हिजाब की सच्चाई , धर्म कहा तक सही है ?

 


हिजाब की सच्चाई , धर्म कहा तक सही है ?

मुस्लिम छात्राए हिजाब पहने या न पहने इस मुद्दे को लेकर कर्नाटक के साथ पूरे भारत देश में बहस छिड़ गया है मामला कर्नाटक राज्य के उड्डपी जिले के कॉलेज का है कर्नाटक के ही अन्य कॉलेज में हिजाब पहनकर आई एक मुस्लिम छात्र को घेरकर नारेबाजी भी की गई जो पूरी तरह से गलत है पर यह मुद्दा ऐसा है जिस पर राष्ट्रीय बहस की जरूरत है |



हिजाब : सिर और सीने पर ढके जाने वाले कपड़े को कहते हैं कभी-कभी इससे चेहरा भी ढका जाता है और सिर्फ आंखें खुली रहती है यह लगभग वैसा ही जैसे आजकल सभी लोग मास्क लगाए रहते हैं

औरतें हिजाब, बुर्का और नकाब धारण करें यह परंपरा अरब देशों में इसलिए चली थी कि महिलाएं अंग प्रदर्शन से बचे लगभग ऐसी ही परंपरा भारत के सभी धर्मो में है जिसे पर्दा या घूंघट प्रथा के नाम से जाना जाता है |

वर्तमान विवाद : की बात किया जाए तो कर्नाटक सरकार 1983 में पारित एक शिक्षा कानून के तहत छात्र-छात्राओं की वेशभूषा क्या हो यह सरकार या शिक्षण संस्थान तय करेंगी इस नियम के खिलाफ कुछ लोगों ने अदालत में याचिका दायर की है इनका कहना ऐसा प्रावधान नागरिकों के मूलभूत अधिकारों का हनन करता है कोई आदमी क्या खाए, क्या पहने ,किस करवट सोये इन सबकी उसे स्वतंत्रता है यदि हर नागरिक को खाने पीने और बोलने की पूरी स्वतंत्रता हो तो वह किसी भी हद तक जा सकता है |

पक्ष और विपक्ष : कॉलेज के प्रिंसिपल का कहना है कि कॉलेज में करीब 1000 छात्राए है इनमें से 75 मुस्लिम है अधिकतर मुस्लिम छात्रों को हमारे नियमों से कोई दिक्कत नहीं है सिर्फ 5 से 6 छात्राए ही इसका विरोध कर रही है इन छात्राओ को हिजाब या बुर्का पहनकर कॉलेज कैंपस में घूमने की अनुमति दी गई है हम सिर्फ यह कह रहे हैं कि जब आप क्लास में हो या टीचर क्लास में आए तो हिजाब उतार दे

स्कूल प्रशासन का कहना है कि यह कॉलेज सिर्फ महिलाओं के लिए और छात्रों को हिजाब पहनने की जरूरत नहीं है वह भी तब जब इन्हें पढ़ाया जा रहा हो प्रदर्शन में शामिल छात्राओं का कहना है कि हमें 5 से 6 पुरुष टीचर भी पढ़ाने आते हैं इसलिए हमें हिजाब पहनते है |

विश्लेषण की बात किया जाए तो कुरान में हिजाब, बुर्का या पर्दे का नहीं बल्कि सितर शब्द का इस्तेमाल हुआ यह शब्द 12 से 14 बार जिसमे केवल दो बार औरतो और बाकी बार पुरुषों के लिए इस शब्द का इस्तेमाल किया गया है इस शब्द का मतलब दीवार, पर्दा या ढकना है अर्थात पुरुष, महिलाओं से पर्दा करें इसका अर्थ यह नहीं है कि बुर्का या हिजाब पहने बल्कि औरतों को बुरी नजरों से ना देखे

पैगंबर मोहम्मद के बाद से ही लोगों ने इसका अर्थ ही बदल दिया और आज इसे औरतों को घर पर रखने और पाबंदी लगाने का जरिया बना लिया गया हमें पाकिस्तान और अफगानिस्तान से सबक लेनी चाहिए इन देशों के हालात देखनी चाहिए कि सार्वजनिक जीवन में धर्म को लाने का क्या नतीजा होता है भारत देश किसी एक मजहब का नहीं बल्कि एक धर्मनिरपेक्ष देश है |

