अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट vs भारतीय सुप्रीम कोर्ट ( विशेष जानकारी )

 


 अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट vs भारतीय सुप्रीम कोर्ट 

दुनिया में जब भी लोकतंत्र की बात होती है तो लोगो को केवल 2 ही देशो के नाम याद आते है भले ही वह व्यक्ति उस देश का नागरिक न भी हो ये दो देश एक भारत तो दूसरा अमेरिका है जैसे आप सभी को याद भी होगा का दुनिया का पहला देश अमेरिका है जहा पर लिखित संविधान को लागू किया गया तो वही भारत देश में दुनिया सा सबसे बड़ा लिखित संविधान अपनाने का रिकार्ड मौजूद है और सबसे बड़ी बात एक तरफ जहा अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट को सरकार से भी अधिक ताकतवर बनाया गया है तो वही भारत में सुप्रीम कोर्ट को सरकार के बराबर ही शक्तिया दी गई और इनके कार्यो का विभाजन भी किया गया है इसलिए आप सभी को केवल इन दो ही देशो में लोकतंत्र की साफ़ तस्वीर दिखाई पड़ती है 



अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट :- अमेरिका में दोहरी राज्य और देश की अलग अलग कोर्ट मौजूद है अर्थात सभी राज्यों में अपने अपने प्रमुख कोर्ट मौजूद है और इनके कार्यो का विभाजन भी पहले से कर दिया गया होता है जबकि भारत में देखा जाये तो ऐसा कोई जरुरी नहीं है की सभी राज्यों में राज्य के हाईकोर्ट हो जैसे अमेरिका के कुल 51 राज्यों में प्रमुख कोर्ट है जबकि भारत के कुल 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशो को मिलाकर केवल 25 हाईकोर्ट आज भी है आज भी भारत के कई राज्यों के लिए संयुक्त कोर्ट की व्यवस्था की गई है 

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट संघीय , न्याय क्षेत्र , नौसेना , समुंद्री व राजदूत से जुड़े मामले ही देखती है इस कोर्ट को सलाह देने का अधिकार नहीं है लेकिन न्यायिक क्षेत्र में अधिक अधिकार प्रदान किया गया है इसके अधिकार क्षेत्र में वृद्धि नहीं की जा सकती है और सबसे बड़ी बात ये है की राज्यों की कोर्ट पर इसका कोई अधिकार नहीं होता है अर्थात इस कोर्ट का फैसला मानना राज्य के हाईकोर्ट के लिए बाध्यकारी नहीं होता है 



भारतीय सुप्रीम कोर्ट :-इस सुप्रीम कोर्ट को केवल संघीय मामलो को देखने का अधिकार प्रदान किया गया है यह सरकार को जरूरत पड़ने पर सलाह भी दे सकती है पर सरकार सलाह मानने को बाध्य नहीं है और ये भी है कि कोर्ट भी सलाह देने के लिए बाध्य नहीं है भारतीय सुप्रीम कोर्ट के न्यायिक क्षेत्र सीमित है और सबसे बड़ी बात की इसके अधिकार को संसद द्वारा बढ़ाया जा सकता है और ध्यान देने वाली बात ये है की इसकी शक्ति को संसद कभी भी कम नहीं कर सकती है इस कोर्ट के फैसले देशभर के सभी छोटे से लेकर सभी बड़े कोर्ट पर लागू होता है नहीं मानने पर सुप्रीम कोर्ट उस कोर्ट के खिलाफ सजा का प्रावधान कर सकती है इसलिए भारतीय सुप्रीम कोर्ट को भारत का सबसे शक्तिशाली कोर्ट माना जाता है 

भारतीय सुप्रीम कोर्ट एकीकृत न्याय व्यवस्था के तहत कार्य करती है इस कोर्ट की स्थापना भारत शासन अधिनियम 1935 के तहत की गई थी और 1937 से ही भारत में कार्यरत है इसका प्रमुख कार्य यह राज्य और केन्द्रीय विधियों को लागू कराने में मदद करता है और आजादी के बाद से इसकी संरचना में बदलाव किया गया और 28 जनवरी 1950 को इसमें 5 भाग ,अनुच्छेद 124 से लेकर 147 तक इस कोर्ट के बारे में विस्तार से चर्चा किया गया जैसे वर्ष 1950 में केवल 10 जज होते थे , 1960 में 13 जज , 1977 में 17 जज , 1986 में 25 जज , 2008 में 26 जज , 2009 में 31 तो वही 2019 में इस संख्या को बढाकर 34 कर दिया गया है इन सभी संख्याओ में मुख्य जज भी शामिल है 

इनकी नियुकित भारतीय राष्ट्रपति के आदेशनुसार किया जाता है लेकिन इसमें मुख्य न्यायधीश के साथ साथ राज्यों के अन्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से भी परामर्श किया जाता है 



वेतन :- इनका वेतन भारतीय संसद द्वारा तय की जाती है जैसे 2009 में मुख्य न्यायाधीश का वेतन 33000 रुपये था और 2009 के बाद 1 लाख हो गया और आज 2024 में 2.80 लाख रुपये प्रतिमाह दिया जाता है रिटायर होने पर अंतिम माह के वेतन का 50% पेंशन के रूप में मिलने का नियम है 

