वास्तविक शिक्षा क्या है ?

 


वास्तविक शिक्षा क्या है ?

हमारे सूत्र वाक्य में कहा गया है कि " सा विद्या या विमुक्तये " अर्थात विद्या वही जो हमें बंधनों से मुक्त करें 

जैसा की आइंस्टीन का मत भी है कि विश्व एक महान पुस्तक है जिसमें वे लोग केवल एक ही पृष्ठ पढ़ पाते हैं जो कभी घर से बाहर नहीं निकलते हैं

दरअसल हम जिंदगी भर विद्यार्थी होते हैं और जिंदगी में अपने अनुभव से सीखना ही हमारी वास्तविक शिक्षा है वास्तविक शिक्षा का मतलब यह नहीं है कि हम जिंदगी भर सफल ही हो बल्कि हमारी वास्तविक सफलता अपनी असफलता को एक प्रेरणा के रूप में लेना है 



हमारी वास्तविक शिक्षा का मतलब हमारी रुचियो के परिष्कार से ही है आज हम जिस समाज में जी रहे हैं वहां पर बचपन से ही बच्चों के कंधों पर उनके अभिभावक अपनी रुचियां की बस्ते का बोझ लाद  देते है 

एक छात्र क्या बनना चाहता है उसकी क्या रुचि है इन बातों को उनके अभिभावक तथा शिक्षक जानने तक का कभी प्रयास नहीं करते और हम देखते हैं कि अपने बच्चों को सिर्फ डॉक्टर या इंजीनियर बना देने की इच्छा उनके भविष्य में तोड़कर रख देती है और कई बार वे निराशा के गर्त में जाकर आत्महत्या जैसे खतरनाक कदम भी उठा लेते हैं


कुछ वर्ष पहले आई फिल्म थ्री इडियट्स इसी एजुकेशन को लेकर ही बनाया गया था फिल्म का मुख्य पात्र किस तरह से अपने मित्रों को प्रेरित करता है जो की इंजीनियरिंग की परीक्षाओं में तो फेल साबित होते हैं परंतु उनमें ऐसे कुछ गुण होते हैं जिनके आधार पर वे भविष्य में बहुत ही बेहतर कार्य कर सकते हैं मुख्य पात्र का एक दोस्त जो बहुत ही अच्छा वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर है परंतु उसके घरवाले द्वारा इंजीनियर बनने के लिए दबाव से परेशान है लेकिन बाद में उसके पिताजी अपनी गलती को स्वीकार करते हैं कि उन्होंने अपनी अपेक्षाओं का बोझ अपने बेटे पर लादा था बाद में यह देखने में भी आता है कि वह अपने इंजीनियरिंग की करियर को छोड़कर एक सफल फोटोग्राफर के रूप में बेहद सफलतम कैरियर प्राप्त करता है

एक बात अक्सर हमारे बीच में कही जाती है कि पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब,  खेलोगे कूदोगे बनोगे खराब | और हमारे बड़े बुजुर्ग अक्सर हमे किताबी कीड़ा बनाने के लिए इस जुमले का इस्तेमाल करते हैं समाज की एक बहुत ही रूढ़िवादी किस्म की मान्यता है कि जो बच्चे खेलने, कूदने ,नाचने, गाने ,संगीत का शौक रखते हैं वह अपनी असल जिंदगी में असफल इंसान ही साबित होते है  

वे बच्चे जो दिन रात किताबों में ही अपनी दुनिया बसा चुके हैं और ढेर सारे अंक प्राप्त कर लेते हैं उन्हें इस हिसाब से हमारे गली मोहल्ले और समाज में मान सम्मान तक दिया जाता है कि वह ही एक बेहतर और सफल इंसान है और खेलने कूदने वाले संगीत व अभिनव में रुचि रखने वाले बच्चे उनके सामने तो कहीं नहीं ठहरते हैं 



पढ़ाई के अलावा अन्य गतिविधियों में रुचि रखने वाले बच्चों द्वारा जीते गए हजारों मैडल और और ट्रॉफी उनके एक गोल्ड मेडल के सामने फीकी पड़ जाती है आपने अपने आसपास देखा भी होगा कि जब बचपन में कोई छात्र राज्य स्तर ,जिला स्तर की भाषण अथवा वाद - विवाद प्रतियोगिता जीतकर आता है तो घर वाले के साथ-साथ समाज का मान सम्मान बढ़ता था लेकिन उसी समय हमें सख्त शब्दों में चेतावनी भी दी जाती थी कि इन सब फालतू चीजों के चक्कर में कहीं तुम अपनी पढ़ाई बर्बाद ना कर बैठो

 लेकिन यदि राजनेताओं को पिताजी की कसौटी पर रख कर देखो तो अच्छी देश की कमान संभालने वाले कई बड़े-बड़े नेता औपचारिक शिक्षा के लिहाज से भले ही अनपढ़ साबित हो परंतु राजनीति की दुनिया में वे अपने शासन प्रशासन तथा नेतृत्व में सफलता के नए मॉडल जरूर स्थापित कर रहे हैं

 आजकल सरकार की शिक्षा नीति में भी एक कमजोर पक्ष से दिखाई देता है कि वे लोगों को शिक्षित ना बनाकर साक्षर बनाने पर ही अधिक फोकस दे रहे  है और कुल मिलाकर हमारी उच्च शिक्षा प्रणाली का भी यही हाल है कि हम पढ़े-लिखे मजदूर तैयार कर रहे हैं और हम एक ऐसी शिक्षा पद्धति में प्रवेश कर गए जहां मानवीय मूल्यों के दाव पर इंसान को मशीन बनाए जाने का काम लगातार चल रहा है 

