चर्चा :- देशभर के साथ साथ पूरी दुनिया में न्याय व्यवस्था और इसके कारण से होने वाले नुक्सान को लेकर काफी चर्चा हो रही है ऐसे हमे भारत देश की न्याय व्यवस्था को भी समझना होगा
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और आज ऐसी बाते क्यों की जा रही ही की " देश की अर्थव्यवस्था में कैसे बाधक है सुस्त न्याय व्यवस्था " क्योकि इस मुद्दे पर कोई खुलकर तो बात नहीं करता है लेकिन समस्या कोई छोटी मोटी नहीं है ऐसे में हमे इसके बारे में विस्तार से जानना ही होगा


अर्थव्यवस्था में कैसे बाधक है सुस्त न्याय व्यवस्था:-
1. वर्ष 2019 की World justic project की रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में इंग्लैंड को 12 वा स्थान ,सिंगापुर को 13 वा स्थान और अमेरिका देश को 20 वा स्थान मिला था आप सभी इन देशो की अर्थव्यवस्था को ध्यान दे तो ये तीनो ही देश विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश माने जाते है
2.जबकि इसी रिपोर्ट में भारत देश को 68 वा स्थान वही वर्ष 2018 में भारत का स्थान 65 था और पड़ोसी देश पाकिस्तान का स्थान 117 वा है
3. इसी तरह वर्ष 2023 की World justic project रिपोर्ट को देखा जाये तो डेनमार्क देश को पहला स्थान मिला है और सबसे ख़राब स्थान वेनेजुएला देश (142 वा) स्थान मिला हुआ है और इसी वर्ष भारत का स्थान 79 मिला
भारतीय न्यायपालिका :-
1. मिली जानकारी के अनुसार वर्ष 2006 में कुल जजों के 15% पद खाली थे ,वर्ष 2015 में ये बढ़कर 37% हो गया और वर्ष 2019 में खाली पदों की संख्या 42% हो गई और आज भी देशभर में जजों के कुल 30% पद खाली पड़े हुए है2. इतने बड़े देश में आज भी केवल 1 सुप्रीम कोर्ट , 25 उच्च न्यायलय और देशभर में कुल 740 जिलों को मिलाकर 688 जिला कोर्ट कार्य कर रहे है जबकि आज भारत में 28 राज्य और 8 केंद्रशासित प्रदेश है अगर सभी राज्यों में एक एक ही उच्च न्यायलय की स्थापना की जाए तो भी 36 कोर्ट होने ही चाहिए और जिन राज्यों का क्षेत्रफल अधिक या आबादी अधिक है उन राज्यों में एक से अधिक कोर्ट के बेंच होने ही चाहिए
समस्या :-
1. वर्ष 2018 के बजट में भारतीय न्यायपालिका को कुल 4386 करोड़ रूपये जारी किये गए थे तो वही वर्ष 2019 के बजट सत्र में इसको घटाकर 3055 करोड़ रुपये कर दिया गया वर्ष 2024 के वित्त वर्षं ई-कोर्ट के लिए अकेले ही 7000 करोड़ रूपये का आवंटन किया गया है
2. आप सभी को जानकारी होनी ही चाहिए की भारतीय सुप्रीम कोर्ट में वर्ष के 365 दिनों में से मात्र 190 दिन ही कार्य दिवस के रूप में माना जाता है , भारत के सभी राज्यों के उच्च न्यायलयो में ये सख्या बढकर 232 दिन हो जाती है और देशभर के सभी जिला कोर्ट में कुल कार्य दिवसों की संख्या 244 हो जाती है इस तरह से आप गणना करे तो प्रतिवर्ष सुप्रीम कोर्ट 175 दिन , उच्च न्यायलय 133 दिन और जिला कोर्ट 121 दिन कम से कम बंद ही रहते हैRead More - एनकाउंटर का सच
3. जैसे गर्मी के महीनो में लगातार 2 महीने तक सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय पूरी तरह से बंद रहते है जबकि देश भर के अन्य सभी संस्थान हमेशा की तरह खुले रहते ही ऐसे में काम का बोझ तो बढ़ेगा ही जबकि इस छुट्टी का कोई मतलब नहीं होता है हा समय में बदलाव जरुर किया जा सकता है लेकिन पूरी तरह 2 माह तक बंद करना किसी भी तरीके से सही नहीं है क्योकि इतने बड़े देश में अगर न्याय व्यवस्था ही अपने आँखे बंद कर लेंगी तो फिर नागरिको के अधिकारों को सुरक्षा कौन देगा
4. सबसे बड़ी समस्या तो ये देखी जाती है की जजों और वकीलों के बीच में तालमेल की कमी जैसे वकील प्रति सुनवाई के हिसाब से अपनी फ़ीस के नाम पर मोटा पैसा लेते है ( लम्बा समय , लंबा फ़ीस ) इसके साथ ही मामले को लम्बा खीचना कभी कभी कुछ लोगो का स्वार्थ भी होता है
