जानवर अच्छे या इंसान ?
अभी कुछ समय पहले भारत देश में तुलना किया जा रहा था कि जानवर अच्छे होते हैं या इंसान | सबकी अपनी अपनी राय विचार विमर्श उदाहरण भी थे लेकिन वास्तव में इस घटित घटना से हमें एक बार फिर इंसान और जानवरों की रिलेशन को समझने पर मजबूर किया है
सच तो यह है कि हम इंसान भी एक जानवर ही है अक्सर हम पढ़ते और सुनते भी है की हमारे पूर्वज बंदर थे ऐसे में तो हम अपने ऊपर ही हमले कर रहे हैं और दोष भी अपने को लगातार दे रहे हैं
सबसे पहले समझा जाए कि विवाद क्या हुआ था :
केरल राज्य का एकमात्र मुस्लिम बाहुल्य जिला मल्लपुरम जो पिछले दिनों ही पूरी दुनिया में चर्चा का विषय रहा इस जिले में 70.2% मुस्लिम और 27.6% हिंदू आबादी वाला यह जिला समय समय पर विवादों में आता रहता है
लेकिन यहां के रहने वाले स्थानीय लोग इस बात से हमेशा इनकार करते हैं कि विवाद हमारे कारण नहीं होता बल्कि छोटी-छोटी बात को बड़ा बना दिया जाता है और जो लोग इस जिले या राज्य को अच्छी तरह से नहीं समझते वही ऐसी बातें करते है
अभी हाल ही में यह जिला इसलिए चर्चा में आया क्योंकि यहां एक गर्भवती जंगली हथिनी दुखद हालात में मृत पाई गई थी इस हथिनी ने पास के जिले पालककाड में पटाखे से भरा एक अनानास खा लिया था
यहां पर ध्यान देना होगा कि यह पटाखा किसानों द्वारा उन जंगली सुअरों को मारने के लिए लगाए गए थे जो इन किसानों की फसलों को नुकसान पहुंचाते है
ऐसा माना जाता है कि यह हथिनी विस्फोट से घायल होने के बाद साइलेंट वैली के जंगलों से कई किलोमीटर दूर चली गई थी और मन्नार कार्ड वन क्षेत्र के अंतर्गत कोट्टमडाम पंचायत के अम्बल प्यारा में इसे घायल पाया गया और यह इलाका मल्लपुरम नहीं बल्कि पालककाड जिले का इलाका या क्षेत्र में पड़ता है
लेकिन इस घटना के घटित होने के बाद वन्य जीव संरक्षण कानून के तहत FIR दर्ज कर दिया गया है जांच के साथ-साथ कार्रवाई भी शुरू कर दी गई थी
इस घटना ने राज्य सरकार के वाम मोर्चा सरकार के विरोधियों को हमला करने का अवसर प्रदान कर दिया है सोशल मीडिया पर बड़ा कैंपेन चलाते हुए राज्य सरकार पर लगातार हमला बोला गया और मल्लपुरम को निशाना बनाया गया
जबकि वास्तव में इस घटना से इसका कोई लेना-देना नहीं था वास्तव में आप सभी को जानकारी होनी ही चाहिए की
मल्लापुरम देश का सबसे हिंसक जिला नहीं है और ना ही इस राज्य में हाथियों को निशाना बनाया जाता है
केरल, तमिलनाडु ,कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में तो आम तौर पर हाथिया मंदिरों का हिस्सा होते हैं सभी प्रमुख त्योहारों में यह राजसी जानवर आकर्षण का केंद्र होते है
इन राज्यों में एक वार्षिक कैंप भी लगता है जहां पर कुछ पालतू हाथियों को मानव व जानवरों के मध्य संघर्ष को कम करने के लिए " कुमकी " के रूप में ट्रेनिंग भी दिया जाता है प्रशिक्षित किये गए कुमकी हाथी की मदद से इंसान जंगली हाथियों को वापस जंगलों में भेजते हैं
तमिलनाडु राज्य में तो हाथियों के लिए वार्षिक रिट्रीट कार्यक्रम भी कराया जाता है जहां राज्य भर के पालतू हाथियों को ट्रकों में लाया जाता है और इन्हे स्वस्थ माहौल में रखा जाता है इस कैंप के लिए रजिस्ट्रेशन करवाने के बाद उनका वजन मापा जाता है और पशु चिकित्सा इनकी सेहत की जांच करते हैं और इन हाथियों को अगले 1 महीने तक दवाईया और पौष्टिक भोजन दिए जाते हैं सुबह-सुबह सैर कराई जाती है और विशेष रूप से तैयार जेम्बो सावर में नहलाया जाता है कैंप खत्म होने के बाद हाथी वेमन से अपने घर वापस लौट जाते हैं
मगर इंसान और जंगल में रहने वाले हाथियों के मध्य संघर्ष भी लगातार जारी रहता है जंगली हाथियों के लिए खास तौर पर जंगल निर्धारित किए गए हैं फिर भी ये अपने भोजन और पीने के पानी की तलाश में जंगल से बाहर निकल ही आते हैं
इसी के कारण से इंसान व हाथी के मध्य संघर्ष के मामले समय समय पर हमारे सामने आते हैं
