क्या भारत में फिर से मुस्लिम शासन स्थापित होगा ?
हाल ही में भारत में कुछ दिलचस्प आवाज़े सुनाई दी है सबसे खौफनाक यह है कि अगर बहुसंख्यक समाज सजग नहीं रहा तो भारत में मुगल राज वापस आ जाएगा कुछ अन्य लोगों ने इसी बात को इस प्रकार भी कहा कि भारत में मुसलमान राज फिर से कायम हो सकता है इतिहास की कसौटी पर इसे परखते हैं और इसके जवाब को ढूढ़ते है :-
प्रथम मुगल बादशाह बाबर ने 1526 में दिल्ली की हुकूमत से किसी हिंदू राजा को नहीं बल्कि सुल्तान इब्राहिम लोदी को पानीपत के पहले युद्ध में बुरी तरह से हराकर सत्ता से बाहर किया था बाबर का हमला अचानक नहीं हुआ था लोदी के पास तैयारी का भरपूर समय था उसने नया शक्ति समीकरण बनाने की कोशिश भी की थी फिर भी एक दिन के युद्ध में ही हार गया था और स्वयं इब्राहिम लोदी इस युद्ध में मारा गया था
करीब 1 साल बाद ही खानवा के युद्ध में राणा सांगा को बाबर ने हराया था लेकिन इस खानवा के युद्ध में राणा सांगा को भागने का मौका भी मिल गया था उसके 10 महीने बाद ही चित्तौड़ में राणा सांगा की मौत हो गई थी
बताया तो ये भी जाता कि राणा सांगा बाबर से एक और युद्ध लड़ना चाहते थे लेकिन इस युद्ध को रोकने के लिए उनके उच्च स्तरीय सहयोगियों ने उन्हें जहर दे दिया था बाबर राणा सांगा से इस बात से नाराज था कि क्यों राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी से हो रहे युद्ध में हमारा साथ नहीं दिया राणा को राजपूतो के ऐतिहासिक शौर्य पर पूरा भरोसा था पर जरूरत सिर्फ ये थी कि किसी भी प्रकार से बाबर की व्यूह रचना और रण कौशल को सिखना
भारत में मुसलमानो का पहला आक्रमण आठवीं सदी में हुआ था जब युवा अरब कमांडर मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध के हिंदू राजा दाहिर को हराया था वह चर्चित संपदा लूटने के लिए आया था उसके विजय होने का कारण कुछ स्थानीय हिंदुओं का सहयोग करना था लेकिन हिंदू राष्ट्रवादी इसे हिंदू मुस्लिम नजरिये से देखते हैं कासिम हुकूमत करने के लिए रुका नहीं और वह बगदाद लौट गया था
लेकिन 712 और 1526 के बीच दाहिर और लोदी की शासन प्रणाली में एक निरंतरता देखने को मिलती है राजा दाहिर ने सामाजिक कमजोरियो को दूर करने और आर्थिक सैनिक पुनर्गठन पर ध्यान नहीं दिया था अगर उनके पास ताकतवर नौसेना होती तो कासिम को विजय से वंचित करना संभव हो सकता था सामाजिक एकता का यह हाल था कि इब्राहिम लोदी के चाचा ने बाबर का साथ दिया था लोदी का कोषागार खस्ता हाल में था व्यापार में गिरावट आ चुकी थी
इतिहास में घटित एक घटना से भी इसे समझ सकते हैं तराईन के प्रथम युद्ध 1191 में जो पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के मध्य हुआ था चौहान विजयी बनने के बाद भी एक नए समीकरण बनाने की कोशिश नहीं कि और एक वर्ष के ही अंदर तराइन के दुसरे युद्ध 1192 में हार का मुख देखना पड़ा इसी के साथ गौर करने वाली बाते तो ये है की जम्मू के हिन्दू राजा विजयराज और अन्य कई हिन्दू राजाओ ने मुहमद गोरी का साथ दिया था गोरी ने भारत में शासन करने के लिए रुक गया क्योकि लड़ाई हुकूमत करने की थी
