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अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय : अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक

 



अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय : अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक 

देश में एक मुद्दा काफी चर्चित बना रहता है वह है अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय को लेकर कभी BBC के खिलाफ नारे , कभी सरकार विरोधी नारे , कभी पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना की फोटो को लेकर ,और जब देश में चुनाव का समय हो तो ये विश्वविद्यालय चर्चा में बना ही रहता है आज हम इस अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के बारे में विस्तार से बात करने वाले है क्योकि केद्र सरकार का कहना है की इस विश्व विद्यालय को अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त नहीं है बल्कि सभी के लिए है आज कई वर्षो से इसी को लेकर लड़ाई चल रही है की अल्पसंख्यक है या नहीं ? 



विस्तार : अभी हाल ही में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है की 1920 में स्थापना के समय ही इस विश्व विद्यालय ने अपनी मर्जी से अल्पसंख्यक का दर्जा छोड़ दिया था क्योकि इसकी स्थापना के लिए जब मंजूरी ली जा रही थी तो अल्पसंख्यक शब्द का उपयोग नहीं किया गया था क्योकि उस समय ब्रिटिश सरकार थी लेकिन अब आजाद देश में उस समय के अनुसार नहीं चला जा सकता और इस मुद्दे की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में काफी वर्षो से चल रही है क्योकि इलाहबाद हाई कोर्ट ने 2006 में फैसला दिया था की यह विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक नहीं है |

इलाहाबाद हाईकोर्ट 2006 के फैसले : कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा था की यह विश्व विद्यालय अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है ,और जो मुस्लिम छात्रों को पोस्ट ग्रेज्युट में 50 % का आरक्षण प्राप्त था उसे रद्द कर दिया इस के साथ ही 1981 में कुछ संशोधन किये गए थे उसके 3 प्रावधानों को भी रद्द कर दिया था क्योकि ये प्रावधान कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर के थे  

ब्रिटिश कानून के अनुसार किसी   विश्व विद्यालय को तभी ही अनुमति दी जाती थी जब वो  दो शर्ते पूरी करती थी 1. उस   विश्व विद्यालय की उच्च शिक्षा ब्रिटिश संसद के बनाये नियमो के अनुसार कार्य करती हो 2. किसी प्रकार का सांप्रदायिक न हो और संसद के साथ साथ सरकार का भी पूरा नियंत्रण हो इसीलिए जब इस   विश्व विद्यालय की स्थापना की जा रही थी तो अनुमति लेते वक्त अल्पसंख्यक जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया गया था ऐसा कोर्ट में केंद्र सरकार का कहना है 
इसी तरह कुछ और संस्थान थे जो ब्रिटिश संसद के अतर्गत नहीं आते थे जैसे शांति निकेतन , IIT रूडकी इसके बाद भी इनकी डिग्रियों की मान्यता आज की तरह बहुत ही अधिक थी लेकिन अलीगढ विश्वविद्यालय ने डिग्री की मान्यता अधिक करने के लिए ब्रिटिश कानूनों और उससे प्राप्त आर्थिक सहायता के कारण इस तरह की मान्यता प्राप्त की थी इसी तरह वर्तमान में भी देश में कानून है की अगर कोई विश्व विद्यालय अगर सरकार से किसी प्रकार की आर्थिक मदद लेती है तो वह अल्पसंख्यक का दर्जा खो सकती है  |



अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय : इसकी स्थपाना 1920 में मात्र 7 छात्रों के सहयोग से की गई थी जो आज 1155 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है और आज भी इसमें 37000 से अधिक छात्र पढाई कर रहे है जिसमे भारतीय के साथ साथ विदेशी छात्र भी शामिल है  

इस विश्व विद्यालय की स्थापना काफी रोचक है जैसे 24 जून 1875 को अलीगढ में एक मदरसा की स्थापना की गई जिसमे केवल 7 छात्र पढाई करते थे और २ से 3 शिक्षक थे 1977 में भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड लिटन ने मोहमदन एंग्लो ओरियंटल कालेज की स्थपाना की और 27 मार्च 1898 के दिन सर सैयद अहमद खान जी का देहांत हो गया ऐसे में लोगो की ओर से यही प्रयास होने लगा की इस विद्यालय को विश्व विद्यालय का दर्जा प्राप्त कराया जाये जिससे सर सैयद अहमद जी  को सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सके 



क्या क्या है : इसमें आपको दो प्रमुख प्रवेश द्वार मिलेंगे एक बाबे सैयद और दुसरा सेनेटरी द्वार इससे साथ कैनेडी हाल, विक्टोरिया गेट, स्ट्रैची हाल, मौलाना आजाद लाइब्रेरी भी काफी ख़ास है करीब 1600 से अधिक शिक्षक , 117 डिपार्टमेंट , 20 हास्टल , और एक आकड़े के अनुसार अभी तक इसमें पढ़े 1.70 लाख बच्चे पढ़कर देश और दुनिया में नाम कमा चुके है इसमें अन्य कोर्सेस के साथ मेडिकल कालेज , डेंटल कालेज , यूनानी कालेज के साथ नर्सिंग की भी पढाई होती है

