समझते हैं उत्तर प्रदेश राज्य को







 सबसे पहले समझते हैं उत्तर प्रदेश राज्य को:

 उत्तर प्रदेश नाम का राज्य हमें क्या संदेश देता है कभी आपने जानने की कोशिश की? 

जैसे एजुकेशन की बात हो तो सीधे ध्यान केरल पर जाता है छुट्टी मनाने की बात हो तो गोवा व काम धंधे से पैसा कमाना हो तो दिल्ली इन क्षेत्रों में हमारा आपका उत्तर प्रदेश कहां है कभी आपने ध्यान दिया ?

नहीं ना इसीलिए तो आपको समस्या और उसका समाधान नहीं दिखता है और जैसे चल रहा है चलने दीजिये हमे क्या जिसको 100 बार गर्ज पड़ेगी वो सुधर करेगा ही ......

यह राज्य जहां 36 राज्यों ( अर्थात 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेशो ) की कुल आबादी का 15% आबादी रहती है जिसने वर्तमान सरकार को उसके कुल लोकसभा सदस्यों में से 20% सदस्य दिए हैं। इस राज्य ने वर्तमान में देश  के प्रधानमंत्री के साथ साथ रक्षामंत्री भी दिया है लेकिन यह राज्य हमसे क्या कह रहा है कभी हमने इसे सुनने और जानने की कोशिश की ?

यह 75 जिलों वाला राज्य है अर्थात भारत देश में कुल 739 जिलों में से लगभग 10% जिले इस राज्य में है इस राज्य को संभालना कितना मुश्किल है यह समझने के लिए हम कुछ देशों को देखे जिनकी आबादी लगभग उत्तर प्रदेश की आबादी के ही आसपास है।

जैसे पाकिस्तान और ब्राजील देश की जनसंख्या लगभग 20 करोड़ के आस पास है इतनी ही उत्तर प्रदेश की भी मान ले। PAK  की इतनी बड़ी आबादी पर 4 बड़े राज्य हैं और 2 स्वायत्त संघीय इकाईयां (केंद्र शासित प्रदेश ) है।

ब्राजील देश में इसी तरह कुल 26 राज्य है और भारत के उत्तर प्रदेश राज्य सरकार को अकेले ही इतना संभालना होता है और यह असंभव कामो में से एक है और यह प्रदेश के प्रशासन के स्तर और राज्य के सामाजिक संकेतों से जाहिर होता है।

कुछ समय पहले एक रिपोर्ट भी जारी की गई थी की आबादी के मामले में PAK की बराबरी करने वाला उत्तर प्रदेश राज्य सामाजिक संकेतको की लगभग बराबरी किस तरह होती है।



वैसे तो कुछ संकेतो में उत्तर प्रदेश बेहतर है जैसे शिशु मृत्यु दर में जबकि प्रति व्यक्ति आय , स्त्री पुरुष अनुपात के मामले में यह राज्य पाकिस्तान से भी गड़बड़ स्थिति में है और जनसंख्या के वृद्धि के मामले में दोनों लगभग बराबरी  पर चल रहे हैं।

बताया तो यह भी जा रहा है कि उत्तर प्रदेश की जनसंख्या वृद्धि दर इधर कुछ धीमी हुई है मगर यह पाकिस्तान की दर की लगभग 2 %  के बराबर है लेकिन यह  शेष भारत के राज्यों से दोगुनी दर है।

यूपी की प्रति व्यक्ति आय का डाटा राष्ट्रीय औसत का आधा है उत्तर प्रदेश में अपराध दर , माफिया की पैठ ,  राजनीति का अपराधीकरण  तो जैसे फिल्मी कहानी है इसकी वजह है इसका विशाल आकार और उसकी राजनीति जो जाति तथा धर्म के आधार पर इतनी बटी हुई है कि सरकार से बाहर रह गए तत्व संरक्षण , इंसाफ और  बराबरी के हक़ के लिए जातीय माफिया और बाहुबलियों की शरण लेते है यह सब कैसे काम करता है 

