बर्लिन की दीवार : हैरान करने वाली बाते
इतिहास : जर्मनी देश के पड़ोसी देशो के रूप में पोलैंड , आस्ट्रिया , फ़्रांस , चेक रिपब्लिक , बेल्जियम , स्विट्जरलैंड जैसे कई और प्रमुख देश है
आज से करीब 34 वर्ष पहले 9 नवम्बर 1989 को जर्मनी देश में बर्लिन शहर में बने बर्लिन की दीवार को गिरा दिया गया था इस तरह से जो जर्मनी देश कभी पूर्वी और पश्चिमी भागो में बटा हुआ था इस दीवार के गिर जाने के बाद से एक बार फिर जर्मनी का एकीकरण हो गया
प्रथम विश्व युद्ध की बात करे या दित्तीय विश्व युद्ध की कई देशो का विभाजन हुआ कई देश आपस में मिल गए इसी क्रम में जर्मनी देश को भी 1949 में पूर्वी जर्मनी और पश्चमी जर्मनी के रूप में दो भागो में बाट दिया गया ये विभाजन केवल जमीनी विभाजन ही नहीं था इसके साथ साथ आर्थिक विभाजन भी था पश्चमी जर्मनी में एक तरफ अमीर और पढ़े और विद्वान के साथ साथ उच्च कोटि के लोग रहते थे तो वही पूर्वी जर्मनी में गरीब से गरीब जिनके पास न रहने का ठिकाना और न ही काम कोई और न ही कोई सामाजिक मान्यता थी एक आकड़े के अनुसार पूर्वी जर्मनी के 50000 से अधिक लोग काम करने के लिए पश्चमी जर्मनी में जाया करते थे और सबसे बड़ी बात ये भी थी की इस दीवार को बर्लिन शहर के बीचो बीच बनाया गया था
बर्लिन के इस दीवार का निर्माण कम्युनिस्ट इस्टर्न ब्लाक का हिस्सा रहे पूर्वी जर्मनी यानी जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ने बर्लिन में 13 अगस्त 1961 को इस दीवार का निर्माण करवाया इस पर निगरानी के लिए पुलिस चौकियो का निर्माण भी कराया गया था जो पूरी तरह से कंक्रीट से बनाई गई थी बर्लिन की दीवार नाम के अलावा भी इसे एक और अन्य नाम से जाना जाता था इसे फासीवादी विरोधी सुरक्षा परकोटा नाम भी था
इस दीवार के बन जाने के बाद भी लोग अपने जान को जोखिम में डालकर पूर्वी जर्मनी से पश्चमी जर्मनी की ओर जाया करते थे बताया तो ये जाता है की प्रति 200 में से केवल 5 से 6 लोग ही पार कर पाते थे क्योकि कड़ी पहरेदारी के साथ साथ कटीले तार लगाये गए थे कई जगहों पर इसमें बिजली का भी प्रवाह होता था इसलिए हमेशा खतरा बना रहता था
इस दीवार की कुल लम्बाई 155 किलोमीटर थी और ऊचाई 3.6 मीटर थी वही पश्चमी जर्मनी वाले भागो में इसे वाल ऑफ़ सेम या शर्म की दीवार कहा जाता था बताया तो ये भी जाता है की जब इस दीवार को बनाया जा रहता तो पूर्वी बर्लिन से लाखो लोग दीवार पार कर पश्चमी बर्लिन की ओर आ गए थे क्योकि इस दीवार के तैयार हो जाने के बाद से एक तरफ से दूसरी तरफ आने जाने के सभी मार्ग बंद कर दिए गये थे
समस्या देश की जनता में नहीं थी समस्या तो सरकार में थी क्योकि सरकार नहीं चाहती थी की पूर्वी जर्मनी के लोग अपने क्षेत्र को छोड़कर एक सभ्य समाज की ओर बढे जिससे पश्चमी जर्मनी में लोगो को रोजगार की , रहने की और अन्य समस्याओं का सामना करना पड़े जबकि है तो दोनो एक ही देश के लोग |
सबसे बड़ी बात ये थी की जिस तरह से अंगेजो ने 1905 में बंगाल का विभाजन पूर्वी बंगाल और पश्चमी बंगाल के रूप में थी लेकिन हिन्दू मुस्लिम एकता के कारण से इसे 1911 में पूरी तरह से रद्द करना पड़ा एक दम वैसा ही हाल इस देश में बने बर्लिन की दीवार का भी था लोग खुश नहीं थे इस दीवार से लेकिन सरकार ने अपने मन की और एक दीवार से देश को बाट दी इससे फायदे के जगह पर कई सारे नुकसान हो रहे थे लेकिन एक लम्बे समय के बाद आखिरकार इस दीवार को गिरा ही दिया गया
इस दीवार के बन जाने पर पूर्वी जर्मनी को पश्चमी जर्मनी की सरकार की तरफ से प्रतिवर्ष कुछ पैसा भी मदद के रूप में दिया करती थी एक रिपोर्ट के अनुसार दीवार बनने से पहले अर्थात 1949 से 1962 के मध्य पूर्वी जर्मनी से करीब 25 लाख लोग पश्चमी जर्मनी की ओर चले गए लेकिन जब दीवार का निर्माण पूरा हो गया तो 1962 से 1989 के मध्य केवल 5000 लोग ही जाने में सफल हो पाए
पूर्वी जर्मनी के सन्दर्भ में इसे कहा जाये तो इसे लौह आवरण तक कहा गया है दुनिया भर के साथ जब 1989 में जब कमुनिस्ट ब्लाक के देशो जैसे पोलैंड और हंगरी देशो में लोकतंत्र के लिए विरोध प्रदर्शन होने लगे तो इसका प्रभाव भी इन क्षेत्रो पर भी पड़ा जिससे कई महीनो तक नागरिक विद्रोह हुए और 9 नवम्बर 1989 को घोषणा की गई की अब पूर्वी जर्मनी के लोग पश्चमी जर्मनी की ओर जा सकते है और इसके बाद क्या था जिसको जो भी मिला वो इस दीवार को गिराने लगा और 3 अक्तूबर 1990 को जर्मनी का पूरी तरह से एकीकरण हो गया है और एक बार फिर से अमीर गरीब का भेद ख़त्म हुआ .............
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