युद्ध और प्रेम में सब कुछ जायज है ? कितना सही ,कितना गलत

 


युद्ध और प्रेम में सब कुछ जायज है ? कितना सही ,कितना गलत 

एक अवधारणा के रूप में इस मुहावरे के यथार्थ होने से तो इंकार करना मुश्किल है पर इंसान होने के कारण वह भी भारतीय होने के कारण से इसको पचा पाना मुश्किल ही है इसकी सब कुछ जायज होने वाली बात किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं हो सकती है भले ही प्रेम या युद्ध जैसी चरम महत्व वाली गतिविधि ही क्यों ना हो

युद्ध और प्रेम में सब कुछ जायज होने के विचार पश्चिमी होने का आरोप है पर अगर आप सभ्यताओं की इतिहास की तुलना करें तो पाएंगे कि यह विचार जरुर ही दुनिया को चीन दे रहा होगा



क्योंकि प्रारंभ से चीनी लोग छल - प्रपंच, षड्यंत्र को एक सामान्य जीवन शैली के रूप में लेते थे और यह आदत आज भी उनकी कूटनीति की प्रमुख शैली है तभी तो जहा एक तरफ चीनी राष्ट्रपति जो हमारे देश के प्रधानमंत्री मोदी जी के साथ भारत में बैठकर झूला भी झूल रहे थे और वही अपने सैनिकों को 25 मील करीब 40 किलोमीटर भारतीय सीमा में घुस जाने के लिए भी निर्देश दे रहे थे

हालांकि सफलता या जीत सब कुछ मानने की अवधारणा सभी प्रारंभिक सभ्यताओ में आराम से ही होती थी सत्ता एवं सुंदर स्त्रियों को कब्जा करने के लिए और अपने साम्राज्य की सीमा को बढ़ाते रहने के लिए पुरानी सभ्यताओं के लोग कुछ भी करने को तैयार थे

बाप बेटे की हत्या करवा सकता था , आंखें निकलवा सकता था और इसके भी अनेक उदाहरण है कि हजारों बेटो ने अपने पिता के शव को पार कर सिंहासन तक पहुंचे यहां तक कि हम अपने शास्त्रों को भी देखें तो खल - चरित्र येन ,केन, प्रकारेन, जीत या सफलता के लिए कुछ भी करने को तैयार दिखते हैं भगवान भी अपनी मनुष्य लीला दिखाने के चक्कर में उनके जैसे ही कारनामे करने से कहीं पीछे नहीं थे



योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण जी के कारनामे को आप चाहे जितना तर्क संगत सिद्ध करना चाहे पर कई जगह वे भी मान रहे थे कि युद्ध और प्रेम में सब कुछ जायज है |

कृष्ण तो कृष्ण मर्यादा पुरुषोत्तम माने जाने वाले श्री रामचन्द्र जी ने भी ऐसे ही कार्य किये जिससे यह पता चलता है कि वे भी कृष्ण की तरह अंत : परिणाम पर ही ध्यान देते थे



इस मुहावरे का सबसे अधिक पालन तानाशाहों ने किया जैसे हिटलर ने आर्य जाति के कथित उत्कर्ष के लिए 60 लाख से अधिक यहूदियों को गैस चैंबर में झोंक दिया इसके लिए उसके मन में कभी अपराध का बोध ही नहीं हुआ क्योंकि उसे लगता था की जर्मन राष्ट्र के लिए यही सही रास्ता है आज भी भारत में तथा दुनिया भर में कुछ लोग उसके विचारों से सहमत नजर आते हैं उसे कथित राष्ट्रवाद को अपना आदर्श बनाना चाहते हैं

सोवियत संघ का तानाशाह स्टालिन भी इसी रास्ते पर चला समानता स्थापित करने के लिए उसने लाखों लोगों की हत्या करवा दी तथा असंख्य लोगों को साइबेरिया का विस्थापन करा दिया इसी तरह कंबोडिया में समता मूलक अर्थात समान सामाजिक माहौल बनाने का दावा करने वाले खमेर रुजो ने जो करीब एक तिहाई कंबोडियन को मार डाला और उनके सिरों को काटकर पहाड़ खड़ा कर आम जनता से अपने जीवन देने के लिए विवश किया