सुप्रीम कोर्ट का स्थान :- दिल्ली पहले से घोषित किया गया है लेकिन मुख्य न्यायाधीश को ये अधिकार प्रदान है कि वह सुप्रीम कोर्ट को कही और भी स्थापित कर सकती है लेकिन इसके लिए राष्ट्रपति का आदेश लेना होगा 

न्यायालय की प्रक्रिया :- अनुच्छेद 143 के अनुसार सैवधानिक मामलो की सुनवाई हमेशा 5 या 7 विषम जजों की टीम ही कर सकती है और बहुमत के आधार पर ही फैसला लेना होगा 



योग्यताये :- भारत का नागरिक हो , राज्य के किसी हाईकोर्ट से कम से कम 5 वर्ष के लिए न्यायाधीश या हाईकोर्ट या अन्य कोर्ट में मिलाकर 10 वर्ष तक वकील रहा हो , राष्ट्रपति की नजर में सम्मानित न्यायवादी हो और इस पद के लिए उम्र की कोई समय सीमा नहीं है 

शपथ :- राष्ट्रपति के द्वारा पद की शपथ दिलाई जाती है कार्यकाल तय नहीं होता है लेकिन अधिकतम 65 वर्ष की उम्र तक ही कोई इस पद पर बना रह सकता है किसी भी जज को पद से हटाने के लिए महाभियोग की प्रक्रिया से ही गुजरना होगा अर्थात देश की दोनों सदनों से बहुमत मिलने के बाद ही सरकार किसी जज को उसके पद से हटा सकती है वरना इसके अलावा कोई और तरीका नही होता है 

नियुक्ति :-99 वा संविधान संसोधन 2014 में कालेजियम सिस्टम को एक नए निकाय नेशनल जुडिकल अपॉइंटमेंट कमीशन बनाया गया और 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया और आज भी वही पुरानी प्रकिया का पालन किया जा रहा है 

सुप्रीम कोर्ट की शक्तिया :- 1. संघीय न्यायालय नागरिक के मूल अधिकार और संविधान का अभिभावक  , 2. नियुक्ति की स्वतंत्रता , 3.कार्यकाल की सुरक्षा , 4. निश्चित सेवा शर्ते , 5. न्यायाधीश के आचरण पर कही पर भी बहस नहीं हो सकता है , 6. सेवानिवृत्त होने के बाद किसी भी कोर्ट में वकालत करने पर रोक , 7. कोर्ट के फैसले का अवमानना करने पर व्यकित/संस्था/किसी भी निम्न कोर्ट को दण्डित करने का अधिकार और 6 वर्ष की जेल की सजा देने का अधिकार , 8.न्याय क्षेत्र में कोई भी कटौती नहीं की जा सकती है , 9. न्यायपालिका को कार्यपालिका से पृथक कर दिया गया है 



अन्य शक्तिया :- 1. राष्ट्रपति और उप- राष्ट्रपति के चुनाव सम्बन्धी विवाद का निपटारा इसी कोर्ट में हो सकता है , 2. UPSC के अध्यक्ष व सदस्यों के आचरण की जाच , 3. अपने दिए पूर्व फैसले को बदलने का अधिकार , 4. किसी हाईकोर्ट में पड़े लंबित केस को सीधे अपने पास बुलाना , 5.सुप्रीम कोर्ट के सभी फैसले पुरे भारत में लागू यहाँ तक की सभी छोटे से लेकर सभी बड़े कोर्ट को इस फैसले को मानना होता है , 6.सुप्रीम कोर्ट के पास ही भारतीय संविधान की व्याख्या करने का अधिकार होता है 

7.मूल क्षेत्राधिकार :-केंद्र राज्य विवाद , राज्य -राज्य विवाद , जैसे जल विवाद , वित्त विवाद या आपतकालीन सेवाओं की सुनवाई सीधे सुप्रीम कोर्ट में ही की जा सकती है 

8.न्यायदेश :- मूल अधिकार अनुच्छेद 32 का रक्षक जिसके तहत 5 प्रकार के अधिकार आते है जैसे बंदी प्रत्यक्षीकरण , परमादेश , उत्प्रेषण , प्रतिषेध और अधिकार पृच्छा के तहत नागरिको के अधिकारों का सरंक्षण किया जाता है  किसी भी नागरिक के मूल अधिकारों का हनन होने पर वह सीधे सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट जा सकता है 

9.सलाहकार :- राष्ट्रपति को सलाह देना , सार्वजनिक महत्व और संधि जैसे कावेरी जल विवाद या राम जन्म भूमि विवाद पर इस कोर्ट की राय और बाद में फैसला देश भर ने माना 



10.अभिलेखों का न्यायलय :- सुप्रीम कोर्ट के फैसले सभी कोर्ट के लिए एक साक्ष्य के रूप में होते है इसके खिलाफ कोई भी कोर्ट कोई भी फैसला न तो दे सकता है और न ही कोई टिप्पणी कर सकता है 

11.न्यायिक समीक्षा :- संसद या राज्य विधानसभा द्वारा कोई भी ऐसा कानून बनता है जो असंवैधानिक व नागरिको के मूल अधिकारों का हनन करता हो तो उसे कोर्ट निरस्त कर सकती है 

12.अपीलीय क्षेत्राधिकार :-इसके तहत सुप्रीम कोर्ट अपने निचली अदालतों के फैसलों की सुनवाई करती है ..............

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