आइये इसे देखने व समझने की कोशिश करते है जैसे इस राज्य में अगर किसी यादव पिता या पुत्र की सरकार है तो इसका मतलब यह है की सभी प्रदेश  भर के यादव सत्ता  में है और उनकी ही सरकार और उनकी ही चलने वाली है और होता भी यही है जबकि राज्य में यादवो की आबादी मात्र 9 % ही है ये कभी मुसलमानों के साथ तो कभी ठाकुरों के साथ गठजोड़ कर लेते है और पुरे प्रशासन , विकास के लिए सारे  आवंटन जैसे ( नलकूप और अन्य विभाग ) के सरकारी पदों पर नियुक्तिया  तक सब कुछ में इन्हें ही प्राथमिकता दी जाती है 

और जो जातियां खुद को वंचित या ठगा महसूस करती है वे अपने माफिया सरगनाओ का सहारा लेती हैं और इसी कारण से ऐसी प्रतिरोधी परिस्थितया बनती हैं जिसमें वे जातीय माफिया ज्यादा सक्रिय होते हैं जो सत्ता से बाहर होते हैं।

कुछ तथ्यों  से बात को समझा जाए जैसे 1980 के दशक तक जब प्रायः इस राज्य में ऊंची जातियों के नेता मुखमंत्री होते थे तो अपराधी गिरोह और डकैत पिछड़ी जातियों के होते थे।

ये विश्व नाथ प्रताप सिंह ही थे जिन्होंने मुखमंत्री के रूप में 1981- 82 में मात्र एक महीने के अंदर  299 डकैतों को मरवाकर राज्य में एनकाउंटर का चलन शुरू किया था ।

इस पर तब रोक लगी जब बदले की कार्यवाही के तहत , दुर्भाग्यवश इनके भाई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायधीश चंद्रशेखर प्रसाद सिंह और इनके बेटे की हत्या कर दी गई और इस घटना के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इस्तीफा ही दे दिया।

इसके साथ ही राजनीतिक कहानी यह है कि मुलायम सिंह यादव नाम के एक युवा पहलवान ने इन एनकाउंटर के खिलाफ मुहिम चलाने वाले मानवाधिकार कार्यकर्त्ता के रूप में मशहूर हो रहे थे। इन एनकाउंटर में मारे जाने वाले अधिकतर लोग पिछड़ी जाति के थे जो आगे चलकर मुलायम सिंह के समर्थक और सहयोगी बने और जब सरकार यादवों के साथ साथ निचली और पिछड़ी जातियों के हाथ में आई तो ऊंची जातियों ने संगठित होकर अपराध करना शुरू दिया

और इस प्रकार ब्राह्मणों और ठाकुरों के कई माफिया गैंग उभरकर सामने आए और पश्चिम उत्तर प्रदेश अपने आप में अराजकता की अपनी ही मिसाल बन गया।

आपको याद भी रहना चाहिए कि प्रदेश के अंतिम ब्राह्मण मुख्यमंत्री 1989 में नारायण दत्त तिवारी थे इनसे पहले गोविंद बल्लभ पंत से लेकर कमलापति त्रिपाठी तक कई ताकतवर  ब्राह्मण मुख्यमंत्री यहां राज कर चुके हैं और 32 वर्षों से यह समुदाय राजनीतिक सत्ता से वंचित है। इसी कारण से विकास दुबे कानपुर में रॉबिन हुड बन गया था और कभी  गोरखपुर के सांसद  हरिशंकर तिवारी और इन्ही का तैयार हुआ गैंग का सदस्य शिव प्रकाश शुक्ला को कौन नहीं जानता है जिसने आम जनता को पता नहीं कितनी बार धमकिया दी लोगो के घरो को लुट लिया गया गाँव के गाँव ख़त्म कर दिए गए यहाँ तक की तत्कालीन राज्य के मुख्यमंत्री को जान से मारने तक की सुपारी ले रखी थी शिव प्रकश शुक्ला के एनकाउंटर के बाद जब तक  मुख्यमंत्री जी ने अपनी आँखों से लाश को देख नहीं लिया था तब तक विश्वास नहीं हो रहा था और इसके लिए काफी वर्षो से मिशन चलाया जा रहा था लेकिन हमेशा राजनीतिक नेताओ के सहयोग से बचता रहा लेकिन जब खुद हरी शंकर तिवारी के बेटे को शिव प्रकाश शुक्ला ने मारा तब जाकर लोगो को इसकी पहली फोटो मिली इस तरह से देखा जाये तो इस राज्य   में कितने  रॉबिन हुड हुए ये बताना किसी के लिए आसान नहीं है |

