22 मार्च का वो काला दिन : नादिरशाह vs दिल्ली सल्तनत

 


22 मार्च का वो काला दिन : नादिरशाह vs दिल्ली सल्तनत  

1. दिल्ली सल्तनत के तहत मुगल बादशाह मुहम्मद शाह के समय और पूरे मुग़ल वंश के इतिहास की सबसे बड़ी दुखद घटना मानी जाती है दिल्ली पर नादिर शाह का हमला 

2. वर्ष 1738-39 में फारस ( आज का ईरान ) के शाह नादिरशाह ने मुगल साम्राज्य पर हमला कर दिया और इसमें नादिर शाह को पूरी सफलता भी मिली इसने दिल्ली और लाहौर को जीतकर पूरी तरह तबाह कर दिया

3. आप सभी को जानकर हैरानी होगी कि वर्ष 1739 तक मुगल सल्तनत की गिनती एशिया महाद्वीप की सबसे अमीर सल्तनतों में होती थी तब मुगल साम्राज्य में देखा जाये तो आज का पूरा भारत देश, पूरा पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान देश शामिल होता था

4. इस पूरे इलाके पर मुगल दरबार जो की आपसी गुटबाजी , भीतरघात और आपसी रंजिशो का शिकार था और उस समय मोहम्मद शाह की हुकूमत थी

5. मोहम्मद शाह को उसके रसिक मिजाज और वारंगनाओ की संगति के कारण से रंगीला बादशाह भी कहा जाता था ऐसे में उसमे योद्धा के गुण को छोड़कर सब गुण थे



  नादिरशाह कौन था :-  

1. मोहम्मद शाह के वक्त का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा क्योकि तब के हिंदुस्तान के उत्तर पश्चिमी सीमा पर फारस में एक जंगबाज नादिर शाह बादशाह बना था जो एक गरीब चरवाहे का बेटा था और सबसे बड़ी बाते ये थी कि नादिरशाह ने फौज में सिपाही के रूप में अपनी जिंदगी की शुरूआत की थी इसका पूरा नाम नादिर कुली था जो कि अफ्शार कबीले का था 

2. इसने वर्ष 1736 में नादिर शाह के नाम से फारस का सुल्तान बना और 10 मई 1738 को इसने अफगानिस्तान को जीत लिए इसके बाद 06 नवंबर 1738 को भारत की ओर बढ़ा

3. इसके बाद 13 फरवरी 1739 को इसने दिल्ली से लगभग 75 मील की दुरी पर  उत्तर में स्थित करनाल (आज के हरियाणा ) में अपनी बंदूकधारी हथियार बंद करीब 1.5 लाख सिपाहियों की फौज के दम पर मुगलों की 10 लाख की सेना को पराजित कर दिया 

4. इस संयुक्त मुगल की फौज में दिल्ली के मुगल बादशाह, अवध के सआदत खान और दक्कन के निजाम-उल-मुल्क के सैनिक भी थे 



5. इस पराजय से यह बात तय हो गई थी कि मुगलों की यह भारी भरकम फौज एक अनुशासनहीन भीड़ के अलावा कुछ और नहीं था

6. नेहरू जी ने " हिंदुस्तान की कहानी " पुस्तक में लिखा है कि नादिरशाह के लिए यह हमला कोई मुश्किल काम नहीं था क्योंकि दिल्ली के सुल्तान कमजोर और नामर्द साबित हो चुके थे और ये अब लड़ाई नहीं लड़ता चाहते थे और मराठों से नादिरशाह का सामना कभी नहीं हुआ

7. बताया तो यह भी जाता है कि मराठा पेशवा बाजीराव प्रथम ने मुगलों को सहायता देने के इरादे से एक सैन्य अभियान शुरू किया था करनाल की लड़ाई में हारने के एक सप्ताह बाद मोहम्मद शाह ईरानी हमलावर नादिरशाह के साथ दिल्ली आया 

8. नादिर शाह का काफिला शालीमार बाग में ही रुका था जबकि मोहम्मद शाह 20 मार्च को लाल किले में खामोशी से पहुंचकर गद्दी पर बैठ गया तो वहीं विजेता ईरानी बादशाह नादिरशाह 21 मार्च ( नौरोज के दिन ) जीत के जश्न के साथ किले में दाखिल हुआ 

9. सबसे बड़ी बात ये थी कि एक तरफ जहा लाल किला में नादिरशाह शाहजहां के महल में ठहरा जबकि मोहम्मद शाह को जनान खाने में जगह मिली


 22 मार्च की वो घटना :-   

1. 22 मार्च का दिन दिल्ली के इतिहास का सबसे बड़ा काला दिन है हुआ ये था कि नादिरशाह की फौज दिल्ली शहर में रुकी हुई थी जिसके कारण से इस इलाके की राशन के सभी सामान महंगी हो गई थी

