दुनिया में सच्चा धर्म कौन सा है ?

 




 दुनिया में सच्चा धर्म कौन सा है ?  

आज देश के साथ दुनिया भर में लड़ाई झगड़े केवल धर्म को लेकर हो रहे हैं हिंदू मुस्लिम के साथ तो अन्य भी आपस में ही लड़ रहे हैं एक आंकड़े के अनुसार लगभग 95% झगड़े धर्म को लेकर ही होते हैं चाहे वो डायरेक्ट या इंडाइरेक्ट रूप से | 

धर्म क्या है अगर धर्म है तो फिर सच्चा धर्म कौन सा है ? 

धर्म शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के  " धृ " से मानी जाती है जिसका अर्थ होता है धारण करना अर्थात जो कुछ भी धारणीय है वह धर्म होता है व्यापक अर्थों में धर्म का आशय कर्तव्य पालन से है

धार्मिक ग्रंथों में मनुष्य को उसके धर्म के पालन करने पर अर्थात नैतिक कर्तव्यों का पालन करने पर फोकस किया जाता है 



धर्म शब्द को इंग्लिश के  " रिलिजन " के समानार्थी भी माना जाता है यह  " रि " और " लीजन " से मिलकर बना है  जिसमें रि शब्द का मतलब होता है दोबारा और लीजन का मतलब होता है बधना से है अर्थात रिलिजन का पूरा अर्थ होता है दोबारा बधना अर्थात आत्मा का परमात्मा से जुड़ने के रूप में देखा गया है

कुछ समाज शास्त्रियों जैसे पार्सनस और दुर्खीम आदिनो ने कहा है कि अलग अलग समाज में मनुष्य का जीवन व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए कुछ विश्वास  कर्मकांड और संस्थाएँ बनाई गई है जिनके सम्मिलित रूप को धर्म कहा जाता है इस प्रकार धर्म एक व्यापक अभिवृति है 



सच्चा धर्म किसे कहे : हम किन आधारों पर इस बात को कहे कि हमारा धर्म सच्चा है अथवा नहीं है अगर धर्मों के इतिहास पर नजर डालें तो पाएंगे कि संसार के सभी स्थापित धर्म के प्रमुखों या संस्थापकों ने कभी यह नहीं कहा कि अन्य धर्म गलत है और हमारा धर्म ही सच्चा है 

उन्होंने अपने अनुयायियों से कभी नहीं कहा कि दूसरे धर्मों का सम्मान मत करो या दूसरे धर्मों के मानने वालों के साथ कठोरता का व्यवहार करो 



उदाहरण के रूप में बौध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध ने कभी भी यह नहीं कहा कि दूसरे धर्म सच्चे नहीं है और केवल धम्म ही सच्चा धर्म है इन्होने तथा अन्य भारतीय धार्मिक विद्वानों ने लगातार यही कहा कि मनुष्य को अपना ध्यान जन्म मरण के चक्र से बाहर आने पर लगाना चाहिए

इन विद्वानों ने बताया कि सच्चे धर्म का मार्ग वास्तव में सदाचरण (good conduct ) , अपरिग्रह ( imperfection ) और संयम (moderation ) का है और इसी का पालन करके अपने दुखों से छुटकारा पाना है हमे |



सिख धर्म के आदि प्रवर्तक संत गुरु नानक देव जी ने भी यही संदेश दिया है कि मनुष्य को सत्य और मानवता जैसे श्रेष्ठ गुणों का पालन करना चाहिए इस्लाम धर्म के पैगंबर मोहम्मद साहब और ईसाई धर्म प्रवर्तक ईसा मसीह ने भी अन्य धर्म के प्रमुखों की तरह ही शांति के साथ रहने पर बल दिया है

 इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि संसार के सभी धर्म शांति , समानता, सज्जनता आदि गुणों को मनुष्य और उसके समाज में विकसित करने और उससे भिन्न विश्वासों को मानने वालों के साथ सामंजस्यपूर्ण रहने पर ज़ोर देती है

अर्थात प्रत्येक धर्म मनुष्य को क्रोध,  अहंकार,  हिंसा आदि अवगुण नही सिखाता  और इसका हमेशा यही प्रयास होता है कि मनुष्य बुराइयों से हमेशा दूर रहे इन अर्थों में सच्चा धर्म वास्तव में उच्च नैतिक मूल्यों को ही प्रदर्शित करता है |



धर्म का गलत उपयोग हो सकता है ? 

