हिन्दू धर्म में क्यों की जाती है देवी-देवताओं और देवस्थल की परिक्रमा ?

 



हिन्दू धर्म में क्यों की जाती है देवी-देवताओं और देवस्थल की परिक्रमा
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सनातन धर्म में मंदिर और इनसे जुड़े परंपराओं को शास्त्रो व धर्म ग्रंथों में बहुत ही विस्तार से बताया गया है बता दें कि प्राचीन काल से लोग अपनी आस्था को प्रकट करने एवं भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मंदिर जाते है भारत में कई ऐसे मंदिर हैं, जिनका आध्यात्मिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व और इनसे जुड़ी कई कथाएं भी प्रचलित हैं इसके साथ शास्त्रों में मंदिर से जुड़े कुछ परंपराओं के विषय में भी बताया गया है जिसमें देवी-देवताओं की परिक्रमा को बहुत ही महत्व दिया गया हैइसके पीछे अध्यात्मिक व वैज्ञानिक कारण भी बताया गया है लेकिन इससे पहले हमें यह जानना चाहिए कि मंदिर क्यों जाना चाहिएमंदिर शब्द का अर्थ है मन से दूर कोई स्थान अर्थात ऐसा पवित्र स्थान जहां मन और ध्यान अध्यात्म के अलावा किसी अन्य चीज पर न जाए मंदिर को आलय भी कहा जा सकता है, जैसे- शिवालय, जिनालय इत्यादिजब हम मंदिर जाते हैं तब हमारा मन भोग, विलास, काम, अर्थ, क्रोध इत्यादि से दूर हो जाता है यहां व्यक्ति को आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है और मन शांत रहता हैप्राचीन काल से ही मंदिरों की बनावट वास्तु शास्त्र के अनुसार की जा रही है इसलिए यहां आने से व्यक्ति पर नकारात्मक शक्तियों का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है और मन सीधे-सीधे भगवान से जुड़ जाता हैमंदिर में रहकर भगवान की आराधना व ध्यान करने से मन को आत्मिक संतुष्टि भी प्राप्त होती है और इसे भगवान की आराधना के लिए आवश्यक माना जाता है शास्त्रों मेंपूजा-अर्चना के बाद परिक्रमा का भी विशेष विधान बताया गया है इसलिए हम देवी-देवता या देवस्थल की परिक्रमा करते हैपरिक्रमा को प्रदक्षिणा भी कहा जाता है जिसका अर्थ है दाएं ओर से घूमना जिस दिशा में घड़ी घूमती है उसी दिशा में मनुष्य को प्रदक्षिणा करनी चाहिएमाना जाता है कि जब एक व्यक्ति उत्तरी गोलार्ध से दक्षिण गोलार्ध की ओर घूमता है तब उस पर विशेष प्राकृतिक शक्तियों का प्रभाव पड़ता हैऐसा माना जाता है कि देवस्थान की परिक्रमा करने से व्यक्ति के अंदर मौजूद नकारात्मक शक्तियां समाप्त हो जाती है और देवी-देवता व इष्ट देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है लेकिन इन से जुड़े हुए कुछ जरूरी बातों को भी जान लेना बहुत जरूरी हैभगवान शिव की अर्ध परिक्रमा को लेकर शास्त्रों में भी बताया गया है कि भगवान शिव की पूरी परिक्रमा नहीं करनी चाहिए क्योकि जलाभिषेक के बाद जिस स्थान से जलधारा निकलती है उसे लांघने की मनाही है इसलिए भगवान शिव की अर्ध परिक्रमा का ही विधान है ऐसा करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और साधक को आशीर्वाद प्रदान करते हैंभगवान गणेश सभी देवताओं में सर्वप्रथम पूजनीय है साथ ही शास्त्रों में यह बताया गया है कि भगवान गणेश की तीन बार परिक्रमा करनी चाहिए और ऐसा करते समय मन ही मन अपनी मनोकामना को दोहराना चाहिए ऐसा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है गोवर्धन परिक्रमाभगवान श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा में गोवर्धन पर्वत विराजमान हैं मान्यता के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने बाल लीला में गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी सी उंगली पर उठाकर ब्रज वासियों को इंद्रदेव के प्रकोप से बचाया था धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मथुरा में गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से साधक को बल, बुद्धि, विद्या एवं धन-धान्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है यह पूरी परिक्रमा 23 किलोमीटर की है और इसे पूरा करने में 5 से 6 घंटे का समय लगता है सबसे लंबी परिक्रमा नर्मदा परिक्रमाहै जिसका क्षेत्रफल 2,600 किलोमीटर हैयह यात्रा तीर्थ नगरी अमरकंटक ओमकारेश्वर और उज्जैन से प्रारंभ होती है और यहीं पर आकर समाप्त हो जाती है इस परिक्रमा में कई तीर्थ स्थलों के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता हैखास बात यह है कि नर्मदा परिक्रमा 3 वर्ष 3 माह और 13 दिनों में पूर्ण होती हैलेकिन कुछ लोग 108 दिनों में ही इस कठिन परिक्रमा को पूरा कर लेते हैं


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