इस्लाम धर्म में कितनी पाबंदिया है ?


इस्लाम धर्म में कितनी पाबंदिया है ?

समय समय पर धर्मो को लेकर देश - दुनिया में चर्चा होती रहती है भारत देश में तो अक्सर ही कोई न कोई चर्चा धर्म को लेकर होती रहती है अक्सर चुनावी समय में तो इस पर काफी बहस की जाती है लेकिन आप ने कुछ ही दिन पहले एक काफी चर्चित मुद्दा के बारे में सुना और पढ़ा जरुर होगा की इस्लाम धर्म में महिलाओ और पुरुषो पर कितनी पाबंदिया लगाई गई है 



इसी तरह एक और मुद्दा इसी से जुड़ा हुआ था कुछ ही समय पहले जब भारतीय चर्चित संगीतकार ए आर रहमान की बेटी खतीजा रहमान के बुर्के या नकाब को लेकर कुछ विद्वानों ने आलोचना कर दी थी 

इस आलोचना के बाद खतीजा रहमान ने अपने ट्वीट में साफ संदेश दिया कि वह बुर्का अपनी इच्छा से पहनती है और उन्होंने आलोचकों से नारीवाद के बारे में भी जाने के लिए कहा 

खबर जब आग की तरफ फैली तो लोगों ने नारीवाद शब्द को गूगल पर सर्च किया और यहां पर एक प्रश्न उठा की क्या लोगों को इस्लाम धर्म के बारे में जानने के लिए अब गूगल का सहारा लेना पड़ेगा और इससे हमें क्या यह जानकारी मिलेगी कि पति की बात ना मानने पर पत्नी को मार खानी पड़ती है कैसे एक मुस्लिम पुरुष चार चार  शादिया आसानी से कर लेता है और संपत्तियों में लड़कियों को किस तरह से हिस्सेदारी नहीं दी जा रही और ऐसी कई घटनाएं जो आपको सुनने को मिलता है लेकिन आप धर्म के कारण कुछ नहीं कहना और सुनना चाहते है जबकि देश में महिला पुरुष समानता की बात हम बड़े ही जोरो सोरो से करते है की महिलाओ को भी वो सारे अधिकार मिले जो हजारो वर्षो से अकेले पुरुष समाज को मिला है 



जैसे खतीजा ने जिस प्रकार कहा कि बुर्का वह अपनी मर्जी से पहनती है तो इसका क्या यह अर्थ भी हुआ कि अन्य मुस्लिम लड़कियां बुर्का दूसरों की मर्जी से पहनती हैं ?

क्या उन्हें अपने माता-पिता, भाई - बहन , ससुराल या समाज के डर के कारण से यह नकाब पहनना पड़ता है  ? 

अब तो लड़कियों के कुछ स्कूलो में भी लड़कियों/महिलाओं को हिजाब पहनकर आने के लिए नियम भी बना दिया गया है 

ऐसे अनेको देश हैं जहां पर हिजाब को पहनने से आप मना नहीं कर सकते हैं और वहीं कुछ देश है जहां पर आप जींस , ट्राउजर भी नहीं पहन सकते हैं और गलती से अगर पहन भी लिया तो पुलिस सड़कों पर ही लड़कियों को खुलेआम कोड़े मारती है 

भारत देश में एक सबसे बड़ी बात यह है कि यहां पर कपड़ा पहनने के लिए कोई कठोर नियम नहीं है इसलिए ही खतीजा रहमान नकाब पहनने की अपनी इच्छा या आजादी के बारे में सार्वजनिक रूप से बात स्वीकार की क्या वह कभी उन लड़कियों के पास जाकर खड़ी हुई है जो नकाब नहीं पहनना चाहती है लेकिन आज भी समाज से , देश परिवार के दबाव में उन्हें यह नकाब पहनना पड़ता है 

