भ्रामक प्रचार पर रोक कब लगेगी ?
अधिक से अधिक मुनाफा कमाने की होड़ में आज अधिकांश कंपनियां चाहती हैं कि वह अपने प्रोडक्ट को आसानी से लोगों के पास पहुचा कर अधिक से अधिक लाभ कमाए
सभी कंपनियां अपने प्रोडक्ट को हमेशा दूसरे की तुलना में सबसे अच्छा बताती है आज सबसे बड़ी समस्या दुनिया भर के देशों के साथ भारत में सबसे अधिक खान - पान से जुड़े उत्पादकों का भ्रामक प्रचार हो रहा है
आज मार्केट में नूडल्स के ही कई ब्रांड उपलब्ध है सभी लोग अपने नूडल्स को दूसरे से बेहतर बता रहे हैं जबकि डॉक्टर का कहना है कि स्वास्थ्य के लिए कोई भी नूडल्स सही नहीं है सभी में एक खतरनाक रसायन मिला होता है कंपनियों के पास बेहतर साबित करने के कोई आधार भी नहीं है
एक बार एक युवक ने डीयो डोरेट कंपनी पर इस बात को लेकर मुकदमा दर्ज कर दिया कि युवक ने उस कंपनी के हजारों रुपए के डीओ खरीदा और प्रयोग करने के बाद एक भी महिला उसकी ओर आकर्षित नहीं हुई जबकि विज्ञापन में दिखाया गया था
ऐसा नहीं हो तो क्यों कंपनियां बड़े-बड़े फिल्मकार , क्रिकेटर व अन्य से क्यों विज्ञापन करवाती है सवाल पूछने पर विज्ञापन करने वाले सीधे जवाब देते हैं हमें तो इस विज्ञापन के पैसे मिलते हैं फायदा हो या नुकसान वह कंपनी का काम है हमारा नहीं |
आज के समय में विज्ञापन एक आग की तरह काम करता है खाने पीने की वस्तुओं के साथ ही दावों को लेकर भी भ्रामक विज्ञापन हो रहा है केंद्र सरकार का मकसद है कि वह गलत दवाओं के साथ साथ टोटके के जरिए किये जा रहे भ्रामक प्रचार करके कमाने वाले माध्यमो पर रोक लगाई जाई
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने इसकी शुरुआत के लिए ड्रग्स और मैजिक रेमेडीज 1954 जो किसी भी दवा या चमत्कार के द्वारा किसी भी बीमारी के इलाज का झूठा दावा करने वालों भ्रामक पर रोक लगाने के लिए आम जनता से सुझाव मांगा था
संसद में भी इसको लेकर चर्चा हो चुकी है राज्यसभा में अपनी 95 वी रिपोर्ट में रेखांकित किया गया था लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिल सकी है
इसके पीछे 2 महत्वपूर्ण कारक है :-
1. नई दवाओ के लाइसेंस के नियमों जिसमें राज्य सरकार बड़ी भूमिका है
2. ड्रग्स और मैजिक रेमेडीज 1954 में बनी कानून में कमियां मुख्य तौर पर सजा का प्रावधान है
सरकार ने इसके लिए 3 नए सुधार करने जा रही है :-
1. विज्ञापन की परिभाषा में बदलाव करते हुए वेबसाइट के द्वारा किए जाने वाले विज्ञापन को भी जोड़ा जाएगा क्योंकि आजकल इंटरनेट से किए जाने वाले विज्ञापन और सूचना में फर्क करना बहुत ही मुश्किल हो गया है
2. संशोधन के द्वारा एलोपैथी, यूनानी ,आयुर्वेदिक के साथ सिद्ध पद्धति के इलाज को भी जोड़ा जाएगा
3. नियमों का पहली बार उल्लंघन करने पर 2 साल की सजा और 10 लाख रुपए जुर्माना दोबारा करने पर 5 साल की सजा और 50 लाख रुपए का जुर्माना |
इसने नियम का सबसे अधिक प्रभाव उन कंपनियों के प्रोडक्ट पर पड़ेगा जो मनगढ़ंत समस्याओं जैसे लंबाई, मोटापा, वजन बढ़ाना या घटाना, वैवाहिक जीवन , संतान ना होना आदि जो चमत्कारिक दावे करते हैं इस पर लगाम लगेगी अक्सर ऐसे विज्ञापन का कोई फिक्स एड्रेस नहीं होता है और ना ही कोई रिकॉर्ड , बस मोबाइल नंबर से संपर्क करके दवा बुकिंग कराई जाती है
छोटी-मोटी बीमारी के साथ कई विज्ञापन तो कैंसर बीमारी को भी खत्म करने का दावा करती है पढ़े-लिखे लोग तो कभी कभी बच जाते हैं लेकिन कम पढ़े लिखे लोग इसके चक्कर में फंस जाते हैं क्योंकि सब एक ही बात कहते हैं फायदा तो इससे नहीं भी हुआ तो नुकसान भी नहीं होगा
कई बार तो व्यक्ति सही उपचार को छोड़कर इस गलत विज्ञापन के जाल में फंस जाता है और बीमारी ठीक होने के बजाय समस्या और ही अधिक बढ़ जाती है कि वह दोबारा उस अवस्था में नहीं पहुंच पाता है कि उसका सही से इलाज हो पाए
आपने एक कहावत तो सुनी ही होगी कि " नीम हकीम खतरे -ए- जान " सरकार तो हर संभव प्रयास कर रही है इसको रोकने के लिए किसकी गलती के कारण से भ्रामक विज्ञापन किये जा रहे हैं ? और आप इसमें किसकी गलती देंगे ?
1. सरकार : कठोर कानून न होना
2. कंपनियां : सिर्फ लाभ कमाना
3.विज्ञापनकर्ता : इन्हें सिर्फ पैसों से मतलब होता है
4.जनता : जो इन भ्रामक विज्ञापन पर विश्वास करती है............



