दुनिया भर में शादी/विवाह की शुरुआत कैसे हुई ?

 


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दुनिया भर में शादी/विवाह की शुरुआत कैसे हुई ?

भारत देश में शादियो का सीजन शुरू हो गया है और आप सभी को जानकारी होनी ही चाहिए की इस वर्ष 2024 में कुल 77 दिन का ही विवाह मुहूर्त है और इतने ही दिनों में करीब 1 करोड़ शादिया होगी पिछले वर्ष की बात किया जाये तो मात्र 2 महीने में 38 लाख शादिया संपन्न हुई तो आज हम विस्तार से शादी के बारे में बात करेंगे :-

इसकी जरुरत ही क्यों पड़ी इसको भी समझा जायेगा और शादी को लेकर समाज, देश और दुनिया में व्याप्त कहानिया और मान्यताये क्या क्या है और कुछ रोचक बाते - 



शादी का इतिहास : पाषाण काल से ही मानव जब जीवन यापन के लिए शिकार करता था तो छोटे छोटे समूहों में रहता था क्योकि इससे शिकार करने के साथ साथ खूखार जानवरों से सुरक्षा भी मिलती थी और एक छोटे समूह में कम से कम 30 लोग रहा करते थे और इसका लीडर पुरुष हुआ करते थे जो समूह की महिलाओं के साथ यौन संबध बनाते थे और इनसे जन्म लेने वाले बच्चो को पालने की जिम्मेदारी पुरे समूह के सदस्यों की होती थी |


मिली जानकारी के अनुसार अलग अलग पुस्तकों में अलग अलग कहानिया/ सिद्धांत बताये गए है इसलिए हमे हर प्रकार से इसे समझना होगा 





साक्ष्य 1 : इंसानों में परिवार और समाज के बारे में सोच स्वामित्व और ईर्ष्या की भावना से उत्पन्न हुआ जैसे अधिकतर पुरुषो ने अपनी शक्ति के बल पर पसंदीदा महिलाओ पर अपना अधिकार जमा लिया 

इसी तरह जीविका के काम , बच्चे पैदा करने और इनको पालने के लिए  पुरुष महिलाओं के साथ रहने लगे अर्थात एक स्थाई जीवन की ओर समाज बढ़ने लगा क्योकि इसके पहले तक मानव समाज घुमन्तू हुआ करता था | 


साक्ष्य 2: एक थ्योरी तो ये भी कहती है की बच्चे पैदा होते वक्त माँ का तो पता होता था लेकिन पिता की पहचान करना मुश्किल हो जाता था आज से करीब 10000 साल पहले कृषक समाज की शुरुआत हो जाती है और जोड़े बनना यही से शुरू हो जाते है क्योकि पैदा हुए बच्चे को सामाजिक मान्यता देना जरुरी था 

कहा तो ये भी जाता है की समाज में लेनदेन के लिए या कोई बड़ा आर्थिक गठबंधन होने पर महिलाओं का आदान प्रदान किया जाता था |




साक्ष्य 3: एक थ्योरी तो ये भी कहती है की शादी की शुरुआत 5 स्टेज में हुआ था जैसे :

1. एक ही माता पिता की संताने आपस में विवाह कर लेती थी 

2.सगे सम्बन्धी रिश्तेदार के मध्य शादियो को रोक दिया गया लेकिन यौन सम्बन्ध अभी भी जारी था 

3.पुरुष ने अगर एक महिला से शादी किया तो परिवार के अन्य सदस्य भी उसी के साथ संबध बनाते थे 

4. पुरुष कई महिलाओं से शादी कर सकता था और कई महिलाओ से सम्बधं बनाने के लिए स्वतंत्र था 

5. आज के समय में जिस प्रकार कई धर्मो में पुरुष केवल एक ही शादी कर सकता है ऐसा ही कुछ था लेकिन आज भी कई धर्मो में एक से अधिक पुरुष शादी करने के लिए स्वतंत्र है |


नोट: जरुरी ये नहीं है की ये सभी क्रम से हो कोई स्टेज पहले और बाद में भी हो सकता है |


मिली जानकारी और पक्के सबूतों के आधार पर कहा जा सकता है की आज से करीब 4000 साल पहले शादी एक सामाजिक संस्था का रूप ले चुकी थी लेकिन शादी करने का अधिकार सभी को नहीं था 


