट हो जाती है तब उसके प्रचार की आवश्यकता नहीं होती है ।

श्री मद भागवत मे लगभग सभी स्थानों पर श्री राधा को गोपी कह कर संबोधित किया गया है रसिक जन इसकी अनुभूति सहजता से कर लेते है अभक्तों को यह सब समझ नहीं आता कहते है कि श्री कृष्ण स्वयं ही राधा जी के नाम गोपनिए रखना चाहते है। जब कोई योग्य भक्त उनके पास आता है और जिस पर वो अति प्रसन्न होते है उसे ही श्री राधा जी के नाम और महिमा का सदसौभाग्य प्राप्त होता है । वृंदावन मे गोपी और कृष्ण के महारास के प्रमाण के रूप मे निधिवन आज भी चमत्कारों से भर हुआ है कहते है कि महारास यह नित्य रात्री मे होता है और जब विश्राम के लिए श्याम श्यामा रंग महल मे जाते है तो वह भक्तों द्वारा रखे गए शृंगार और आभूषण आदि को स्पर्श करते है जिससे सुबह जब निधिवन का द्वार खोला जाता है तो रंगमहल मे सारा समान देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे उपयोग करके रखा गया हो । यह घटना नित्य प्रति रोज होती है कई न्यूज चैनल ने इस पर रेपोर्टिंग भी कि है । निधिवन कि सबसे आश्चर्यजनक बात ये है कि यहाँ रात में कोई नहीं रुक सकता यहाँ तक कि दिन मे हजारों बंदर पूरे वन मे उछलते कूदते रहते है और रात होते ही सब बाहर चले जाते है यदि कोई मनुष्य या जानवर अंदर रुक जाता है तो सुबह वह मृत होता है या फिर बेसुध हो जाता है ऐसी कई घटनाए भी देखी गई है ।

श्री राधा जी के नाम कि महिमा जानने के लिए आपको ब्रम्हवैवर्त पुराण पढ़ना चाहिए उससे आपको पता चलेगा कि वास्तव मे श्री राधा कौन है और फिर आप भी यही कहेगे कि उनकी महिमा को वास्तव मे ना तो कोई समझ सकता है ना ही जान सकता है वास्तव मे ये अत्यंत रहस्यमयी और गोपीनिए है जो बिना उनकी कृपा के नहीं जाना जा सकता है ।

 


 


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Ashish Dwivedi

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