वहीं सुरक्षा के कारण यूरोप के कई देशों में नकाब पहने पर रोक लगा दी गई है क्योंकि चोर,  डकैत ,जेल से भागे अपराधी , आतंकवादी और हत्यारे इस नकाब में छुपकर अपने लक्ष्य को आसानी से अंजाम देते थे इसी कारण से ही यह कदम उठाया गया था अभी कुछ वर्ष पहले ही तो श्रीलंका में हुए बम विस्फोट जिसमे जाँच में भी यही पाया गया की विस्फोट करने वाले ने नकाब पहन रखा था यूरोप में रोक लगने के बाद भी महिलाये कामों को करने के लिए लगातार नकाब पहन रही है ऐसे में तो सीधे सीधे एक पक्ष ही तो इसका लाभ उठा रहा है 



नमाज पढ़ने के लिए लगातार नई-नई मस्जिद बनाई जा रही है और अगर मस्जिदों में जगह नहीं मिली तो सार्वजनिक रास्ते बंद करके भी गाड़ियों को रोकर लोग नमाज पढ़ने की आजादी का लाभ उठा रहे हैं

आज के समय में नमाज न पढ़ने की आजादी बहुत ही कम रह गई है गांव में तो लोग घर-घर जाकर पता करने लगे हैं कि कौन नमाज पढ़ने नहीं गया और जो नमाज पढ़ने मस्जिद में नहीं गया उसका सामाजिक बहिष्कार भी कर दिया जाता है

इसके बाद रोजा रखने की आजादी का भी लोग भरपूर लाभ उठाते हैं लेकिन जो रोजा नहीं रखते चाहते हैं उन्हें घर से बाहर खाने पीने की आजादी हैं ? आज बांग्लादेश और पाकिस्तान में क्या हो रहा है ? 

मस्जिदों में मदरसों में इस्लाम का प्रचार हो रहा है सबसे बड़ी बात इन स्थानों पर कुरान और हदीस की मन मुताबिक व्याख्या लगातार लंबे समय से की जा रही है लाखो लोग सुन रहे हैं लेकिन इन लाखों लोगों में किसी के पास मजहब या धर्म की आलोचना करने का अधिकार क्या है ? आलोचना करने वाले जिंदा नहीं बचेंगे इसी कारण से कहा जा रहा है कि यह आजादी एक तरफा है

जो धार्मिक है उन्हें आजादी है लेकिन जो धार्मिक नहीं उन्हें धर्म की आलोचना करने की आजादी नहीं है वे अपना मुख्य बंद रखते हैं मुख खुलने पर वे जेल या समाज से बाहर कर दिए जाएंगे

इसके बाद भी वह नहीं सुधरा तो उसे मार तक दिया जा रहा है इससे तो यही निष्कर्ष निकलता है कि जो धर्म को नहीं मानते या उसका आलोचना करते हैं उन्हें वह आजादी नहीं है जो धार्मिक को दी गई है



खुद को इस्लाम का सच्चा सेवक कहने वाले की सच्चाई तो यह है कि इस्लाम की ज्यादातर नियमों का वह खुद ही पालन नहीं करते हैं सच बात तो यह कि वह रिश्वत लेते हैं,  शराब पीते हैं , झूठ बोलते हैं , हत्या करते हैं और बलात्कार में भी लिप्त रहते हैं सिर को हिजाब से ढक लेने ,टोपी पहन लेने और दाढ़ी बढ़ा लेने भर से कोई सच्चा मुसलमान नहीं बन जाता है

इस्लाम का अर्थ ही होता है ईश्वर के प्रति आत्म समर्पण होना और हम ईश्वर के सामने आत्म समर्पण होकर इन मौलवी को ही अल्लाह मानने लगते हैं सच्चा मुसलमान बनने के लिए इस्लाम धर्म के अनेक आदर्श बातों को मानना पड़ता है

कितने मुसलमान है पूरी दुनिया में जो इस नियम का पालन करते हैं ?

और लोग आज लेन देन ,खरीद बिक्री , मांग और उत्पत्ति के आधार पर निर्धारित करते हैं कि आप सच्चे मुसलमान हैं या नहीं जो की पूरी तरह से गलत है और उस व्यक्ति / महिला के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है 

और अभी हाल ही की खबर है कि बांग्लादेश में बाउल गीत गाने वाले एक कलाकार को जेल में डाल दिया गया उनका अपराध क्या है ?