हमारे विज्ञान और तकनीकी ने हमें चाँद पर भले ही पहुंचा दिया मगर हमारे अंदर के संवेदनशील इंसान को मार ही दिया है इसमें कोई दो राय नहीं है कि वास्तविक शिक्षा वही है जो अपने सामंतवादी और रूढ़िवादी विचारों को त्याग कर जाति - लिंग और धर्म की दीवारों को तोड़ दे तथा इंसान के इंसान से भाईचारे की मिसाल कायम करें 



कुछ उदाहरण से समझते हैं तो हमें बात आसानी से समझ में आएगी महान वैज्ञानिक आइंस्टीन के उन्मुक्त स्वभाव के कारण जर्मन स्कूलों के तानाशाहनुमा शिक्षक उन्हें पसंद नहीं करते थे एक बार एक शिक्षक ने तो उन्हें यह सलाह दी की आइंस्टीन तुम स्कूल छोड़ दो आइंस्टीन फेडरल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी की परीक्षा में बैठे और फेल हो गए और यह हमारे संपूर्ण जगत के लिए सही ही हुआ नहीं तो इतना बड़ा वैज्ञानिक महज जो एग्जाम पास करता तो किसी किसी मिल में काम करता और एक मजदूर बनकर रह जाता और बाद में किए गए चमत्कारी खोजो से हम परिचित ही नहीं हुए होते 

जहां उनके द्वारा किए गए ऊर्जा के सिद्धांत हमारी जिंदगी की गति को बढ़ा दिया आइन्स्टाइन के शब्दों में शिक्षा को इस प्रकार बताया गया है जैसे शिक्षा तथ्यों को याद करना नहीं है बल्कि मस्तिष्क को सोचने के लिए अभ्यास करना हर कोई बुद्धिमान है लेकिन जब बुद्धिमत्ता के पैमाने की जांच एक मछली द्वारा उनके पेड़ पर चढ़ने की योग्यता के संदर्भ में किया जाने लगे तब यह मूर्खता ही होगी



भारतीय चिंतक रजनीश के बारे में यह भी बताया जाता है कि एक बार वह कॉलेज के कैंटीन में अपने दोस्तों के साथ गपशप लड़ा रहे थे इतने में उनके एक दर्शन के प्रोफेसर आ गए प्रोफेसर ने रजनीश से कहा कि तुम क्लास में तो कभी आते नहीं हो तुम तो फेल हो गए होगे इस पर रजनीश ने जवाब दिया कि आपके विषय में मेरा 99% है और 1% अंक सिर्फ इसलिए कम रह गए कि मैं एक दिन आपकी क्लास में बैठ गया था

सचिन तेंदुलकर का नाम आज दुनिया में कौन नहीं जानता लेकिन आपको जानकर भी हैरानी होनी चाहिए कि सचिन तेंदुलकर भी हाई स्कूल की परीक्षा में फेल हो गए थे उस समय आसपास के लोगों ने बहुत ताने मारे अगर वह पास ही हो जाते तो क्या बनते डॉक्टर , इंजीनियर , आईएएस, पीसीएस या इससे और कोई बड़ा पद लेकिन फेल होकर भी आज क्रिकेटर के भगवान बने हुए 



ऐसे ही हमारे सामने कबीर जी हैं जिन्होंने लिखा भी है कि :-

" मसि कागज छुओ नहीं,  

कलम गह्यो नहीं हाथ " 

मगर फिर भी वह समाज को प्यार , मानवता और भाईचारे का पाठ पढ़ा गए इसी प्रकार, 

" पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ पंडित भया न कोय ,

 ढाई आखर प्रेम का , पढ़े सो पंडित होए " |

और ऐसे ही तमाम उदाहरण हमारे समाज में देश में दुनिया में मिल जाएंगे जहां से आपको वास्तविक शिक्षा का अर्थ समझ में आएगा हमारे देश में इंजीनियर इस किस्म के है कि वह ना तो अपनी घड़ी ठीक कर सकते हैं और नहीं बल्ब | 

इसके लिए उन्हें सामान्य मैकेनिक को ही बुलाना पड़ता है सबसे बड़ी बात यह भी है कि इस काम को करने में अपनी शर्म महसूस करते हैं क्योंकि उन्हें सफलता का यह सूत्र ही नहीं पता कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता है 



हमारे पड़ोसी देश चीन में एक स्कूल जाता बच्चा अपनी घड़ी या ऐसी ही तमाम चीज जिसके लिए हम मैकेनिक की राह देखते हैं वह पलक झपकते ही उसे ठीक कर देता हम अपने विद्यालयी एवं महाविद्यालयी किताबों में आविष्कार के तमाम सिद्धांत भले ही क्यों ना पढ़ ले मगर उसके प्रयोग में हमारे पसीने छूट जाते हैं आज के समय में जहां महंगे विद्यालय ही अच्छी शिक्षा का पैमाना मान लिए गए हैं उस दौर में हमें अपने वो शिक्षक, वैज्ञानिक , दार्शनिक और समाज सुधारक बार-बार याद आते हैं जिन्होंने कभी विद्यालय का मुख तक नहीं देखा था फिर भी आज इतिहासो में अमर बने हुए

ऐसे में यही अभिलाषा व्यक्त होती है कि हमारी शिक्षा प्रणाली ऐसी हो कि जहां हम अपने स्वार्थो के लिए नहीं बल्कि समाज कल्याण के लिए पढ़े तभी वास्तविक शिक्षा को प्राप्त कर पाएंगे है ............



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