समानता स्थापित करने के नाम पर यह सब किया गया इस तरह के तानाशाहो ने इन चीजों को एक तरह से आदर्शवाद से प्रेरित होकर किया और अपनी विचारधारा की जीत तय करना और इसके लिए कुछ भी करना यह उनके सिद्धांत था

पर क्या यह मानवता का भी सिद्धांत था ? कतई नहीं | ऐसे खलनायक अपने काले कारनामे के लिए हमेशा मानवता के शत्रुओ के रूप में गिने जाते रहेंगे जब तक मानवता में सही मूल्यों का प्रभाव रहेगा इसके विपरीत किसी भी साम्राज्य का शासन न होने के बावजूद भी आज गांधी जी दुनिया भर के लिए आशा की किरण माने जाते रहे है दुनिया भर में मानवता तथा स्वतंत्रता प्रेमी उनको अपना आदर्श मानते हैं वे चाहे अमेरिकी अश्वेत नेता मार्टिन लूथर हो या दक्षिण अफ्रीका के नेंसल मंडेला , म्यांमार की नागरिक आजादी के लिए सक्रिय आंग सान सू की हो या दुनिया भर में कुष्ठ रोगियों के लिए ईश्वरीय वरदान की तरह आए बाबा साहब आमटे हो ऐसा क्या था गांधी जी में ?



वह था गांधी जी की साधना एंव साध्य दोनों की पवित्रता पर जोर सत्य , अहिंसा पर दृढ़ विश्वास जो कहे वही करने की अटूट निष्ठा अर्थात युद्ध प्रेम में सब जायज है वाली अवधारणा का उल्टा |

भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस जैसे उनके राजनैतिक आलोचक भी उनके साथ इस जज्बे को सलाम करते थे भगत सिंह ने स्वयं हिंसा का पक्ष नहीं लिया था अंत : अहिंसा के रास्ते को ही किसी समस्या का हल बताया था उनके एक जीवनीकार ने बताया कि " मैं आजादी के लिए गलत या सही कुछ भी करने को बिल्कुल सही नहीं समझता हमने जो किया वह आपका धर्म था "

गलत तरीके से पाई गई जीत या उपलब्धियां भविष्य में तनाव ही पैदा करती हैं छल से पाया गया प्रेम रोज एक घृणा को जन्म देता है क्रोध या गुस्सा असहनीय होते हैं जबकि प्रेम में सहनशीलता होती है द्वेष में भी शक्ति होती है दुनिया की लगभग सभी क्रांतियां में शुरुआत यहीं से होती है

पर इन क्रांतियो की स्थाई सफलता प्रेम पर ही निर्भर रही है यही स्वतंत्रता पाने का स्थाई तरीका भी रहा है प्रेम के बिना नफरत जंगल की आग है लोगों के मनों में गलतफहमी है कि दितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश उलझाव का फायदा उठाकर आजादी की लड़ाई लड़ रहे सुभाष चन्द्र बोस इनके लिए कुछ भी कर सकते थे और सही भी है लेकिन वे मानवता की हत्या नहीं कर सकते थे



यही कारण है कि लगभग 2 वर्षों तक यूरोप में रहकर भी हिटलर ,मुसोलिनी और स्टालिन से भारत की आजादी के रास्ते के बारे में बात करते रहे पर वे अंत : इन तीनो के रास्तों से सहमत कभी भी नहीं थे

रास बिहारी बोस पूरब में भारतीय सैनिकों को पहले से संगठित कर रहे थे वरना सुभाष चंद्र जी तो तोपो जैसे तानाशाह का सहयोग लेने को पहले राजी ही नहीं थे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के योद्धाओं या दुनिया को अपने कार्यों से रास्ते दिखाने वाले महान लोग वे कभी भी गलत या चरमपंथी रास्ते से कुछ भी प्राप्त करने की इच्छा नहीं रखते थे