यह कैसा दुर्भाग्य की 21वीं सदी के भारत में कर्नाटक की छात्राए विद्यालयो में हिजाब पहनने की मांग के लिए आंदोलन कर रही है जबकि देश में मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा में भागीदारी पहले ही बहुत कम है होना तो यह चाहिए था कि मुस्लिम समाज की तरफ से शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सामाजिक आंदोलन हो मगर उल्टा हो रहा है |

वेशभूषा में परिवार की स्त्रियों को विशेष सावधानी रखने के लिए कहा जाता है भारत में पर्दा प्रथा कहां थी ? यह भी कुछ सदियों पहले ही चली है खासतौर पर विदेशी आक्रमणकारियों के समय से कई संत कवियों ने इसका विरोध भी किया है लेकिन आज हम सब स्त्री पुरुष समानता की बात कर रहे हैं तो सिर्फ स्त्रियों पर इस तरह के बंधन क्यों लगाना चाहते हैं ?

हिजाब जैसी परंपरा का पालन इस्लामी देशों में भी घटता जा रहा है ऐसे में ऐसी वेशभूषा पर सवालों का उठना स्वाभाविक है लेकिन घूंघट और हिसाब को इस श्रेणी में नहीं रखा जा सकता घूंघट और हिसाब का प्रावधान किसी भी धर्म ग्रंथ में नहीं है |



कुरान शरीफ में कहा गया है कि अपने घर की महिलाओं से कहिए की जब वे घर से बाहर निकले तो अपने अंगों को ढक कर रखें ताकि लोग तंग ना करें क्योंकि उस वक्त के अरब देशों में मर्द अपनी मर्यादा का उल्लंघन करने में ज्यादा संकोच नहीं करते थे कुछ देशों में आज भी है |

कुछ लोग कह सकते हैं कि स्त्रियाँ अपने अंगों का प्रदर्शन ना करें इसी तरह विरोधी पूछ सकते हैं कि अपनी पहचान भी क्यों छुपाई जाए ? क्योंकि बुर्का , घूंघट , हिजाब और नकाब तो उनके चेहरे को भी ढक लेते हैं यदि कोई कुछ न पहनकर बाहर निकले तो ये आपत्तिजनक जरूर होगा जैसे दिगंबर संतो के अलावा |

जब दुनिया भर में महिलाओं को पर्दे में रखने वाले परिधानों का करीब करीब परित्याग किया जा चुका है और इसी क्रम में अपने देश में घुंघट का चलन खत्म होने के कगार पर है तब मुस्लिम छात्राये हिजाब पहने की जीद कर रही है यह न केवल दिखावा है बल्कि स्त्री स्वतंत्रता में बाधा साबित होगा जिसका मकसद महिलाओं को दूसरे दर्ज का साबित करना है हैरानी तो यह होनी चाहिए कि जिस सऊदी अरब देश से हिजाब ,बुर्का आदि का चलन शुरू हुआ वह आज आधुनिकता के तौर तरीके अपना रहा लेकिन भारत में मुस्लिम समाज का एक वर्ग खुद उसी पुराने माहौल में जोड़ने की हर संभव कोशिश कर रहा है

भले ही हिजाब की इजाजत इन्हें कानून ने दी है और यह इनका धार्मिक अधिकार भी है मगर शिक्षा से बड़ा कोई धर्म नहीं होता है चाहे कोई किसी भी धर्म का क्यों ना हो किसी प्रकार का धार्मिक पहनावा शिक्षा में रुकावट पैदा करता है तो वह पूरी तरह से गलत है इसके लिए पूरे समाज को आगे आना चाहिए

इसलिए भारतीय गुरुकुल में सभी ब्रह्मचारियों की वेशभूषा एक जैसी होती थी यूनान की दार्शनिक प्लेटो की अकादमी और अरस्तु की लीसीएम में छात्रों की वेशभूषा भी एक जैसी होती थी चाहे वह किसी भी राजपरिवार से ही क्यों ना हो



सान्दीपनि आश्रम में क्या कृष्ण और सुदामा अलग-अलग वेशभूषा में रहते थे ? लोग अपने घर और बाजार में जैसी वेशभूषा पहनना चाहे पहने उन्हें इससे भला कोई कौन रोक सकता है लेकिन शिक्षण संस्थानों में एकरूपता के कारण से ही बचपन से समानता, एकता और सादगी का भाव उत्पन्न किया जाता है |

यह अलगाववाद चाहे मजहबी हो , जातीय हो या आर्थिक हो और शिक्षण संस्थानों में तो नहीं होना चाहिए

सभी भारतीय अपने खान-पान और नामकरण में भी कुछ एकरूपता लाने की कोशिश करें इसका अर्थ यह बिलकुल नहीं है कि सभी धोती - कुर्ता पहने ,दाल -रोटी खाएं और अपने नाम संस्कृत या हिंदी में रखें विविधता कायम रखें लेकिन मुसलमान के नाम सिर्फ अरबी में, ईसाइयों के नाम सिर्फ इंग्लिश में और यहूदियों के नाम सिर्फ हिब्रू भाषा में ही क्यों ?

