दवाओं की गुणवत्ता से खिलवाड़ कब तक ?

 दवाओं की गुणवत्ता से खिलवाड़ कब तक ?

आज देश- दुनिया में कई नई बीमारियां दवा के गलत सेवन और गलत दवा बनाने के कारण से ही नई-नई बीमारियां पैदा हो रही हैं ऐसा पहली बार किसी रिपोर्ट में नहीं कहा गया बल्कि अभी हाल ही में जारी विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट कहती है कि भारत देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा दवाओं पर अपने घरेलू बजट का अधिकतम पैसा खर्च करता है

इसे देखते हुए लोगों को सस्ती रेट पर दवाये खरीदने में सक्षम बनाने के लिए ही 2012 में एक कानून पास किया गया था जिसमें इस बात पर फोकस किया गया था सरकार ने उसी समय जोर देते हुए कहा था कि सभी डॉक्टर अधिक से अधिक जेनेरिक दवाओ को ही लिखे और सभी फार्मेसी दवा केंद्र पर इस प्रकार की दवाओ की उपलब्धता बढ़ाने को भी कहा गया था

लेकिन सच्चाई तो ये है कि भारत में निर्मित कुछ सामान्य दवाए अप्रभावी और इसके साथ ही वह हानिकारक भी होती हैं कुछ समय पहले एंटीबायोटिक और एंटी वायरल दवाये बनाने वाली एक भारतीय कंपनी अमेरिकी खाद्य और औषधि प्रशासन (FDA ) व न्याय विभाग द्वारा मिलावटी दवाओ की बिक्री और इसके बारे में FDA से झूठ बोलने की जांच का सामना कर चुकी है इस जांच के बाद से तो FDA ने लगभग 25 से 30 दवाओ पर प्रतिबंध लगा दिया जो दवा इस कंपनी में बनते थे और वह अमेरिका देश में भी भेजा था



इसके पहले नवंबर 2015 में अमेरिकी ड्रग्स रेगुलेटर ने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में स्थित एक दवा निर्माता कंपनी को दवा बनाने की प्रक्रिया में कुछ गड़बड़ी के कारण से चेतावनी भी जारी किया था पूरी दुनिया में सबसे अधिक मात्रा में जेनेरिक दवा भारत और चीन में ही बनते हैं

लेकिन दुर्भाग्यवश भारत में कुछ दवा निर्माताओ ने उप - मानक अर्थात दवा की क्वालिटी को कम करके भारतीय मरीजों को लूटने का बड़ा खेल खेला है इसका परिणाम यह हुआ है की दवाए या तो काम करती ही नहीं है या फिर किसी नए बीमारी को जन्म ही दे देती है कभी-कभी तो होता यह है कि आप चाहे जितनी भी दवा खा ले लेकिन बीमारी और संक्रमण टस से मस नहीं होते है |



इन सबके बाद एक और घोटाला होता है भारतीयों के साथ वह ये की भारतीय दवा कंपनी यूरोपीय और अमेरिकी बाजारों के लिए उच्च गुणवत्ता वाली दवाओ का प्रोडक्शन करते हैं क्योंकि यूरोपीय देश और अमेरिका में कानून बहुत कड़े हैं और वही भारत में कम प्रभावी वाली दवाई मार्केट में आ जाती है ऐसा सिर्फ दवाओ के साथ ही नहीं बल्कि फलों, सब्जियां ,मसाले ऐसा कोई फील्ड नहीं बचा जहां पर ऐसा हेरा फेरी भारत में ना की जाती है कुछ ऐसे भी क्षेत्र हैं जहां पर धोखाधड़ी उनकी आंखों के सामने ही कर देते हैं और कहते हैं कि हम भारतीय हैं ........