हां जहा सत्ता की बात जुड़ गई वहा कुछ और बात रही इसलिए इस मुहावरे में यह जोड़ देना चाहिए कि युद्ध , प्रेम और सत्ता के लिए कुछ भी जायज होता है लेकिन सत्ता और राजनीति के लिए भी यह 100% सही नहीं है कम से कम भारत के लिए तो बिल्कुल भी नहीं जहा तमाम भारतीय शासको ने सत्ता के लिए धर्म का परित्याग नहीं किया भारतीय लोग युद्ध में भी धर्म के अनुरूप आचरण करते थे

शरणागत अर्थात बंदी बनाए गए सैनिकों पर हमला नहीं करते थे भागते हुए शत्रु पर पीछे से हमला नहीं करते थे अंधेरे में या छिपकर हमला नहीं किया पर यह बात अलग है कि इसकी उन्होंने भारी कीमत चुकाई पर उनको इस आधार पर गलत भी ठहराया नहीं जा सकता |

कुछ लोग तो किसी भी कीमत पर परिणाम लाने के लिए भी श्री कृष्ण जी का उदाहरण देते हैं पर कृष्ण जी के हर कार्य के पीछे धर्म संस्थापना का उद्देश्य छिपा होता था लोग उदाहरण भी देते हैं की रामायण , महाभारत से लेकर अंग्रेजी राज तक सत्ता का पूरा खेल षड्यंत्र की मोहरों से चला है ना की धार्मिक आधार पर |

दुनिया का कोई भी युद्ध बहादुरी के बल पर नहीं बल्कि छल के बल पर ही जीता गया है शक्ति में यदि छल न मिलाया जाए तो शक्ति का अपना कोई वैल्यू नहीं होता

वह कैसा प्रेम होगा जिसमें सब कुछ जायज हो ? पर यह तो सच है लेकिन इसे प्रेम नहीं कहा जा सकता है इसे वासना, भौतिक आकर्षण कुछ भी कहा जा सकता है पर प्रेम तो कभी नहीं |


क्योकि प्रेम एक सकारात्मक अवधारणा है यह एक कोमल एवं पवित्र अवधारणा भी है इसे युद्ध के साथ मिलाकर कुछ भी हासिल करने वाली बात से जोड़ना प्रेम की छवि को धूमिल करना ही होगा वह प्रेम जो सब कुछ जायज मानता है सिर्फ स्त्री का आकर्षण ही हो सकता है मोह हो सकता है इस जीवन में भौतिक आकर्षण क्षणिक है इसलिए विचार रहित भौतिक प्रेम को दोष नहीं दिया जा सकता है

भारतीय साहित्य नि:स्वार्थ उदान्त प्रेम के विवरणों से भरा पड़ा है इस प्रेम में अपना अहंकार त्यागना पड़ता है जैसे कबीरा यह घर प्रेम का, खाला का घर नाहि , यह प्रेम तो हमेशा सहनशीलता पैदा करता है त्याग के लिए तैयार करता है

हमारी संवेदना को इस कदर जगा देता है कि हम सारी कायनात से प्रेम करने लगते हैं घर से प्रेम , समाज से प्रेम , देश से प्रेम , प्रकृति से प्रेम, अपनी धरती से प्रेम , ऐसे प्रेम में सब कुछ जायज वाली बात मिलाकर सोचे तो वह उसके प्रभाव को कम कर देती है और हमें अंदर से लगता है कि प्रेम तो त्याग करने और दुनिया को कुछ प्रदान करने की ताकत देता है ना कि कुछ भी करके छीनने की

पर एक पहलू तो यह भी कहता है कि भले ही प्रेम को बख्श दो पर यथार्थवाद तो यह कहता है की युद्ध और सम्राज्य तो सब कुछ जायज मानकर ही जीते गए है



चाणक्य से लेकर मैकियावेली तो यही करते रहे है आज के नेता भी तो इस अवधारणा पर चलकर सत्ता हथियाने एंव बनाये रखने के लिए प्रपंच में लगे हुए है वे यह भी कहते है कि भारतीय परंपरा में भी तो साम- दाम - दंड भेद सबकी बात की गई

अंतिम रूप से न्याय व इतिहास उसी के साथ होता है जिसके हाथ विजयी होती है अंग्रेजों ने भारत को छल से जीता पर क्या उसमें कुछ नया था ? क्या वही पहले से होता नहीं आया था ?

