आस्था का प्रतीक : मंदिर और जंगल
मेरठ के गढ़ रोड से 4 किलोमीटर पश्चिम में बढला कैथवाड़ी गांव का वन अपने आप में मिसाल है केवल एक नहीं आसपास के 12 गाँवों के लोगों की जंगल के प्रति आस्था पर्यावरण प्रेमियों को भी प्रेरणा देने वाली है यहां जंगल में पेड़ काटना तो दूर सुखी टहनिया भी तोड़ना पाप माना जाता है |
वृक्षों के प्रति श्रद्धा की जड़े कितनी गहरी है इसका अंदाजा इसी से होता है कि यहां की देवी मंदिर भी झाड़े वाली देवी ( स्थानी भाषा में इसका अर्थ जंगल, झाड़, झंकार ) के नाम से प्रसिद्ध है मान्यता ये है कि अगर किसी ने यहाँ पेड़ काटा तो उसके साथ अप्रिय घटना जैसे लकवा मारना , बीमारी ,परिवार में जन -धन की हानि , आर्थिक नुकसान जैसी अनहोनी हो जाएगी
करीब 25 साल पहले गांव के एक व्यक्ति ने विरोध के बाद भी विशाल पेड़ कटवा कर ₹300 में बेच दिया था उसके पास 60 बीघे की जमीन और पूरा परिवार था आज ना जमीन है और न हीं गांव में उसके परिवार का कोई बचा है |
जंगल और झाड़े वाली देवी के प्रति विश्वास पीढियों से चला आ रहा है झाडे वाली देवी का स्वरूप दुर्गा का है जंगल में तुबे वाले बाबा की समाधि भी है बाबा यही तपस्या करते थे जिनकी प्रतिष्ठा रोग कष्ट हरने वाले संत की है जंगल का वर्तमान क्षेत्र 45 बीघा में फैला है जिसका कोई सरकारी रखरखाव नहीं है यह वन विभाग के दस्तावेजों में भी दर्ज नहीं है कई स्थानों पर पेड़ों और झाड़ियां की संख्या इतनी सघन है की धरती पर सूर्य के प्रकाश की किरण भी नहीं पहुंचती है यह प्राकृतिक रूप से विकसित जंगल है ग्रामीणों के सहयोग से इसके संरक्षण के लिए प्रयास किये जा रहे हैं...................
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