भारतीय दवा निर्माताओ द्वारा भ्रष्ट तरीके अपनाए जाने के संदर्भ में खोजी पत्रकार कैथरीन इबान ने अपनी एक पुस्तक " ए बैटल आफ लाइज " में लिखा है कि सैधानित्क रूप से कंपनियों को बेहतर विनिर्माण प्रथाओं के कठोर मानको का पालन करना चाहिए लेकिन वास्तव में ऐसा बहुत कम ही होता है |

गुणवत्ता क्या होना चाहिए ? :

दवा की क्वालिटी सुरक्षित और गुणवत्ता वाली दवाओ का निर्माण गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस पर आधारित है ये प्रथाएं बाजार में प्रवेश करने के लिए एक दवा के लिए न्यूनतम मानको का पालन करती है इस दिशा निर्देशों में गुणवत्ता प्रबंधन, उपयुक्त पैकेजिंग, प्रयोगशाला , नियंत्रण और विश्लेषण के प्रमाण पत्र आदि शामिल है

निर्माता ,नियामक और निरीक्षण यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है कि गुड्स मैन्यूफैक्चरिंग प्रैक्टिस का पालन किया जाए और उन्हें लागू किया जाए देश को अपनी दवाओ का निर्यात करने में सक्षम बनाने के लिए स्टैंडर्ड मानको को पहले पूरा किया जाए लेकिन हर बार देखा गया की कंपनियां पैसा बचाने के चक्कर में गुणवत्ता नियंत्रण आंकड़े में हेर फेर करने या अंतरराष्ट्रीय दिशा निर्देशों के माध्यम से परिमार्जन करने के लिए कम संख्या में सामग्री का उपयोग करते हैं



विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कम और मध्यम आय वाले देशों में लगभग 25% दवाई नकली या वे घटिया होती हैं जिसके कारण से कई नई नई बीमारियों का जन्म होता है इसके साथ ही मेडिकल फील्ड की कमियां भी उजागर होती हैं कमिया उजागर होने के बाद दोबारा वैज्ञानिकों को नए-नए दवाओ की खोज करनी पड़ती है |

उपाय : अन्य देशो की तरह ही भारत सरकार के पास भी गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रोडक्शन को लागू करने की क्षमता होनी ही चाहिए इसके साथ ही अधिकारियों को लगातार निरीक्षण भी करते रहना चाहिए बाजार में दवा आने से पहले ही सभी मानको की जांच होनी चाहिए वर्ष 2010 में भी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया था की दवाये स्वास्थ्य प्रणाली में असफल होने के शीर्ष 10 अग्रणी स्रोतों में से तीन के लिए जिम्मेदार है और भ्रष्टाचार असफलता का एक प्रमुख माध्यम है दवाओ पर अनावश्यक खर्च घटिया और नकली दवाए स्वास्थ्य प्रणाली में घुसपैठ कर रही है

अप्रभावी दवा से जहा उपयोग के बाद गुणवत्ता प्रभावित होती है वहीं इसके साथ ही संसाधनों की भी बर्बादी होती है इसलिए स्वास्थ्य प्रणाली की स्थिरता के लिए प्रभावी और कुशल चिकित्सा व्यय महत्वपूर्ण और विशेष कर उनके लिए जो निम्न और मध्यम आय वाले हैं जहां पर स्वास्थ्य प्रणाली कमजोर है और सरकारी संसाधन भी बहुत कम है |

इस अहम हेरा फेरी में क्या सरकार का भी अहम योगदान है ? क्या सरकार को इसके बारे में जानकारी नहीं है ? अगर है तो प्रभावी कदम कब उठेगा ?

मेडिकल जनरल द लेसेंट में छपी एक नए रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1.60 करोड़ लोग भारतीय स्वास्थ्य सेवा की खराब गुणवत्ता के कारण मरते है इसके साथ ही लगातार मेडिकल सेक्टर में बढती धोखाधड़ी भी एक नई समस्या बनकर सामने आ रही है जैसे NRHM ( नेशनल रुरल हेल्थ मिशन ) घोटाला किसी से छिपा नहीं है आज भारत में दवाओ की कीमत पर कोई कण्ट्रोल नहीं है और सरकारी अस्पतालो में भर्ती मरीजो को लिखी जाने वाली दवाओ को लेकर हैरान करने वाली बाते कही गई है मिली जानकारी के अनुसार मात्र 9% ही दवाए अस्पताल की होती है और बाकि बाहर की मेडिकल स्टोर से जो पहले से ही कमीशन पर बिके हुए होते है |

बीमारी में दवा पर ही सबसे अधिक भरोसा होता है इसलिए तो नक्श लायलपुरी ने कहा था की " जहर देता है कोई , कोई दवा देता है , जो भी मिलता है , मेरा दर्द बढ़ा देता है " ..............


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