जो धार्मिक पंथ यह प्रचारित करते थे की रास्ता भी अच्छा होना चाहिए वे खुद अमानवीय तरीके पर चलकर अपना प्रसार करना बंद नहीं कर रहे थे क्योंकि यथार्थवादी रास्ता ही यही था धर्म की भारतीय अवधारणा कर्म पर जोर देती है यह कर्म भी धर्म युक्त होना चाहिए

जहां कर्म अधर्म का हिस्सा हो गलत तरीके से सभ्यताओं को जीतने और राज करने का तरीका हो उसे हम सही कैसे कह सकते हैं तब तो ISIS, बोकोहरम , तालिबान को भी सही ठहराना होगा क्योंकि वह भी लगातार दुनिया के शहरो को जीत रहे हैं


सच तो ये है कि सही रास्ते पर चलना एक ऐसा आदर्श है जिसे बहुत कम लोग वहन कर सकते हैं पर क्या असत्य - हिंसा को ही सही मार्ग के रूप में स्वीकार कर लिया जाना चाहिए क्योकि इतिहास में इस रास्ते में ज्यादा सफलता लोगों को मिली है और आज भी लगभग सफलता के मानक यही है अपराधी मानसिकता के लोग सत्ता , धर्म , व्यापार यहां तक की खेलों को भी अपने प्रभाव में ले रहे हैं

भारत में राजनीति और व्यापार में वही आगे बढ़ता दिख रहा है जो सब कुछ जायज है की अवधारणा पर चल रहा है तो फिर क्या सत्य - अहिंसा, साधना और साध्य की पवित्रता यानी कि जितने भी सही रास्ते हैं , संतुलित रास्ते हैं उसे कूड़ेदान में होना चाहिए ? निश्चय ही नहीं क्योंकि अभी भी लोगों में उम्मीद है अगर कुछ भी करके सत्ता हथियाने वाले नेता हैं तो प्रकाश और मंदाकिनी आमटे भी हैं जो अपने कर्तव्य के लिए अपने एकमात्र पुत्र की बलि चढ़ाने के लिए तैयार हो जाते हैं

दुनिया में सच्चाई का मार्ग बंद नहीं हुआ है लोग विवशताओं से घिरे हैं पर अधिकांश की आत्मा मरी नहीं है वे अंदर ही अंदर अपराध के बोध को महसूस करते हैं सच्चाई को सराहते हैं जैसे अन्ना हजारे जैसे वृद् केवल सच्चाई के बल पर राष्ट्र की आशाओं के केंद्र यूं ही नहीं हो जाते है इसलिए कहा जा सकता है की इतिहास में और आज की परिस्थितियो में भले ही सही लगता हो की युद्ध और प्रेम में सब कुछ जायज है पर इस बात की संभावनाए भी जीवित है की यदि इंसान जायज रास्ते पर चलेगा तो जरुर ही मानवता को बचाने का आखरी रास्ता होगा

जैसे बुद्ध ,ईसा मसीह , महावीर या गाँधी जी का रास्ता हमे हमेशा हिटलर . मुसोलिनी , या स्टॅलिन की तुलना में सही लगेगा जब हम अपने अंतरात्मा की आवाज सुनेंगे क्योकि इस अवधारणा को सही मानने पर हमे मिला ही क्या है डर ,भय, हत्या जैसी चीजे ही तो दुनिया ने देखी है इसलिए हमे भी इस अवधारणा की सच्चाई को समझना ही होगा तभी जीवन सुखमय बन सकता है ...........



#loveandwartheory , #warandlove , #gandhijitheory, #hitlerstory , #rajnish ,#kldclassesblogger, #lovestory , #relationofloveandwar , #news ,#love, #war ,#storyoflove kldclasses.blogspot.com

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने