वोहरा समिति की रिपोर्ट से क्यों डरती है सभी सरकारे ?

 


वोहरा समिति की रिपोर्ट से क्यों डरती है सभी सरकारे ? 

  • कानपुर के रहने वाले विकास दुबे के साथ घटित घटनाओं को लेकर एक बार फिर देशभर में चर्चा होनी शुरू हो गई है की नेताओं और अपराधियों के बीच मिली भगत को आखिर तोड़ा क्यों नहीं जाता है ?
  • वर्ष बदलता है सरकार बदलती है लेकिन ये सवाल वैसा का वैसा ही खड़ा रहता है की क्या इस गठजोड़ को तोड़ने के लिए कभी सरकार ने कोई कोशिश नही की ?


बोहरा समिति : आप सभी को याद होना ही चाहिए की आज से 27 वर्ष पहले 1993 में पीवी नरसिम्हा राव सरकार की ओर से बनाई गई वोहरा समिति में नेताओ , अपराधियों और अधिकारियों के मिलीभगत की ओर सबका ध्यान दिलाते हुए इस समस्या का हल भी बताया था 

इस समिति की अध्यक्षता उस समय के गृह सचिव एन एन वोहरा ने की थी इस समिति के सदस्यों में RAW  और IB के सचिव , CBI के निदेशक और गृह मंत्रालय के स्पेशल सेकेट्री अर्थात इंटरनल सिक्योरिटी एंड पुलिस भी शामिल थी |


क्यों किया गया ? 

 

1993 में ही बंबई ब्लास्ट हुआ था इंटेलिजेंस और जांच एजंसियों ने दाऊद इब्राहिम गैंग की गतिविधियों और संबंधों को लेकर कई रिपोर्ट सरकार को दी थी इन रिपोर्ट से स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है की मेमन भाईयो और दाऊद इब्राहिम का साम्राज्य सरकारी तंत्र के संरक्षण के बिना खड़ा हो ही नहीं सकता है इसलिए यह जरूरी माना गया की इस गठजोड़ का पता लगाया जाए और इस तरह के मामले में समय रहते जानकारी जुटाकर भविष्य में समय पर कार्यवाई की जाए

काफी दिनो तक विचार विमर्श के बाद समिति ने सरकार से सिफारिश की कि  सरकार एक विशेष संस्था या एजेंसी बनाए जो नियमित तौर पर इस मामले में जानकारी जुटाये और इन मामलों के खिलाफ केस को आगे भी बढ़ाए इसके साथ ही ये भी कहा गया की एक नोडल एजेंसी बनाई जाए जो माफिया संगठनों की  गतिविधियों की जानकारी को इकट्ठा करेगी और RAW/IB/CBI के पास जो भी जानकारी या डाटा होगा वो उस नोडल एजेंसी को दे दिया जाएगा 

सबसे बड़ी बात यह थी कि यह नोडल एजेंसी गोपनीयता के साथ काम करें और गृह  सचिव के अंतर्गत काम करें लेकिन सच्चाई तो यह है कि इस वोहरा समिति की रिपोर्ट इन 27 वर्षों से धूल खाती रही है और समिति की सिफारिशो को कभी भी लागू ही  नहीं किया गया यहां तक की वोहरा समिति की पूरी रिपोर्ट आज तक पूरी तरह से सार्वजनिक  हुई ही नही है 

वर्ष 1995 में सिलेक्टिव रिपोर्ट पब्लिश की गई थी और समिति ने करीब 100 पन्नो की रिपोर्ट सरकार को दी थी जिसमें से सिर्फ 12 पन्नो को ही सार्वजनिक किया गया था और जांच में पाए के दोषी अधिकारी और नेताओं के नाम भी सार्वजनिक नहीं किए गए कहा तो यह भी जाता है कि वोहरा समिति में दाऊद इब्राहिम के अफसरो और नेताओं से जुड़े होने की विस्फोटक जानकारी थी 

जब 1997 में केंद्र सरकार के ऊपर रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का दबाव बढ़ा तो केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में चली गई कोर्ट ने सरकार की सुनी और कहा कि सरकार को रिपोर्ट सार्वजनिक करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है |

 