अगर बंगलादेश अपने आप को भारत देश की तरह धर्मनिरपेक्ष या लोकतंत्र देश मानता है तो धर्म को मानने वाले और धर्म को न मानने वाले दोनों को समान आजादी मिलनी चाहिए

लोकतंत्र का क्या मतलब है कि किसी एक धर्म को उत्साहित करना उसकी तमाम मांगों और निर्देशों को मान लेना और अगर ऐसा नहीं है तो बांग्लादेश और पाकिस्तान में ऐसा क्यों हो रहा है ?

वहां पर बहुसंख्यक की बातें मानते हुए अल्पसंख्यकों की अपेक्षा लगातार क्यों की जा रही है क्या दोनों को ही एक समान दृष्टि से नहीं देखना चाहिए ? क्या यही इस्लाम धर्म हमें सिखाता भेदभाव करना ? 

और उल्टे धर्म की गलत व्याख्या की जाती है कुरान में अगर नाचने,  गाने,  बाजा बजाने , मनुष्य की तस्वीर बनाने की सचमुच रोक या पाबंदी है तो फिर क्या सभी जगह या पूरी दुनिया में जो लगभग 57 इस्लामिक देश है वहां पर इसका कड़ाई से पालन हो रहा है ? 



सऊदी अरब को ही देख लीजिए इस देश में इस्लाम धर्म की जन्म भूमि कहते है  लेकिन आज इस देश में लगातार हजारों वर्षों से लगी महिलाओं पर पाबंदियों को धीरे-धीरे एक-एक करके हटाया जा रहा है और उनको समान अधिकार प्रदान किया जा रहा है जिससे वह भी देश का समाज का, अपने परिवार का उसके बाद अपने धर्म का नाम रोशन पूरी दुनिया में भर में कर सकेंगे

और अगर हम इन महिलाओं और पुरुषों को जो इस्लाम धर्म में प्राप्त बुराई को दूर करने की कोशिश में लगे हुए हैं इन्हें एक बंद कमरे में रख दें और लोगों से कहें कि हमारे धर्म का विकास नहीं हो रहा है दुनिया में प्रचार प्रसार नहीं हो रहा है यह क्या सही है ? 

इस हिसाब से देखें तो बांग्लादेश और पाकिस्तान में सिर्फ नाम मात्र का ही लोकतंत्र , काम का नहीं | 

क्योकि वहा पर एक ही पक्ष को अपनी बातें रखने का अधिकार है दूसरा पक्ष बोलने , आलोचना करने की बात तो दूर की मुख ही नहीं खोलता है इस बारे में क्या इन देशों को कोई समझाने वाला है ?

आप भी हो सकते हैं क्योंकि इस बुराई को दूर करने के लिए किसी दूसरे ग्रह से कोई नहीं आने वाला है दुनिया के अन्य देशों में आप देखे लोकतंत्र क्या होता है क्योंकि लोकतंत्र की कीमत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत ही अधिक होती है ऐसे में बांग्लादेश और पाकिस्तान में व्याप्त धर्मतंत्र या राजतंत्र को एक न एक दिन अपने तौर तरीके बदलना ही होगा लेकिन वह समय कब आएगा ? और कौन लेकर आएगा ? 

बुराई किसी भी धर्म के मूल में नहीं है लेकिन आज जो इसके बड़े ज्ञाता बने हुए हैं इनके अंदर ही सभी बुराई है दुनिया का कोई भी धर्म हमे नफरत करना नहीं सिखाता लेकिन आज कितनी शांति है पूरी दुनिया में किसी से छिपी नहीं है

क्या वास्तव में इस्लाम धर्म में बुराई है ?  

आप अपने धर्म के पांच अच्छे और पांच गलत बातें बताएं.................

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3 टिप्पणियाँ

  1. ab allah hi rah dikhaye kyoki ye sab to kuch sudhar karne wale to hai nahi

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  2. aap jo bhi hai kahi to baat aapne ekdam sahi hai esliye mai muslim hokar bhi kisi dharm ko follow nahi karta hu kaam karta hu fal ki eksha nahi

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  3. na hindu bura na hi muslim bura hai bura to hai burai bhrne wale ye majhabi aur kattar log

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