5. भारतीय न्यायपलिका में भी काफी तेजी से न्याय देने के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा जैसे आज टेक्नोलॉजी के कारण से ही कही से भी किसी केस की सुनवाई पूरी की जा सकती है लेकिन अभी भी कई समस्या आ रही है जिसको दूर करने में काफी लम्बा समय लगेगा
6. जैसे NGT ( राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ) के नियम के अनुसार कानून में यह प्रावधन है की निर्णय 6 माह के अंदर दिया जाएगा लेकिन आज भी कम से कम 4 से 5 साल का समय लग रहा है और अधिकतम समय सीमा तो कोई भी नहीं है
7. जैसे हर क्षेत्रो का समय समय पर मूल्यांकन किया जाता है ऐसे ही न्याय व्यवस्था का भी मुल्यांकन किया जाये
3. जैसे गर्मी के महीनो में लगातार 2 महीने तक सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय पूरी तरह से बंद रहते है जबकि देश भर के अन्य सभी संस्थान हमेशा की तरह खुले रहते ही ऐसे में काम का बोझ तो बढ़ेगा ही जबकि इस छुट्टी का कोई मतलब नहीं होता है हा समय में बदलाव जरुर किया जा सकता है लेकिन पूरी तरह 2 माह तक बंद करना किसी भी तरीके से सही नहीं है क्योकि इतने बड़े देश में अगर न्याय व्यवस्था ही अपने आँखे बंद कर लेंगी तो फिर नागरिको के अधिकारों को सुरक्षा कौन देगा
4. सबसे बड़ी समस्या तो ये देखी जाती है की जजों और वकीलों के बीच में तालमेल की कमी जैसे वकील प्रति सुनवाई के हिसाब से अपनी फ़ीस के नाम पर मोटा पैसा लेते है ( लम्बा समय , लंबा फ़ीस ) इसके साथ ही मामले को लम्बा खीचना कभी कभी कुछ लोगो का स्वार्थ भी होता है
5. भारतीय न्यायपलिका में भी काफी तेजी से न्याय देने के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा जैसे आज टेक्नोलॉजी के कारण से ही कही से भी किसी केस की सुनवाई पूरी की जा सकती है लेकिन अभी भी कई समस्या आ रही है जिसको दूर करने में काफी लम्बा समय लगेगा
6. जैसे NGT ( राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ) के नियम के अनुसार कानून में यह प्रावधन है की निर्णय 6 माह के अंदर दिया जाएगा लेकिन आज भी कम से कम 4 से 5 साल का समय लग रहा है और अधिकतम समय सीमा तो कोई भी नहीं है
7. जैसे हर क्षेत्रो का समय समय पर मूल्यांकन किया जाता है ऐसे ही न्याय व्यवस्था का भी मुल्यांकन किया जाये
महत्वपूर्ण तथ्य : -
1. जैसे किसी फैक्ट्री की भूमि को लेकर विवाद हो जाये और फैसला 25 वर्ष के बाद आये तो इसके बीच इस जमीन का कोई इस्तेमाल नहीं हुआ और इससे देश की अर्थव्यवस्था पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है
2. विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार न्याय में देरी होने के कारण से देश की विकास गति में कम से कम 0.5 % की कमी हो जाती है3. इसके साथ ही समय अधिक लगने के कारण से अपराध होने की दर में वृद्धि होना
4. जैसे सिंगापुर में वर्ष 1990 में किसी फैसले को आने में कम से कम 6 वर्ष का समय लगता था लेकिन काफी सुधार के बाद इस देश में 1999 के बाद से अब किसी भी फैसले को करने में अधिकतम 1 वर्ष का समय तय कर दिया गया इसके बाद तो इस देश ने कितना विकास किया आज किसी से छिपा नहीं है
5. जैसे अमेरिका देश में एक केस आया था की पढ़ाई करते समय मकान मालिक से विवाद हो गया और मात्र 20 दिनों में ही इसका फैसला आ गया ऐसे में इतनी तेजी से न्याय होने के कारण से समाज में अपराध करने या कोई गलत कदम उठाने से पहले व्यक्ति कई बार उसके बारे में सोचता है
6. सबसे अधिक नुक्सान विदेशी निवेश का होता है क्योकि विदेशी निवेश उसी देश में सबसे अधिक आता है जिस देश में न्याय व्यवस्था सबसे अच्छी होती है विकसित देशो को सबसे बड़ी पहचान न्याय व्यवस्था से ही होती है जैसे अमेरिका में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट देश में सरकार से भी अधिक शक्तिशाली होती है तो वही भारत में कार्यपालिका और न्याय पालिका को एक समान अधिकार दिया गया है .......................
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