तो सबसे अच्छी और सबसे बड़ी बात की धर्म का गलत उपयोग कभी नहीं होता है क्योंकि धर्म का उद्देश्य मानव समाज में नैतिकता या सदाचार की स्थापना करना ही है धर्म के बारे में कुछ उपयुक्त विशेषताओ से कई बातें स्पष्ट होती है कि धर्म मूलत: नैतिक आचरण है अर्थात धर्म का पालन करना वास्तव में मनुष्य द्वारा नैतिक एंव मानवीय गुणों जैसे :- दया , क्षमा , तप , त्याग , मनोबल , सत्य निष्ठा , सुबुधि , शील , पराक्रम , नम्रता , कर्तव्यनिष्ठा , मर्यादा , सेवा, विवेक , धैर्य , इत्यादि का पालन करना ही धर्म होता है 

ये सभी गुण मनुष्य में जन्म के साथ उत्पन्न नहीं होते है क्योकि जन्म के समय मनुष्य कोरा अर्थात खाली हाथ होता है और ये सभी गुण मनुष्य में धर्म के पालन के कारण ही विकसित होते है 

धर्म की छत्रछाया में इन गुणों का लगातार विकास होता है इसलिए कहा गया है की मनुष्य सिर्फ अपनी मानवाकृति के कारण मनुष्य नहीं कहलाता , बल्कि इन गुणों से वास्तविक मनुष्य बनता है



इन गुणों के आधार पर ही मनुष्यों और पशुओं में अंतर किया जाता है पशुओं के गुण उनके जैविक गुण है नैतिक नहीं ,  पशु गुण अर्जित नहीं करते जबकि मनुष्य का पूरा जीवन गुणों को प्राप्त करने में लग जाता है

 धर्म की परिभाषा से यही बात स्पष्ट होती है की अगर हम एक बार भौतिकवादी सुखों और मोह माया को छोड़ दें तो धर्म का शेष स्वरूप नैतिक आचरण का ही होता है और इसका यही अर्थ निकलता है कि धर्म का नैतिक आचरण के साथ बेहद निकटता का संबंध है 

ऐसे में धर्म का गलत इस्तेमाल किया जाना संभव नहीं हो सकता क्योंकि धर्म नैतिकता को छोड़ अनैतिकता का या अवगुणों का साथ कभी नहीं दे सकती है 

धर्म द्वारा बताये गए मूल्यों का अर्जन , संप्रदाय द्वारा बताये गए वैकल्पिक मार्ग का अनुसरण करके संभव होता है 



आमतौर पर धर्म को संप्रदाय से जोड़ दिया गया है धर्म , व्यक्ति और व्यष्टि के मध्य में तादात्म्य (identification) की फल श्रुति है जबकि व्यक्ति और समाज के मध्य का संबंध सम्प्रदाय के माध्यम से विकसित होता है संप्रदाय बताता है कि हमारा सामाजिक जीवन किस प्रकार का होना चाहिए और हमें किन विशेष मूल्यों का पालन करना चाहिए सम्प्रदाय सामाजिक जीवन के लिए अच्छे व बुरे के बीच भेद करके कुछ को स्वीकारने और कुछ को अस्वीकारने के क्रम में वह विशेष समुदायो का निर्माण और विकास करता है 

इसका एक अर्थ यह निकलता है की अगर हम धर्म को मूल की एक व्याख्या के रूप में देखते है तो संप्रदाय उन मूल्यों तक पहुचने का रास्ता हमे उपलब्ध कराता है अर्थात धर्म अगर साध्य है तो संप्रदाय एक साधन है धर्म द्वारा बताये गए मूल्यों का अर्जन संप्रदाय द्वारा बताये गए वैकल्पिक मार्ग का अनुशरण करके संभव होता है


इसे एक उदाहरण से समझा जाए जैसे बौध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध ने मानव कल्याण के लिए मोक्ष सहित कुछ अन्य मूल्यों के बारे में शिक्षा दी है लेकिन समय समय पर उनकी शिक्षाओं की व्याख्या को लेकर कुछ सम्प्रदाय विकसित हो गए हैं इन संप्रदायों में हीनयान और महायान प्रमुख हैं और इनमे मोक्ष के स्वरूप को लेकर मतभेद हैं