 इसके बाद 2014 में जब नरेंद्र मोदी की सरकार बनी इसके बाद 2014 में जो नरेंद्र मोदी की सरकार बनी तो टीएमसी नेता दिनेश चतुर्वेदी ने मोदी से मांग की कि वह वोहरा समिति की रिपोर्ट को सार्वजानिक करें लेकिन दुःख की बात यह है कि पिछले 6 वर्षों से एक बार भी सरकार ने कोशिश ही नहीं की और आज जब कानपुर की घटना घटित हुई तो पूरे देश में एक बार फिर इस रिपोर्ट की मांग की जा रही है और होना भी चाहिए 

 

आप सोच रहे होंगे कि जब सरकारे केंद्र में गठबंधन में हो तो सरकार कोई भी बड़ा और विवादित काम नहीं करती लेकिन वर्तमान में मोदी सरकार पूर्ण बहुमत में है तो फिर क्यों नहीं लागू होता है ? इसके पीछे कुछ एक्सपर्ट की अपनी-अपनी राय से समस्या को समझने की कोशिश करते हैं जैसे : 

यह सिस्टम को एक्सपोज करने वाला रिपोर्ट है और कोई भी गवर्नमेंट नहीं चाहेगी कि उसका पूरा सिस्टम एक्सपोज हो जाए सरकारे बदलती है लेकिन यह सिस्टम वैसे का वैसा ही रहता है |

 

वोहरा समिति जैसी समितियो की सिफारिश कभी भी लागू नहीं होगी क्योकि हमारे समाज में अपराधियों का नेताओं के साथ बिल्कुल चोली दामन का साथ हो गया है इसलिए बोहरा समिति हो या कोई भी समिति हो किसी भी सिफारिश को इसलिए नहीं लागू किया जाएगा क्योंकि दोनों एक दूसरे के पूरक हैं जैसे नेता को चुनाव जीतना है तो वही अपराधियों को जेल जाने से बचाना है इसलिए ही अपराधी नेताओ के लिए काम करते हैं पैसा वसूलते हैं और नेताओं को चुनाव लड़ने के लिए ज्यादा से ज्यादा चंदा देते हैं भ्रष्ट नेता इन सिफारिश को कभी भी लागू होने ही नहीं देंगे और इसके लिए न्यायिक हस्तक्षेप की जरूरत है और सिविल सोसाइटी को भी आगे आना ही होगा तभी यह संभव होगा 

 

इस मिलीभगत को तोड़ने के लिए पुलिस सिस्टम में भी सुधार की सबसे अधिक जरूरत है लेकिन यह सुधार कैसे होगा ? इसके लिए नजरिया बदलने की जरूरत है जैसे हमारे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री चाहते हैं  कि पुलिस को दुरुस्त किया जाए लेकिन दुरुस्त किया जाए कैसे ? जब पुलिस ही कानून तोड़ने वाले लोगों की जान लेने लगे किसी का पैर तोड़ दे जितनी बेशर्मी  से विकास दुबे का एनकाउंटर हुआ इसने  कानून कायदों की सारी धज्जियां उड़ा कर रख दी है

 



पुलिस सुधार के नजरिए  बड़े ही  दिलचस्प हैं कुछ लोग चाहते हैं कि पुलिस को अच्छे हथियार और गाड़ियां दे दीजिए और सब कुछ अपने आप सही हो जायेगा 

आप सभी को याद भी होगा 1996 में सुप्रीम कोर्ट में जाने वाले उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह के लिए सबसे बड़ा सुधार यही था कि पुलिस कर्मियों का कार्यकाल तय कर दिया जाये अर्थात एक DGP आए तो उसे 3 साल तक कोई भी हटा ना पाए ऐसे ही स्टेशन ऑफीसर, SHO को भी 3 वर्ष कोई हटा ना पाए इससे अधिक फोकस तो इनका इन प्रश्नों पर था जैसे की 1860 में जो पुलिस बनी थी उसमें अभी तक आधारभूत बदलाव क्यों नहीं आए ?

 

अंग्रेजों ने खास तरह और अपने फायदे के लिए पुलिस बनाई थी उनको इससे फायदा भी मिला और 1947 तक उनकी हुकूमत के बल पर ही अंग्रेज भारत में इतने अधिक वर्षो तक शासन कर पाए  लेकिन 1947 के बाद जो हमारे शासक आए क्या उन्होंने इसमें सुधार किया ? 