आप सभी को जानकारी होनी चाहिए की सबसे पुराने लिखित कानूनों मेसोपोटामिया के उर - नाम्मु में विवाह के बाद सम्बन्ध , गुलामो के बच्चो को लेकर बहुत ही स्पष्ट नियम बताये गए है |

एक पुरुष का एक महिला के साथ शादी का पहला ऐतिहासिक साक्ष्य 2350 ईसा पूर्व मेसोपोटामिया की सभ्यता से मिलता है साक्ष्य के रूप में मेसोपोटामिया की देवी इन्नात्रा और सुमेरियन राजा दुमुजी के विवाह की मूर्ति प्राप्त हुईं है |


ग्रीस देश के साक्ष्यो के आधार पर बात किया जाये तो एक पिता अपनी पुत्री को वचनों के साथ देता था की “ मै अपनी बेटी को वैध संतान पैदा करने के लिए वचन देता हु | "  और अगर महिलाए बच्चे पैदा नहीं कर पाती थी तो पुरुष उन्हें लौटाकर दूसरी महिला से शादी कर लेते थे |





जैसे बेबीलोन सभ्यता से मैरिज मार्किट की एक पेंटिंग प्राप्त हुईं है जहा पर पुरुष महिलाओ से शादी करने के लिए स्त्री का चयन करते थे 

युनान और रोम में पुरुष वेश्याओं के साथ सम्बन्ध बना सकते थे 


भारत देश में अगर वैदिक काल और उस समय के ग्रंथो के हिसाब से बात किया जाये तो बाते और क्लियर होगी जैसे : वैदिक काल में विवाह एक जरुरी और धार्मिक कार्य था जैसे बिना पत्नी के आप यज्ञ नहीं कर सकते थे किसी धार्मिक कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सकते थे ऐसे और भी नियम थे 

वेदों में शादी की कई रीति- रिवाज का जिक्र मिलता है जैसे कन्यादान , पाणिग्रहण और सप्तपदी |


शादी करना इसलिए भी जरुरी था की जिससे समाज का विकास हो सके इसलिए वैदिक काल में शादी के दो उद्देश्य थे पहला पति पत्नी मिलकर यज्ञ में शामिल हो और दूसरा पुत्र को जन्म दे जहा पहले का उदेश्य धार्मिक कार्यो को बढ़ावा देना और दुसरे का अर्थ समाज का विकास |


आप सभी को जानकारी होनी ही चाहिए की करीब 200 ईसा पूर्व से चली आ रही हिन्दू धर्म की मनु स्मृति जिसे भारत का पहला क़ानूनी पुस्तक माना जाता है इसमें विवाह के 8 प्रकार बताये गए है जैसे: ब्रह्म विवाह , दैव विवाह , आर्ष , प्रजापत्य , असुर , गंधर्व ( आज का लव मैरेज ) , राक्षस विवाह और पिशाच विवाह |

इन सभी विवाहों के प्रकार सभी वर्ण के आधार पर बटे हुए थे क्योकि उस समय वर्ण व्यवस्था काफी मजबूत हो चुकी थी |


आज के हरियाणा राज्य में राखीगढ़ी स्थल की खुदाई की गई जो सिन्धु घाटी सभ्यता का एक प्रमुख स्थल भी है यहाँ से एक कब्र मिला जिसमे पुरुष और स्त्री को पुरे धार्मिक क्रियाकलापों के आधार पर दफनाया गया था इस पर काफी रिसर्च किया गया और पाया गया की आज से करीब 4700 साल पहले ये दफनाया गया था और इनको सामाजिक मान्यता मिली हुई थी |


आठवी सदी तक यूरोप के देशो में कैथोलिक चर्च काफी शक्तिशाली थे इसलिए शादी को क़ानूनी मान्यता दिलाना और चर्च के पादरी का आशीर्वाद लेना अनिवार्य बना दिया गया जो आज भी लागू है | और 1563 के ट्रेंट काउन्सिल में शादी को लेकर बहुत ही विस्तार से लिखा  गया और राज्य के साथ चर्च को मिलकर शादी को रेगुलेट करने का अधिकार दिया गया |