ऐसे में यह कहना कठिन हो जाता है कि कौन सा मत और संप्रदाय धर्म विशेष का सही से प्रस्तुतिकरण कर रहा है 

एक खास संप्रदाय को मानने वाले लोग अपनी बात को ही सही समझते हैं और दूसरे संप्रदाय को लगातार दोषी ठहराते हैं ऐसे में तथ्यों का दुरुपयोग संप्रदाय द्वारा किया जाता है ना कि धर्म के द्वारा |

धर्म के द्वारा बताये गए मूल्यों को हासिल करने के लिए संप्रदाय अपने मार्गों को श्रेष्ठ बताती है इसके कारण से परस्पर एक होड़ का विकास होने लगता है और वे आगे रहने या अपने अनुयायियों की संख्या बढ़ाने के लिए या तो शुद्धतावादी आग्रह या फिर समय के अनुसार परिवर्तन करने लगते हैं

इससे समाज में तनाव बढ़ता है और इससे स्पष्ट है कि धर्म का सम्प्रदाय से कृत्रिम संबंध है और समाज में तनाव का कारण सम्प्रदाय होते है ना की धर्म |

 इसलिए संप्रदाय से हुई गलतियों के लिए धर्म को दोषी ठहराना सही नहीं होता है यह संभव है कि एक सम्प्रदाय नफरत और हिंसा का समर्थक हो लेकिन इसका यह अर्थ नहीं निकलता है कि वह धर्म का उचित प्रतिनिधित्व भी कर रहा है क्योंकि कोई भी धर्म अपने मूल सिद्धांतों में हिंसा , अन्याय और असमानता के विरोध में ही होता है



कई विद्वानों और मनीषियों का मानना है कि मनुष्य महत्वाकांक्षी होता है और उसकी यही आकांक्षा होती है कि उसे बाकी लोगों की तुलना में ज्यादा महत्त्व मिले मनुष्य समझता है कि किसी वस्तु पर उसका अधिकार अन्य लोगों से इसलिए ज्यादा है क्योकि उसके पास खास गुण है या ऐसे गुणों का आधिक्य है जिनकी अन्य लोगो में न के बराबर है वह अपनी इस समझ के कारण बाकी लोगो से महत्व पाने की इच्छा रखता है 

इससे समस्या तब आती है जब उसके पास अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने का कोई सही मार्ग नहीं दिखाई पड़ता तो वह दूसरे मार्ग की तलाश करता है ताकि उसकी आकांक्षाओं को समाज की स्वीकृति मिल सके

ऐसे में उसके पास एक सरल रास्ता धर्म के इस्तेमाल का होता है वह जिन गलत रास्तों का अनुसरण कर रहा है उन्हें इसलिए सही मान लेना चाहिए क्योंकि उसका धार्मिक झुकाव दूसरों से कहीं ज्यादा है और वह यह दिखाने का प्रयास करता है कि धर्म के प्रति जितनी श्रद्धा उसमें है उतनी दूसरों में नहीं है 

इस क्रम में वह धर्म के मूल सिद्धांतों का पालन करने के स्थान पर कठोर संप्रदाय की शिक्षाओं का पालन करते हुए दिखता है ऐसा करके वह वास्तव में धर्म के वास्तविक स्वरूप पर पर्दा डालने का प्रयास करता है और धर्म की प्रतिष्ठा को ही नुकसान पहुचाता है



इस बात को इतिहास के पन्नों में दर्ज घटनाओं में भी देखा जा सकता है कि जिन शासकों को सत्ता सीधे तौर पर नहीं मिली या वे तत्कालीन परंपरा के अनुसार सत्ता पाने के उचित हकदार नहीं थे उन्होंने स्वयं को धार्मिक व्यक्ति घोषित किया और धर्म की आड़ लेकर सत्ता पाने का औचित्य सिद्ध करने का प्रयास किया

 यह प्रवृति युगों से चली आ रही है आधुनिक युग में धर्म को लेकर फैलाए जा रहे आतंकवाद की जड़ में भी यही बात है कि कुछ महत्वाकांक्षी लोगों का समूह सत्ता पाने के सही तरीके पर अमल नहीं करके यह कहकर हथियार उठा लेता है 