क्योंकि हमारे मुख्यमंत्री को भी ऐसा थानेदार पसंद है जो उनके विरोधियों की टांग तोड़े और विरोधियों की FIR ही ना दर्ज करें 

 

एक्सपर्ट का मानना है की पुलिस सुधार होने चाहिए जांच के लिए अलग एजेंसी होनी चाहिए और लॉ एंड ऑर्डर बनाए रखने के लिए अलग एजेंसी होनी चाहिए जैसे अगर एक ही व्यक्ति किसी VVIP की सुरक्षा में भी लगा है और वही व्यक्ति क्राइम सीन की जांच भी करता है तो ऐसे में उसके पास जांच के लिए बहुत ही कम समय बचता है और इसी कारण से जांच भी सही से नहीं हो पाती है और समय तो आप जानते ही है कितने साल और पुश्त बीत जाती है लेकिन जांच पूरी नहीं होती है |

 कई बार तो देखा गया है कि सबूत नहीं मौजूद होने के कारण बड़े से बड़ा अपराधी आराम से जेल से छुट जाता है और लोग उसका फूल मालाओ से स्वागत करते है जैसे उसने किसी देश को जंग में हरा कर आया हो  |


उत्तर प्रदेश के पूर्व DGP ने 2006 में  सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका दायर की थी इसका  फैसला 10 साल बाद 2006 में आया  इस फैसले के कई बिंदु  में यह भी शामिल था कि पुलिस को राजनीतिक हस्तक्षेप  से अलग किया जाए लेकिन दुःख  के साथ कहना पड़ रहा है कि यह बिंदु भी वोहरा समिति की सिफारिश की तरह कभी भी लागू नहीं किया जा सका

इसी तरह सरकारे समय समय पर जनता को दिखाने के लिए वोहरा जैसी समितिया  बना तो देती है लेकिन उनकी सिफारिश को कभी भी लागू करने के बारे सोचती तक नहीं है लागू करना तो बहुत ही दुर की बात होती है 

 वरना 27 वर्ष कोई कम समय नहीं होता है जब अनुच्छेद 370 मात्र 1 दिन में खत्म हो सकता है , बिना किसी तैयारी के नोटबंदी इतने बड़े देश में रात के 8 बजे से  लागू हो सकता है जो लोगो के खाने और सोने का समय होता है , एक महीने के अंदर पुरे देश में GST कानून लागू हो सकता है , चुनाव आते ही रातों रात NRC देश के लिए आ सकता है , किसानो के लिए जो नियम कानून की जरूरत ही नहीं है वो तीन नियम लागू हो सकता है  तो फिर वोहरा समिति  की रिपोर्ट क्यों नहीं सार्वजनिक की जा सकती ? जबकि ये पूरी रिपोर्ट बन कर कबसे तैयार है |

क्या देश की जनता को नहीं पता चलना चाहिए ? कि देश में क्या हो रहा है ? आप सभी को जानकर हैरानी होगी कि सरकार इसके पीछे जो तर्क  देती है कि ऐसा करने से उसका प्रशासन डेमोरलाइजेशन यानी मनोबल कम होना हो जाएगा और प्रशासन सहयोग नहीं करेगी तो हम सरकार कैसे चलाएंगे 

नेताओं को तो सिर्फ अपनी कुर्सी ही दिखती है ............


कानपुर की ताजा घटना को अगर आप अलग नजरिये से देखे तो देश में हर राज्य की पुलिस  रो रही है कि हमें सुधार चाहिए लेकिन राजनीतिक और सरकारी विभागों के बड़े-बड़े अधिकारी इसको इजाजत ही नहीं देते हैं 

पुलिस सुधार के लिए कई बड़े लोगो ने बहुत दिनों तक सरकार और कानून से लड़ाई लड़ी है और आज भी लड़ाई जारी है पुलिस की समस्या को इस प्रकार आप समझे तो हर बात क्लियर होगा जैसे पुलिस के पास है थर्ड ग्रेड की सुविधाएं हैं फोर्थ ग्रेड की प्रॉसीक्यूशन की सुविधा और छठे दर्ज की फोरेंसिक सुविधा है इतना ही नहीं इसके साथ ही पुलिस को पुराने ट्रेनिंग के तरीके हैं लाखों पुलिस वाले  तो ऐसे होंगे या कहा जाये  जिन्होंने वर्षों से कभी फायरिंग ही नहीं चलाया 