खानवा के नतीजो को भी हिन्दू पराजय के रूप में नहीं देखा जा सकता है क्योकि राणा ने पानीपत में लोदी के खिलाफ बाबर से समझौता किया था तो खानवा में मुग़ल फ़ौज का मुकाबला राजपूत अफगानों मोर्चो से था सिकंदर लोदी का छोटा बेटा महमूद लोदी और हसन खान मेवाती राणा के प्रमुख सहयोगियों में से थे बाबर ने खानवा जीतने के बाद मुंड स्तम्भ बनवाया था उसमे मुसलमानों के शीश भी थे जैसे जब नादिर शाह ने दिल्ली में कत्ले आम मचाया था तो हजारो लाखो मुसलमान भी मारे गए थे
औरंगजेब के शासन में आने तक विश्व की अर्थव्यवस्था में भारत का योगदान 27% तक पहुच गया था लेकिन 1700 से 1739 ईस्वी के मध्य मुग़ल साम्राज्य इतना बदहाल हो गया था की फारसी लुटेरा नादिर शाह वैसे टहलते हुए भारत की सीमा में घुस आया था
मुगल साम्राज्य के जर्जर होने की एक बड़ी वजह औरंगजेब का असहिष्णु की नीति अपनाना बताया जाता है अपने अंतिम समय तक व दक्षिण भारत से ही युद्ध करते रहा अगर वह पुर्तगाल, डच, फ्रांसीसी और ब्रिटिश प्रभाव को कम करने की कोशिश करता तो 1757 में जो प्लासी के युद्ध के मैदान में हुआ था वह शायद नहीं होता |
भारत में ब्रिटिश शासन का बीजारोपण जहांगीर के दरबार में सर टामस रो के आगमन से माना जा सकता है प्लासी के युद्ध के बाद उसका रक्तिम शुरुआत हुआ प्लासी तक भारत में विदेशी प्रभुत्व की उर्वरा भूमि तैयार हो चुकी थी
ब्रिटिश उपनिवेशवादी सत्ता के हाथ में श्रेष्ठ रण कौशल ,बेहतर संगठन क्षमता, उन्नत टेक्नोलॉजी और भारी तोपों से अधिक खतरनाक हथियार था फूट डालो और राज करो का सिद्धांत |
सामाजिक एकता का अभाव ब्रिटिश शासन की जड़े मजबूत करता रहा हम गुलाम क्यों बने ? काबुल - कंधार से लेकर विन्ध्य के उस पास तक फैले 6 लाख जुझारू सेना वाले मौर्य शासन का धीरे धीरे पतन क्यों हो गया ? शक्तिशाली विशाल मुगल सल्तनत क्यों टूटती चली गई ? आज की इन शंकाओ का उत्तर इन प्रश्नों से मिलता है गहरी जड़ो वाली लोकतांत्रिक भारत में बहुसंख्यको के हाथ से सत्ता छीन जाने की आशंका क्यों पैदा की जा रही है ?
सोवियत संघ और युगोस्लाविया खंड खंड हो गये पाकिस्तान और सूडान टूट गए अफगानिस्तान , ईराक और सीरिया में आज भी कई प्रभुसत्ताये है इनमे कही पर लोकतंत्र रहा ही नहीं है
1906 से 1947 तक पूर्वी बंगाल के लोगों ने पाकिस्तान बनाने की मुहीम में पश्चिम के पंजाबियों , सिंधियो , पख्पतुनियो और बलूचियो के मुकाबले कहीं ज्यादा बड़ी भूमिका अदा की भारत में जब तक बहुलतावादी , सर्वानुमति पर आधारित लोकतंत्र रहेगा एकता और अखंडता पर कोई आंच नहीं आ सकती और इस सनातन राष्ट्र की सनातनता अक्षुण्ण बनी रहेगी...........