हर राज्य या देश का किसान अपनी कीमती फसल को जानवरों से बचाने के लिए तरह-तरह के उपाय करता है कही पर वह पुतला बनाकर तो कहीं पर टायर जलाकर | और इन किसानों का उद्देश्य जानवरों को मारना नहीं होता है लेकिन फिर हाथियों की वजह से प्रतिवर्ष 600 इंसान देश भर में मारे जाते हैं और इसके साथ ही 100 से अधिक हाथियों की भी मौत हो जाती है
एक्सपर्ट की राय है कि किसानों और हाथियों दोनों के लिए माहौल को सुरक्षित बनाना जरूरी है क्योंकि इससे दोनों पीड़ित है किसान की जरूरत अपनी फसल बचाना है तो हाथी को उसके माहौल के अनुसार निवास स्थान मिलना चाहिए
और ऐसा तभी संभव होगा जब प्रशासनिक स्तर पर काफी सुधार हो वरना हमें ऐसी घटनाएं समय पर देखने और सुनने को मिलती रहेंगी
एक सर्वे के अनुसार भारत में हाथियों के लिए 80 गलियारे हैं ये वे रास्ते हैं जिनसे जंगली हाथी अपने प्राकृतिक वास अर्थात घर के लिए जाते हैं
लेकिन विभिन्न निर्माण गतिविधियों को अंजाम देकर इंसान इन स्थानों या गलियारों पर कब्जा कर रहा है और परिणाम यह हो रहा है कि हाथियों के प्राकृतिक मार्ग खत्म हो रहे हैं
आप सभी को जानकर हैरानी होगी कि हाथिया भोजन के लिए इंसानों पर कभी भी हमला नहीं करते हैं ये तब आक्रामक हो जाते हैं जब इन्हें अपनी जान का खतरा महसूस होता है
एक आंकड़े के अनुसार जंगली जानवरों की वजह से हर वर्ष 5 लाख से अधिक किसानों को फसलों का नुकसान उठाना पड़ता है इस नुकसान को कम करने या खत्म करने के लिए किसान जगह- जगह पर बिजली के तार लगाते हैं जिनसे बहुत कम करंट फ्लो होता है तो कुछ स्थानों पर जानवरों को फसाने के लिए गड्ढा खोद दिया जाता है वन्य जीव संरक्षणवादी जानवरों को फसाने या रोकने के इन तरीकों का विरोध करते हैं
क्योकि हाथियों को किसी भी माध्यम से मारना सही बात नहीं है लेकिन किसानों को नुकसान से बचाने के लिए अतिरिक्त फसल बीमा का सुझाव जरूर दिया जा सकता है लेकिन यह सुझाव एक छोटे एरिया पर ही सफल होगा
क्योंकि पूरे देश में अगर जानवरों को छूट दे दी जाए तो सच मानिए कि देश में 1 किलोग्राम भी अनाज नहीं बचेगा क्योंकि छुट्टा पशुओं की संख्या करोड़ों में है ऐसा कोई भी राज्य नहीं होगा जो इस समस्या से परेशान ना हो जैसे उत्तर प्रदेश को छुट्टा पशुओ का राज्य कहा जाता है या सांडो वाला राज्य उत्तर प्रदेश और तो और चुनावी मुद्दा भी बनता है
एक आंकड़े के अनुसार प्रतिवर्ष कम से कम 40 हाथिया अपने दांत के लिए शिकारियों के द्वारा मारे जाते है
केंद्र सरकार व राज्यों की सरकार ने भी इसे रोकने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रयास किये है लेकिन समय-समय पर हाथी की ही नहीं , बाघ , गाय , मोर के साथ-साथ अन्य जानवरों का बड़ी मात्रा में शिकार किया जाता है और अभी भी इन जानवरों के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है
चाहे वह रहने की बात हो क्योंकि जंगल प्रतिदिन खत्म हो रहा है, पृथ्वी का तापमान का लगातार बढ़ना , भोजन की लगातार कमी, इंसानों का जंगल की ओर बढ़ना ऐसी हजारों समस्या इन जानवरों के पास है
पौराणिक कथाओ में खूब उल्लेख के कारण हाथी हिंदुओं द्वारा पूजनीय है लेकिन आमतौर पर अपने भारी शरीर व चाल के लिए भी सभी को प्रिय लगते हैं बच्चों को तो हाथी बहुत ही पसंद आते हैं इसलिए जब इसकी दुखद मौत की खबर आई तो यह किसी झटके से कम नहीं था
और सच यह भी है कि हम इंसानों को ही एक दूसरे के साथ और जानवरों के साथ भी सद्भाव के साथ रहना सीखना होगा हथिनी की मौत की जांच कर रहे रेंज ऑफिसर भी यही संकेत करते हैं कि यह मानव पशु संघर्ष का नतीजा है , सांप्रदायिक संघर्ष का नहीं...............................
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sach to ye hai ki ab logo ko pata hi nahi hai ki jangal kaha tak hai aur shahar kaha tak jaha dekho log rahne lage hai aise me prpblem to hogi hi
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