हम कब तक दूसरों की नकल करेंगे ? हम अपने नाम अपनी मातृभाषा वाली भाषाओं में क्यों नहीं रखते ? अगर ऐसा हो तो देश में अंतरजातीय और अंतर धार्मिक विवाहों की संख्या और एकता बढ़ेगी

कई इंडोनेशिया मुसलमान के नाम संस्कृत में देखा गया उनके राष्ट्रपति का नाम सुकर्णो और बेटी का नाम मेघावती है जबकि आप सभी को अच्छे से पता होगा की दुनिया मे सबसे अधिक मुसलमान इण्डोनेशिया देश में ही रहते है पूरी जनसंख्या का करीब 97% उसके बाद भी इनके नामो में मातृभूमि और मातृभाषा की झलक मिलती है | फिर हम भारतीय ऐसा क्यों नहीं कर सकते है ?

मुख्य सवाल यह है कि मुस्लिम छात्रों को ही अपनी धार्मिक पहचान दिखाने के लिए हिजाब की आवश्यकता क्यों पड़े ? जबकि स्कूल में हर विद्यार्थी एक समान रूप से शिक्षा ग्रहण करने आता है और अध्यापक उनके साथ धार्मिक आधार पर कोई भेदभाव नहीं करते ?

इसकी एक मात्र वजह क्या हो सकती है कि मुस्लिम वर्ग हर कीमत पर अपनी पहचान से पहले अपने धर्म से जोड़ना चाहता है यह मानसिकता ठीक वही है जो भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को कमजोर करने के लिए मुस्लिम लीग ने भारतीय मुसलमान में फैलाई थी |

भारत में जब कोई विद्यालय में प्रवेश पाता है तो अपनी धार्मिक पहचान को घर पर छोड़कर ही आता है क्योंकि संविधान के अनुसार धर्म किसी भी व्यक्ति का निजी मामला है जब हम धर्म का प्रदर्शन सार्वजानिक रूप से शुरू कर देते हैं तो वहीं से सांप्रदायिकता शुरू हो जाती है जो किसी भी धर्म या समुदाय के लिए घातक ही साबित होती है क्योकि जब भी कोई बदलाव होता है तो सबसे अधिक महिलाये और उस वर्ग की लडकिया प्रभावित होती है |

जिस प्रकार अस्पताल स्वास्थ्य प्राप्त करने का स्थान होता है क्या कोई मुस्लिम महिला या छात्र अस्पताल में भर्ती होने पर भी हिजाब लगाने या बुर्का पहनने की जिद कर सकती है ?

किसी भी धर्म में पैदा होने वाले छात्र की धार्मिक पुस्तकों में क्या लिखा है अथवा मुल्ला मौलवी यां पंडित किस तरह जिंदगी गुजारने की सलाह देते है इसका शिक्षण संस्थानों में कोई भी मतलब नहीं होता है |

मुस्लिम छात्राओं की भावना शिक्षा प्राप्त करके अपने समाज को रोशन बनाने की होनी चाहिए ना की धार्मिक प्रतीकों की जंजीरों में जकड़कर पिछली सदियों में जीने की उनकी भी भारत के विकास और प्रगति में वही भूमिका है जो किसी हिंदू छात्र की है |

इन्हें स्वयं पुराने जंग लगे रस्मों रिवाजों को तोड़कर वैज्ञानिक सोच के साथ आगे बढ़ना चाहिए यह 21वीं सदी चुनौतियों की ऐसी सदी है जिसमें टेक्नोलॉजी ही मजहबी रुकावटें पैदा करने वालों को करारा जवाब दे सकती है वरना मुल्ला मौलवी या पंडित तो यह भी कहते हैं कि लड़कियों को मोबाइल फोन का इस्तेमाल करना भी गैर इस्लामी है |

दुनिया के इन देशों में समय समय पर बुर्का को बैन कर दिया गया है डेनमार्क 2018 ,जर्मनी 2017, बेल्जियम 2011, स्पेन 2016, कांगो 2015, फ्रांस 2010, चीन 2014, नीदरलैंड 2015, श्रीलंका 2019 और स्वीटजरलैंड 2013

