राजधर्म बनाम नागरिक धर्म पर विवाद क्यों ?
देश के किसी भी हिस्से में जब कोई हिंसक घटनाएं होती है और सांप्रदायिक तनाव का माहौल बनता है तो हर बार एक ही प्रश्न किया और दोहराया जाता है कि देश में नागरिक धर्मं हो या राजधर्म होना चाहिए
आप सभी को याद भी होगा कि 26 जनवरी 2019 को संविधान दिवस के अवसर पर भारतीय प्रधानमंत्री ने सभी देशवासियों से आह्वान किया था की समस्त देशवासी संविधान के आदर्शो और मूल्यों को आत्मसात करें और अपने अपने मौलिक कर्तव्य का निर्वहन करें सवाल यह उठता है कि आखिर में संविधान के आदर्श और मूल कर्तव्य क्या है ?
जिस पर हमेशा बात की जाती है यह एक जटिल प्रश्न है क्योंकि हमारा संविधान विश्व का सबसे बड़ा और लिखित संविधान है जिसमें 395 अनुच्छेद तथा 12 अनुसूचियां हैं और जिसमे 100 से अधिक संशोधन हो चुके है और आगे भी संशोधन लगतार हो ही रहे हैं संवैधानिक मूल्यों एंव आदर्शो का निर्वहन करना एक बड़ी चुनौती है क्योंकि हमारे संविधान की विशालता , जटिलता तथा देश में व्याप्त संविधानिक निरक्षरता |
देश के नागरिकों और उसके साथ ही गैर - नागरिकों की सुरक्षा करना ही राजधर्म है यह राज्य का परम दायित्व भी है क्योंकि भारतीय संविधान के अनुसार जीवन का अधिकार मौलिक अधिकार है जिसे विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया से ही छीना या कम किया जा सकता है अन्यथा नहीं |
संविधान के मूल आदर्श संविधान के उद्देशिका में निहित है जो भारत की समस्त नागरिकों को सामाजिक , आर्थिक और राजनीतिक न्याय , विचार, अभिव्यक्ति , विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्रदान करने तथा व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुत्व बढ़ाने के लिए सुरक्षा प्रदान करते हैं |
1975 में 42 वें संविधान संशोधन के द्वारा नागरिकों के मूल कर्तव्य संबंधी एक नए अनुच्छेद 51 (A ) को संविधान में समाहित किया गया इस अनुच्छेद को अगर संक्षेप में समझा जाए तो इस प्रकार :-
संविधान का पालन करना , उसके आदर्शो , संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करना , स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले आदर्शो को हृदय से सजोना , भारत की एकता को अक्षुण्ण बनाए रखना, आह्वान करने पर देश की सेवा, भारत के सभी लोगों के प्रति समरसता और सद्भाव संस्कृति और पर्यावरण का संरक्षण, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और इंसानियत का विकास करना ,निजी और सरकरी संपत्ति की सुरक्षा और हिंसक प्रवृति से दूर रहना इत्यादि
नागरिकों द्वारा मूल कर्तव्य का पालन करना उस समय सबसे महत्वपूर्ण हो जाता है जब दंगे , आगजनी , हिंसा हो और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचे और जब नागरिको का जीवन संकट में हो ऐसी पारिस्थिति में सभी नागरिको को संविधान साक्षर होना और सभी आदर्शो और मूल्यों का अनुपालन करना अतिआवश्यक हो जाता है
एक तरफ जहा अधिकारों के लिए शांति पूर्ण प्रदर्शन या धरना करना मौलिक अधिकार है वही इसके दवारा अन्य नागरिको को हो रही समस्या भी हमारे संविधान के नियमो पर कुठाराघात करती है आपातकाल के समय रूस देश की संविधान से लेकर मौलिक कर्तव्य को भारतीय संविधान में शामिल किया गया था अब ये रूस , भारत के साथ श्रीलंका और नेपाल जैसे देशो में भी शामिल किया जा चुका है लेकिन जितना विस्तार भारत देश के संविधान में है उतना इन देशो में नहीं है
दुनिया के अन्य देशो जैसे जर्मनी , स्पेन , पुर्तगाल ,इटली ,दक्षिण कोरिया आदि देशो में अलग अलग नामों से ऐसे कानून उपलब्ध है इसी तरह अमेरिका , इंग्लैंड , कनाडा , फ़्रांस आदि देशो में ऐसे कोई कानून नहीं है लेकिन इसके स्थान पर अन्य कानून आज भी उपलब्ध है जो नागरिको की सुरक्षा के साथ साथ सार्वजानिक संपत्ति की सुरक्षा करती है
भीमराव अम्बडेकर के अनुसार लोकतंत्र भारतीय जमीन पर एक उपरी परत की तरह है अत: जरूरत है संवैधानिक नैतिकता को बढाने की एक तरफ जहा राज्यों के लिए नीति निदेशक तत्व राजधर्म की याद दिलाती है तो वही मूल कर्तव्य नागरिको को नागरिक धर्म को याद दिलाती है
इसी तरह संविधान के प्रस्तावना में लिखी प्रथम लाईन " हम , भारत के लोग "( we, the people of india ) पूरी तरह से स्पष्ट करता है की यह संविधान भारत के लोगो द्वारा निर्मित और उन्हें आत्मसमर्पित करता है अत : अधिकार , कर्त्तव्य और राजधर्म एक दुसरे के प्रति पूरक भी है
अक्सर एक सवाल ये उठता है की क्या राज्य के नीति निदेशक तत्व की अवहेलना करने की तरह मूल कर्तव्यो की अवहेलना करने पर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जा सकता है या नहीं ? क्योकि इसको लेकर संविधान में कोई उल्लेख नहीं है जैसे की आपके मूल अधिकारो के हनन पर होता है लेकिन भारतीय दंड संहिता ( IPC ) और अन्य कानूनों में इसको लेकर प्रावधान किये गए है की सार्वजानिक संपत्ति को नुकसान पहुचाने पर क्या क्या सजा दी जा सकती है ...............
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