इसी तरह भारत में बात किया जाये तो शादी के साक्ष्य ही धार्मिक ग्रंथो से मिलता है लेकिन पश्चिमी देशो में शादी में धर्म का दखल बाद में होता है | 


धर्म के दखल देने से कुछ फायदे मिले जैसे : नैतिकता को बढ़ावा मिला , महिलाओ के अधिकार में वृद्धि होना , समाज में महिलाओ को सम्मान मिलना , जैसे आज भी हिन्दू धर्म में शादी के समय पति और पत्नी एक दुसरे को कुछ वचन देते है इनमें सबसे ज्यादा एक दुसरे के प्रति वफादारी और सहयोग को लेकर वचन होता है ये बहुत पहले से चला आ रहा है |

इसी तरह ईसाई धर्म में विवाह के समय पादरी पुरुषो को महिलाओं के सम्मान और तलाक न देने का वचन दिलाता है और आप सभी जानते ही है की इस्लाम धर्म में निकाह के समय पुरुष और महिला के मध्य एक समझौता होता है जिसमे सबके सामने महिला की रजामंदी ली जाती है |


जहा तक विवाह में कानूनों की बात है तो धीरे धीरे सभी धर्मो ने विवाह को क़ानूनी रूप देना बहुत पहले ही शुरू कर दिया था जैसे आज के समय में शादी और तलाक को लेकर अलग अलग देशो , अलग अलग धर्मो में अलग अलग नियम और कानून है जैसे : भारत देश की बात किया जाए तो हिन्दूओ के लिए हिंदू मैरिज एक्ट 1955 ,

मुस्लिमो के लिए मुस्लिम पर्सनल कानून 1937 ,

ईसाईयों के लिए क्रिश्चियन मैरिज एक्ट 1872 

और इसके साथ ही भारत में सभी धर्मो के लिए स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 आज भारत में लागू है |


इससे समाज को कई फायदे भी मिले है जैसे : अधिकतर देशो में एक न्यूनतम उम्र के बाद ही आप शादी कर सकते है , अंतरजातीय विवाह , मैरिटल रेप और दहेज़ जैसी समस्याओं से निजात पाने के लिए कानून की जरूरत महसूस किया गया था 


जहा तक शादी के साथ प्रेम की बात किया जाये तो ये काफी रोचक भी है क्योकि मानव इतिहास में पुरुष और महिला व्यवहारिक कारणों से एक दुसरे के पास आते थे इसमें प्रेम नहीं होता था हां विवाह होने के बाद जरुर एक दुसरे के लिए प्रेम का एहसास करने लगते थे |


आप सभी को जानकर हैरानी जरुर होगी की प्रेम विवाह का कांसेप्ट सनातन धर्म की पहली लिखित रचना अर्थात ऋग्वेद में ही प्रेम विवाह का वर्णन मिलता है वह भी सूर्य की पुत्री सूर्या का |

भगवत पुराण में राजा वेण का जिक्र आता है जिन्होंने शादी को जाति के बधन से मुक्त कर रखा था लेकिन कई ग्रंथो में इनको विधर्मी बताया गया है |


7 ववी शताब्दी में राजा हर्ष के कवि बाण की सौतेली माता शुद्र थी इसका अर्थ ये हुआ की मध्यकालीन समय में भी प्रेम विवाह हुआ करता था क्योकि राजा हर्ष क्षत्रिय थे

वर्ष 1872 में अंग्रेज सरकार ने एक्ट -3 बनाया था इसके अनुसार दूसरी जाति के लोगो से विवाह करने की इक्छा रखने वाले पुरुष सिविल मैरिज कर सकते थे |


इस तरह से इन तमाम सबूतों के आधार पर कहा जा सकता है की विवाह होना या करना कोई नई बात नहीं है इस वर्ष भी होगी और आगे भो होती रहेगी इसकी परिभाषा और शादी करने के तरीको में जरुर बदलाव होता रहेगा जैसे बहुत से देशो में लोग अब शादी बहुत देरी से करते है क्योकि पढाई , करियर और इसके साथ पर्सनल ग्रोथ को ध्यान देना सबसे बड़ा कारण माना जा सकता है ................


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