पिछले 70  वर्षो में यह राज्य कोई नया उपक्रम नहीं विकसित कर पाया दिल्ली से सटे नोयडा को छोड़ दे तो आपको कही भी औद्योगिक  इकाईया नहीं दिखाई देगी बटवारे के समय इस राज्य को भारत के कुछ सबसे प्राचीन और सुन्दर शहर मिले थे चाहे वो वाराणसी शहर जो दुनिया का पहला शहर माना जाता है या लखनऊ शहर जो श्री राम जी के भाई लक्ष्मण जी के नाम पर बसाया गया था , अयोध्या जो भगवान् श्रीराम जी की जन्मस्थली रही है कितना विवादित रहता है समय  समय पर , मेरठ शहर वो शहर है जहा से भारत की प्रथम स्वतंत्रता क्रांति की ज्वाला  जलाई गई थी , 

या गोरखपुर शहर जो कई क्रांतिकारियों  के कारण से जाना जाता है इसके साथ ही बलिया जिले की बात किया जाया जहा से मंगल पांडे थे जिन्होंने अंग्रेजो का डटकर मुकाबला किया था और पीछे नहीं हटे भले ही फांसी  के फंदे पर चढ़ गए , या मथुरा शहर जो भगवान् श्री कृष्ण जी की जन्म स्थली है जो आज भी विवादित है जहा 24 घंटे फ़ोर्स की निगरानी बनी रहती है  जैसे गोंडा जिले की ही बात किया जाये तो

 इसी जिले से महर्षि पतंजलि थे जिन्होंने आयुर्वेद की शुरुआत की थी लेकिन आज पतंजलि जी का नाम पूरी दुनिया भर में हो गया है और कई लोगो ने तो अपना विजनेस ही इनके नाम पर बना रखा है लेकिन यहाँ गोंडा के लोगो को ही इनके इतिहास और इनके कार्यो के बारे में ठीक से जानकारी नहीं है और न ही इनके जन्मस्थान को पर्यटक स्थल आज तक घोषित किया गया ऐसे ही एक और महापुरुष इसी गोंडा जिले से थे महर्षि तुलसीदास जी जिन्होंने आगे चलकर रामचरित मानस की रचना की थी 

यही गोंडा जिले के पड़ोस में एक जिला है श्रावस्ती जिला जो भगवान् गौतम बुध का वो क्षेत्र है जहा पर बुध जी ने सबसे अधिक बार उपदेश दिया और सबसे अधिक समय यही पर बिताया था यहाँ तक की वर्षा ऋतु के 4 महीने सभी बौद्ध भिक्षु इसी जिले के गुफे में बिताते थे और अपने पिछले 8 महीने  में किये गए पापो की क्षमा मांगते थे इसके लिए एक विशेष कार्यक्रम भी होता था 

 गोरखपुर और संतकबीर नगर जिले के बॉर्डर पर बसा मगहर शहर को कौन भूल सकता है जहा पर कबीर दास जी ने अपने जीवन का अंतिम समय को बिताया था जो उस समय के समाज में बसे रुढ़िवादी नियमों के सबसे कट्टर विरोधी थे और आज भी मगहर में आप इनके उस भाव को देख सकते है जहा एक साथ हिन्दू और मुस्लिम शांतिपूर्वक रहते है 

सी संत कबीर नगर जिले में एक गाँव है लहुरादेवा जहा पर कृषि करने के साक्ष्य करीब 8000 साल पहले के मिले है अर्थात जब दुनिया में कही कृषि की शुरुआत ही नहीं हुई थी तो यहाँ के लोग चावल की खेती करते थे लेकिन आज दुःख होता है की न तो राज्य सरकार और ना ही केंद्र सरकार ने इस पर ध्यान दिया क्योकि अगर आपको  इस स्थान को देखने जाना हो तो आपको काफी सोच विचार करना होगा क्योकि जाने के लिए ठीक रास्ते तक नहीं है वर्षा के समय तो कोई भूल कर भी जाने को ना सोचे 