कोर्ट का मानना है कि पूरा मामला अब कर्नाटक उच्च न्यायालय के विचार क्षेत्र में है न्यायाधीशों ने साफ कह दिया है कि भारत संविधान से चलने वाला देश है जो संविधान कहेगी उसी के अनुसार वह अपना फैसला देंगे ना कि लोगों की भावना देखकर |

कर्नाटक शिक्षा कानून के नियम 11 में हर संस्थान को विद्यार्थियों के लिए यूनिफॉर्म तय करने का अधिकार देता है दूसरी बात यह है कि बाम्बेहाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले पहले ही बता चुके हैं की यूनिफार्म के साथ क्या पहना जा सकता और क्या नहीं |

जब अधिकारों के बीच प्रतिस्पर्धा हो तो निजी हित से ऊपर सार्वजनिक हित को वरीयता दी जानी चाहिए

विचार : पाकिस्तान की मशहूर महिला अधिकार कार्यकर्ता और नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला युसुफजाई हिजाब के कारण लड़कियों को रोकना भयानक है |

प्राइमरी और सेकेंडरी एजुकेशन मंत्री बी नागेश ने कहा कि यह राजनीति हो रही है अगले वर्ष चुनाव है इसलिए यह सब हो रहा है

भारत की शतरंज चैंपियन सौम्या स्वामीनाथन ने ईरान में हिजाब अनिवार्यता के चलते प्रतियोगिता छोड़ दी थी भारत के पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद कैफ ने " ईरान में नहीं खेलने के फैसले के लिए सौम्या आपको सलाम किसी भी खिलाड़ी पर धार्मिक पहनावे को थोपने की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए " उस देश को अंतरराष्ट्रीय मैच की मेजबानी का मौका ही नहीं देना चाहिए जो बुनियादी मानवधिकारों के बारे में नहीं सोचता है |

कुछ समय पहले सानिया मिर्जा के खिलाफ फतवा जारी हुआ था कि वह स्कर्ट पहनकर खेल नहीं सकती है वास्तव में ऐसी बातें इस्लाम के एकदम खिलाफ है क्योंकि इस्लाम का कहना है कि ज्ञान प्राप्त करने के लिए जिसमें खेलकूद भी शामिल है यदि किसी व्यक्ति को चीन भी जाना पड़ जाए तो चले जाना चाहिए क्योंकि इस्लाम विज्ञान और प्रगति पर आधारित धर्म है |

अल्जीरिया देश : चुनावी पोस्टर में हिजाब वाले चेहरे पर फोटो नहीं है देश की राजनीतिक पार्टी इस बात पर राजी है कि वह वह पोस्टर में महिलाओं की तस्वीर छापेंगे जो पोस्टर लगाई गई थी इनमें पुरुष उम्मीदवारों की तस्वीर थी जबकि महिलाओं को खाली चेहरे पर हिजाब लपेटे दिखाया गया था जबकि वर्ष 2012 में एक कानून के मुताबिक सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए कम से कम 20 से 50% महिला उम्मीदवारों को चुनाव में उतारना अनिवार्य है |

वर्ष 2011-12 में मिश्र देश में राजनीतिक पार्टियों ने महिलाओं के तस्वीरों की जगह फूलों का इस्तेमाल किया था

तुर्की : महिला सैनिक हिजाब पहन सकेंगी सार्वजनिक स्थानों पर 1980 से ही प्रतिबंध है सेना आखिरी संस्था है जहां पर लगी पाबंदी हटाई गई लेकिन अभी भी चेहरा ढकने की इजाजत नहीं है |

अमेरिका देश : अमेरिकी कानून का कहना है की कार्यरत कमर्चारी के धर्म को तब तक उचित जगह देना चाहिए जब तक वह व्यापार के लिए मुश्किल न बन जाए

वही यूरोप के देशो में यूरोपीय कोर्ट ने फैसला दिया है कि यूरोप में कंपनियां ऐसी कर्मचारियों के काम करने पर बैन लगा सकती है जो हिजाब पहनकर आ रही हो .................




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2 टिप्पणियाँ

  1. आँखे खोल देने वाली बाते , इसके बाद भी लोगो को अपने धर्मं का असली मतलब न पता चले तो दुर्भाभ्य है उन गुरुओ का जिन्होने लोगो को मदद करने और नेक कामो के लिए धर्मो की स्थापना की थी

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  2. dharm ki baat hai kuch kahna to sahi nahi hai lekin sudhar to kar hi lena chahiey

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