वर्ण व्यवस्था की सच्चाई

 



वर्ण व्यवस्था की सच्चाई 

वर्ण व्यवस्था के बारे में कहा जाता है कि यह समाज को बांटने का काम करती है कुछ लोगों ने वर्ण व्यवस्था के नाम पर स्वार्थ सिद्धि भी की है गीता में भी वर्ण व्यवस्था का वर्णन और प्रत्येक वर्ण के कुछ गुण बताये गए है जिनके ना होने पर व्यक्ति उस वर्ण का पात्र नहीं रहता |

आज वर्ण व्यवस्था का अर्थ जन्म से लगाया जाता है लेकिन भगवत गीता के अनुसार वर्ण व्यवस्था की शुरुआत कर्म और गुणों के आधार पर हुई थी इसमें चारों वर्णों के गुणों और कर्मों का तर्कसंगत वर्णन दिया गया पुराणों में ऐसी अनेक कथाये है जहा छोटे वर्ण में जन्म लेकर भी कई लोगों ने अपने कर्मों से उच्च स्थान प्राप्त किया है गीता के अनुसार ब्राह्मण में 9 गुण होने ही चाहिए जैसे : जिसका मन वश में हो ,जो इंद्रियों का दमन करें, वाणी और मन को शुद्ध करना , धर्म के पालन के लिए कष्ट सहना, दूसरों को क्षमा करना ,वेद -शास्त्र आदि का ज्ञान होना तथा दूसरों को ज्ञान कराना और ईश्वर में श्रद्धा रखना |

भगवान श्री कृष्ण ने क्षत्रिय में 7 गुण बताएं जैसे शूरवीर हो , तेजस्वी हो ,धैर्यवान हो , प्रजा का संचालक हो युद्ध में कभी पीठ ना दिखाएं ,दानवीर हो ,शासन का भाव हो |

गीता के अनुसार जो व्यापार करता है उसे वैश्य कहते हैं आज के समय में यह एक स्वाभाविक कर्म बन गया है गीता के अनुसार अगर एक ही परिवार के सदस्य अलग-अलग कर्म करते हैं जैसे एक कारीगर , दूसरा डॉक्टर और तीसरा कहीं साफ -सफाई का काम करता हो तो इस प्रकार भी एक ही परिवार में सभी वर्णों के लोग मिल सकते हैं जो अपने कर्म से दूसरों की सेवा करने का काम करते हैं शुद्ध कहलाते हैं गीता के एक श्लोक के अनुसार शुद्भ होकर भी कोई व्यक्ति एक ब्राह्मण से उच्च कर्म करता है तो उसका स्थान ब्राह्मण से ऊपर होता है |


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