इसके पहले भी 1967 में कोर्ट ने इस विश्व विद्यालय को अल्पसंख्यक मानने से इनकार किया था क्योकि इसकी स्थापना न तो केवल मुस्लिमो के द्वारा हुआ था और न ही उस समय काउंसिल में बहुमत था उसके बाद 1981 में केंद्र सरकार ने कोर्ट के फैसले को बदलते हुए इसके अल्पसंख्यक दर्जे को फिर से जारी कर दिया और इसके बाद कोर्ट के 2006 का फैसला फिर सरकार और विश्वविद्यालय के खिलाफ आया लेकिन आप सभी को याद रहना ही चाहिए की इन वर्षो में केंद्र की सरकार किसकी थी और इस तरह से 2006 से ही सुप्रीम कोर्ट में केस चल रहा है की यह विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक है या नहीं |



अल्पसंख्यक का महत्व : भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30(1) के अनुसार भाषा और धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक लोग अपनी पसंद की शिक्षण संस्थान बनाने और उसे चलाने का अधिकार रखते है  इसके आधार पर ही देश के कई संस्थानों ने अल्पसंख्यक का दर्जे होने का दावा समय समय पर किया करती है ऐसे संस्थानों में अल्पसंख्यको के लिए कुछ सीटे पहले से निर्धारित होते है और उस समुदाय को बढ़ावा देने के लिए कुछ प्रमुख विषय भी शामिल किये जाते है 

इसी को लेकर केद्र सरकार ने 2004 में एक कानून बनाया था इसके नियम 2 (G ) के अनुसार ऐसे संस्थान जिसको कोई अल्पसंख्यक ने बनाया है और आज भी उसे चला रहा है तो वो सरकार से अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त करने के लिए आवेदन कर सकते है 

भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला 1970 में दिया था जो केरल राज्य से जुड़ा था इसके अनुसार अगर कोई व्यक्ति या संस्था अल्पसंख्यको के हितो के लिए ऐसे संस्थान की स्थापना करता है तो उसे ही अल्पसंख्यक का दर्जा मिलेगा और कोई भी सरकार चाहे वो राज्य या केंद्र सरकार हो कोई भेदभाव नहीं कर सकती है सहायता प्रदान करने से | 

आज देश भर में एक ही सवाल उठ रहा है की अल्पसंख्यक है ही कौन ? 

क्योकि किसी राज्य में कोई समुदाय अल्पसंख्यक है तो वही समुदाय दुसरे ही राज्य में बहुसंख्यक हो जाता है ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने इसी को लेकर 2002 में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया था की अब अल्पसंख्यक का फैसला राज्य स्तर पर नहीं होगा जो राष्टीय स्तर पर अल्पसंख्यक होगा उसे ही अल्पसंख्यक का दर्जा मिलेगा 


कई लोगो का तर्क ये भी है की इस  विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए उस समय के राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने 3.04 एकड़ जमीन दान में दी थी इसलिए संस्थापक राजा महेंद्र प्रताप हुए न की केवल सर सैयद अहमद खान |

  • कुछ बदलाव समय समय पर सरकार और कोर्ट के फैसले से होते रहे जैसे : 

    जैसे वर्ष 1951 में उस अधिनयम में बदलाव कर दिया गया जो ये कहता था की इसमें केवल मुस्लिम समुदाय के लोग की शिक्षा ग्रहण कर सकते है और इस तरह से सभी धर्मो के लिए इस विश्व विधालय को खोल दिया गया और 1965 में तो इसे सरकार के अधीन करके इसके संचालन के लिए एक समिति बना दी गई वर्ष 1967 के फैसले में कोर्ट ने कई सारे तर्क दिए जैसे सर सैयद अहमद ने जो कमिटी 1920 में बनाई थी उस कमिटी ने लोगो से चंदा के रूप में धन इकट्ठा किये थे इसलिए इसे अल्पसंख्यक के लिए ही क्यों माना जाये जब चंदा और सहयोग सभी समुदायों के लोगो ने किया था 

  • और कुछ संसोधन करके 1981 में केंद्र सरकार ने फिर से अल्पसंख्यक का दर्जा बहाल कर दिया और 2006 में कोर्ट ने फिर से अल्पसंख्यक का दर्जा खत्म कर दिया यही क्रम आज भी जारी है सबसे अधिक विवाद इस बात को लेकर है की अगर कोई विश्वविधालय अल्पसंख्यक है तो कितने % सीटे उस अल्पसंख्यक समुदाय के लिए आरक्षित कर सकती है जैसे इस विश्वविधालय में मेडिकल कालेज में मुस्लिम छात्रों के लिए 75% सीटे आरक्षित है और बाकी समुदायों के लिए केवल 25% सीटे | और इसी तरह एक और समस्या सामने आई है की मुस्लिम छात्रों का एंट्रेंस एग्जाम विश्व विद्यालय स्वय ही लेतीं  है जबकि 25% के लिए AIIMS के माध्यम से होता है इस तरह का भेदभाव सामने आया है जबकि पढाई एक साथ ही होनी है

  •  मिली जानकारी के अनुसार जो कोर्ट में बहस के दौरान समाने आई है की इस विश्व विद्यालय के गवर्निंग काउंसिल में कुल 180 में से 37 सदस्य मुस्लिम समुदाय से होना अनिवार्य है लगभग 20% तो फिर अल्पसंख्यक कैसे होगा क्योकि बाकी 80% सीटे तो सभी के लिए है इसके साथ ही सरकार ने एक तर्क ये भी दिया है की यह संस्थान राष्टीय हीत और भारतीय इतिहास से जुडा हुआ है इसलिए इसे केवल एक समुदाय का नहीं माना जा सकता है .............



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