राज्य के पश्चिमी भागो में हरित क्रांति वाले कुछ जिलो को छोड़ बाकि राज्य के हिस्सों का कृषि में बुरा हाल है  |

240000 वर्ग किलोमीटर में  फैले 75 जिलों में बसे 20 करोड़ आबादी वाले राज्य को संभालना किसी एक सरकार और एक व्यक्ति के बस की बात नहीं है इसी तरह 80 लोकसभा सीटे किसी एक राज्य को संघीय गणतंत्र को बहुत ही ताकतवर बनाती है यह तो गुजरात (26 सीट ), राजस्थान ( 25 सीट ) और कर्नाटक ( 28 सीट ) की कुल लोकसभा सीटों की योग से भी ज्यादा है और यही राजनीति की क्षमता पैदा करता है 
खासकर इसलिए क्योंकि यह राज्य जाति और धर्म के आधार पर इतना बटा हुआ है कि सामाजिक संकेतों में सुधार करने की हालात बिलकुल विपरीत है उत्तर प्रदेश राज्य को 5 नहीं तो 4 हिस्सों में जरूर बाटना   चाहिए बहुत पहले से ही पश्चिम के जिलों में हरित प्रदेश की मांग हो रही है दक्षिण में बुंदेलखंड के साथ साथ मध्य प्रदेश के कुछ पड़ोसी जिलों को मिलाकर एक अलग प्रदेश बनाया जा सकता है 
गोरखपुर को राजधानी बनाते हुए पूर्वांचल नाम से एक अलग प्रदेश में पूर्व में नेपाल सीमा से बिहार तक के जिलों को शामिल किया जा सकता है मध्यवर्ती क्षेत्र को अवध प्रदेश या किसी और नाम से प्रदेश के रूप में विकसित करते हुए लखनऊ से शासित किया जा सकता है इस तरह चार नए राज्य बन जाएंगे। लेकिन ख्याल से 5 राज्य ज्यादा बेहतर होंगे क्योकि पूर्वांचल आकार में काफी बड़ा हो जाएगा और इसके साथ ही वह अभी भी बहुत ही कम विकसित है इसलिए पूर्वांचल को भी दो भागो में बाटा जा सकता है जबकि वाराणसी को दुसरे राज्य की राजधानी बनाया जा सकता है |

लेकिन सच्चाई तो यह है कि कोई भी राजनीतिक नेता या पार्टी यह  नहीं करना चाहती है पूर्ण बहुमत से राज करने वाले का तो निहित स्वार्थ  इसी में है कि उत्तर प्रदेश अखंड बना रहे हैं और जो चल रहा है उसके साथ छेड़छाड़ क्यों किया जाए चाहे वह कितना भी बिखरा हुआ क्यों ना हो जब तक इस चुनौती को कोई स्वीकार नहीं करता तब तक इस प्रदेश के लिए उम्मीद नजर नही आती |
जिसमें देश की कुल आबादी का छठा हिस्सा रहता है कुछ छोटे राज्यों को देख लिए जाएं जैसे केरल में 14 जिले,  गोवा में 2  जिले,  दिल्ली में 10 जिले ऐसे ही और राज्य जिनकी संख्या उत्तर प्रदेश की तुलना में बहुत ही कम है लेकिन कितने अधिक विकसित है यह किसी से भी छिपा नहीं है ।

जैसे एजुकेशन की बात हो तो सीधे ध्यान केरल पर जाता है छुट्टी मनाने की बात हो तो गोवा व काम धंधे से पैसा कमाना हो तो दिल्ली इन क्षेत्रों में हमारा आपका उत्तर प्रदेश कहां है कभी आपने ध्यान दिया?





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Ashish Dwivedi

1 टिप्पणियाँ

  1. ankhe khol dene wali baate kiya hai aapne kyoki jo sach hai wo to chhip nahi sakta hai kisi ki bhi sarkar ho ...........kuch point jaise aapne foolan devi ka jikra nahi kiya yaha to karna hi chahiye tha ....

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