समान नागरिक संहिता कानून : पक्ष और विपक्ष
इस समय पुरे भारत देश में समान नागरिक संहिता कानून की काफी चर्चा हो रही है और होना भी चाहिए क्योकि इसका जिक्र भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में काफी विस्तार से बताया गया है और राज्यों को निर्देश दिया गया है की जब परिस्थितिया अनुकूल हो तो अपने अपने राज्य में इन कानून को लागू कर सकती है इसी को देखते हुए देश में एक ही राज्य गोवा में अभी तक लागू हो पाया है इसके साथ ही उत्तराखंड राज्य में इसको लागू करने की प्रक्रिया चल रही है इसके साथ ही पुरे देश भर में लागू करने की कोशिश की जा रही है लेकिन आज हम इस पर बात करेंगे जब भारत आजाद नहीं हुआ था ....
वर्ष 1840 में अंग्रेज सरकार के द्वारा एक सर्वे करके एक रिपोर्ट पेश की गई और सभी भारतीयों के लिए एक समान कानून बनाने की बात कही गई साथ ही सभी धर्मो के निजी कानून को भी साथ साथ लागू करने की बात की गई और इस प्रकार भारत में पहली बार सभी धर्मो के लिए एक समान कानून बनाने की बात सामने आई थी
लेकिन काफी विरोध के कारण सरकार इसको लागू नहीं करा पाई आप सभी को जानकारी होगी की भारत की प्रथम स्वतन्त्रा क्रांति आन्दोलन 1857 के होने का सबसे बड़ा कारण धार्मिक ही था और इस क्रांति के बाद ईस्ट इंडिया कम्पनी का शासन समाप्त कर ब्रिटेन की महारानी का शासन भारत में लागू हुआ और नए बने कानून के पहली लाइन में ही लिखा गया था की ब्रिटिश सरकार भारत में किसी भी धर्म के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं करेगी
इसके बाद जब देश आजाद हुआ तो इस पर संसद के साथ देश के हर हिस्सों में काफी बहस हुआ की अब यह नियम लागू किया जाये या नहीं जैसे 1947 में ही अम्बेडकर साहब ने साफ़ शब्दों में कहा थी की मै नहीं चाहता हु की सभी धर्मो का अलग अलग कानून हो क्योकि अब देश आजाद हो चुका है |
इसके 20 साल बाद 1967 में आज की बीजेपी पार्टी जो पहले जनसंघ के नाम से जानी जाती थी इसने अपने चुनावी घोषणा पत्र में इसे प्रमुखता से शामिल किया तब से लेकर आज 2024 तक बीजेपी की सरकार कई बार केंद्र में बनी और कई राज्यों में बनती ही रही लेकिन अभी तक ये लागू नहीं हो पाया लोकसभा चुनाव को देखते हुए सरकार ने अब इसके लिए एक संसदीय समिति का गठन भी कर दिया है |
संविधान सभा की बहस में समान नागरिक संहिता के पक्ष में राय :
1. के . यम. मुंशी के अनुसार " समान नागरिक संहिता देश की एकता और अखंडता को बनाये रखने और संविधान के धर्मनिरपेक्ष/पंथनिरपेक्ष के लिए जरुरी है क्योकि इससे जितना मुस्लिम समुदाय प्रभावित होगा उतना ही हिन्दू के साथ सभी धर्मो के लोग क्योकि यह नियम मूल अधिकारों के खिलाफ नहीं है बल्कि ये तो इसकी रक्षा के लिए ही तो लागू किया जा रहा है और विशेष रूप से इससे लैंगिक समानता आएगी जो सबसे ज्यादा जरुरी है किसी भी आजाद देश के लिए | "
२.अल्लादी कृष्ण स्वामी अय्यर के अनुसार " मुस्लिम भाइयो का कहना है की इस कानून से नागरिको के मध्य अविश्वास और कटुता पैदा हो जायेगा लेकिन आप सभी को सच्चाई नहीं दिख रही है इससे सभी समुदायों के मध्य एकता का सृजन होगा
3. भीमराव अम्बेडकर के अनुसार " देश में शादी-विवाह ,सम्पत्ति बटवारे जैसे मसलो को छोड़कर पहले से ही देश में कई ऐसे कानून उपलब्ध है फिर मै क्यों नहीं समझ पा रहा हु की धर्म ने फिर क्यों इतनी जगह घेरी हुई की सारा का सारा जीवन ही ढक ले और जरुरी नियमो को लागू होने से रोके आखिर आजादी हमे किस लिए मिली है ? हमे आजादी तो अपनी सामाजिक व्यवस्था को सुधारने के लिए ही तो मिली तो फिर हम क्यों अभी भी उसी जकडन में फसना चाहते है |
और अपने भाषण को ख़त्म करते हुए कहा की समान नागरिक संहिता वैकल्पिक व्यवस्था है ये नागरिको के आचरण पर निर्भर करेगा की कब वो सरकार को लागू करवाने के लिए तैयार करते है |
संविधान सभा की बहस में समान नागरिक संहिता के विपक्ष में राय :
1.मुस्लिम लीग के सदस्य मोहमद इस्माइल के अनुसार " सभी समुदायों में पर्सनल कानून होना और इसका पालन करना उनकी धार्मिक आजादी है जो एक मौलिक अधिकार भी है और अगर सरकार धर्म और संस्कृति से जुड़े मुद्दों पर कानून बनाती है तो ये उनके मौलिक अधिकरो के खिलाफ होगा "
२. हसरत मोहानी के अनुसार " अगर कोई सोचता है की वो मुस्लिमो के पर्सनल कानून में हस्तक्षेप करेगा तो इसका नतीजा बहुत ही भयानक होगा "
3.एक अन्य सदस्य के अनुसार ' पर्सनल कानून सभी धर्मो के लिए दिल के बहुत ही करीब होता है जहा तक मुस्लिमो का सवाल है तो इनके अपने इस्लामिक कानून है " |
4. पश्चिम बंगाल के एक संसद सदस्य ने कहा कि " अभी सही समय नहीं आया है इस मामले में धीरे धीरे सुधार करने की जरूरत है और एक समय ऐसा आएगा देश में जब समान नागरिक संहिता पूरी तरह से लागू हो जायेगा "
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