2. ऐसे में ईरानी सैनिको और पहाड़गंज के व्यापारियों में अनाज के दाम कम करने को लेकर बहस हो गई और इसी बीच किसी ने अफवाह फैला दी कि उसकी सेना के कुछ जवानों ने ही नादिरशाह को मार दिया

3. फिर क्या था सेना में भगदड़ मच गई और हुआ यह कि एक दिन में ही 1000 से अधिक सेना के जवान आपस में लड़कर मर गए इसके बाद नादिरशाह के आदेश पर सेनाओं ने जो हाल दिल्ली की जनता का किया कि अकेले एक दिन में ही लगभग 30000 आम नागरिकों को गाजर - मूली की तरह से काट दिया गया 

4. यह घटना दिल्ली के चांदनी चौक, दरीबा और जामा मस्जिद के आसपास ज्यादा हुई थी मिली जानकारी के अनुसार आदमियों के गले खीरे - ककड़ियो की तरह कटे थे और लगभग एक लाख लोगों के गले काट लिए गए 

5. रुकने का एक कारण यह बना की निजाम - उल- मुल्क ने निवेदन किया नादिरशाह से लेकिन एक शर्त पर समझौता हुआ शर्त तो यह थी कि निजाम - उल- मुल्क नादिरशाह को 100 करोड रुपए देंगे यह 100 करोड़ वर्ष 1739 के हिसाब से देखा जाए तो आज के समय में कई लाख करोड रुपए से भी अधिक होगा

6. इस बारे में आगे जानकारी मिलती है कि 348 साल की अर्जित संपत्ति का मालिक कुछ ही क्षणों में ही बदल गया नादिरशाह दिल्ली के साथ-साथ पूरे भारत में करीब 57 दिन तक रुका था इन 57 दिनों में प्रतिदिन 1000, 2000 लोग इसकी प्रताड़ना को झेलते थे



7. मोहम्मद शाह को नीचा दिखाने के लिए अपने पुत्र को दिल्ली में बादशाह घोषित किया और पुत्र नसरुल्लाह का विवाह औरंगजेब के पुत्र अजिजुद्दीन की बेटी से किया 

8. जबकि इसके पहले ही मोहम्मद शाह ने अपनी जान -मान, सम्मान बचाने के लिए ही कोहिनूर हीरे और अन्य हीरे जेवरात नादिरशाह को दे चुका था

9. जैसा कि आपको शुरू में ही यह बताया गया है कि मोहम्मद शाह कमजोर प्रवृति का इंसान था उसे हमेशा बुखार रहता था एक दिन पालकी में किले के अंदर की मस्जिद में ही वह बेहोश हो गया था कुछ ठीक हुआ तो उसे लकवा मार गया उसके बाद तो आवाज ही चली गई रात भर बेहोश रहा और 15 अप्रैल 1748 को सुबह उसकी मृत्यु हो गई

10. इतिहासकारों के अनुसार जब्त किये गए कीमती सामानों में तख़्त - ए - ताउस के शाही रत्नों का कोई मुकाबला नहीं था , पुखराज , माणिक्य और सबसे शानदार हीरे जिनका अतीत और वर्तमान में भी किसी भी खजाने से तुलना संभव नहीं है 

11. दिल्ली में खौफनाक 57 दिन रहने के बाद 16 मई 1739 को नादिरशाह दिल्ली से विदा हुआ और उसके साथ विदाई हुई मुग़ल सल्तनत की 8 पुश्तो की अकूत संपत्ति और खजाने जिसमे 700 हाथिया , 4000 ऊँट और 12000 घोड़ी की मदद से अनेक गाडिया जो कि सोने - चांदी और कीमती रत्नों से भरी थी इन सभी पर लादे गये थे 



  नादिर का अंत कैसे हुआ :- 

1. मिली जानकारी के अनुसार जितना परचम इसने अपने जीवन के शुरुआत में लहराया था जैसे इसने कई देशो को ही जीत लिया था लेकिन इसकी मौत उतनी ही दर्दनाक भरी हुई थी जैसे 1743 से 46 तक यह तुर्कों के साथ युद्ध के संघर्ष में लिप्त रहा

2. सबसे बड़ी कमी ये थी कि यह संदेह बहुत की अधिक करता था बाकी लालची तो शुरू से ही था और अपने मौत को लेकर इतना डरा हुआ था कि वर्ष 1747 में हुए सैन्य विद्रोह में अपने बेटे को ही अँधा करा दिया 

3. और हुआ भी वही जिसका डर इसको पुरे जीवन भर थी और अंत में मारा गया अपने ही अंगरक्षकों के द्वारा |

4. इसने ईरान में एक अफसार की नीव रखी थी लेकिन बहुत आगे तो नहीं बढ़ा सका लेकिन इसके बाद भी नादिर शाह की गिनती आज भी ईरान में एक महान शासको के रूप में की जाती है ......................



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