कि वह वास्तव में धर्म की रक्षा कर रहा है और उसकी भूमिका धर्म रक्षक की है  इसका दूसरा चरण यह होता है की जब ऐसा व्यक्ति सत्ता पा लेता है और माहौल को अपने हिसाब से कर लेता है  तो वह अपनी धर्म रक्षा की पूर्ववर्ती भूमिका से किनारा कर लेता है वह अब स्वयं को इस भार से अलग कर लेता है कि धर्म की रक्षा का दायित्व उसने उठा रखा है 

यह संभव है कि इस प्रक्रिया में क्षण भर अवश्य लगे की धर्म का दुरुपयोग हो रहा है लेकिन ऐसा नहीं होता है यह भ्रम अवश्य उत्पन्न हो सकता है की धर्म का दुरुपयोग किया जा रहा है लेकिन समय यह सिद्ध कर देता है कि ऐसा केवल व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के कारण प्रतीक हो रहा था और धर्म का गलत उपयोग कभी संभव नहीं है

वास्तव में धर्म बाहर की वस्तु नहीं है यह दरअसल मनुष्य के अंदर का विकास है धर्म मनुष्य को सही तरीके से जीवन जीने के लिए सहायता प्रदान करता है समस्त संसार के जीवों में केवल मनुष्य ही है जिसने धर्म का निर्माण किया है और कई प्रकार के धर्मों को भी स्वीकार किया 

धर्म का निर्माण या विश्वासों की संस्था का निर्माण उसके मनुष्य होने का सबसे बड़ा उदाहरण है 



धर्म का मूल मनुष्येतर प्राणियों अर्थात् ( मनुष्य +जानवर ) की तरह जैविक नहीं है बल्कि यह अभ्यांतारिक अर्थात अभ्यास पर निर्भर करता है और इसे समय की कसौटी पर कसने के बाद ही स्वीकारा गया है

ये विश्वास मनुष्य के अनुभवों के परिणामस्वरूप विकसित हुए हैं इसलिए वे जैविक या पारलौकिक नहीं है यहाँ पारलौकिक का अर्थ परिवर्तन की छाया से मुक्त रखने और नियमों को न तोड़ने के लिए विकसित हुआ

इससे यह बात स्पष्ट होती है कि धर्म स्थाई भाव है क्योकि मानव मात्र के कल्याण के लिए बने नियम शाश्वत है इनमे प्रेम , सत्य , अहिंसा , समानता जैसे अपरिवर्तनीय तत्व सम्मिलित है जो धर्म परिस्थिति के अनुसार उपरोक्त मूल्यों से समझौता कर लेता है वह सच्चा धर्म नहीं है इस कारण जो सच्चा धर्म होगा उसका दुरुपयोग संभव नहीं होगा 

क्योकि मनुष्य की आत्मा के विकास के लिए तय की गई बाते बदली नहीं जा सकती है मनुष्य में मनुष्यता विकसित करने के कारण ही इन गुणों का सभी धर्मो में उल्लेख किया गया है इसलिए हमेशा यही कहा जाता है की धर्मं का पालन करो ........................ 



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3 टिप्पणियाँ

  1. माफ़ करिए गा भाई जान हमारे यहां तो हिन्दू का मतलब मुस्लिम की बुराई करना और मुस्लिम धर्म का मतलब हिन्दू धर्म की बुराई करना लोग समझते है ऐसे में सच्चा धर्म के बारे में कट्टर लोग क्या जाने औए इससे भी बड़े अंध भक्त बने पड़े है जो सुनते कुछ और है करते कुछ और है और कहते कुछ और है इसलिए ना धर्म को मानो और न ही इन विवादों में पड़ो जय हिंद जय भारत यही सबसे बड़ा और सच्चा धर्म है

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  2. ye to sach baat hai ki itni acchi baat koi nahi batayega iske liye apko bro dhanywad

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  3. jb logo ka pet bhara rahta to logo ko dharm ki yaad aati hai unse pucho ki dharm kiya hota hai jo ek ek dane ke liye mare ja rahe hai unke liye kaun sa dharm saccha hota hai ? ek dusre ki madad karna ye kya hai ? keval mandir masjid me jakar so kar lena hi sachi dharm ki parihbasha bana di gai hai yaad kariye us samy ko jan na to mandir tha masjid to baad me aai hai to log kaise dharm ka palan karte the ? ye sab dikhawa hai aur kuch nahi

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