चाहे किसी राज्य का गृह विभाग हो या केंद्र सरकार का पुलिस विभाग यह सही तरीके से चलाना अपने आप में ही एक गंभीर मामला है किसी को सिक्योरिटी देना या छीनने के अलावा , सिफारिश पर ट्रांसफर करना ही इस विभाग का काम नहीं होना चाहिए इस विभाग को चलाने के लिए एक तरह की एक्सपर्टीज चाहिए और एक इच्छा शक्ति की भी जरूरत है 

आप सभी को जानकारी होनी ही चाहिए की सुप्रीम कोर्ट ने आदेश भी पारित किया था कि पुलिस कमिश्नर को कम से कम 2 वर्षों का कार्यकाल तय कर दिया जाए लेकिन यह तो कभी लागू ही नहीं हुआ 

इसी तरह थानेदारों की पोस्टिंग के लिए पुलिस से स्टेबिलिसमेंट बोर्ड बनाया जाए वह भी आज तक नहीं हुआ जब तक पुरानी व्यवस्था नहीं बदलेगी हम इन्हीं प्वाइंटों पर बात करते ही रहेंगे और ऐसे ही परिणाम भुगतते रहेगे क्योकि सरकारों का क्या आज इनकी है कल किसी और की आएगी इनका दोष उनको देंगे और उनका दोष इनको और जब थक जायेगे तो मामले को कोर्ट में ले जायेंगे जहा से न तो फैसला आयेगा न ही कोई बात करेगा और न ही कोई प्रश्न पूछेगा की वोहरा समिति की रिपोर्ट क्यों जारी नहीं हो रही है |

मानव अधिकार कार्यकर्ता आकार पटेल के अनुसार विकास दुबे एनकाउंटर जिस तरह से हुआ है इनके मन में कोई सवाल ही नहीं है क्योंकि यह इसके लिए सीधे तौर पर मर्डर शब्द का इस्तेमाल करते हैं इनके अनुसार यह तो वर्ष 1984 से चलता आ रहा है इसमें तो कोई नई बात है ही नहीं सबसे बड़ी समस्या  तो यह है कि ऐसी चीजों को हमारे समाज ने इजाजत दे दी है कहीं और ऐसा नहीं होता है इसलिए इसके जिम्मेदार सरकार को माने या समाज को क्योकि सरकारे तो आती जाती रहती है लेकिन समाज तो हमेशा से ही है और आगे भी रहेगा |

इसका एक और सबसे बड़ा कारण ये भी माना जा सकता है की चाहे वो राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार हो पुलिस सुधार के नाम पर जब खर्च करने की बात या यु कहे की निवेश करने की बात होती है तो इनके पास बजट ही नहीं होता है बिना पैसे के गाड़िया कहा से आएगी ?,  हथियार कहा से आयेगा ? 

आज भी वही बाबा जवाने के हथियार पुलिस वालो के पास है जिनसे कोई डरता ही नहीं है ऊपर से जितने समय में उसे चलाने के लिये तैयार करे उतने देर में तो चोर या डाकू फरार हो जाता है , सबसे ज्यादा गड़बड़ी तो सबूत जुटाने के तरीको पर होता है क्योकि पुलिस को उतना ट्रेनिंग ही नहीं मिलता और जब बात ज्यादा बिगड़ जाती है तो NIA / CBI/CID जैसे संस्था को केस ट्रान्सफर कर दिया जाता है जिसके कारण से केस कहा से कहा पहुच जाता है ये किसी से छिपा नहीं है |

आज अगर आप क्राइम की बात करे तो सबसे बड़ा क्राइम है साइबर क्राइम क्योकि इसके माध्यम से आप किसी से कुछ भी करने और करवाने पर मजबूर कर सकते है चाहे कोई व्यक्ति हो या किसी देश की सरकार आज भी ऐसे केस को पुलिस को सीधे दे दिया जाता है जब तक पुलिस तह तक पहुचती है उससे बड़ा केस आ जाता है |




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2 टिप्पणियाँ

  1. mai bhi kai dino se is reprot ke baare me search kar raha tha lekin jaankari nahi mil rahi thi lekin is ko padhne ke baad mai samjh sakta hu ki kya hai us report me aur kyo sarkar jaari nahi kar rahi hai sabhi mile jo hai ..........................

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  2. this is reality of indian politics and indian leaders ............

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